अधिगम अक्षमता का वर्गीकरण (Classification of Learning Disability)
लक्षणों के आधार पर अधिगम अक्षमता को निम्नलिखित श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकते हैं :
1. गत्यात्मक विकलांगता (Motor disability)- गत्यात्मक विकलांगता व्यक्ति के सकल गतिप्रेरक दक्षता एवं सूक्ष्म गतिप्रेरक दक्षता को प्रभावित करता है।
(i) सकल गति प्रेरक दक्षताएँ (Gross Motor Skills)- सकल गतिप्रेरक दक्षताओं के कौशलों के लिए बाहों, टाँगों, घड़ एवं पैरों की बड़ी मांसपेशियों का संचलन आवश्यक था। अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चे निम्नलिखित समस्याओं का प्रदर्शन कर सकते हैं:
(क) विकासात्मक लक्ष्य बिन्दु (Development Milestones) सकरने, बैठने एवं चलने जैसे विकासात्मके लक्ष्यों में देरी होने का प्रदर्शन कर सकते हैं।
(ख) शारीरिक नियंत्रण (Body Control) – पीड़ित बच्चों में कूदने, उछलने, फुदकने, फेंकने, लात मारने एवं वस्तुओं को उठाने जैसी गतिविधियों में सामंजस्य एवं शारीरिक नियंत्रण की कमी हो सकती है। शारीरिक नियंत्रण की कमी के फलस्वरूप गतियाँ असमायोजित हो जाती है।
(ग) द्विपक्षीय संचालन (Bilateral Movement)- कुछ बच्चों को दोनों बाहों तथा हाथों को एक साथ चलाने (द्विपक्षीय संचलन) एवं उठाने या फेंकने जैसे लक्ष्यों में कठिनाई हो सकती है।
(घ) मध्य रेखा को पार करना (Crossing the Midline)- कुछ बच्चों को अपने शरीर की मध्य रेखा को पार करने में कठिनाई होती है। मसलन, अपने शरीर के बाँई तरफ रखे खिलौने को उठाने के लिए बच्चे को अपने दाएँ हाथ के उपयोग करने में कठिनाई हो सकती है।
(ङ) विपरीत बाँहों एवं टाँगों को एक साथ उपयोग करना (Cross Lateral Movement)- कुछ बच्चों के लिए विपरीत बाहों एवं टाँगों को एक साथ उपयोग करने में कठिनाई हो सकती है। मतलन एक छोटे बच्चे को सरकने के लिए अपनी बाँईं टाँग एवं सीधे हाथ की बाँह को एक साथ उपयोग करने में कठिनाई हो सकती है।
(च) संतुलन (Balance)- चलते समय संतुलन पर नियंत्रण की कमी के फलस्वरूप किसी भी बच्चे में बेढंगे तौर के संचलन लक्षण दिखाई दे सकते हैं। बच्चा अक्सर चलते समय लड़खड़ा सकता है, अन्य वस्तुओं से टकरा सकता है या वस्तुओं को नीचे गिरा सकता है।
(छ) स्थानिक जागरूकता (Spatial Orientation)- कुछ अधिगम अक्षमता वाले बच्चों में स्थान सम्बन्धी सापेक्षकता के कौशलों की कमी होती है यानी वे किसी स्थान पर अपनी स्थिति एवं अपने और अपने आस-पास की आकृतियों के बीच सम्बन्धों को नहीं समझते। विभिन्न स्थितियों पर रखे गए आकृतियों को बच्चा समझ पाने में असमर्थ होता है।
(ज) स्थानिक सम्बन्ध (Spatial Relations)- कुछ बच्चों को स्थानिक संबंधों में भी कठिनाई हो सकती है। ये बच्चे निश्चित रूप से या अनुमानस्वरूप कुछ आकृतियों का एक-दूसरे से या फिर अपने आप से स्थानिक संबंध का पता लगाने में असमर्थ होते हैं। उनको आकृतियों के ऊपर या नीचे कदम रख कर चलने में कठिनाई हो सकती है, जैसे अलग-अलग ऊँचाइयों पर बँधी रस्सी। कुछ बच्चे सँकरी सुरंगों या नीची जगहों पर चलने हेतु सरकने या झुककर चलने की आवश्यकता को नहीं पहचान सकते हैं अन्य लगातार बड़ी आकृतियों को छोटे बक्सों में रखने का प्रयत्न कर सकते हैं। कपड़े पहनने, सीढ़ियों पर चढ़ने, उतरने, बक्सों का ढक्कन बंद करने या तालों में चाभी लगाने में होने वाली कठिनाइयाँ स्थानिक सम्बन्धों की समस्या का प्रतीक हो सकती है।
स्थानिक सम्बन्धों की समस्याओं के फलस्वरूप ऊँचाइयों से भय, गति में संकोच एवं दिशा को समझने में कठिनाई या किसी लक्ष्य को पूरा करने हेतु आवश्यक संचलन को समझने में कठिनाई भी हो सकती है।
(ii) सूक्ष्म गति प्रेरक कौशल (Fine Motor Skills) – सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशलों में ऊँगलियों, कलाई, होंठ एवं जीभ चलाने हेतु उपयोग की जाने वाली छोटी मांसपेशियों का संचलन सम्मिलित होता है। अधिगम अक्षमता वाले बच्चों को आगे दिए गए क्षेत्रों में समस्याएँ हो सकती हैं:
ऊँगली एवं कलाई का संचालन (Finger and Wrist Movement)- जिन बच्चों को सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशलों में समस्याएँ होती हैं, वे अक्सर छोटी आकृतियों को पकड़ने में फूहड़ होते हैं। ये छोटे बच्चे बटन को लगाना या खोलना, किसी कार्य को झटपट करना एवं झटपट समाप्त कर देना, बाँधना एवं खोलना, कैंची का ठीक से उपयोग करना या कलर पेंसिल को ठीक से पकड़ना इत्यादि नहीं कर सकते। उनको अंगूठे एवं तर्जनी के बीच वस्तुओं को पकड़ने में कठिनाई हो सकती है। उनको जमीन पर पड़ी चीजों एवं गोलाकारों की नकल करने में भी कठिनाई हो सकती है, इनमें सामान्य तौर पर पाँच वर्ष की आयु में दक्षता प्राप्त कर ली जाती है। कुछ बच्चों में कलाई एवं ऊँगली के संचालन पर नियंत्रण की कमी भी हो सकती है, जिससे उनको पेंसिल पकड़ने, कैंची का उपयोग करने, सुरवाले साजों का उपयोग करने एवं मनके पिरोने जैसे लक्ष्यों में कठिनाई हो सकती है।
होंठ एवं जीभ के संचलन (Lip and Tongue Movement)- कुछ बच्चों को जीभ एवं होठों के सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशलों के समायोजन में भी कठिनाई हो सकती है। चूँकि होंठों एवं जीभ का तेजी से संचालन करने की क्षमता, स्पष्ट रूप से बोलने हेतु एक आवश्यक सूक्ष्म गतिप्रेरक कौशल होता है इसलिए हो सकता है कि ये बच्चे स्पष्ट रूप में बोलने में असमर्थ रहें या बोलने से कतराएँ।
2. प्रत्यक्षीकृत विकलांगता (Perceptual Disability)- उपयुक्त प्रेरक दृष्टि, श्रवण क्षमता एवं अन्य संवेदनात्मक पद्धतियों के होते हुए भी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त की गई प्रेरणा का अर्थ प्रदर्शन करने की असमर्थता प्रत्यक्षीकृत विकलांगता कहलाता है। प्रत्यक्षीकृत विकलांगताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) दृष्टि कौशल (Visual Skills)- अवलोकन सम्बन्धी कौशलों में दृष्टि सम्बन्धी अनुभूति, देखकर मार्ग खोजना, देखकर याद करना, एवं दृष्टि एवं गतिप्रेरकता का समन्वय करना सम्मिलित होते हैं। अधिगम अक्षमता वाले बच्चों में संभावित रूप से पाई जाने वाली समस्याओं के साथ इन कोशलों में से प्रत्येक का नीचे वर्णन दिया गया है।
(क) दृष्टि अनुभूति या पूर्वानुमान (Visual Perception)- देखे हुए सामान का मतलब निकालने की क्षमता को दृष्टि सम्बन्धी अनुभूति या पूर्वानुमान कहते हैं। इन समस्याओं से प्रभावित बच्चों के देखने के तरीके में विकार होता है जब कि उनकी आँखों की बनावट में कोई गड़बड़ी नहीं होती । दृष्टि सम्बन्धी अनुभूति की समस्याओं से प्रभावित बच्चा ऐसी दुनिया में रहता है जहाँ आकृतियाँ, घटनाएँ एवं व्यक्ति लगातार बदलते रहते हैं, क्योंकि बच्चा आकृति, आकार, स्थिति, संचलन एवं रंग के बारे में निर्णय करने में असमर्थ होता है। मसलन, हो सकता है कि इस क्षेत्र में समस्या होने पर बच्चा पहेलियों को एक साथ रखने में या गुटकों से भवन बनाने में असमर्थ रहे; क्योंकि वह देखे जाने वाले अलग-अलग भागों को एक सूत्र में बाँधने में असमर्थ होता है।
(ख) दृष्टि द्वारा विभेदीकरण करना (Visual Discrimination)- आकृतियों या तस्वीरों को देखकर उनकी समानता या विभिन्नता को पहचान लेने की क्षमता को दृष्टि द्वारा विभेदीकरण करना हैं। इस क्षेत्र में समस्याएँ होने पर बच्चों को एक रंग के भूखण्डों का मिलान करने में, आकारों का मिलान करने में या गोलाकारों, चतुर्भुजों एवं त्रिकोणों की खींची गई रेखाओं का मिलान करने में कठिनाई हो सकती है। वे एक प्रकार की दो चीजों को बताने में असमर्थ होते हैं।
(ग) दृष्टि द्वारा मार्ग खोजना (Visual Tracking)- दृष्टि द्वारा मार्ग खोजने की समस्याओं से प्रभावित बच्चे, अक्सर ऐसी गतिविधियों को ध्यानपूर्वक देखते समय अपनी आँखों की दिशा बदल देते हैं या आँखों को मिचमिचाते हैं, जिनमें आँखों को फलस्वरूप घुमाना आवश्यक होता है, जैसे ग्लाइडर (हवाई जहाज ) देखते समय, दौड़ते हुए बच्चे को देखते हुए, मैदान में लुढ़कती हुई गेंद या पिन्ग-पॉन्ग का खेल देखते समय।
(घ) देखकर याद करना (Visual Momory)- अपने आस-पास देखी गई किसी चीज को थोड़ी देर तक भी याद रखने की क्षमता को देखकर याद रखना कहते हैं । दृष्टि द्वारा याद करने की क्षति होने पर बच्चे साधारण याददाश्त के खेलों का भी अनुपालन करने में असमर्थ होते हैं, जैसे तीन या चार परिचित आकारों की तरफ देखना, अपनी आँखों को बंद कर लेना फिर वह पता लगाना कि उनमें से किस को अपने हटा दिया है।
(ङ) दृष्टि द्वारा गतिप्रेरक समन्वय (Visual Motor Integration)- कुछ बच्चे अपनी आँखों द्वारा दिए गए संकेतों का हाथों द्वारा अनुपालन करने में असमर्थ होते हैं। मसलन, हो सकता है वे साधारण रूप के आकारों एवं रूप-रेखाओं की नकल करने में असमर्थ हों । दृष्टि एवं संचलन की इस असमानता दृष्टि द्वारा प्रेरक समन्वय करने की समस्या कहा जा सकता है या आँख-हाथ के समन्वय की समस्या कहा जा सकता है। इसका यह मतलब होता है कि बच्चे को रेखा खींचने, काटने एवं चिपकाने में कठिनाई हो सकती है; गत्ते पर कागज लगाने में या किसी पहेली के विभिन्न भागों में एकत्रित करके लगाने में कठिनाई हो सकती है।
(ii) श्रवणात्मक कौशल (Auditory Skills) – पूर्व स्कूली बच्चों के लिए, विभेदीकरण, याद करना एवं स्थितिकरण मूल रूप के श्रवणात्मक कौशल होते हैं। अधिगम अक्षमता वाले बच्चों को आगे दी गई किस्मों की श्रवणात्मक समस्याएँ हो सकती है।
श्रवणात्मक विभेदीकरण (Auditory Discrimination) – ध्वनियों के बीच विभिन्नता बताने की क्षमता को श्रवणात्मक विभेदीकरण कहते हैं। जो बच्चे श्रवणात्मक विभेदीकरण की समस्याओं से प्रभावित होते हैं उनको समान रूप की ध्वनियों के बीच भेद करने में कठिनाई हो सकती है। मसलन कैट एवं जैसे शब्दों की ध्वनियाँ एक जैसे लग सकती हैं। हो सकता है कि ऐसे बच्चे कही हुई बात के उद्देश्य को न समझ पाएँ और हल्के-बक्के एवं कुठित हो जाएं। कुछ बच्चों को परिचित एवं अपरिचित स्वरों के बीच की विभिन्नता बताने में भी कठिनाई हो सकती है।
श्रवणात्मक रूप से याद करना (Auditory Momory)- थोड़े से समय तक सुनी हुई बात को याद कर लेने की क्षमता को श्रवणात्मक रूप से याद करना कहते हैं। श्रवणात्मक रूप से याद करने में समस्याएँ होने पर बच्चे किसी वाक्य के शुरू के भाग को शिक्षक द्वारा वाक्य समाप्त किए जाने तक भूल सकते हैं। वे चाहे कितना ही ध्यान केन्द्रि करने का प्रयत्न करें, परंतु एक समय में तीन या चार से अधिक शब्दों को याद रखने में सक्षम नहीं होते। हो सकता है कि कुछ अन्य बच्चे एक ही शब्द में होने वाली ध्वनियों के क्रम को याद रखने में असमर्थ हों। हो सकता है कि ऐसे बच्चे ध्वनियों को ठीक प्रकार से सुनने के पश्चात् उनके क्रम को भूल जाएँ, मसलन “कलम” की जगह “कमल” हो जाए। इन बच्चों को एक चरण के निर्देशों का अनुपालन करने में कठिनाई हो सकती है, जैसे “पहेली को आलमारी पर रखो” या “मेज के पास आओ” जैसे साधारण वाक्यों को दोहराने में कठिनाई हो सकती है। याद रखने के लिए ये बच्चे कभी-कभी निर्देशों को उच्च स्वर से दोहराते हैं। कुछ लगातार बातों को दोहराए जाने का आग्रह करते हैं।
स्थितिकरण (Localization)- ध्वनि कहाँ से आ रही है, इसका पता लगाने की क्षमता को स्थितिकरण कहते हैं। कुछ बच्चों को स्थितिकरण में असामान्य रूप की कठिनाई होती है। मसलन, हो सकता है कि कोई बच्चा अपना पुकारे जाने पर प्रत्येक दिशा में देखे।
(iii) संचार-संबंधी कौशल (Communication Skills)- भाषा संचार-संबंधी कौशलों में ग्रहणशील एवं व्याख्यात्मक भाषा दोनों शामिल होती हैं। अधिगम अक्षमता वाले बच्चों को एक या दोनों प्रकार के भाषाई कौशलों में समस्याएँ हो सकती हैं।
ग्रहणशील भाषा (Receptive Language)- सुने हुए को समझने की क्षमता को ग्रहणशील भाषा कहते हैं श्रवणात्मक, विभेदीकरण, याद करने एवं स्थितिकरण की समस्याओं से प्रभावित बच्चों को ग्रहणशील भाषा सम्बन्धी कौशलों के विकास एवं उपयोग करने में कठिनाई हो सकती है। इसके अतिरिक्त ग्रहणशील भाषा संबंधी समस्याओं से प्रभावित बच्चे एक चरण के साधारण निर्देशों को समझने में असमर्थ हो सकते हैं (जैसे “गेंद को बक्से में रखो “) क्योंकि वे “में, पर, ऊपर, नीचे एवं पीछे” जैसी स्थितियों के पूर्व सर्गों को समझन में असमर्थ होते हैं या फिर वे रखो, उछली, बैठो, दौड़ों एवं झाँको जैसे क्रियावाचक शब्दों को समझने में असमर्थ होते हैं। इन बच्चों को वक्तव्य के अन्य भागों का मतलब समझने में भी समस्याएँ हो सकती हैं।
व्याख्यात्मक भाषा (Expressive Language)- मौखिक रूप से अपने आप को व्यक्त करने की क्षमता को व्याख्यात्मक भाषा कहते हैं। हो सकता है कि व्याख्यात्मक भाषा से सम्बन्धित समस्याओं से प्रभावित बच्चों की बोली समझ में आने योग्य न हो। प्रश्न पूछे जाने पर वे संकोच कर सकते हैं या वाक्यों में शब्दों का उपयोग करने में उन्हें कठिनाई हो सकती है। कुछ बच्चों को बोलने सम्बन्धी उच्चारण की समस्याएँ होती हैं, जैसे तुतलाना, जो उनकी किसी चीज को समझने की क्षमता में बाधक हो सकता है। यह आवयश्क नहीं कि इनमें से अधिकांश समस्याएँ अधिगम अक्षमता के कारण हों, और सामान्य तौर पर वे स्कूल की शुरू की कक्षाओं में ही समाप्त हो जाती हैं।
भाषा के स्वरूपों के उपयोग करने में इन बच्चों को अपनी आयु के अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक समस्याएँ हो सकती हैं (मसलन, बहुवचन का स्वरूप एवं भूतकाल की क्रियाएँ) । उनको वाक्य की संरचना एवं सही व्याकरण का उपयोग सीखने में भी अधिक लम्बा समय लग सकता है। व्याख्यात्मक भाषा सम्बन्धी समस्याओं से बच्चों को प्रायः वे शब्द याद नहीं रह पाते जिनको वे बोलना चाहते हैं। इसके बजाय वे जो चाहते हैं उसको दिखाकर ध्वनि का उपयोग कर उसका वर्णन कर सकते हैं (मसलन, ‘कार’ के बजाय ‘पों-पों’ करना) वे गलत शब्दों का भी उपयोग कर सकते हैं (जैसे ‘कुर्सी’ के लिए ‘मेज) और ध्वनियों एवं शब्दों का अनुकरण करने में असमर्थ हो सकते हैं।
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को ध्वनियों एवं शब्दों का अनुकरण करने में कठिनाई होती है, परंतु भाषा की व्याख्या सम्बन्धी समस्याओं से प्रभावित बच्चों में यहाँ वर्णित विशेषताओं में से अनेक होती हैं। मसलन, कुछ बच्चे फूंकने जैसी क्रिया के लिए किए जाने वाले जीभ और होठों के संचलनों का अनुकरण करने में असमर्थ होते हैं। उनको अमौखिक रूप से किए जाने वाले संचार को समझने एवं उसका उपयोग करने में कठिनाई हो सकती है जैसे, भावभंगिमा, मूकअभिनय चेहरे के भाव आदि।
(iv) बोधात्मक या संज्ञानात्मक कौशल (Cognitive Skills)- अधिगम अक्षमताग्रस्त कुछ बच्चों में बोधात्मक अथवा संज्ञानात्मक कौशल की कमी होती है। ये वैसे कौशल हैं जो बच्चे को अपनी दुनिया को समझने एवं व्यवस्थित करने में मदद करता है। इसके अंतर्गत तर्क-वितर्क करना, जानकारी को संग्रह करके याद रखना, संबंधों एवं विभिन्नताओं को पहचानना, वस्तुओं को वर्गीकरण करना, तुलना करना एवं विरोध करना, समस्या सुलझाने जैसे कौशल सम्मिलित हैं। लेकिन संज्ञानात्मक कौशल कठिनाई की समस्या से पीड़ित बच्चे अपनी दुनिया को समझने एवं व्यवस्थित रखने में असमर्थ होते हैं। किसी मुद्दे पर वे निश्चयात्मक्त रूप से विचार तो करते हैं, परंतु निष्कर्षों को समझ नहीं पाते हैं। अक्सर हाँ वे किसी लक्ष्य को पूरा करने के पहले ही भूल जाते हैं। कुछ बच्चे एक स्थिति में प्राप्त सूचना को दूसरी स्थिति को सामान्य रूप से उपयोग करने में असमर्थ हैं। ऐसे बच्चों को संज्ञानात्मक प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
(v) सामाजिक कौशल (Social Skills) – अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों में कई तरह के सामाजिक कौशल का या तो अभाव होता है या उसमें विकृति आ जाती है । ऐसे बच्चे आक्रामकता से लेकर विमुखता की समस्याओं तक का प्रदर्शन करते पाए गए हैं उन्हें मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने में कठिनाई होती है। खेलते वक्त वे अति उत्तेजित हो जाते हैं कुछ बच्चों को छूने, दूसरों से लिपटने एवं पकड़ने की अत्यधिक आवश्यकता हो सकती है।
3. अवधान विकृति (Attention Disorder)- अधिगम अक्षमताग्रस्त बालक अवधान विकृति के शिकार होते हैं। ऐसे बालक :
(a) नियत समय तक ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
(b) सही-गलत की पहचान नहीं कर पाते हैं।
(c) एक विषय से ध्यान हटाकर दूसरे विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं।
(d) आवश्यक तथ्यों को कोई महत्त्व नहीं देते हैं।
4. स्मृति विकृति (Memory Disorder) – अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चों में स्मृति विकृति भी पाई जाती है। ऐसे बच्चों को सूचनाओं को एकत्र करने, उन्हें पुनः प्राप्त करने, देखने-सुनने अथवा अक्षरों, शब्दों और आकारों को देखने में कठिनाई होती है।
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