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उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त या S-R अधिगम सिद्धान्त, विशेषताएँ, थार्नडाइक द्वारा किये गये प्रयोग तथा आलोचना

उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त या S-R अधिगम सिद्धान्त
उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त या S-R अधिगम सिद्धान्त

उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त (S-R अधिगम सिद्धान्त) क्या है ?

एडवर्ड एल. थार्नडाइक ने अपनी पुस्तक ‘एनिमल इण्टेलीजेन्स‘ (Animal Intelligence), 1898 ई० में प्रसिद्ध संयोजनवादी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, जिसमें साहचर्य सिद्धान्तों के अन्तर्गत उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त का अध्ययन किया जाता है। थार्नडाइक को इसका प्रवर्त्तक माना जाता है। ‘उद्दीपक-अनुक्रिया सिद्धान्त’ अधिगम मनोविज्ञान का एक व्यापक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त है जिसके प्रणेता थार्नडाइक, पावलव, वुडवर्थ, वाट्सन, टरमैन, हल और गुथरी आदि हैं। थार्नडाइक ने अपने अधिगम सिद्धान्त के निर्माण और उनके व्यवहार निरूपण पर बहुत अधिक बल दिया। थार्नडाइक का विचार है-“अधिगम का अर्थ है-संयोजन, मन मनुष्य का संयोजन मात्र है।” यह संयोजन जब और किसी तरह होता है इसका वर्णन सबसे पहले तीन रूपों में किया गया

(1) तैयारी का नियम, (2) अभ्यास का नियम और (3) प्रभाव का नियम ।

रेन ने संयोजनवाद की परिभाषा देते हुए कहा है “संयोजन सिद्धान्त वह सिद्धान्त है, जिसकी यह मान्यता है कि समस्त मानसिक क्रियाएँ परिस्थिति एवं प्रक्रिया में होने वाले मूल अथवा अर्जित कार्य में सम्मिलित हैं।” थार्नडाइक के अधिगम सिद्धान्तों और तत्त्वों का आधार यह था कि तन्त्रिका तन्त्र में उद्दीपकों और अनुक्रियाओं में संयोग बन जाते हैं जो में संकेतों से स्पष्ट किये जाते हैं। थार्नडाइक द्वारा इन संयोगों को बन्ध अथवा संयोग (Bond) प्रतीक से भी अभिहित किया गया है। अतएव थार्नडाइक का यह मत “बाण्ड थ्यौरी ऑफ लर्निंग” (Bond Theory of Learning) के नाम से भी पुकारा जाता है। थार्नडाइक ने कहा है- “सीखना सम्बन्ध स्थापित करना है और सम्बन्ध स्थापन का कार्य मस्तिष्क करता है।” उसने विभिन्न मात्रा में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं के सम्बन्ध पर बल दिया।

उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त की विशेषताएँ (Characteristics of Stimulus Response Theory)

वास्तव में उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त साहचर्य सिद्धान्तों का एक अंग है। साहचर्य सिद्धान्त का प्रतिपादन एलेक्जेण्डर बैन द्वारा किया गया था। थार्नडाइक और उसके समर्थकों ने अनेक प्रयोगों द्वारा उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्तों की विशेषताओं का पता लगाया जो उसे साहचर्य में विशेष स्थान देते हैं, ये विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

(1) संयोजन सिद्धान्त (Connectionism) – थार्नडाइक के परिणाम यह बताते हैं कि संयोजन सिद्धान्त मनोविज्ञान के क्षेत्र में नवीन विचारधारा तो है ही साथ ही वह अधिगम का महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त भी है।

(2) अधिगम ही संयोजन है (Learning is Connection) – उद्दीपन सिद्धान्त के अनुसार अधिगम की क्रिया में विभिन्न परिस्थितियों के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है। इस सत्य का परीक्षण करने के लिए थार्नडाइक ने चूहे, बिल्लियों और मछलियों पर प्रयोग किया और वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि अधिगम की क्रिया का आधार स्नायुमण्डल है स्नायुमण्डल में एक स्नायु का दूसरी स्नायु से सम्बन्ध हो जाता है।

(3) आंगिक महत्त्व (Organ’s Parts) – संयोजनवाद मानव को सम्पूर्ण इकाई नहीं मानता, वह तो केवल व्यवहार का विश्लेषण करता है। यह मत पावलव के अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त से सम्बन्ध रखता है। वह संयोगों (Bonds) को महत्त्व प्रदान करता है और बुद्धि को परिमाणात्मक मानता है। जो व्यक्ति अपने जीवन में जितना अधिक संयोग स्थापित कर लेता है, वह उतना ही बुद्धिमान माना जाता है।

थार्नडाइक द्वारा किये गये प्रयोग (Experiment by Thorndike)

थार्नडाइक द्वारा अपने अधिगम सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या करने के लिये अनेक पशुओं, जैसे बिल्ली, बन्दर, मुर्गी, कुत्ते आदि पर प्रयोग किये गये। उसने अपनी पुस्तक ‘एनिमल इण्टेलीजेन्स’ (Animal Intelligence) में बिल्ली पर जो प्रयोग किया वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उसका शास्त्रीय प्रयोग एक बिल्ली को एक पिंजरे, जिसे ‘पहेली पेटी’ (Puzzle Box) कहा गया है, में रखकर किया गया जो अत्यन्त सरल था। पिंजरा इस तरह का बनाया गया था कि एक डोरी के खींचने से अथवा बटन दबाने से पिंजरे का दरवाजा खुल जाता था।

पिंजरे के बाहर मछली रखी हुई थी। जब भूखी बिल्ली को पिंजरे में रखा गया तो मछली को देखकर उसने उसे पाने के हेतु कई इस तरह के प्रयास किये कि वह बाहर आकर मछली को खा सके। बाहर निकलने के प्रयास में उसने उछल-कूद, पंजे चलाना, इधर-उधर घूमना, छटपटाना आदि शुरू किया। बिल्ली की उछल-कूद से अचानक किसी तरह उसका पंजा डोरी पर पड़ गया और पिंजरे का दरवाजा खुल गया। बिल्ली बाहर निकल आयी तथा मछली को खा गयी। इस तरह कई प्रयासों में से एक प्रयास के फलस्वरूप बिल्ली पिंजरे से बाहर आकर मछली को खाने में सफल हुई।

थार्नडाइक ने बिल्ली को पिंजरे में फिर बन्द कर दिया। बिल्ली फिर मछली खाने के लिए बाहर आने की कोशिश करने लगी, परन्तु इस बार उसने पहले की अपेक्षा कम उछल-कूद करते हुए कम समय में डोरी खींचकर बाहर आने में सफलता प्राप्त कर ली। इस तरह के प्रयोग थार्नडाइक ने कई बार किये और उसने पाया कि अगले क्रमों में बिल्ली के निरर्थक प्रयास कम होते गये और कम समय में वह बाहर निकलने और मछली खाने में सफल होने लगी। त्रुटियाँ निरन्तर कम होती गयीं। एक बार तो यह पाया गया कि बिल्ली को पिंजरे में रखते ही उसने बिना किसी गलती के डोरी खींची और बाहर आ गयी तथा मछली खा गयी। इस प्रयोग के आधार पर थार्नडाइक इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि उद्दीपक की सही अनुक्रिया के साथ सम्बन्ध (Connection) प्रत्यक्ष निर्माण कर बिल्ली ने पिंजरे से बाहर निकलना सीख लिया।

इस प्रयोग को मानव जीवन पर भी घटित किया जा सकता है। कोई बालक साईकिल चलाना सीखता है। वह बार-बार प्रयास करता है, साईकिल से गिरता है। कई बार उसकी हैण्डिल पकड़ने और पैंडिल मारने में भूल होती है और उसे चोट भी आती है। अन्त में एक स्थिति इस प्रकार की आ जाती है जब वह बिना किसी प्रयत्न के साईकिल पर चढ़ जाता है। इन प्रयोगों में बार-बार गलतियाँ हुईं और बार-बार उन्हें सुधारने का प्रयास किया गया। इस मत को इसीलिए ‘अनीच्छा और विभ्रम’ (Trial and Error) द्वारा अधिगम करना भी कहा गया है।

उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of S. R. Theory)

थार्नडाइक द्वारा किये गये प्रयोगों के फलस्वरूप जहाँ मनोविज्ञान को अनेक नवीन संकल्पनाएँ प्राप्त हुईं, वहीं उसकी आलोचनना भी की गयी। इसकी आलोचना के मुख्य आधार निम्नवत् हैं-

(1) व्यर्थ के प्रयत्नो पर बल (Emphasis on Useless Efforts ) – जैसा कि ऊपर के प्रयोग से स्पष्ट है कि इस सम्बन्ध में किसी क्रिया के अधिगम करने हेतु व्यर्थ के प्रयत्नों पर विशेष बल दिया जाता है, फलस्वरूप ऐसी क्रियाएँ, जिनका एक बार में अधिगम किया जा सकता है, पर व्यर्थ ही समय नष्ट होता है।

(2) विवरणात्मक (Descriptive) – यह मत किसी भी क्रिया के अधिगम का विवरण प्रस्तुत करता है और यह बतलाता है कि किसी क्रिया को किस तरह सीखते हैं, परन्तु सीखते हैं, इस सम्बन्ध में यह मौन है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यह मत समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं करता।

(3) यान्त्रिक (Mechanical)- हमने पहले ही इस बात का उल्लेख किया है कि इस मत का आधार स्नायु मण्डल है और यह मत मानव को एक यन्त्र बना देता है, यह आरोप उसी प्रक्रिया की पुष्टि करता है। मानव मशीन होता तो उसमें चिन्तन एवं विवेक नहीं होते केवल कार्य और कारण एवं क्रिया तथा प्रतिक्रिया ही होते हैं।

(4) रटने पर बल (Rate Memory) – यह मत यान्त्रिकता पर अधिक बल देता है। शिक्षा के क्षेत्र में रटने पर इसका प्रभाव दिखलाई देता है। रटने का प्रभाव क्षणिक होता है और भावी जीवन में उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

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