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कक्षा-कक्ष से बाहर भाषा के कार्य | Functions of Language Out of Class Room in Hindi

कक्षा-कक्ष से बाहर भाषा के कार्य
कक्षा-कक्ष से बाहर भाषा के कार्य

कक्षा-कक्ष से बाहर भाषा के कार्य  (Functions of Language Out of Class Room)

कक्षा-कक्ष के बाहर भाषा निम्नलिखित कार्य करती है-

1. सम्बद्धता (Affiliation) – कक्षा-कक्ष से बाहर भाषा एक-दूसरे को जोड़ने का कार्य करती है। एक ही भाषा-भाषी अपनी भाषा के माध्यम से एक-दूसरे के भावों से परिचित होते हैं तथा एक-दूसरे के साथ जुड़ाव अनुभव करते हैं। भाषा के आधार पर ही प्रांतीयता का भाव उत्पन्न होता है जो संकीर्ण राष्ट्रीयता का परिचय देता है परंतु एक क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों में आत्मीयता भी बढ़ाता है। जब भी दो व्यक्ति एक व्यक्ति के किसी दूसरे प्रांत या राष्ट्र में जाकर एक-दूसरे से टकराते हैं तो उनमें आत्मीयता का जो भाव दिखाई पड़ता है वह उन दोनों को अचानक एक-दूसरे के निकट ले आता है। चाहे वे एक-दूसरे के लिए बिल्कुल अजनबी ही क्यों न हों। इस आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि कक्षा-कक्ष के बाहर भी भाषा अपना कार्य करती है, लोगों को भावनात्मक रूप से सम्बद्धता प्रदान करती है और इस प्रकार लोगों को एक-दूसरे के साथ जोड़ती है।

2. सम्प्रेषण (Communication)- कक्षा-कक्ष के बाहर समाज में सम्प्रेषण का कार्य भाषा के माध्यम से ही किया जाता है। सम्प्रेषण के द्वारा हम दूसरों के विचारों तथा भावनाओं से परिचित होते हैं और यह कार्य भाषा ही करती है। सम्प्रेषण औपचारिक शिक्षा के लिए ही नहीं, अपितु अनौपचारिक तथा निरौपचारिक शिक्षा के लिए भी एक अनिवार्य तत्व है। घर, परिवार, समाज तथा मित्र मण्डली से जो अनौपचारिक शिक्षा बालक को प्राप्त होती है या विद्यालयों में जो औपचारिक शिक्षा दी जाती है या फिर पत्राचार पाठ्यक्रमों एवं खुले विद्यालयों में जो निरौपचारिक शिक्षा दी जाती है, उन सभी में सम्प्रेषण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सम्प्रेषण द्वारा तथ्यों को निजी या गुप्त न रखकर सामान्य बनाया जाता है। संकीर्ण अर्थ में सम्प्रेषण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य विचारों, संदेशों तथा सूचनाओं का आदान-प्रदान करना है। यह सम्प्रेषण का अत्यन्त संकीर्ण अर्थ है। इस विचार से सम्प्रेषण सूचनाओं तथा विचारों का दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य आदान-प्रदान है। चाहे वे सूचनाओं का अर्थ समझें या न समझें। उनसे उनका विश्वास प्रभावित हो या न हो। इसी कारण आज कोई भी सम्प्रेषण के इस संकीर्ण अर्थ को स्वीकार नहीं करता है।

यदि सम्प्रेषण को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण से तात्पर्य दो अथवा अधिक व्यक्तियों के मध्य सूचनाओं, विचारों तथा तथ्यों का इस प्रकार आदान-प्रदान है कि वे इनका अर्थ समझ सकें तथा अर्थ के साथ ही उनकी भावनाओं, तर्कों, निहितार्थी, आपसी समझ तथा विश्वासों को भी समझ सकें।

यदि देखा जाए तो सम्प्रेषण पारस्परिक संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया है, जिसमें विचार-विमर्श तथा विचार-विनिमय पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यह द्विवादी प्रक्रिया है जिसमें दो पक्ष शामिल होते हैं-एक संदेश देने वाला व्यक्ति तथा दूसरा संदेश ग्रहण करने वाला व्यक्ति । सम्प्रेषण प्रक्रिया एक उद्देश्यपरक प्रक्रिया मानी जाती है। सम्प्रेषण में मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक पक्ष दोनों ही समावेशित होते हैं, जैसे-विचार, संवेदनाएँ, भावनाएँ एवं संवेग आदि। प्रभावशाली सम्प्रेषण उत्तम शिक्षण हेतु एक बुनियादी तत्व है। सम्प्रेषण प्रक्रिया में प्रत्यक्षीकरण समावेशित होता है। यदि संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति संदेश का संदर्भ उचित ढंग से प्रत्यक्षीकृत नहीं कर पाता है तो उचित सम्प्रेषण संभव नहीं होता है। संप्रेषण तथा सूचनाओं को कई व्यक्ति एक समझ बैठते हैं परंतु वास्तव में संप्रेषण तथा सूचनाओं में भी पर्याप्त अंतर पाया जाता है। सूचनाओं में तर्क, औपचारिकता तथा इम्पर्सनाल्टी की विशेषताएँ निहित होती हैं, जैसे-पुस्तक पर सूचना है या दूरदर्शन पर प्रोग्राम सूचनाओं से भरे रहते हैं लेकिन जब तक पुस्तक पढ़ी न जाए अथवा दूरदर्शन को खोलकर देखा न जाए, तब तक सम्प्रेषण संभव नहीं है। सूचनाएँ वस्तुनिष्ठ होती हैं जबकि सम्प्रेषण में व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रत्यक्षीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सम्प्रेषण में प्रायः उन्हीं विचारों का प्रत्यक्षीकरण करते हैं, जिनको उन्हें व्यक्तिगत आवश्यकताओं, मूल्यों, प्रेरकों, परिस्थितियों या पृष्ठभूमि के अनुसार आकांक्षा या प्रत्याशा होती है।

3. आत्म-निर्देशन- कक्षा-कक्ष के बाहर भाषा आत्म-निर्देशन का कार्य करती है। आत्म-निर्देशन के लिए एवं भावी की अभिव्यक्ति के लिए तथा दूसरों के विचारों को ग्रहण करने के लिए मनुष्य को किसी-न-किसी भाषा का सहारा लेना पड़ता है, परन्तु अपने अंतर्द्वन्द्वों, उद्वेगों तथा मनोभावों का अभिव्यंजन जितनी सरलता, सुंदरता तथा स्पष्टता एवं सुगठित रूप में वह अपनी मातृभाषा में कर सकता है उतना किसी अन्य भाषा में नहीं। प्रत्येक समाज में शिष्टजन जिस भाषा में विचार-विनिमय, काम-काज तथा लिखा-पढ़ी करते हैं, वहीं भाषा व्यक्ति सहजता से सीख पाता है और उसका प्रयोग भी बहुत अधिक करता है। उस भाषा के माध्यम से वह अपने सूक्ष्म से सूक्ष्म विचारों, मनोवृत्तियों तथा मनोगत भावों का प्रकटीकरण बहुत ही सटीक, सारगर्भित भाषा में कर लेता है। जिस भाषा का प्रयोग व्यक्ति सर्वाधिक रूप से करता है उसमें विचारों की अभिव्यक्ति वह सहज रूप से कर लेता है। अतः भाषा का एक महत्वपूर्ण कार्य मानव का आत्म-निर्देशन करना भी है।

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