भारत सरकार के विभिन्न विकलांग राष्ट्रीय संस्थानों के कार्य
विकलांगों के राष्ट्रीय संस्थानों की विकलांगों के कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि इन संस्थानों का प्रमुख दायित्व विकलांग व्यक्तियों की सहायता करना है जिससे वे सामान्य व्यक्तियों की भाँति जीवन व्यतीत कर सकें। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से विशेष बच्चों के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न कार्य योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इन संस्थानों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
(i) इन संस्थानों का प्रमुख कार्य विकलांगता को रोकने के सन्दर्भ में प्रयास करना है, जिससे कि आने वाले समय में विकलांगों की संख्या में वृद्धि न हो।
(ii) विकलांगता को रोकने के लिए साहित्य एवं सामग्री का प्रसारण करना, जिससे व्यक्ति विकलांगता के बारे में जान सकें तथा इनसे दूर रह सकें।
(iii) विकलांगों की कल्याण समिति में इनके निर्देशकों को सम्मिलित किया जाता है जो कि विकलांगता सम्बन्धी विशेष सुझाव प्रस्तुत करते हैं।
(iv) विकलांगों का कल्याण करने वाली अनेक संस्थानों का मार्ग-दर्शन करना कि किस प्रकार वे विकलांग व्यक्तियों की सहायता कर सकते हैं?
(v) विकलांगता की स्थिति को परिभाषित करना कि किन व्यक्तियों को विकलांगता की श्रेणी में रखा जा सकता है तथा किन व्यक्तियों को विकलांगता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है?
(vi) सरकार को नवीन व्यवस्थाओं के बारे में प्रस्ताव भेजना जो कि विकलांगों के कल्याण से सम्बन्धित हो।
(vii) नवीन शोध कार्यों को प्रोत्साहन देना तथा इन्हें सम्पन्न करना, जिससे विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं पर रोक लगायी जा सके।
(vii) विकलांगों के सर्वांगीण विकास में अपना योगदान प्रस्तुत करना, जिससे वे सामान्य व्यक्तियों की भाँति अपने विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकें।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि विकलांगों के राष्ट्रीय संस्थानों की विकलांगता निवारण एवं विकलांग व्यक्तियों के कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इन संस्थानों की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य विकलांगों का सर्वांगीण विकास करना है। सरकार द्वारा इन संस्थानों से समय-समय पर सलाह माँगी जाती है, जिससे विकलांगों के लिए तैयार कार्यक्रम प्रभावी हो तथा उनका क्रियान्वयन भी प्रभावी हो। विकलांग शिक्षा के सन्दर्भ में भारत सरकार की नीतियाँ एवं कार्यक्रम स्वतन्त्रता के पश्चात् तीव्र गति से निर्मित हुए हैं। विशिष्ट शिक्षा के प्रति सरकार की सजगता स्वतन्त्रता के पश्चात् अधिक प्रभावी दृष्टिगोचर होती है।
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में कुछ विद्यालय सरकारी क्षेत्र में चलते थे, जिनमें सामान्य शिक्षा प्रदान की जाती थी तथा मानसिक एवं बौद्धिक उत्थान के लिए प्रयास किए जाते थे। इस क्षेत्र में कुछ स्वयंसेवी संस्थानों की सहायता भी ली जाती थी। शारीरिक अक्षमता वाले व्यक्तियों के सामान्य चिकित्सालय भी थे। अतः इस प्रकार शारीरिक अक्षमता वाले व्यक्तियों के लिए सरकार की कोई विशेष नीति एवं व्यवस्थापन नहीं था।
भारत सरकार के विभिन्न विकलांग राष्ट्रीय संस्थानों के विशिष्ट शिक्षण सम्बन्धी नीति
स्वतंत्रता के पश्चात् विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। सरकार द्वारा इसका व्यवस्थापन प्रभावी ढंग से किया गया है। सरकार की विशिष्ट शिक्षा सम्बन्धी नीतियों एवं व्यवस्थापन को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है-
1. राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों की स्थापना (Establishment of National Level Institutions)– सरकार द्वारा प्रमुख रूप से शारीरिक अक्षमता निवारण के लिए देहरादून, कोलकाता, सिकन्दराबाद तथा मुम्बई में राष्ट्रीय संस्थान खोले गए। इन संस्थानों का प्रमुख कार्य अक्षमता से युक्त छात्र एवं छात्राओं के कल्याण के लिए कार्य करना है। इनके द्वारा छात्रों को शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामान्य जीवन स्तर प्रदान करने की दिशा में कार्य किया जाता है। इन संस्थानों के द्वारा विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किए गए हैं।
2. व्यावसायिक आरक्षण (Vocational Reservation)- सरकार द्वारा विकलांग व्यक्तियों को सरकारी प्रतिष्ठानों में आरक्षण प्रदान किया जाता इस प्रकार के व्यक्तियों के लिए निर्धारित सीटों की संख्या आरक्षित कर दी जाती है। इन स्थानों पर विकलांग व्यक्तियों को ही नौकरी मिल सकती है तथा किसी सामान्य व्यक्ति को इस स्थान पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है । इस प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था सामान्य रूप से कार्य की प्रकृति देखकर लागू की जाती है; जैसे विकलांग व्यक्ति को एक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, परन्तु सेना में उसको आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
3. शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण (Reservation in Teaching Institutions) – शिक्षण संस्थानों में भी विकलांग छात्रों को आरक्षण प्रदान किया जाता है, जिससे कि उनको प्रत्येक विद्यालय में प्रवेश में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है। इसके साथ-साथ सरकार इस प्रकार के छात्रों को ये अनुभव कराना चाहती है कि वे भी सामान्य छात्रों की भाँति इन विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।
4. शोध कार्यों को प्रोत्साहन (Motivation to Research Work) – सरकार द्वारा शारीरिक अक्षमताओं से सम्बन्धित शोध कार्यों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। राष्ट्रीय संस्थानों में उन सभी विषयों पर शोध कार्यों के लिए सरकार आर्थिक सहायता प्रदान करती है, जो व्यक्तियों की अक्षमता को दूर करने में सहायता करते हैं; जैसे- श्रवण दोष को कम करने के लिए कान में लगाने वाली मशीन का आविष्कार करना तथा उन उपायों के बारे में पता लगाना, जिससे श्रवण दोषों से दूर रहा जा सकता है।
5. जिला पुनर्वास केन्द्रों की स्थापना (Establishment of District Rehabilitation Centres)- सरकार द्वारा अक्षम व्यक्तियों की सहायता के लिए 10 राज्यों में जिला स्तर पर जिला पुनर्वास केन्द्रों की स्थापना की गई है। इनका प्रमुख कार्य जिला स्तर पर अक्षम व्यक्तियों की प्रत्येक संभव सहायता करना है, जिससे कि वह समाज में सामान्य नागरिकों की रह सकें तथा उनको कोई भी हेय दृष्टि से न देखे। ये केन्द्र अक्षम व्यक्तियों के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण कार्यों का सम्पादन करते हैं।
6. क्षेत्रीय पुनर्वास प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना (Establishment of Regional Rehabilitation Training Centres) – जिला पुनर्वास केन्द्रों की स्थापना के बाद सरकार के समक्ष यह समस्या उत्पन्न हुई कि इन केन्द्रों के कर्मचारियों को किस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए जिससे ये अक्षमता से युक्त व्यक्तियों के पुनर्वास में सहायता कर सकें। इसके लिए सरकार द्वारा चार पुनर्वास प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की गई। इन केन्द्रों का मुख्य उद्देश्य जिला पुनर्वास केन्द्रों के कर्मचारियों को प्रभावी एवं उपयोगी प्रशिक्षण प्रदान करना है, जिससे कि वे परिस्थिति विशेष में साधनों के अभाव में भी पुनर्वास कार्यक्रम का उचित संचालन कर सकें।
7. सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy of 1986)- जिसमें बताया सरकार की इस विषय में विशेष रुचि उस समय दृष्टिगोचर हुई, जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अनुच्छेद 4.9 में विशिष्ट शिक्षा के प्रावधानों का वर्णन किया गया, गया कि सामान्य रूप से अक्षमता वाले छात्रों की शिक्षा नियमित विद्यालयों में होगी। गम्भीर रूप से शारीरिक अक्षमता वाले तथा सामान्य से भिन्न छात्रों की शिक्षा के लिए विशेष विद्यालय खोले जाएँगे। इन विद्यालयों में आवासीय सुविधा उपलब्ध होगी, जिससे उनको आवागमन की परेशानी से मुक्त रखा जा सके। ये विद्यालय एक जिले में एक होगा।
8. प्रशिक्षण व्यवस्था में परिवर्तन (Change in Training System)- अक्षमता से युक्त छात्रों के लिए यह निश्चिय किया गया कि प्रशिक्षण महाविद्यालयों में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे छात्राध्यापकों को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाए कि वे अक्षम छात्रों को भी सामान्य छात्रों के साथ प्रभावी विधि से शिक्षण प्रदान कर सकें। सेवारत शिक्षकों को भी अल्पकालीन प्रशिक्षण प्रदान करके इस योग्य बनाया जाए कि वे अक्षमता वाले तथा सामान्य से भिन्न छात्रों को शिक्षा प्रदान करने में असुविधा का अनुभव न कर सकें।
9. विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में उपाधियाँ (Degrees in the Field of Special Education) – विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में 37 डिप्लोमा तथा 3 शिक्षा स्नातक उपाधियाँ प्रदान की जा रही हैं भारत की पुनर्वास परिषद् द्वारा इन उपाधियों के व्यवस्थापन का कार्य किया जा रहा है। यह परिषद् सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग के अन्तर्गत कार्य करती है। इसमें विशिष्ट शिक्षा की शिक्षण विधियों एवं प्रबन्ध के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। ये सम्पूर्ण कार्य अक्षमता से युक्त छात्रों के लिए भारत की पुनर्वास परिषद् द्वारा ही सम्पन्न किए जाते हैं।
10. जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (District Primary Education Programme)- जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण पर बल दिया। गया है। इसके साथ-साथ विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों की शिक्षा पर भी पूर्ण ध्यान दिया गया है। सरकार द्वारा यह निश्चित किया गया है कि अक्षमता से युक्त छात्र एवं छात्राओं को उनकी आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा प्रदान की जाएगी। इसके लिए इस कार्यक्रम में संवारत शिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जिससे कि वे शारीरिक रूप से अक्षम छात्रों का शिक्षण करने में असुविधा का अनुभव न कर सकें।
11. गैर-सरकारी संगठनों को प्रोत्साहन (Motivation to Non-government Organisation)- गैर सरकारी संगठनों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित करके भी इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया है। 1100 विशिष्ट विद्यालयों की स्थापना सरकारी एवं गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से की गई है। इन विद्यालयों में छात्रों को उनकी आवश्यकता एवं क्षमता के अनुरूप शिक्षा प्रदान की जाती है और अक्षमता से युक्त छात्र एवं छात्राओं का विशेष ध्यान रखा जाता है तथा प्रयास किया जाता है कि उनको भी सामान्य छात्र-छात्राओं की भाँति अधिगम प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाए।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि विकलांग शिक्षा के क्षेत्र में सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयत्न सराहनीय हैं परन्तु भारत जैसे विशाल देश में अक्षमता से युक्त व्यक्तियों को अभी पूर्ण सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो रही हैं, जिनके ये अधिकारी हैं। दूसरे शब्दों में, सरकार को इस क्षेत्र में अभी और प्रयत्न करने चाहिए तथा नवीन नियम बनाकर अक्षमता से युक्त व्यक्तियों के चहुँमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
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