विकलांगजन अधिनियम 1995 समग्र विकलांग कल्याण की दिशा में एक ठोस कदम है। कैसे?
विकलांग व्यक्ति भी समाज का एक अंग है। जिन्हें सहानुभूति नहीं, समान अनुभूति की आवश्यकता है। विकलांग व्यक्ति के लिए समग्र कल्याण एवं पुनर्वास सुनिश्चित करने हेतु उ. प्र. सरकार द्वारा अगस्त, 1995 में विकलांग कल्याण विभाग की स्वतन्त्र रूप से स्थापना की गई है। विभाग द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएँ चलाई जा रही हैं जिनमें निराश्रित विकलांग भरण-पोषण अनुदान छात्रवृत्ति, कृत्रिम अंग एवं सहायता उपकरण हेतु अनुदान, दुकान निर्माण हेतु आर्थिक सहायता, विकलांग व्यक्ति से विवाह करने पर प्रोत्साहन, राज्य स्तरीय पुरस्कार, आदि प्रमुख हैं। विभाग द्वारा विकलांग जन समान अवसर, अधिकार संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी अधिनियम, 1995 के प्रभावी क्रियान्वयन पर विशेष बल दिया जा रहा है। इस प्रकार के अधिनियम अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में ही लागू हैं। उपर्युक्त अधिनियम विकलांग जन समग्र कल्याण हेतु एक राष्ट्रीय संकल्प की भाँति हैं। अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों का सारांश निम्नवत् है-
अध्याय 1. प्रारम्भिक – इस अध्याय में अधिनियम के अन्तर्गत प्रयुक्त शब्दावली की परिभाषाएँ दी गई हैं । इसके अनुसार निम्न 7 प्रकार की विकलांगताओं को चिह्नित किया गया है- (i) दृष्टि बाधित, (ii) अल्प दृष्टि, (iii) कुष्ठ रोग से उपचारित, (iv) श्रवण दोष, (v) चलन विकलांगता, (vi) मानसिक रुग्णता एवं (vii) मानसिक मंदिता । अधिनियम के अन्तर्गत ऐसे व्यक्तियों को विकलांग परिभाषित किया गया है जिनकी विकलांगता 40% से कम न हो।
अध्याय 2. केन्द्रीय समन्वय समिति – अधिनियम के प्रावधानुसार केन्द्र सरकार के समाज कल्याण मन्त्री की अध्यक्षता में एक केन्द्रीय समन्वय समिति गठित किए जाने की व्यवस्था है । केन्द्रीय समन्वय समिति के द्वारा लिए गए निर्णयों के कार्यान्वयन की समीक्षा हेतु एक केन्द्रीय कार्यकारी समिति के गठित किए जाने की भी व्यवस्था है ।
अध्याय 3. राज्य समन्वय समिति- केन्द्रीय समन्वय समिति के अनुरूप प्रत्येक राज्य में एक राज्य समन्वय समिति गठित किए जाने का प्रावधान है। राज्य समन्वय समिति द्वारा लिए गए निर्णयों के कार्यान्वयन हेतु एक कार्यकारी समिति गठित किए जाने की व्यवस्था है। उपर्युक्त के परिपालन में प्रदेश सरकार द्वारा राज्य समन्वय समिति एवं राज्य कार्यकारी समिति का गठन करके इसकी नियमित बैठकें कराई जा रही हैं।
अध्याय 4. विकलांगता की रोकथाम तथा समय से पहचान- इस अध्याय के अन्तर्गत सरकारी और स्थानीय प्राधिकरणों को अधिक आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं में विकलांगता की रोकथाम एवं समय से पहचान कर निराकरण से सम्बन्धित प्रचार-प्रसार एवं शिक्षण-प्रशिक्षण, आदि की व्यवस्था की गई है।
अध्याय 5. शिक्षा- अधिनियम की धारा 26 से 31 तक दिए गए प्रावधानों के अनुसार अब यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि प्रत्येक विकलांग बच्चे को 18 वर्ष की उम्र तक निःशुल्क और समुचित शिक्षा मिले। स्थानीय प्राधिकरण भी विकलांग बच्चों के लिए जिन्होंने पाँचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी है, अनौपचारिक शिक्षा की सुविधा प्रदान करें। इसी प्रकार 16 वर्ष और उससे ऊपर की आयु के विकलांग बच्चों के लिए कार्यात्मक साक्षरता हेतु विशेष अंशकालिक कक्षाओं की भी व्यवस्था अधिनियम में दी गई है। विकलांग बच्चों को अवरोध रहित समुचित शिक्षा प्रदान करने की दृष्टि से उन्हें विशेष पुस्तकों एवं उपकरण, आदि निःशुल्क दिए जाने की भी व्यवस्था है। सम्बन्धित सरकारों को यह स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया है कि वे विकलांग बच्चों को अवरोध रहित एवं निःशुल्क तथा आवश्यक शिक्षा प्रदान करने के सम्बन्ध में एक व्यापक शैक्षिक कार्यक्रम बनाएँगी।
अध्याय 6. रोजगार- इस अध्याय के अन्तर्गत उपयुक्त प्रकार के पदों का चिह्नीकरण, पदों का आरक्षण, विकलांगों के लिए विशेष सेवायोजन केन्द्र, विकलांग व्यक्तियों को रोजगार मुहैया कराने के लिए योजनाएँ, शिक्षण संस्थाओं में विकलांग व्यक्तियों के लिए सीटों का आरक्षण तथा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में कम-से-कम 3 प्रतिशत विकलांगों के आरक्षण की व्यवस्था प्रावधानिक है। साथ ही साथ यह भी व्यवस्था दी गई है कि विभिन्न सरकारें अपनी आर्थिक क्षमता के अनुरूप सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के ऐसे नियोक्ताओं को प्रोत्साहन देंगी, जिनकी कुल कार्य शक्ति में से 5% अथवा अधिक विकलांग व्यक्ति हों।
उपर्युक्त परिकलन में उ. प्र. सरकार द्वारा पदों का चिह्नीकरण किया जा चुका है एवं दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित तथा चलन विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिए आरक्षण विषयक शासनादेश निर्गत किया जा चुका है। साथ ही गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में 3 प्रतिशत का बजट आरक्षित करने संबंधी विधेयक शासनादेश भी ग्राम्य विकास विभाग द्वारा जारी किया जा चुका है।
अध्याय 7. सकारात्मक कार्यवाही- इसके अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि सरकार विकलांग व्यक्तियों को सहायता उपकरण उपलब्ध कराएगी। साथ ही विकलांगों का भवन-निर्माण, व्यवसाय एवं विशेष विद्यालयों, आदि के लिए रियायती दरों पर प्राथमिकता के पर भूमि का आबंटन किया जाएगा।
अध्याय 8. अभेदभाव- विकलांग व्यक्तियों को अवरोध रहित वातावरण प्रदान करने के से अधिनियम के अन्तर्गत विकलांग व्यक्तियों के लिए यातायात के साधनों, सड़कों, भवन एवं राजकीय रोजगार रहित वातावरण प्रदान किए जाने का प्रावधान है।
अध्याय 9. शोध एवं मानव शक्ति विकास- विकलांगता की रोकथाम के लिए है। ‘विकलांगों के पुनर्वास के लिए विकलांग व्यक्तियों के लिए सहायक उपकरण के सम्बन्ध में अनुकूल संरचनात्मक विशेषताओं के विकास के लिए अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहित एवं प्रायोजित करने के सम्बन्ध में इस अध्याय के अन्तर्गत प्रावधान किया गया है।
अध्याय 10. विकलांग व्यक्तियों के लिए संस्थाओं की मान्यता- इस अध्याय के अधिनियम में यह व्यवस्था है कि विकलांगों के लिए प्रतिष्ठान या संस्था चलाने वाले कायों को संस्था के पंजीकरण की कार्यवाही करनी होगी। राज्य सरकार को निर्देश है। के वे इस हेतु एक सक्षम प्राधिकारी नियुक्त करें।
उपयुक्त के परिपालन में उ. प्र. सरकार द्वारा निर्देशक विकलांग कल्याण को सक्षम अधिकारी घोषित किया जा चुका है।
अध्याय 11. गम्भीर रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए संस्थान – अधिनियम में दी गई परिभाषा के अनुसार ऐसे लोग गम्भीर रूप से विकलांग माने जाते हैं, जिनमें 80 प्रतिशत या उससे अधिक विकलांगता हो अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि विभिन्न सरकारें ऐसे विकलांगों के लिए संस्थानों को स्थापित और सम्पोषित करेंगी।
अध्याय 12. विकलांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त और आयुक्त- केन्द्र सरकार द्वारा इस अध्याय को लागू करने के लिए एक मुख्य आयुक्त की नियुक्ति करनी होगी। इसी प्रकार राज्य स्तर पर भी एक विकलांग जन आयुक्त की नियुक्ति की भी व्यवस्था इस अध्याय के अन्तर्गत दी गई है। आयुक्त विकलांग जन मुख्य रूप से विकलांगों के अधिकारों के हनन से सम्बन्धित तथा विकलांगों के कल्याण और अधिकारों की रक्षा के सम्बन्ध में शिकायत को सुनेंगे और राज्य सरकार के कार्य की समीक्षा करके यह सुनिश्चित करेंगे कि विकलांगों को उपलब्ध कराए जाने वाले अधिकार और सुविधाएँ संरक्षित हों।
उक्त के अनुपालन में राज्य सरकार द्वारा आयुक्त विकलांग जन की नियुक्ति की जा चुकी है तथा आयुक्त विकलांग जन को कार्यालय इन्दिरा भवन के दशम तल पर स्थापित है, जहाँ पर उपयुक्त के अतिरिक्त उनके सहयोगी स्टाफ भी कार्यरत हैं।
अध्याय 13. सामाजिक सुरक्षा- इस अधिनियम में व्यवस्था है कि सरकार अपनी आर्थिक सीमाओं के आधार पर सभी विकलांगों के पुनर्वास का भार उठाएगी और जहाँ तक सम्भव हो, वहाँ सरकार ऐसे विकलांग बेरोजगारों को विशेष रोजगार भत्ता देगी जो विशेष रोजगार कार्यालय में दो से साल अधिक समय से पंजीकृत हैं और जिन्हें कोई लाभकारी रोजगार प्राप्त नहीं हो सका है। इसी अध्याय में यह भी व्यवस्था है कि सरकार रोजगारशुदा विकलांग व्यक्तियों को और जरूरत पड़ने पर बेरोजगारों के लिए भी बीमा योजनाएँ बनाएगी।
अध्याय 14. विविध- अधिनियम का यह अन्तिम अध्याय है जिसके अन्तर्गत इस अध्याय में प्रावधानित व्यवस्था के दुरुपयोग करने पर दो वर्ष की सजा और 20,000 रु. तक का जुर्माना अथवा दोनों दण्ड दिए जाने का प्रावधान है। इसी प्रकार सम्बन्धित सरकारों को अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए आवश्यक नियम बनाने का अधिकार दिया गया है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि विकलांग जन (समान अवसर, अधिकार, संरक्षण एवं पूर्ण भागीदारी) अधिनियम 1995 जो पूरे देश में दिनांक 7.2.96 से प्रभावी हो चुका है, के अन्तर्गत जो व्यवस्थाएँ प्राविधानित हैं, वह निश्चय ही समस्त विकलांग बन्धुओं को समुचित अवसर हैं प्रदान कर पूरी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए वरदान स्वरूप है।
यह बड़े हर्ष का विषय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उपर्युक्त अधिनियम के प्रावधानों को तत्परता से लागू करने के सम्बन्ध में सार्थक प्रयास किए हैं। तथापि यह हम सबका पुनीत कर्तव्य है कि प्रत्येक विकलांग के प्रति दया की भावना के स्थान पर सहयोग की भावना का विकास करें और प्रत्येक स्तर पर विकलांग बन्धुओं को यथा-वांछित सहयोग प्रदान करें। ताकि वे समाज एवं राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ सकें।
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