B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

शिक्षार्थियों की अभिप्रेरणा को बढ़ाने की विधियाँ

शिक्षार्थियों की अभिप्रेरणा को बढ़ाने की विधियाँ
शिक्षार्थियों की अभिप्रेरणा को बढ़ाने की विधियाँ

शिक्षार्थियों की अभिप्रेरणा को बढ़ाने की विधियाँ (Techniques of Enhancing Learning Motivation)

शिक्षार्थियों का विद्यालय में आना इस बात का द्योतक है कि वे सौखने के लिये अभिप्रेरित हैं, पर कितने अधिक अथवा कम यह दूसरी बात है। उनकी इस अभिप्रेरणा के पीछे कोई एक अभिप्रेरक भी हो सकता है, दो अभिप्रेरक भी हो सकते हैं और दो से अधिक अभिप्रेरक भी हो सकते हैं। हम जानते हैं कि सीखना मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है। हो सकता है कि कुछ विद्यार्थी अपनी इस प्रवृत्ति की संतुष्टि के लिये विद्यालय आते हैं। हम जानते हैं कि मनुष्य में सामूहिकता की मूल प्रवृत्ति होती है, हो सकता है कि शिक्षार्थी इस मूल प्रवृत्ति की संतुष्टि के लिये विद्यालय आते हों। यह भी हो सकता है कि कुछ विद्यार्थी मित्रों की संगत के लोभ से विद्यालय आते हों। कुछ विद्यार्थी खेल-कूद की सुविधाओं के कारण भी विद्यालय आ सकते हैं और कुछ शिक्षार्थियों के लिये समाज में पढ़े-लिखे व्यक्तियों का उच्च स्तर होना उनकी अभिप्रेरणा का आधार हो सकता है। कुछ शिक्षार्थी इनमें से किसी एक अभिप्रेरक से अभिप्रेरित हो सकते हैं और कुछ एक से अधिक अभिप्रेरकों से। कोई शिक्षार्थी चाहे एक अभिप्रेरक से अभिप्रेरित हो और चाहे एक से अधिक अभिप्रेरकों से, वह जितना अधिक अभिप्रेरित होगा, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही अधिक सुचारु रूप से चलेगी, और सीखना भी उतना ही अधिक स्थायी होगा। विद्यार्थियों को सीखने के लिये पूर्ण रूप से अभिप्रेरित करने के लिये मनोवैज्ञानिकों ने अनेक विधियों का विकास किया है जो निम्नलिखित हैं-

(i) पढ़ाये जाने वाले विषय अथवा सिखाये जाने वाले कौशल की उपादेयता (Utility)— उपयोगिता/उपादेयता सबसे अधिक शक्तिशाली अभिप्रेरक होता है। यदि विद्यार्थियों को यह स्पष्ट कर दिया जाये कि पढ़ाया जाने वाला विषय अथवा सिखाया जाने वाला कौशल उनके जीवन में उनके लिये कितना जरूरी है तो जितना अधिक उन्हें उसकी उपयोगिता का आभास होगा, वे सीखने के लिए उतने ही अधिक अभिप्रेरित होंगे।

(ii) पढ़ाये जाने वाले विषय अथवा सिखाये जाने वाले कौशल के प्रशिक्षण के उद्देश्य- किसी पढ़ाये जाने वाले विषय अथवा सिखाये जाने वाले कौशल के प्रशिक्षण के उद्देश्य भी स्पष्ट करना आवश्यक होता है। ये प्रथम विधि से अभिप्रेरित शिक्षार्थियों को सीखने के लिये और अधिक अभिप्रेरित करते हैं। शिक्षार्थियों को सीखने जाने वाले ज्ञान अथवा कौशल के सीखने के उद्देश्य जितने अधिक स्पष्ट होते हैं वे सीखने के लिये उतने ही अधिक अभिप्रेरित होते हैं और उनकी सीखने सम्बन्धी क्रियायें भी उतनी ही अधिक लक्षित होती हैं।

(iii) शिक्षार्थियों की आवश्यकताएँ (Needs)- किसी विषय का ज्ञान एवं कौशल व प्रशिक्षण अपने में कितना भी उपयोगी क्यों न हो जब तक वह शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं की संतुष्टि नहीं करता जब तक शिक्षार्थी उसे सीखने के लिये अभिप्रेरित नहीं होता। इसलिये कौशल को शिक्षार्थी की आवश्यकताओं से जोड़ा जाना अति आवश्यक है।

(iv) शिक्षार्थियों का आकांक्षा स्तर (Level of Aspiration)- कुछ शिक्षार्थी केवल उत्तीर्ण होने भर की आकांक्षा रखते हैं, कुछ द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण होने की तो कुछ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने की । इसी प्रकार कुछ छोटी-मोटी नौकरियाँ प्राप्त करना चाहते हैं, कोई व्यवसाय व कोई अफसर श्रेणी की नौकरियाँ प्राप्त करना चाहते हैं। यह देखा गया है कि जिन विद्यार्थियों की आकांक्षा का स्तर जितना ऊँचा होता है वे तत्सम्बन्धी ज्ञान एवं कौशल सीखने के लिये उतने ही अधिक अभिप्रेरित होते हैं। अतः हम शिक्षार्थियों का आकांक्षा स्तर उठाकर उनकी अभिप्रेरणा में वृद्धि कर सकते हैं।

(v) कक्षा का वातावरण (Class Climate)- कक्षा का वातावरण भी शिक्षार्थियों को अभिप्रेरित करने में अभिप्रेरक का कार्य करता है। सुन्दर कक्ष, शुद्ध हवा, पर्याप्त प्रकाश, शान्त वातावरण, शिक्षक-शिक्षार्थियों के बीच के सम्बन्ध और शिक्षार्थियों के आपस के सम्बन्ध, इन सबसे कक्षा का वातावरण तैयार होता है। जिस कक्षा में सीखने के लिये जितना अच्छा वातावरण होता है उस कक्षा के शिक्षार्थी उतने ही अधिक अभिप्रेरित होते हैं।

(vi) उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग (Use of Suitable Teaching Methods)- शिक्षक उपयुक्त शिक्षण विधियों के प्रयोग से भी शिक्षार्थियों को अभिप्रेरित कर सकते हैं। किसी वर्ग विशेष के छात्रों के लिये उपयुक्त शिक्षण विधि वह होती है जिसमें छात्रों की रुचि होती है और जिसके द्वारा वे शीघ्र सीखते हैं। शीघ्र सफलता से पुनर्बलन मिलता है, सीखने वाले अभिप्रेरित होते हैं और सीखने की क्रिया को और अधिक गति प्रदान होती है।

(vii) शिक्षक का व्यवहार (Teacher Behaviour)- शिक्षक का शिक्षार्थियों के प्रति आत्मभाव एक अचूक रामबाण होता है। वह अपने प्रेम, सहानुभूति एवं सहयोगपूर्ण व्यवहार से शिक्षार्थियों की अभिप्रेरणा को सरलता से बढ़ सकता है। यह कार्य वह छात्रों की भावनाओं का सम्मान करके, उन्हें अभिव्यक्ति के स्वतन्त्र अवसर प्रदान करके और उनकी समस्याओं का तुरन्त हल करके कर सकता है।

(viii) प्रशंसा एवं निंदा (Praise and Blame)- इस संदर्भ में किये गये मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से दो तथ्य उजागर हुए। प्रथम यह कि औसत बुद्धि वाले शिक्षार्थियों के लिए प्रशंसा अच्छे अभिप्रेरक का कार्य करती है और छोटे बच्चों के लिये निन्दा अच्छे अभिप्रेरक का कार्य करती है । दूसरा यह कि निंदा की अपेक्षा प्रशंसा अधिक अच्छा अभिप्रेरक होता है। यह कार्य शिक्षक शिक्षार्थियों की सही अनुक्रिया के लिये प्यार एवं मुस्कान भरी स्वीकृति एवं सुन्दर, शाबास, बिल्कुल ठीक आदि शब्दों द्वारा कर सकते हैं। गलत अनुक्रिया पर निन्दा के स्थान पर सहयोग अधिक उत्तम अभिप्रेरक होता है। यदि कोई शिक्षार्थी बार-बार गलत अनुक्रिया करे तो भी उसकी निन्दा प्रेम एवं सहानुभूति के साथ करनी चाहिए।

(ix) पुरस्कार एवं दण्ड (Reward and Punishment)- इस संदर्भ में किये गये मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि जिस समूह की प्रशंसा की गई, उसकी निष्पत्ति उस समूह से अधिक थी जिसकी आलोचना की गई थी और जिसे नियंत्रण में रखा गया था। हाँ कुछ परिस्थितियों में बच्चों को दण्ड देना अभिप्रेरक का कार्य करता है। पर दण्ड बड़ी सावधानी से देना चाहिए; क्रोध की स्थिति में दण्ड देना हानिकारक होता है, शिक्षार्थी अभिप्रेरित होने के स्थान पर पलायन कर जाते हैं। पुरस्कार भी बड़ी सावधानी से देना चाहिए: यह लोभ का कारण नहीं बनाना चाहिए। पुरस्कार पदक अथवा प्रमाण-पत्र के रूप में देना अधिक प्रभावी होता है ।

(x) प्रतिद्वन्द्विता एवं प्रतियोगिता (Rivalry and Competition) – कभी – कभी स्पर्धा आधारित प्रतिद्वन्द्विता और प्रतियोगिता भी अच्छे अभिप्रेरक का कार्य करती है। यह प्रतिद्वन्द्विता व्यक्तिगत के स्थान पर सामूहिक स्तर की अधिक प्रभावशाली होती है व्यक्तिगत प्रतिद्वन्द्विता एवं प्रतियोगिता जहाँ अच्छे अभिप्रेरक का कार्य करती है वहाँ शिक्षार्थियों में द्वेष की भावना भी उत्पन्न करती है, परन्तु सामूहिक प्रतिद्वन्द्विता एवं प्रतियोगिता शिक्षार्थियों को अपने समूह को विजयश्री दिलाने हेतु अधिक श्रम करने के लिये अभिप्रेरित करती है। शिक्षकों को प्रतिद्वन्द्विता और प्रतियोगिता का उपयोग बड़ी सावधानी से करना चाहिए।

(xi) सफलता का ज्ञान (Knowledge of Success) — मनोवैज्ञानिक स्किनर ने अपने प्रयोगों में पाया कि यदि सीखने वाले को अपनी सफलता का ज्ञान तुरन्त करा दिया जाये तो वह उसके लिये अभिप्रेरक का कार्य करता है, वह उससे आगे के कार्य को और अधिक उत्साह से करता है । स्किनर ने इसे पुनर्बलन की संज्ञा दी। उन्होंने शिक्षार्थियों के इस प्रकार के पुनर्बलन देने हेतु अभिक्रमित अध्ययन का विकास भी किया है।

विशेष – शिक्षार्थियों की अभिप्रेरणा बढ़ाने की और भी अनेक विधियाँ हो सकती हैं। शिक्षकों को किसी भी विधि का चयन शिक्षार्थियों की आयु, परिपक्वता, मनोदशा, विषयवस्तु अथवा कौशल की प्रकृति और शिक्षार्थियों के पर्यावरण इन सबको दृष्टि में रखकर करना चाहिए। उपयुक्त विधि द्वारा विद्यार्थियों की अभिप्रेरणा को बढ़ाना चाहिए। यह अपने आप में एक कला है; शिक्षक को इस कला में निपुण होना चाहिए।

इसे भी पढ़े…

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment