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मानसिक मंदित बालकों की पहचान | मानसिक मंदित बालकों के लिए शैक्षिक प्रावधान

मानसिक मंदित बालकों की पहचान एवं शैक्षिक प्रावधान
मानसिक मंदित बालकों की पहचान एवं शैक्षिक प्रावधान

मानसिक मंदित बालकों की पहचान (identification of Mentally Retarded Children)

मानसिक मंदित बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए तथा गम्भीर मानसिक मंदिता की रोकथाम के लिए यह आवश्यक है कि जल्दी से जल्दी मंदित बच्चों की पहचान की जाए। ऐसे बच्चों की पहचान करने के लिए अग्र विधियों का प्रयोग किया जा सकता है-

1. माता-पिता द्वारा पहचान (Identification by Parents)- स्कूल में जाने से पहले बच्चा घर में माता-पिता के साथ ही अधिक रहता है। अत: यह आवश्यक है कि माता-पिता इस बात का ध्यान रखें कि कहीं बालक मंदबुद्धि तो नहीं है माता-पिता ही अपने मंदबुद्धि बालकों के बारे में विस्तार से बता सकते हैं तथा उसके आधार पर ही उनकी शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए। अगर माता-पिता को इस प्रकार का सन्देह हो तो निपुण डॉक्टर को दिखना चाहिए।

2. अध्यापक द्वारा पहचान (Identification by Teacher)- घर से निकलकर बच्चा विद्यालय में जाता है। यहाँ वह अध्यापक के सम्पर्क में अधिक रहता है। अध्यापक सबसे अच्छा निरीक्षक होता है। अतः अध्यापक द्वारा बच्चे के व्यवहार का अध्ययन अच्छी प्रकार किया जा सकता है। अध्यापक मानसिक मंदित बच्चों की निम्नलिखित व्यवहार विशेषताओं द्वारा उनकी पहचान कर सकता है। NCERT, नई दिल्ली द्वारा भी इस सूची की मान्यता प्रदान की गयी है।

पहचान की व्यवहार सूची इस प्रकार है-

-इनकी शैक्षिक निष्पत्ति निम्न होती है।

-इनकी अवधान क्षमता कम होती है।

– स्मृति स्तरनिम्न होता है।

– चिन्तन का अभाव होता है।

– आत्मविश्वास कम होता है।

– भाषा कौशल सीमित होता है।

-बार-बार अभ्यास व दोहराने की प्रवृत्ति होती है।

– सामूहिक गतिविधियों में भाग नहीं लेते हैं।

– एकाग्रता कम होती है।

– तुरन्त सफलता प्राप्त करना चाहते हैं।

-विफलता से डरते रहते हैं।

– शारीरिक रूप से अयोग्य होते हैं।

– कार्य करने में समस्या होती है।

-अधिगम की क्षमता कम होती हैं।

– नकल करना, टाँग खींचना आदि क्रियाएँ दर्शाते हैं।

-सामाजिक व्यवहार में कुशल नहीं होते।

-संवेगात्मक रूप से अस्थिर होते हैं।

3. बुद्धि परीक्षणों द्वारा पहचान (Identification by Intelligence Tests)- मंदबुद्धि बच्चों की पहचान बुद्धि परीक्षणों के आधार पर की जा सकती है। मन्दबुद्धि बच्चों की बुद्धिलब्धि (I.Q.) कम होती है। स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण (Stanford Binet Test) और वैस्लर बुद्धि परीक्षण (Waschler Intelligence Test) दोनों परीक्षणों को बुद्धि परीक्षणों के रूप में सामान्यतः प्रयोग किया जाता है। बुद्धि का अच्छी तरह मापन करने के लिए मानकीकृत व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है जो शाब्दिक व अशाब्दिक दोनों प्रकार के होते हैं-

बुद्धि- परीक्षण के लिए निम्न प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है- (a) क्रियात्मक परीक्षणों की एलैक्जेण्डर बैटरी जिसमें पाँच उप-परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है-

(i) कोह ब्लॉक डिजाइन परीक्षा (Koh Block Design Test)

(ii) अलैक्जेण्डर पास- एलांग परीक्षा (Alexander Pass-along Test)

(iii) आकृति ड्राइंग परीक्षा (Figure Drawing Test)

(iv) अंकों से सम्बन्धित तात्कालिक स्मृति परीक्षा (Numerical Quick Memory Test)

(v) चित्र बनाना परीक्षण (Picture Making Test)

(b) A.J. Malin द्वारा भारतीय बच्चों के लिए बनया गया वैक्सलर बुद्धि परीक्षण।

(c) R. P. Srivastava और Kiran Saxena द्वारा प्रतिपादित किया गया सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण आदि।

उपरोक्त सभी बुद्धि परीक्षणों द्वारा मानसिक मंदित बच्चों की पहचान करने में बहुत सहायता मिलती है। इस प्रकार शिक्षा में नई-नई खोजों तथा परीक्षणों के द्वारा बालक की मंदबुद्धिता का पता लगाकर इनकी शिक्षा का उचित प्रबन्ध करना चाहिए।

मानसिक मंदित बालकों के लिए शैक्षिक प्रावधान (Educational Provi- sions for Mentally Retarded Children)

मानसिक मंदित बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के शैक्षिक प्रावधान किये जा सकते हैं, जैसे-नियमित कक्षाकक्ष, विशेष कक्षाएँ, विशेष विद्यालय, आवासीय विद्यालय तथा चिकित्सा सेवाओं वाले संस्थान आदि। शैक्षिक प्रावधानों के चुनाव के समय कुछ महत्वपूर्ण बातें दिमाग में रखनी चाहिए-

1. शैक्षिक सुविधाएँ व व्यवस्था बच्चे की आवश्यकताओं के आधार पर होनी चाहिए।

2. बच्चे को उपयुक्त व उचित या कम प्रतिबंधित वातावरण प्रदान करना चाहिए।

3. स्थानापन्न सुविधा लोचशील होनी चाहिए ताकि बच्चा विभिन्न परिस्थितियों में स्थिति के अनुसार स्वयं को ढाल सके।

मुख्यतया मानसिक मंदित बच्चों को तीन वर्गों में बाँट सकते हैं-

1. शिक्षित किये जाने वाले बालक

2. प्रशिक्षित किये जाने वाले बालक

3. प्रशिक्षित किये जाने वाले बालक

उपरोक्त तीनों प्रकार बालक एक ही प्रकार की शिक्षा से लाभ नहीं उठा सकते। इनकी शिक्षा के लिए अलग-अलग प्रबन्ध की आवश्यकता होती है। इनका विस्तारपूर्वक वर्णन इस प्रकार है-

1. शिक्षित किये जाने वाले बालकों की शिक्षा (Educational Programmes for Educable Mentally Retarded) – इन बच्चों की बुद्धिलब्धि 50-75 के बीच होती है। इन बच्चों की देखभाल, शिक्षा व प्रशिक्षण की जिम्मेदारी केवल अध्यायक की ही नहीं होती, बल्कि माता-पिता तथा समाज की भी यह जिम्मेदारी है कि इनकी शिक्षा व देखभाल का ध्यान रखें। ऐसे बच्चों को कुछ विशेष शिक्षा सुविधाओं द्वारा आसानी से शिक्षित किया जा सकता है, जैसे- विशेष विद्यालय, विशेष कक्षा, प्रशिक्षित अध्यापक व आवासीय विद्यालय आदि। इन बच्चों की शिक्षा व्यवस्था में माता-पिता के सहयोग का वर्णन इस है-

(i) अनुभवी माता तथा परिवार के अन्य बुजुर्ग महिलाओं को बच्चों के विकास सम्बन्धी काफी ज्ञान होता है। यदि एक बच्चे का विकास मंद गति से और उसके व्यवहार में कुछ असमान्यता दिखाई देती है तो उसे किसी विशेषज्ञ या बाल मनोवैज्ञानिक को दिखाना चाहिए।

(ii) माता-पिता को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए बल्कि उन्हें अपने बच्चे की मंदिता की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चे को पर्याप्त देखभाल व प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए तथा डॉक्टर से भी सलाह लेनी चाहिए।

(iii) आवासीय प्रशिक्षण ऐसे बच्चों के लिए बहुत लाभदायक होता है। माता-पिता बच्चों को दैनिक क्रिया सम्बन्धी कौशल, सामाजिक कौशल, भाषा कौशल आदि द्वारा शुरूआती कुछ वर्षों में बहुत कुछ सीखा सकते हैं।

पूर्व विद्यालय शिक्षा (Pre-School Education)- पूर्व विद्यालयी शिक्षा मध्य मंदबुद्धि बच्चों के लिए निम्न स्तर से शुरू करनी चाहिए और उन्हें कौशल प्रशिक्षण एक वर्ष की बजाय दो या तीन वर्ष प्रदान करना चाहिए। पाठन कौशल में सम्मिलित है-

1. स्थिर बैठना तथा अध्यापक की बातों पर ध्यान देना।

2. निर्देशों का पालन करना।

3. भाषा विकास।

4. आत्म-क्रियात्मक कौशल का विकास, जैसे जूते बाँधना, बटन बंद करना और कपड़े पहनना आदि।

5. सन्तुलन बढ़ाना, जैसे-पेंसिल पकड़ना आदि।

6. पूर्व विद्यालयी शिक्षा आवास आधारित शिक्षा या प्रशिक्षण होनी चाहिए, जिसमें इन्द्रिय ज्ञान कौशल, सम्प्रेषण कौशल, सामाजिक कौशल आदि की शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए।

सामान्य विद्यालयों में शिक्षा (Educational in General Schools) –(1) शिक्षित किये जाने वाले बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ सामान्य विद्यालयों में शिक्षित किया जा सकता है। शैक्षिक कार्यक्रमों में शिक्षित मानसिक मंदित बच्चों की शिक्षा के विकास के उद्देश्य निम्न होने चाहिए-

(a) शैक्षिक कौशल (Academic Skills)

(b) सामाजिक सक्षमता (Social competence)

(c) व्यक्तिगत समायोजन ( Personal adjustment)

(2) मन्दिता की प्रकृति के अनुसार उनके नियमित कक्षाकक्ष व्यवस्था में अंशकालिक निर्देशन प्रदान करके शिक्षित किया जा सकता है।

(3) शिक्षित मानसिक मंदित बच्चों के लिए पाठ्यक्रम उनकी रुचि/रुझान अनुसार के होना चाहिए, जिसमें पाठन-कौशल, भाषा विकास, प्रत्यय निर्माण, सामाजिक व्यवहार और लिखने, पढ़ने तथा गणित की मूलभूत शिक्षा आदि सब शामिल होना चाहिए।

(4) विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने के लिए निम्न सिद्धान्तों का पालन किया जाना चाहिए-

-जितने छोटे बच्चे उतनी छोटी कक्षा।

– विशिष्ट शिक्षा हमेशा नियमित प्राथमिक विद्यालयों के साथ संगठित करनी चाहिए।

– विशिष्ट शिक्षा हमेशा विशिष्ट अध्यापकों द्वारा प्रदान की जानी चाहिए।

– विशिष्ट कक्षा में प्रवेश से पहले इनका उचित निदान (Diagnosis) करना चाहिए।

विशिष्ट निर्देशन योजनानुसार, सुव्यवस्थित तथा क्रमागत होना चाहिए। व्यावसायिक प्रशिक्षण, परिश्रम, आदत और पारिवारिक जीवन की शिक्षा आदि पर अधिक जोर देना चाहिए बच्चा प्राथमिक शिक्षा से माध्यमिक शिक्षा में विकास कर सके।

अध्यापक की भूमिका (Role of Teacher) – मानिसक मंदित बच्चों की शिक्षा के लिए सबसे आवश्यक कार्य उनकी पहचान करना व निदान करना है। ऐसे बच्चों के लिए विशिष्ट विद्यालयों तथा प्रशिक्षित अध्यापक की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त भी शिक्षकों में कुछ विशेषताएँ होनी चाहिए ताकि वे मंदित बच्चों को सहज व उपयोगी शिक्षा दे सकें। एक नियमित अध्यापक ऐसे बच्चों को नियमित कक्षा व्यवस्था में शिक्षा प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

1. शिक्षक को बालकों के स्वास्थ्य, समस्याओं और दशाओं का व्यक्तिगत रूप से ज्ञान होना चाहिए व उनको हल करने का प्रयास करना चाहिए।

2. अध्यापक को मानसिक मंदित बालकों की व्यवहारगत विशेषताओं का भी ज्ञान होना चाहिए ताकि वह ऐसे बच्चों की पहचान कर सके तथा उनको उचित शिक्षा प्रदान कर सके।

3. अध्यापक को ऐसे बच्चों के प्रति सकारात्मक व आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

4. अध्यापक द्वारा ऐसे बच्चों पर लेबल लगाना तथा ताने कसने जैसी क्रियाओं को परिहार (Avoid) करना चाहिए और उनके साथ भी सामान्य बच्चों जैसा व्यवहार करना चाहिए।

5. अध्यापक द्वारा मानसिक मंदित बच्चों के लिए स्वस्थ और उपयुक्त कक्षा वातावरण स्थापित करना चाहिए ताकि ऐसे बच्चों का सामाजिक तथा शैक्षणिक एकीकरण किया जा सके।

6. मन्दबुद्धि तथा पिछड़े बच्चों को पढ़ाने के लिए सरल विधियों, मूर्त वस्तुओं और सामूहिक क्रियाओं का प्रयोग करना चाहिए तथा शिक्षक को रोचक बनाने के लिए सभी प्रकार की दृश्य-श्रव्य सामग्री का उपयोग करना चाहिए।

7. अध्यापक द्वारा भाषा शिक्षा तथा गणितीय कौशल विकसित करने के लिए अभ्यास और दोहराने पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए ताकि वे अपने अधिगम को और भी प्रभावशाली बना सकें।

8. एक नियमित अध्यापक द्वारा शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में संगीत, नृत्य, खेल विधि, कहानी, विविध इन्द्रिय उपागम, रंगीन तस्वीरों आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए।

9. अध्यापक द्वारा मानसिक मंदित बच्चों को विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाएँ, जैसे-पेंटिंग, ड्राइंग, खेल, नाटक व संगीत आदि में भाग लेने के अवसर प्रदान करने चाहिए तथा उनको प्रोत्साहित करना चाहिए।

10. शिक्षक को बालकों में संवेगात्मक सन्तुलन और सामाजिक समायोजन के गुणों का विकास करना चाहिए।

11. शिक्षकों को बालकों की सहायता, परामर्श और निर्देशन देने के लिए तैयार रहना चाहिए।

12. शिक्षकों में इतना आत्मविश्वास हो कि उसे बालक की कमियों का पूर्ण ज्ञान है व वह उनमें प्रगति कर सकता है तथा धैर्य व संकल्प के गुण हों ताकि वह बालकों की मन्द गति से हतोत्साहित न हो।

13. अध्यापक द्वारा बालक को प्रदान की जाने वाली शिक्षा का सम्बन्ध उनके द्वारा वास्तविक जीवन से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए।

14. अध्यापक को छात्रों को उनकी संस्कृति से परिचित कराने के लिए उन्हें सांस्कृतिक विषयों की शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।

निष्कर्ष के रूप में कुप्पूस्वामी ने ऐसे शिक्षक की कल्पना की है- “मन्दित बालकों के शिक्षकों को उनको शिक्षा देने के लिए विशिष्ट कुशलता और प्रशिक्षण से सुसज्जित होने के अलावा बहुत धैर्यवान, सहनशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।”

2. प्रशिक्षण योग्य मन्दबुद्धि बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधान (Educational Programmes for Trainable Mentally Retarded Children) – इस श्रेणी में वे मंदित बालक आते हैं जो किसी भी प्रकार सामान्य कक्षाओं में पढ़कर लाभ नहीं उठा सकते। इस श्रेणी में वे बालक रखे जाते हैं जिनकी बुद्धिलब्धि 50-25 के मध्य होती है। ऐसे बालक बहुत कम शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं और दो या तीन कक्षा से आगे नहीं पढ़ सकते। ऐसे बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए विशेष साधनों, कक्षाओं और शिक्षकों की आवश्यकता पड़ती है। प्रशिक्षण के द्वारा ये अपने पास-पड़ोस के लोगों से समायोजन करना सीख जाते हैं व अपनी देखरेख करने में स्वयं सक्षम होते हैं। अतः उनकी शिक्षा में निम्नलिखित बातों की और विशेष ध्यान देना चाहिए-

(i) दिनचर्या कौशल का विकास (Daily Living Skills)- प्रशिक्षण योग्य बालकों के पाठ्यक्रम का कार्यक्रम ऐसा हो, जिससे इनमें साधारण आदतों का शिक्षण दिया जा सके, जिससे वह अपने स्वयं की सहायता कर सके और नित्यप्रति की आवश्यकताओं, जैसे- खाना, पीना, कपड़े पहनना, धोना, शौचादि प्रशिक्षण आदि की भी पूर्ति कर सके। प्रशिक्षण में ऐसी विधियों का प्रयोग किया जाये जिससे जीवन के वास्तविक अनुभवों का सम्बन्ध हो।

(ii) सामाजिक विकास (Social Development)- इनके प्रशिक्षण में सामूहिक क्रियाओं, जैसे-खेलकूद, नाटक, कहानी कहना आदि को महत्त्व दिया जाना चाहिए इस प्रकार की सामूहिक क्रियाओं द्वारा इन बच्चों में सामाजिक और आपसी सहयोग की भावनाओं का विकास किया जा सकता है।

(iii) शारीरिक विकास (Motor Development)- ऐसे बच्चों को शारीरिक विकास सम्बन्धी कौशल तथा ज्ञानेन्द्रियों के कौशल से सम्बन्धित अनिवार्य प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। माँसपेशियों को विकसित करने सम्बन्धी क्रियाओं, जैसे-बॉल फेंकना, रस्सी कूदना आदि बच्चों के शारीरिक विकास में सहायता प्रदान करते हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा मनोवैज्ञानिक चिकित्सा भी बच्चों के शारीरिक विकास में उपयोगी होते हैं।

(iv) भाषा विकास (Language Development)- ऐसे बच्चे को वाणी तथा भाषात्मक विकास करने के लिए इन्हें सामूहिक कक्षाओं में प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। घर पर भी माता-पिता तथा अध्यापक भाषा विकास में सहायक हो सकते हैं। इन बच्चों में भाषा विकास करने की उपयुक्त विधि दोहराना आवश्यक है। इन बच्चों का भाषा विकास धीमा होने के कारण ये बार-बार दोहराकर कोई कार्य सीखते हैं। वाणी चिकित्सा भी इन बच्चों के भाषा विकास में सहायक होती है। उचित प्रशिक्षण दिये जाने पर इस प्रकार के बालक संकेत तथा भाषा को समझने लगते हैं।

(v) श्रम-आदत और शैक्षणिक कौशल (Work habits and Academic Skills)- इस प्रकार के बच्चे को विशेष प्रशिक्षण के द्वारा उनके कौशलों का विकास तथा श्रम आदत का विकास करना चाहिए। छोटी उम्र में श्रम आदत तथा कौशल विकसित करने से पाठन कौशल का विकास होगा जो इन्हें आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण होगा। इन बच्चों को छोटे-छोटे कार्य, जैसे-कुर्सी बनाना, टोकरी बनाना, बुक बाइडिंग, बागवानी करना तथा खेती के कार्य आदि का प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। इस प्रकार ऐसे बालकों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।

शैक्षणिक कौशल का आरम्भ पूर्वबाल्यावस्था से किया जाना चाहिए तथा कौशल साधारण प्रकृति का होना चाहिए, जैसे-संकेतों व प्रतीकों के माध्यम से पढ़ाना।

(vi) योग चिकित्सा (Yoga Therapy)- मानसिक मंदित बच्चों को प्रशिक्षण न करने के लिए योग व ध्यान भी उपयोगी साबित होते हैं। योग व अभ्यास द्वारा बच्चे की एकाग्रता शक्ति तथा स्मृति स्तर दोनों में सुधार होता है। योग चिकित्सा द्वारा मानसिक मनित बच्चों को शांति प्राप्त होती है तथा उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता हैं।

3. प्रशिक्षित न किये जाने वाले या गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों की शिक्षा (Educational provisions for Seversely Mentally Retarded Children)- गम्भीर मानसिक मन्दित बच्चों की बुद्धिलब्धि 25 से कम होती है। ऐसे बालक अपनी अपनी देख-रेख स्वयं नहीं कर सकते और समाज में अकेले जीवनयापन नहीं कर सकते। यहाँ तक कि ये न तो ठीक से बोल सकते हैं और न ही अपने विचारों को दूसरों को अच्छी तरह समझाने के योग्य होते हैं। इन्हें विशेष सहायता की आवश्यकता होती है। ऐसे बच्चों की आयु बहुत कम होती है तथा इन्हें आजीवन दूसरों के सहारे पर रहना पड़ता हैं।

ग्रासमैन ने गम्भीर मानसिक मंदित बच्चों के बारे में लिखा है, “गहन रूप से मन्दबुद्धि बालकों के लिए मानसिक अस्पताल व संस्थाएँ सुरक्षित जगह हैं।”

– गम्भीर मानसिक मंदित बालक पानी, आग, बिजली आदि के खतरे को नहीं समझ सकते तथा आसानी से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं इसलिये इन्हें ज्यादा देखभाल की आवश्यकता होती है।

-मानसिक मंदित बालक अपने छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहते हैं इसलिए इनको न तो किसी भी प्रकार की शिक्षा दी जा सकती है और न ही किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण दिया जा सकता है।

-इन बच्चों को छोटे बच्चों की तरह ही नहलाया, धुलाया व भोजन कराया जाता है।

-इन बच्चों को स्कूलों में नहीं रखा जाता बल्कि इनको मानसिक अस्पतालों तथा संस्थाओं में रखा जाता है। अतः इन बच्चों के लिए एक ही कार्यक्रम हो सकता है और वह यह है- इन बालकों को सुरक्षा तथा सहायता प्रदान करना।

इस प्रकार बालकों में मानसिक स्तर कम होने की वजह से दूरदर्शिता व अमूर्त चिन्तन का अभाव रहता है तथा न ही उनको सामान्य नियमों की जानकारी होती है। अतः माता-पिता तथा अध्यापकों को ऐसे बच्चों पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए।

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