मानव अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्च आयुक्त के महत्व की व्याख्या कीजिए।
मानव अधिकारों का उच्च कमिश्नर
20 दिसम्बर, 1993 को एक प्रस्ताव द्वारा एक महत्वपूर्ण निर्णय में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र उच्च कमीशन के पद का सृजन किया। यह निर्णय मानवीय अधिकारों के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उच्च कमिश्नर को महासचिव द्वारा महासभा के अनुमोदन पर चार वर्षों की अवधि हेतु नियुक्त किया जाता है। उच्च कमिश्नर कमीशन को वार्षिक रिपोर्ट प्रेषित करता है तथा आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के माध्यम से ऐसी ही वार्षिक रिपोर्ट उच्च कमिश्नर महासभा को प्रेषित करता है। उच्च कमिश्नर का मुख्य कार्यालय जेनेवा में तथा एक शाखा न्यूयार्क में है। उच्च कमिश्नर का पद सृजित करते समय महासभा ने अपने प्रस्ताव में स्पष्ट किया था कि उच्च कमिश्नर निष्पक्ष अपने कार्य विषयवस्तु तथा गैर-चयनात्मक (impartial objective and non-selective) रूप से करेगा तथा इस पद पर आसीन होने वाले व्यक्ति उच्च नैतिक प्रतिष्ठा एवं व्यक्तिगत निष्ठा वाले होने चाहिये एवं उन्हें मानवीय अधिकारों के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त होनी चाहिये तथा उन्हें विभिन्न संस्कृतियों का ज्ञान होना चाहिये। महासचिव के निर्देशों तथा प्राधिकार के अधीन उच्च कमिश्नर सिविल, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकारों के विषय वस्तु उपभोग की प्रोन्नति तथा संरक्षण करेगा तथा वर्तमान बाधाओं को हटाने तथा मानवीय अधिकारों की पूर्ण प्राप्ति की चुनौतियों को पूर्ण विश्व में दूर करने उल्लंघनों को रोकने में एक क्रियाशील भूमिका अदा करेगा। इस महत्वपूर्ण पद के सृजन करने को दो मास के भीतर महासभा ने 14 फरवरी, 1994 को सर्वसम्मति से जोस अयाला लास्सो (Jose Ayala Lasso) नाम का अनुमोदन कर दिया। जोस अयाला लास्सो, इस पद पर आसीन होने के पूर्व इक्वेडर (Eciudador) संयुक्त राष्ट्र में अपने देश के स्थायी प्रतिनिधि थे तथा इसके पूर्व वह अपने देश के विदेश मंत्री रह चुके थे। इस उच्च कमिश्नर के पद पर संयुक्त राष्ट्र का प्रतिवर्ष 1.47 मिलियन डालर (अर्थात् 10.47 लाख डालर) खर्च होगा। उसका पद संयुक्त राष्ट्र के उप-महासचिव के समान होगा। जोस अयाला लास्सो ने अपना पद 5 अप्रैल, 1994 को संभाला।
उच्च कमिश्नर की जिम्मेदारियों में निम्नलिखित सम्मिलित होंगी करना,
(i) मानवीय अधिकारों के तंत्र को सुदृढ़ एवं सुव्यवस्थित करना,
(ii) मानवीय अधिकारों के लिये सम्मान सुनिश्चित करने हेतु सभी सरकारों से वार्ता करना,
(iii) मानवीय अधिकारों के सम्बन्ध में पूर्ण संयुक्त राष्ट्र प्रणाली जिसमें संयुक्त राष्ट्र शिक्षा एवं ली सूचना प्रोग्राम भी सम्मिलित हैं, मानवीय अधिकारों की प्रोन्नति एवं संरक्षण कार्यों आदि में समन्वय स्थापित करना,
(iv) सभी सिविल, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकारों की प्रोन्नति तथा उन प्रभावशाली उपभोग को संरक्षित करना,
(v) मानवीय अधिकारों के केन्द्र (Centre for Human Rights),
(vi) सभी मानवीय अधिकारों की प्राप्ति में आने वाली वर्तमान बाधाओं को हटाना तथा चुनौतियों का सामना करने में एक सक्रिय भूमिका अदा करना,
(vii) राज्यों की प्रार्थना पर उन्हें सलाहकारी सेवायें एवं तकनीकी एवं आर्थिक सहायता देना, तथा
(viii) मानवीय अधिकारों की प्रोन्नति एवं संरक्षण के लिये अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि के लिये कदम उठाना।
उच्च कमिश्नर के पद के सृजन का पश्चिमी देश, अपनी विजय के रूप में स्वागत करते हैं। उच्च कमिश्नर के पद का सृजन अमेरिका एवं पश्चिमी देश तथा विकासशील राज्यों के मध्य समझौते के परिणामस्वरूप संभव हो सका। जहाँ एक ओर अमेरिका एवं पश्चिमी देश चाहते थे कि यह पद बड़ा शक्तिशाली हो तथा इसे मानवीय अधिकारों के उल्लंघनों के जाँच का अधिकार हो। विकासशील देश चाहते हैं कि यह दुर्बल संस्था है जिससे वह व्यक्तिगत राज्यों की प्रभुत्वसम्पन्नता में हस्तक्षेप न कर सके तथा वह राष्ट्र की सांस्कृतिक विभिन्नता तथा उनके आर्थिक विकास के अधिकार का सम्मान करे। अतः महासभा ने सावधानी का दृष्टिकोण अपनाते हुए कमिश्नर की शक्तियों को अस्पष्ट रखा तथा सार्वभौमिक मानवीय अधिकारों तथा आर्थिक अधिकारों के विकास पर बल दिया। कमिश्नर राज्य सरकारों को मानव अधिकारों के दुरुपयोग को सही करने या दूर करने को विवश नहीं कर सकता है परन्तु मानवीय अधिकारों के अनुपालन हेतु रिपोर्ट जारी करें, राज्यों को कठिनाई में डाल सकता है। एक साक्षात्कार में उच्च कमिश्नर जोस अयाला लास्स ने कहा कि प्रस्ताव अस्पष्ट है तथा उच्च कमिश्नर को विस्तृत शक्तियाँ प्रदान करता है। परन्तु कमिश्नर शक्तियाँ मानव अधिकारों के संलेखों, महासभा, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद मानव अधिकारों के कमी तथा महासचिव के राजनीतिक अधिकारों द्वारा सीमित है। उनके अनुसार उच्च कमिश्नर मनुष्य जाति नैतिक आवाज का प्रतिनिधित्व करता है। इस पद के सृजन का कारण यह है कि मनुष्य जाति जागृत हो चुकी है कि उसके मानव अधिकारों का सम्मान है।
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