समाजशास्‍त्र / Sociology

संयुक्त परिवार का अर्थ, परिभाषा विशेषताएं एवं संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तन

संयुक्त परिवार का अर्थ
संयुक्त परिवार का अर्थ

संयुक्त परिवार का अर्थ / संयुक्त परिवार किसे कहते है?

वे परिवार संयुक्त परिवार कहलाते हैं जिन परिवारों में तीन या तीन से अधिक पीढ़िय के सदस्य तथा अन्य रक्त सम्बन्धी व्यक्ति एक साथ रहते हैं, एक साथ भोजन करते हैं तथ इनकी सम्पत्ति भी संयुक्त होती है। ऐसे परिवार भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पाये जाते हैं इनको निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है –

संयुक्त परिवार की परिभाषा (sanyukt parivar ki paribhasha)

“हम उस गृह को संयुक्त परिवार कहते हैं जिसमें एकाकी परिवार से अधिक पीढ़ियों (अर्थात् तीन या अधिक) के सदस्य रहते हैं और जिसके सदस्य एक-दूसरे से सम्पत्ति, आप और पारस्परिक अधिकारों तथा कर्त्तव्यों द्वारा सम्बद्ध हों।” – आई. पी. देसाई

“एक संयुक्त परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो सामान्यतः एक ही रहते हैं, जो एक ही रसोई में बना भोजन करते हैं, जो सम्पत्ति के सम्मिलत स्वामी होते हैं तथा जो सामान्य पूजा में भाग लेते हो और जो किसी न किसी प्रकार से एक-दूसरे सम्बन्धी हों।” – इरावती कर्वे

“यदि कई मूल परिवार एक साथ रहते हों और उनमें निकट का नाता हो, एक ही स्थान पर भोजन करते हों और एक ही आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करते हों, तो उन्हें उनके सम्मिलित रूप में संयुक्त परिवार कहा जा सकता है।’ – डा. दुबे

उपरोक्त परिभाषाओं पर अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि संयुक्त परिवार विस्तृत परिवार का ही एक प्रकार है, जिसका आकार एकाकी परिवार से प्रायः बड़ा होता है क्योंकि उसमें कई एकाकी या मूल परिवार के लोग साथ-साथ रहते हैं अथवा एक से अधिक पीढ़ी के लोग इसके सदस्य होते हैं, जिनमें निवास, रसोई व पूजा घर आदि की संयुक्तता मिलती है।

संयुक्त परिवार की विशेषताएं (sanyukt parivar ki visheshta)

संयुक्त परिवार में दो या तीन पीढ़ियों के लोग एक साथ निवास करते हैं। उनकी संपूर्ण – जीवनचर्या साथ-साथ चलती है। संयुक्त परिवार की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1. एक निवास- संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक ही घर में निवास करते हैं।

2. एक भोजनशाला- संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों का भोजन एक साथ ही तैयार होता है।

3. सामूहिक सम्पत्ति – परिवार की सम्पत्ति पर सबका अधिकार होता है, इसका मुखिया परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही होता है।

4. सामूहिक भागीदारी- परिवार के सभी लोग तीज त्यौहार, धार्मिक उत्सवों में सामूहिक रूप से भाग लेते हैं, वे आपसी सुख-दुख भी साथ रहते हैं।

5. बड़ा आकार- संयुक्त परिवार का आकार काफी बड़ा होता है क्योंकि इसमें पिता, माता, चाचा, ताऊ, दादा, दादी, पुत्र, बहुएँ व उनके बच्चे, लड़कियाँ एवं अन्य रिश्तेदार एक साथ रहते हैं।

6. सदस्यों का असीमित उत्तरदायित्व- परिवार के प्रति उसके सदस्यों का असीमित उत्तरदायित्व होता है।

7. कर्त्ता का अधिक महत्व- संयुक्त परिवार में अन्य सदस्यों की अपेक्षा कर्ता का पिता या अन्य कोई बुजुर्ग पुरुष सदस्य का अत्यधिक महत्व होता है।

8. पारस्परिक प्रेम व सहयोग- संयुक्त परिवार के सदस्यों में पारस्परिक प्रेम व सहयोग की भावना पायी जाती है।

9. सम्मिलित धर्म- सामान्यतः संयुक्त परिवार के सभी सदस्य एक ही धर्म को मानते हैं और उसी धर्म से सम्बन्धित कर्त्तव्यों को सम्मिलित रूप से निभाते हैं।

10. पारस्परिक कर्त्तव्य- संयुक्त परिवार के सभी सदस्य परिवार के किसी भी कर्त्तव्य को सम्मिलित रूप से निभाते हैं।

परिवार की अस्थिरता में उत्तरदायी कारक

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि परिवार संस्था को विघटित करने वाले कारकों में तेजी से वृद्धि होती जा रही है। वे कारक निम्न प्रकार से है –

1. भौतिकवादी सभ्यता- जहाँ से परिवार का आरम्भ होता है, वहाँ सामाजस्य व संयम – तथा सहभागिता की प्रमुख भूमिका थी। आज व्यक्ति भौतिकवादी सभ्यता की ओर आकर्षित हो रहा है, अकेले रहकर सुख को प्राथमिकता देने लगा है और एकांकी रहने में अधिक सुखी महसूस करता है। परिवार में वह बन्धन महसूस करता है।

2. औद्योगीकरण- औद्योगीकरण ने परिवार के अस्तित्व को गहरा धक्का पहुँचाया है। घर छोड़कर बाहर नौकरी की तलाश में जाने वाले परिवारिक सदस्य पुनः स्थापित नहीं हो पाते हैं। 3. पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का प्रभाव वर्षों पहले भारत में प्रविष्ट हो चुका था जहाँ परिवार एक संस्था नहीं समझौता होता है, जिसमें बच्चे और माँ के मध्य में स्थायी सम्बन्ध नहीं माना जा सकता है। हमारे परिवार भी इसका शिकार हो रहे हैं। 

संयुक्त परिवार में आधुनिक परिवर्तन (Recent Changes in Joint Family)

संयुक्त परिवार में निम्नलिखित आधुनिक परिवर्तन हुए –

1. आकार में परिवर्तन- संयुक्त परिवार तीन या अधिक पीढ़ियों के कई सदस्यों के एक साथ रहने से इनका आकार बड़ा होता था, किन्तु अब छोटे-छोटे परिवार बनने लगे हैं, जिनमें पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे होते हैं।

2. कर्ता की सत्ता का ह्रास- पहले परिवार के मुखिया का निर्णय परिवार के सदस्यों को मान्य होता था, किन्तु आज भी नवीन पीढ़ी पिता की निरंकुश सत्ता को नहीं मानती। वह अपने निर्णय स्वयं लेने लगी है।

3. विवाह के रूप में परिवर्तन- पहले जीवन साथी का चुनाव करने में माता-पिता एवं रिश्तेदारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी, लेकिन अब लड़के व लड़कियाँ अपना जीवन साथी स्वयं चुनने लगे हैं।

4, पारिवारिक सम्बन्धों में परिवर्तन- संयुक्त परिवार के सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्ध में शिथिलता आयी है। घनिष्ठता एवं आत्मीयता के स्थान पर वर्तमान में औपचारिकता पायी जाती है, पारिवारिक नियन्त्रण कमजोर हुआ है, अब परिवार मात्र एक औपचारिक संगठन होता जा रहा है।

5. मनोरंजन में परिवर्तन- पहले संयुक्त परिवार स्वयं ही अपने परिवार को मनोरंजन प्रदान करता था, लेकिन अब यह कार्य रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, सर्कस व क्लब आदि करने लगे हैं।

6. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन- पहले संयुक्त परिवार द्वारा सदस्यों के धार्मिक कार्य की पूर्ति की जाती थी, किन्तु धर्म का महत्व घटने से धार्मिक कार्यों में कमी आयी है।

  1. परिवार की विशेषताएँ | Characteristics of Family in Hindi
  2. परिवार में आधुनिक परिवर्तन | Modern Changes in Family in Hindi
  3. परिवार की उत्पत्ति का उद्विकासीय सिद्धान्त
  4. परिवार का अर्थ एवं परिभाषा | परिवार के प्रकार | परिवार के कार्य

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