भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम 1992 (Rehabiliation Council India Act. 1992)
विशिष्ट बच्चों की शिक्षा हेतु भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम 1992 (Rehabiliation Council of India Act, 1992) बनाया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य विशिष्ट शिक्षा के कार्यों के नियंत्रण हेतु परिषद् को अधिकार देना था।
पश्चिमी देशों ने तो प्रारम्भ से ही विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कदम उठाये परन्तु भारत में इस प्रकार के प्रयास व कानून कम थे, परन्तु 1964 के पश्चात् कुछ वर्षो के भीतर ही बाधित बालकों की शिक्षा हेतु संस्थाओं की स्थापना की गई।
सन् 1970 के प्रारम्भ से ही शारीरिक बाधित हेतु समन्वित शिक्षा कार्यक्रम बनाने पर भारत सरकार पर जोर डाला तथा इन्होंने मानसिक बाधित, दृष्टिहीन, वाणीहीन, अधिगम असमर्थ श्रवण दोषी तथा मानसिक दोषी बालकों को अपंग बालकों के अन्तर्गत सम्मिलित किया।
भारतीय पुनर्वास अधिनियम, 1992 भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था। यह अपने संवैधानिक रूप में 1993 में आया। भारतीय पुनर्वास परिषद् को सरकार द्वारा यह अधिकार प्राप्त है कि निर्योग्य व्यक्तियों को जो भी सुविधाएँ ‘जाती हैं उनका क्रियान्वयन नियंत्रित करें। पाठ्यक्रम को प्रमाणीकृत करें तथा पुनर्वास व विशिष्ट शिक्षा के क्षेत्र में जो भी कर्मचारी पेशेवर काम कर रहे हैं उनका लेख (Central Rehabilitation Register) के रूप में तैयार करें। इस अधिनियम के तहत उन लोगों के विरोध में ठोस कदम उठाये जायेंगे जो बिना इस क्षेत्र की शिक्षा पूरी तरह से ग्रहण कर विशिष्ट आवश्यकता वाले व्यक्तियों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। भारतीय पुनर्वास परिषद् अपने आप में एक सरकारी संस्था है। इसे संसद द्वारा पारित अधिनियम से यह अधिकार प्राप्त है कि निर्योग्य, वंचित और विशिष्ट आवश्यकता वाले जो भी प्रशिक्षण कार्यक्रम व कोर्स बनाये गये हैं उनको नियंत्रित करें। सन् 2000 में इसमें आवश्यक सुधार भी हुए थे जिसमें कुछ परिभाषाओं को भी जोड़ा गया।
भारतीय पुनर्वास परिषद् अधिनियम के उद्देश्य (Aims of Rehabilitation Council India Act)
1. विकलांग व्यक्तियों से सम्बन्धित व्यावसायिक/कार्मिकों की विभिन्न श्रेणियों के शिक्षण और प्रशिक्षण के न्यूनतम मानक निर्धारित करना।
2. विकलांग व्यक्तियों के लिये कार्य कर रहे व्यावसायियों के परीक्षण पाठ्यक्रमों में मानकीकरण लाना।
3. देश में सभी संस्थाओं में समान रूप से इन मानकों को विनियमित करना।
4. निःशक्त व्यक्तियों के पुनर्वास के क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिग्री/ स्नातक डिग्री/ स्नानकोत्तर डिप्लोमा प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम चलाने वाली संस्थाओं/ विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान कराना।
5. विदेशी विश्वविद्यलायों/संस्थाओं द्वारा डिग्रियों/डिप्लोमाओं प्रमाण-पत्र को पारस्परिक आधार पर मान्यता प्रदान करना।
6. मान्यता प्राप्त पुनर्वास योग्यता रखने वाले व्यावसायिकों/ कार्मिकों के केन्द्रीय पुनर्वास रजिस्टर का रखरखाव करना।
7. भारत और विदेश में कार्यरत संगठनों के सहयोग के द्वारा पुनर्वास के क्षेत्र में शिक्षा और प्रशिक्षण के सम्बन्ध में नियमित आधार पर सूचना एकत्र करना।
8. देश और विदेश में कार्यरत संगठनों के सहयोग के द्वारा पुनर्वास और विशेष शिक्षा के क्षेत्र में अनुवर्ती शिक्षा को प्रोत्साहित करना।
9. व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों को जनशक्ति विकास केन्द्रों के रूप में मान्यता देना।
10. व्यावसायिक पुनर्वास केन्द्रों में कार्यरत व्यावसायिक अनुदेशकों और अन्य कार्मिकों को पंजीकृत करना।
11. ऐसे रिक्त स्थान, जिनके नियोजन चाहने वाले निःशक्त व्यक्तियों की नियुक्ति की जा सकती है।
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