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शिक्षण अधिगम असमर्थता एवं शैक्षिक प्रावधान

शिक्षण अधिगम असमर्थता एवं शैक्षिक प्रावधान
शिक्षण अधिगम असमर्थता एवं शैक्षिक प्रावधान

शिक्षण अधिगम असमर्थता एवं शैक्षिक प्रावधान (Educational Provisions and Teaching of Learning Disability)

मनोवैज्ञानिक दोषों के कारण इन बच्चों को भाषा, लेखन, पाठन व समझने में बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे एक विषमजातीय समूह के लिखने, बोलने, पढ़ने, ड्राइंग करने सम्बन्धी दोष आदि सभी दोषों को शामिल किया जाता है। भिन्न-भिन्न बालकों में अधिगम अक्षमता पैदा होने के भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं तथा किस व्यक्ति में किस प्रकार व किस स्तर की अधिगम अक्षमता है उसकी प्रकृति में भी बहुत विभिन्नताएँ देखने को मिलती हैं। अधिगम असमर्थ बच्चों में हर एक बच्चा असाधारण होता है और उनके लिए एक समान प्रावधान का प्रबन्ध नहीं किया जा सकता। प्रत्येक बच्चे के दोष के प्रकार, असमर्थता की श्रेणी के हिसाब से शैक्षिक प्रावधान किये जाने चाहिए। प्रत्येक को अलग से पेश किया जाये ताकि असमर्थता के प्रकार की पहचान करके उचित देखभाल प्रदान की जा सके। अधिगम असमर्थी बच्चों के लिए शैक्षिक प्रावधानों व सुविधाओं को हम इस प्रकार वर्णित कर सकते हैं-

1. विशेष विद्यालयों का प्रावधान।

2. सामान्य विद्यालय में विशिष्ट कक्षाएँ।

3. नियमित विद्यालयों में शिक्षा प्रदान करके।

1. विशेष विद्यालयों द्वारा शिक्षा- विशेष विद्यालय से अभिप्राय अधिगम असमर्थ बच्चों के लिए अलग से शिक्षा व्यवस्था से है। यहाँ पर अधिगम असमर्थ बच्चे विशेष विद्यालयों द्वारा विशेष अध्यापकों व विशेष शिक्षण विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करते हैं, लेकिन उनका पाठ्यक्रम सामान्य बच्चों के समान ही होता है। अधिगम असमर्थ बच्चों के लिए विशेष विद्यालयों में विशेष तकनीकें व विशेष विधियों का प्रयोग किया जाता है, परन्तु इन बच्चों का पृथक्करण व्यवहारगत नहीं है, क्योंकि प्रत्येक अधिगम असमर्थ बच्चा असाधारण होता है और वह व्यक्तिगत ध्यान व व्यक्तिगत शिक्षा पाना चाहता है। इसलिए अधिगम असमर्थ बच्चों को अलग से विशेष विद्यालयों में पढ़ाना न्यायसंगत नहीं है।

2. सामान्य विद्यालय में विशिष्ट कक्षाएँ- यहाँ पर विशिष्ट शिक्षक अधिगम बाधित बच्चों को विशेष कक्ष में विशेष अनुदेशन देते हैं। नियमित शिक्षक पाठ्य विषयों के सम्बन्ध में बालकों की सहायता करते हैं। विशेष कक्षा में 10-12 बच्चे अधिगम असमर्थी होते हैं। यह सामान्य विद्यालय में खुद से बनाया गया कक्षाकक्ष है यहाँ पर अधिगम असमर्थ बच्चे पूरा समय विशेष अध्यापकों द्वारा निर्देशन पाते हैं। सामान्य विद्यालयों में विशेष कक्षाओं द्वारा विशेष विद्यालयों की भाँति कम पृथक्करण और कम बन्धन होता है। इस प्रकार के प्रबन्ध में नियमित अध्यापक की सहायता के लिए एक सहायक अध्यापक भी होता है। इन बालकों को पाठ्य-विषयों के साथ-साथ सामाजिक कार्यों के बारे में भी बताया जाता है। वह सामान्य बालकों के साथ ही पढ़ते हैं। अधिगम असमर्थी बच्चों को सामान्य बच्चों के समान ही शैक्षिक विषयों व पाठ्यक्रम सम्बन्धी अनुभवों के बारे में निर्देश प्रदान किये जाते हैं।

3. नियमित विद्यालय- मन्द अधिगम असमर्थ बच्चों को थोड़ी-सी देखभाल व ध्यान सामान्य बच्चों के साथ नियमित विद्यालयों में ही शिक्षित किया जा सकता है। वे कम बुद्धिमान व अन्य किसी विशिष्टता प्राप्त बच्चों, जिनको शिक्षा की मुख्य धारा के समन्वित नहीं किया जा सकता, से थोड़ा ऊपर होते हैं। इसलिए अधिगम असमर्थ बालकों को संसाधन सुविधाओं के साथ सामान्य कक्षाओं में ही समन्वित किया जा सकता है।

विशेष अधिगम समस्याएँ और उनके शैक्षिक प्रावधान (Specific Learning Problems and Educational Provisions for them)-

1. सोचने-समझने व तर्क करने की योग्यता (Thinking and Reasoning Ability)- सोचने-समझने व तर्क शक्ति का विकास छात्रों को उचित मार्गदर्शन प्रदान करके किया जा सकता है । इस मार्गदर्शन के लिए हमें छात्रों से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के आँकड़े इकट्ठे करने पड़ते हैं । ये आँकड़े हम पढ़कर, सुनकर या अवलोकन द्वारा इकट्ठे कर सकते हैं और फिर आँकड़ों का समानता व विभिन्नता के आधार पर विश्लेषण करते हैं। अध्यापक द्वारा छात्रों की विभेदीकरण सम्बन्धी कार्य एक सहायक के रूप में कार्य किया जाता है। तब छात्रों को आँकड़ों को विभिन्न वर्गों में बाँटने के लिए कहा जाता है तथा विभिन्न वर्गों के ऊपर लेबल लगाने को कहा जाता है। इस प्रक्रिया को जितनी बार हो सके, दोहराया जाता है। इस प्रकार लगातार आँकड़ों का व्यवस्थित करना निश्चय ही छात्रों के दिमाग में नई सूचनाओं व नये अनुभवों का समावेश करेगा। अब इन आँकड़ों के आधार पर छात्रों से भविष्यवाणी करने को कहा जाता है। समान आँकड़ों द्वारा विभिन्न प्रकार के तरीके प्रयोग करते हुए विभिन्न प्रकार की भविष्यवाणियाँ की जाती हैं। क्या छात्र परिणाम व प्रभाव की तुलना के आधार पर इन भविष्यवाणियों को मूल्यांकित कर पायेंगे ? इस प्रकार उनमें तर्क-शक्ति का विकास होगा।

2. पाठन सम्बन्धी समस्या (Reading Problem)- बहुत से अधिगम असमर्थ बच्चों में अनुचित उच्चारण सम्बन्धी समस्या पायी जाती है। इस प्रकार के बच्चों को ध्वनि विज्ञान सम्बन्धी मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए। जो बच्चे गलत पाठन समस्या से ग्रसित होते हैं उन्हें पाठन सम्बन्धी अनुभवी अनुदेशन प्रदान किया जाना चाहिए। इस उद्देश्य के लिए कुछ रिकॉर्डिंग उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता है । विभिन्न प्रकार की कहानियाँ, अपने अनुभव बाँटकर, आवश्यक मल्टीमीडिया सुविधाएँ प्रदान करके इन छात्रों की पाठन सम्बन्धी समस्या को दूर किया जा सकता है।

3. भाषा (Language)- अधिगम असमर्थ बालकों को भाषा को अभिव्यक्त करने व दोहराने में कठिनाई होती है। उनकी भाषा योग्यता को विकसित करने तथा उन्हें भाषा सम्बन्धी कठिनाइयों से उबारने के लिए निम्न सिद्धान्त दिये गये हैं-

(क) सामान्य भाषा विकास के क्रम को अपनाकर।

(ख) भाषा विकास के लिए आपसी सम्पर्क का प्रयोग करके।

(ग) उद्देश्यपूर्ण सन्दर्भ में भाषा को पढ़ाना।

(घ) भाषा को समझने की परख व उत्पादकता के लिए पढ़ाना।

4. वर्तनी (Spelling)- अधिगम असमर्थ बच्चों द्वारा शब्दों की वर्तनी में अधिक गलतियों की जाती है इन बच्चों की वर्तनी में सुधार करने के लिए उन शब्दों की सूची बनायी जाती है जो शब्द इनके द्वारा हमेशा गलत किये जाते हैं। इस प्रकार के हर एक शब्द के लिए एक सुव्यवस्थित कार्य तकनीक को निम्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है-

” शब्द को देखो-शब्द को बोलो-शब्द को बोलो-शब्द को देखो-शब्द को ढको शब्द को लिखो-वर्तनी को जाँचिये दोहराइये।”

एक और तकनीक प्रयोग की जा सकती है। शब्द को सही वर्तनी के साथ चॉकबोर्ड पर लिखो और बच्चों को यह शब्द अपनी नोटबुक में लिखने के लिए कहो। तब बच्चे को अपनी वर्तनी व बोर्ड पर लिखी वर्तनी में तुलना करने के लिए कहो और सही वर्तनी के साथ उच्चारण करने के लिए कहो। उन्हें इसका उच्चारण दोहराने के लिए कहिए। अब सही वर्तनी शब्द को ढक दीजिए और अब बच्चों को अपनी-अपनी कॉपियों में लिखने के लिए कहिये। अब दोबारा बच्चों को चॉकबोर्ड पर लिखे शब्द से तुलना करने के लिए कहिये। इस प्रकार बार-बार लिखने से उसकी वर्तनी सही हो जाती है। इस विधि को बार-बार दोहराने से शिक्षण अधिगम सम्बन्धी सही वर्तनी का अभ्यास हो जाता है जो कि शिक्षण के लिए आवश्यक है।

5. सुलेख सम्बन्धी समस्या (Hand Writing Problem) – पेपर और पेंसिल से लिखने से पहले बच्चों को चॉकबोर्ड पर अभ्यास करवाया जाना चाहिए। बच्चे में लिखने सम्बन्धी सही आदत का विकास करने के लिए आवश्यक सहायता की जानी चाहिए। लिखने के लिए पेंसिल हाथ के अँगूठे व बीच की उँगली के बीच होनी चाहिए। तर्जनी उँगली से पेंसिल पर दबाव डालना चाहिए। कई बार सुलेख सम्बन्धी समस्याएँ कमजोर शारीरिक नियंत्रण के कारण भी होती है। ऐसे बच्चों की मांसपेशियों को शाक्तिशाली बनाने के लिए इच्छानुसार अभ्यास कराये जा सकते हैं, जैसे-किसी वस्तु को काटना। मिट्टी की आकृति या वस्तु बनाना आदि विशिष्ट रूप से कठिनाई का अनुभव करने वाले बालकों की शिक्षा के लिए ग्राफ पेपर का प्रयोग पर्याप्त रूप से उपयोगी होता है।

6. अवधान सम्बन्धी समस्या (Attention Problem)- इन बच्चों की अवधान सम्बन्धी समस्याओं का निवारण करने के लिए एक उच्चस्तरीय अधिगम वातावरण प्रदान किया जा सकता है जो प्रत्यक्ष निर्देश प्रदान करे।

(a) उचित, त्रुटिहीन व विशिष्ट निर्देशन देकर।

(b) पुरस्कार, पुनर्बलन तथा प्रशंसा के प्रयोग पर जोर देकर।

(c) बच्चों को आत्म-नियन्त्रण सम्बन्धी अभ्यास सिखाकर तथा अपने कुण्ठित व्यवहार से बाहर निकालकर।

(d) अधिगम से विचलित बच्चों को मध्य मेजों पर बैठने की आज्ञा देकर।

(e) उनके माता-पिता के साथ सम्बन्ध बनाकर।

(f) एक शान्त और बाधा रहित कक्षाकक्ष वातावरण प्रदान करके।

7. प्रत्यक्षीकरण की समस्या (Perceptual Problem) – इस प्रकार के बच्चे श्रव्य प्रत्यक्षीकरण में उसी पर की कठिनाई महसूस करते हैं, जैसे दृश्य प्रत्यक्षीकरण में करते हैं। इनकी प्रत्यक्षीकरण योग्यताओं को बढ़ाने के लिए निम्न साधनों द्वारा अभ्यास कराया जा सकता है-

(a) तुकांत कविता ( Rhymes ) द्वारा अभ्यास कराना भी सहायक हो सकता है।

(b) अधिगम असमर्थ बच्चों को मौखिक निर्देश दोहराने के लिए कहकर।

(c) बच्चों को चॉकबोर्ड से चित्र कॉपी करने के लिए कहकर।

(d) चित्रों सहित कहानी बताकर और फिर चित्रों को मिलाकर बच्चों को कहानी बताने के लिए कहना।

(e) बच्चों को उनके नाम, वर्ग और वर्गीकरण के बारे में बताकर।

(f) ज्यामिति (Geometric) डिजाइन को मिलाने सम्बन्धी अभ्यास कराकर।

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