मलिक मुहम्मद जायसी के काव्य-शिल्प का संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
जायसी प्रेममार्गीधारा के सूफी कवि हैं। उन्होंने अपने अपूर्व प्रतिभा के सहारे पद्मावत, कन्हावत आदि प्रबंध काव्यों की रचना की है। जायसी के काव्य में सौन्दर्य प्रेम आदि सुकुमार भावों की अभिव्यक्ति है। काव्यकला के मुख्यतः दो पक्ष है- भाव पक्ष तथा कला पक्ष जायसी के काव्य का भाव पक्ष जितना संतुष्ट है कला पक्ष भी उतना ही समर्थ है। जायसी के काव्य शिल्प का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है-
वस्तु वर्णन- प्रबंधकार कवि की प्रतिभा का परिचय महाकाव्य के वर्णन प्रधान स्थलों पर मिलता है। कवि ने अपने दोनों महाकाव्यों- पद्मावत और कन्हावत में नगर, उपवन, वन, क्रीडा, रूप एवं सौन्दर्य का चित्रण किया है। उनके काव्य में नख – सिख वर्णन के माध्यम से सौन्दर्य की प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। राजा रत्नसेन के सामने हीरामन तोता पद्मावती का नख शिख वर्णन करता है। पद्मावती की दंत पंक्तियों का चित्र अवलोकनीय है-
यह सुजोति हीरा उपराहीं । हीरा जोति सो तेहि परछाहीं ।।
जेहि दिन दसन जोति निरभई। बहुतै जोति जोत वह भाई ।।
रवि ससि नखत दिपहिं ओहि जोती। रतन पदारथ मानिक होती है ।।
‘कन्हावत’ में भी कवि ने राधिका के ललाट का वर्णन किया है-
मनि ललाट जनु कंचन देखा। दुइज का चाँद डवा अस देखा ।।
बदन सपूरन ससिहर दीसा जगत जो हारै देह असीसा।।
सुरूज कराँ आति कहँ होती । सहस करा भइनि रमल जोती ।।
तिलक बनाई जो चुन्नी रची। चाँद माँह जानहु कचपची ।।
‘पदमावत’ में युद्ध वर्णन भी मिलता है जो तीन स्थलों पर – राजा – बादशाह युद्ध, गोरा-बादल युद्ध तथा रत्नसेन- देवपाल युद्ध । गोरा-बादल के युद्ध का एक चित्र दृष्टव्य है-
भइ बगमेल सेल घनघोरा । औ गज पेल अकेल सो गोरा ।।
सहस कुँवर सहसौ सत बाँधा । भार-पहार जूझ कर काँधा ।।
लगै मरै गोरा के आगे । बाग न मोर घाव मुख लागे ।।
प्रकृति वर्णन- जायसी के काव्य में प्रकृति के भी अनेक रम्य चित्र मिलते हैं। उन्होंने प्रकृति के व्यापारों के साथ मानव-व्यापारों का तादात्म्य दिखाया है। मानसरोवर वर्णन खंड में कवि ने सरोवर के निमल जल, सुगंधित कमल, सीढ़ियाँ आदि का वर्णन किया है। प्रकृति उनके काव्य में कहीं उद्दीपन रूप में, कहीं रहस्यात्मक रूप में और कहीं उपदेशक रूप में आयी है। कवि ने प्रकृति का मानवीकरण भी किया है। मानसरोवर पद्मावती के विषय में सोचता है-
कहा मानसर चाह सो पाई। पारस रूप इहाँ लगि आई ।।
भा निरमल तिन्ह पायन्ह परसे। पावा रूप रूप के दरसे ।।
मलय समीर बास तन आई। भा सीतल गे तपन बुझाई ।।
न जनौं कौन पौन लेइ आया । पुन्य दसा मा पाप गँवावा ।।
भाव-व्यंजना एवं रस निरूपण- जायसी काव्य में काव्यंशास्त्रीय भावों के चित्रण में के अतिरिक्त अनेक भावों की व्यंजना है। वे एक भावुक कवि थे। अतः विभिन्न भावों अपनी कुशलता का परिचय दिया है। ‘पद्मावत’ का अंगी रस श्रृंगार है। ‘कन्हावत’ में भी शृंगार की ही अभिव्यक्ति है। जायसी ने श्रंगार के दोनों पक्षों का वर्णन किया है किन्तु संयोग की अपेक्षा वियोग में उनकी वृत्ति अधिक रमी है। नागमती के वियोग का एक चित्र प्रस्तुत है-
पूस जाड़ तन थर थर कांपा । सुरूज जाई लंका दिसि चांपा ।।
बिरह बाढ़ दारून भा सीऊ । कँति कँपि मरौं लेइ हरि जीऊ ।।
कंत कहाँ लागौं ओहि हियरे । पंथ अपार सूझ नहिं नियरे ।।
सौर सुपेती आवै जूड़ी । मानहु सेज हिमंचल बूड़ी ।।
भाषा- जायसी ने लोकसभा अवधी में अपने प्रेमाख्यानों की रचना की है। उन्होंने तत्कालीन समाज में प्रचलित अरबी-फारसी के शब्दों को भी भली भाँति आत्मसात् किया है। जायसी ने अपनी प्रतिभा से अवधी की पूर्व परंपरा को एक नया आयाम दिया है। डॉ. प्रभाकर शुक्ल ने ‘जायसी की भाषा’ शोध प्रबंध में लिखा है- ‘अवधी के जीवन में जायसी का आगमन मानों यौवन के मादक अल्हड़पन का आगमन था, जिसके संपर्क में आते ही अवधी का रोम-रोम एक नवीन स्पंदन, एक स्फूर्तिमयी चेना से थिरक उठा।” जायसी ने मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा को संवारा है। जनभाषा ही उन्हें प्रिय थी और उसी का विन्यास किया है।
छन्द एवं शैली- जायसी के काव्य में दोहा-चौपाई छंद का प्रयोग हुआ । जायसी ने कहीं-कहीं छंद-प्रयोग शास्त्रीयता की अपेक्ष नाद-सौन्दर्य का विशेष ध्यान रखा है। उन्होंने सोरठा, अरिल्ल, आदि छंदों को भी अपनाया है।
जायसी ने पद्मावत और कन्हावत की रचना प्रबंध-शैली में की है। आचार्य शुक्ल ने इसे मसनवी शैली कहा है। मसनवी के आरंभ में अल्लाह, मुहम्मद साहब, उनके मित्रों, गुरु, तत्कालीन शासक आदि की वंदना होती है जिसका अनुपालन जायसी ने किया है। आधुनिक काल के अनेक विद्वानों ने जायसी के प्रबंध काव्यों की परख अपभ्रंश के चरित काव्यों को ध्यान में रख कर की है। जिसमें उपर्युक्त बातें मिलती हैं। डॉ. गणपति के अनुसार ‘पद्मावत महाकाव्य न होकर कथा काव्य है।
अलंकार- जायसी के काव्य में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक, श्लेष, मुद्रा, अतिश्योक्ति, व्यतिरेक, प्रतीप, असंगति आदि अलंकारों की योजना है। उत्प्रेक्षा का एक उदाहरण दृष्टव्य है-
छोटे केस मोतिलर छूटी। जानहु रैनि नखत सब टूटी।।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जायसी के काव्य का भाव पक्ष जितना संपुष्ट है कला पक्ष भी उतना ही कमनीय है। जायसी एक कुशल कलाकार उन्होंन भाषा का नया संस्कार किया है। डॉ. राम चंद्र वर्मा के अनुसार “भाव वैशिष्ट्य हैं। और अभिव्यक्ति वैलक्षण्य की दृष्टि से जायसी अनुपम है। अवधी भाषा में तुलसी के पश्चात् जायसी सर्वश्रेष्ठ कवि हैं ।”
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