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कक्षा शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक

कक्षा शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक
कक्षा शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक

कक्षा शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting the Process of Classroom Teaching)

कक्षा शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक निम्नांकित हैं:

1. शिक्षक छात्र संबंध (Teacher-pupil Relationship)- कक्षा के सामाजिक वातावरण की एक महत्त्वपूर्ण विमा शिक्षा तथा छात्र के बीच का सम्बन्ध है। यह संबंध जितना ही अधिक सफल होता है, कक्षा का सामाजिक वातावरण को उतना ही अधिक उन्नत माना जाता है। साथ ही इसका स्वस्थ एवं सकारात्मक प्रभाव छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि (academic achievement ) पर पड़ता है।

2. छात्रों के बीच सम्बन्ध (Relationship amoung pupils)- किसी कक्षा की दूसरी महत्त्वपूर्ण विमा छात्रों के बीच आपसी सम्बन्ध है। जिस कक्षा का यह संबंध संतोषप्रद होता है, वहाँ के सामाजिक वातावरण को उतना ही बेहतर समझा जाता है। शिक्षा की सफलता तथा छात्रों की संतोषप्रद शैक्षिक उपलब्धि के दृष्टिकोण से यह विमा (dimension) काफी महत्त्वपूर्ण है।

3. विद्यालय के कर्मचारियों के साथ संबंध (Relation with school staff)- यह कक्षा के सामाजिक वातावरण का एक आवश्यक अंग है। इसका अर्थ यह है कि विद्यालय के कर्मचारियों के साथ शिक्षक तथा छात्र के कैसे संबंध हैं और कर्मचारियों के बीच आपसी संबंध कैसा है ? इस वातावरण का प्रभाव भी बच्चों की शिक्षा पर निश्चित रूप से पड़ता है।

4. भौतिक सुविधाएँ (Physical facilities)– विद्यालय के सामाजिक वातावरण के अन्तर्गत भौतिक सुविधाओं का उल्लेख भी किया जाता है। विद्यालय का भवन कैसा है, बच्चों के बैठने के डेस्क कैसे हैं, पीने के पानी का कैसा प्रबन्ध है, खेलने का मैदान कैसा है, इन सारी बातों का आकलन भौतिक सुविधाओं के संदर्भ में किया जाता है। सामाजिक वातावरण के इस पक्ष का भी गहरा प्रभाव बच्चों की शिक्षा तथा शिक्षकों के अध्यापन पर पड़ता है।

5. वाह्य वातावरण के साथ संबंध (Relation with outside environment)— विद्यालय जिस स्थान पर अवस्थित है, उसके आस-पास के वाह्य वातावरण का प्रभाव भी कक्षा के सामाजिक वातावरण पर पड़ता है। अतः छात्रों तथा शिक्षकों की शिक्षा तथा अध्यापन पर क्रमशः इसका भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

कक्षा के सामाजिक वातावरण का प्रभाव कक्षा के अध्यापन तथा शिक्षण पर निम्नलिखित रूपों में पड़ता है-

1. छात्रों के शिक्षण पर प्रभाव (Effect on pupil’s learning) — जब कक्षा का सामाजिक वातावरण बेहतर होता है तो इसका अच्छा प्रभाव बच्चों के शिक्षण पर पड़ता है, जिससे उसकी शिक्षा बेहतर बन जाती है। लेकिन, इस वातावरण के दोषपूर्ण होने पर बच्चों का शिक्षण अच्छा नहीं हो पाता है और वे समस्यात्मक बन कर रह जाते हैं ।

2. शिक्षक के अध्यापन पर प्रभाव (Effect on Teacher’s teaching) – कक्षा का सामाजिक वातावरण जब स्वस्थ तथा अनुकूल होता है तो शिक्षकों का अध्यापन भी संतोषप्रद तथा प्रभावी होता है। इस वातावरण के दोषपूर्ण या अस्वस्थ होने पर शिक्षक अपने बच्चों को सही शिक्षा देने में सफल नहीं होते हैं।

3. मनोवृत्ति पर प्रभाव (Effect on attitude)— जब विद्यालय एवं कक्षा का वातावरण अच्छा होता है तो छात्र तथा शिक्षक में अनुकूल मनोवृत्तियों का निर्माण होता है। लेकिन इस वातावरण के दोषपूर्ण होने पर प्रतिकूल मनोवृत्ति का निर्माण होता है जो बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि के मार्ग में बाधक सिद्ध होता है ।

4. सामाजिक सीखना पर प्रभाव (Effect on social learning) – जब विद्यालय या कक्षा का सामाजिक वातावरण स्वस्थ होता है तो बच्चों में शैक्षिक उपलब्धि अधिक पायी जाती है क्योंकि सामाजिक व्यवस्था अनुकूल होती है।

5. समूह क्रियाओं पर प्रभाव (Effect on group activities) – विद्यालय या कक्षा का सामाजिक वातावरण स्वस्थ होता है तो समूह क्रियाएँ भी अनुकूल होती हैं, जिससे छात्र तथा शिक्षक दोनों सामूहिक जीवन सफलता के साथ गुजारने में सफल होते हैं। लेकिन, विद्यालय तथा कक्षा के सामाजिक वातावरण के अस्वस्थ होने पर सामूहिक जीवन भी दुखद बन कर रहा जाता है।

अतः विद्यालय तथा कक्षा के स्वस्थ सामाजिक वातावरण से स्वस्थ शिक्षा के साथ-साथ जीवन के अन्य पक्षों को स्वस्थ होने में भी सहायता मिलती है।

कक्षा में समूह-संबंध के सुधार की विधियाँ (Methods of Improving Group Relationship in Classroom Situation)

कक्षा-परिस्थिति में समूह तथा समूह-गत्यात्मकता के अध्ययन की आवश्यकता है। हम यह भी देख चुके हैं कि कक्षा या वर्ग भी एक सामाजिक समूह (social group) है। अत: शिक्षा एवं अध्यापन की सफलता समूह-संबंधों पर आधारित है । अब प्रश्न यह उठता है कि कक्षा में समूह – संबंध को कैसे बेहतर बनाया जाए ताकि अध्यापन कार्य समुचित रूप से संभव हो सके और बच्चे उस अध्यापन से लाभान्वित हो सकें। इस संबंध में निम्नलिखित विधियों का उपयोग किया जा सकता है :

1. अच्छे शिक्षक (Good Teachers) – कक्षा रूपी समूह का संचालक शिक्षक है। अतः कक्षा के समूह संबंध को बेहतर बनाने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक अच्छे हों । इसका अर्थ यह है कि शिक्षक में अपेक्षित योग्यता हो, छात्रों को समझने की क्षमता हो, पक्षपात के रोग से मुक्त रहने की योग्यता हो, आकर्षक भाषा हो तथा परिहास (jokes) की क्षमता हो।

2. समूह – विवेचन ( Group discussion) — कक्षा के अन्तर्गत समूह के सदस्यों के आपसी संबंधों के सुधार के लिए छात्रों के बीच समूह – विवेचन का आयोजन किया जाना चाहिए। भिन्न-भिन्न विषयों पर सेमिनार (seminars), सिम्पोजियम आदि आयोजित किया जाना चाहिए, जिसमें बच्चे सक्रिय रूप से भाग ले सकें। इससे छात्रों में सहयोग, सहानुभूति, भाईचारा की भावना, आदि शीलगुणों का विकास हो सकेगा। ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे विषयों पर वाद-विवाद न किया जाए, जिससे छात्रों के बीच सामाजिक तनाव या संघर्ष के भड़कने की संभावना हो ।

3. शैक्षिक भ्रमण (Educational tours) – कक्षा के अन्तर्गत समूह-संबंध को श्रेष्ठ बनाने के लिए यह भी आवश्यक है कि यदा-कदा शैक्षिक भ्रमण की व्यवस्था की जाए। इससे विद्यार्थियों में सहयोग का भाव विकसित हो सकेगा। उन्हें एक-दूसरे को नजदीक से देखने और समझने का अवसर मिल सकेगा। इससे उनके पारस्परिक संबंधों के बेहतर होने में निश्चित रूप से मदद मिल सकेगी।

4. उचित संचार (Proper communication) – छात्रों के पारस्परिक संबंध को बेहतर बनाने के लिए यह आवश्यक है कि संचार का उचित व्यवस्था की जाय । शिक्षालय में ऐसी व्यवस्था हो कि शिक्षक तथा विद्यार्थी एक-दूसरे के साथ आसानी से सम्पर्क स्थापित कर सकें। यह भी आवश्यक है कि विद्यार्थियों के बीच सहज संचार संभव हो। यह भी जरूरी है कि शिक्षक से शिक्षार्थी की ओर (downward communication) तथा शिक्षार्थी से शिक्षक की ओर (upward communication) की व्यवस्था की जाये। इसके अलावा शिक्षार्थी तथा शिक्षार्थी के बीच और शिक्षक तथा शिक्षक के बीच क्षैतिज संचारों (horizontal communication) की व्यवस्था भी आवश्यक है।

5. परामर्श केन्द्र (Conselling centres) – कक्षा में समूह संबंध को बेहतर बनाने के लिए शिक्षालय में सलाहकार (counsellor) की व्यवथा आवश्यक है। सलाहकार को मनोवैज्ञानिक तथ्यों से अवगत होना चाहिए ताकि वह कुसमायोजित बच्चों की समस्याओं को समझ सके तथा उनका निराकरण कर सके।

स्पष्ट हुआ कि उपर्युक्त विधियों का उपयोग करके कक्षा के अन्तर्गत समूह-संबंधों को बेहतर बनाया जा सकता है ताकि अध्यापन कार्य सफल हो सके और बच्चों को शिक्षा से अधिक-से-अधिक लाभ मिल सके।

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