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सीखने की प्रक्रिया | सीखने की प्रक्रिया में सहायक कारक

सीखने की प्रक्रिया
सीखने की प्रक्रिया

सीखने की प्रक्रिया (Process of Learning )

चाहे मनुष्य हो या पशु, प्रत्येक प्राणी के जीवन में सीखने की प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। प्रत्येक प्राणी जन्म से लेकर मृत्यु तक समय-समय पर भिन्न-भिन्न बातें अवश्य ही सीखता रहता है। मानव जीवन में सीखने की प्रक्रिया पशुओं की अपेक्षा अधिक जटिल होती है। पशुओं की सीखने की प्रक्रिया पर्याप्त सीमित एवं सरल होती है, परन्तु मनुष्य द्वारा सीखने वाले विषय एवं क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत हैं। मनुष्य की सीखने की विधियाँ भी अनेक हैं। मानव शिशु के लिए सीखने के विषय अनन्त होते हैं जिन्हें वह जन्म से ही धीरे-धीरे कभी चेतन रूप से और कभी अचेतन रूप से सीखता रहता है। मानव शिशु में स्वाभाविक रूप से ही सीखने के प्रति लगाव होता है।

सीखने की प्रक्रिया में सहायक कारक (Helpful Factors of Process of Learning)

सीखने की प्रक्रिया एक पर्याप्त जटिल प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने में अनेक कारकों का हाथ होता है। सभी कारकों को निम्नवर्णित वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

(अ) बालक सम्बन्धी कारक (Child Related Factors)

सीखने की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है। इसका सम्बन्ध मनुष्य के मन एवं मस्तिष्क के अतिरिक्त उसके शरीर से भी है। सीखने की प्रक्रिया में शरीर भी एक साधन का कार्य करता है। सीखने की प्रक्रिया से सम्बन्धित शरीर सम्बन्धी मुख्य कारक निम्नलिखित हैं-

1. आयु एवं परिपक्वता- भिन्न-भिन्न कार्यों का स्वभाव भिन्न-भिन्न हुआ करता है। इसलिए उन्हें सीखने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की विधियाँ अपनायी जाती हैं। कुछ विधियाँ ऐसी होती हैं जो कि एक निश्चित आयु एवं शारीरिक परिपक्वता से पहले नहीं अपनायी जा सकतीं। उदाहरण के लिए दौड़-धूप के कार्य एवं पर्वतारोहण आदि के कार्य अल्प आयु का बालक नहीं सीख सकता। इसी प्रकार यौनाचार के लिए शारीरिक परिपक्वता आवश्यक होती है। अनेक सामाजिक कार्य एवं रीति-रिवाज सीखने के लिए भी व्यक्ति की एक निश्चित आयु अनिवार्य है। अतः यह स्पष्ट है कि सीखने की प्रक्रिया में आयु एवं परिपक्वता भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

2. लिंग भेद – कार्यों के विभिन्न प्रकृति वाले होने के कारण प्रायः सभी कार्यों को प्रत्येक व्यक्ति के लिए सीखना सरल नहीं होता। कुछ कार्यों की ऐसी विशिष्ट प्रकृति होती है कि उन्हें केवल स्त्रियाँ ही अति सुगमता से कर सकती हैं। ऐसे कार्य पुरुषों द्वारा कठिनाई से सीखे जाते हैं। उदाहरण के लिए बुनाई, कढ़ाई एवं बारीक मीनाकारी जैसे कार्य स्त्रियाँ सरलता से सीख जाती हैं। इनका एक कारण स्त्रियों के हाथ की अँगुलियों की विशिष्ट बनावट होती है। इसके हिपरीत अनेक कठोर एवं श्रमसाध्य कार्य केवल पुरुष ही सरलता से सीख सकते हैं।

3. स्वास्थ्य- शरीर की स्वस्थता भी सीखने की प्रक्रिया में विशेष महत्त्वपूर्ण कारक मानी जाती है। शरीर के अस्वस्थ होने की स्थिति में कोई नया कार्य सरलता से सीखा नहीं जा सकता। इसके विपरीत पूर्ण स्वस्थता की स्थिति में कठिन से कठिन कार्य भी सरलता से सीखा जा सकता है। स्वास्थ्य के अतिरिक्त शरीर की स्थिति भी सीखने में विशेष सहायक हुआ करती है। थकान की स्थिति में कोई कार्य या सीखने को मन नहीं करता। इसके विपरीत तरोताजा स्थिति में कार्य सरलता से सीखा जा सकता है।

4. नशे की स्थिति- यदि कोई मनुष्य शराब, अफीम या किसी अन्य प्रकार का तेज नशा करता है तो उसकी नये कार्यों को सीखने की शक्ति क्षीण पड़ जाती है। इस प्रकार के नशों के विपरीत कुछ ऐसी औषधियाँ भी होती हैं जिनके सेवन से कार्यों को सीखने की शक्ति एवं इच्छा प्रबल हो जाती है।

5. अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ- सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले शारीरिक कारकों में अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ होती हैं जो भिन्न-भिन्न प्रकार के रस स्राव करती हैं। ये रस हमारे रक्त में मिलते रहते हैं। इन रसों से हमारे रक्त का संगठन परिवर्तित होता रहता है। इससे हमारा व्यवहार एवं क्रियाएँ भी प्रभावित होती हैं। यदि अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की क्रिया सामान्य होती है तो व्यक्ति का व्यवहार सामान्य रहता है। ऐसी स्थिति में सीखने की प्रक्रिया सुचारु रूप से चलती रहती है। इसके विपरीत यदि अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्राव असामान्य हो जाता है तो व्यक्ति का स्वभाव एवं व्यवहार परिवर्तित हो जाता है। सम्भव है कि व्यक्ति का व्यवहार एवं स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाये, ऐसी अवस्था में सीखने की प्रक्रिया भी सुचारू रूप से नहीं चल सकती।

6. संवेगात्मक स्थिति- किसी प्रकार के तीव्र संवेग की स्थिति में शरीर प्रायः उत्तेजित हो जाया करता है। उत्तेजना की यह स्थिति प्रायः नये कार्यों को सीखने में सहायक नहीं होती है। इसके विपरीत शरीर की शान्त स्थिति कार्यों को सीखने में सहायक हुआ करती है।

(ब) भौतिक कारक (Physical Factors)

भौतिक कारकों को हम भौगोलिक कारक भी कह सकते हैं। सीखने की प्रक्रिया सदैव किसी न किसी भौतिक या भौगोलिक परिवेश में हुआ करती है। यह परिवेश भी विभिन्न प्रकार से सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। भौगोलिक अथवा भौतिक परिवेश में मौसम, सर्दी, गर्मी, हवा की तीव्रता, हवा में होने वाली नमी, धूप, वर्षा आदि मुख्य कारक हैं। ये कारक विभिन्न प्रकार से सीखने की प्रक्रिया को मन्द या तीव्र किया करते हैं। प्रायः अधिक गर्मी-सर्दी में भी सीखने की प्रक्रिया सामान्य नहीं रहा करती। वायु में होने वाली नमी के अधिक होने पर भी कार्य में बाधा आया करती है।

(स) मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors)

सीखने की प्रक्रिया मुख्य रूप से एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के सुचारू रूप से चलने में निम्न कारक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं-

1. सुगमता- मनुष्य के स्वभाव का एक गुण यह है कि वह प्रत्येक कार्य में सुगमता एवं सरलता चाहता है। इसीलिए सीखने की जो प्रक्रिया सरल एवं सुगम होती है, उसे मनुष्य जल्दी एवं रुचि से सीखता है। इसके विपरीत कठिन कार्य को सीखने में प्रायः कम रुचि हुआ करती है।

2. विभेदीकरण- जब कुछ क्रियाओं में परस्पर स्पष्ट भेद अथवा अन्तर होते हैं तब भी उन्हें सीखने में सहायता मिलती है। इसी अन्तर के आधार पर उनकी प्रक्रियाओं की याद बनी रहती है।

3. विरोध या बाधा- सामान्य रूप से यह माना जाता है कि यदि किसी कार्य के करने में कोई बाधा आ जाये तो वह कार्य प्रायः अरुचिकर बन जाया करता है, परन्तु कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि बार-बार बाधा और विरोध होने पर भी मनुष्य का साहस कम होने के बजाय बढ़ता ही जाता है। ऐसे में कार्य करने या सीखने की इच्छा बहुत तीव्र हो जाती है।

4. विभिन्न क्रियाओं का संगठन- किसी कार्य को सीखने के लिए उस कार्य में सम्मिलित सभी क्रियाओं का संगठन करना भी प्रायः एक सहायक कारक माना जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि किसी मशीन चलाने के लिए हाथों और पाँवों की एक साथ क्रियाएँ आवश्यक हों, तब उस कार्य को सरलता से सीखने के लिए विभिन्न क्रियाओं को संगठित करना आवश्यक होता है।

5. चालक- सीखने की प्रक्रिया में मनोवैज्ञानिक कारकों में चालकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस कारक का वर्णन सर्वप्रथम वुडवर्थ ने किया था। चालक ही व्यक्ति में विभिन्न आवश्यकताएँ उत्पन्न करते हैं। चालक के अर्थ को डोलार्ड और मिलर ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है- “चालक वे शक्तिशाली उत्तेजनाएँ हैं जो कार्य को प्रेरित करती हैं। कोई भी उत्तेजना चालक बन सकती है, यदि वह अधिक शक्तिशाली है। उत्तेजना जितनी अधिक शक्तिशाली होगी, चालक कार्य उतना ही अधिक होगा।” कुछ चालक जन्मजात होते हैं तथा कुछ अर्जित किये जाते हैं। सीखने की प्रक्रिया का चालक से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। प्रबल चालकों वाले व्यक्ति सम्बन्धित कार्य को शीघ्र सीख लेते हैं। इसके विपरीत दुर्बल चालक अथवा चालक के अभाव वाले व्यक्ति सीखने में असमर्थ रहते हैं।

6. संकेत- सीखने की प्रक्रिया में सहायक मनोवैज्ञानिक कारकों में संकेत भी है। इस विषय में किम्बाल यंग का कथन उल्लेखनीय है- “संकेत ही इस बात को निश्चित करते हैं कि एक व्यक्ति कब, कहाँ और कौन-सी प्रक्रिया करेगा।”

7. परिणामों का ज्ञान- सीखने की प्रक्रिया में इस बात का ज्ञान भी सहायक होता है कि वह सम्बन्धित विषय को भली-भाँति सीख रहा है। इस ज्ञान से सीखने की प्रक्रिया प्रेरित होती है। यदि इस ज्ञान का पूर्ण अभाव रहे तो सीखने की प्रक्रिया मन्द पड़ जाती है।

(द) सामाजिक कारक (Social Factors)

सीखने की प्रक्रिया का सम्बन्ध अन्य व्यक्तियों से भी है। इस प्रक्रिया को अन्य लोगों द्वारा प्रभावित करने वाले कारक, सामाजिक कारक कहलाते हैं। सीखने की प्रक्रिया सदैव किसी न किसी समाज में रहकर ही हुआ करती है। मुख्य सामाजिक कारक निम्नलिखित हैं-

1. अनुकरण- प्रत्येक व्यक्ति अधिकांश कार्य अन्य लोगों को वही कार्य करते देखकर सीखता है। इस कारक को अनुकरण कहा जाता है।

किम्बाल यंग के अनुसार- “अनुकरण, ऐसी क्रिया करना है जो किसी अन्य व्यक्ति की क्रिया के समान या मिलती-जुलती है।” व्यक्ति समाज में रहते हुए अनेक कार्य केवल अनुकरण द्वारा ही सीखता है। भाषा, रीति-रिवाज आदि स्पष्ट रूप से अनुकरण द्वारा ही सीखे जाते हैं।

2. निर्देश- सीखने की कुछ प्रक्रियाएँ अन्य लोगों के निर्देशन द्वारा भी सम्पन्न होती हैं। प्रायः यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य का विशेषज्ञ हो तो उसके द्वारा दिये गये निर्देश विशेष महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।

3. प्रशंसा एवं निन्दा- सामाजिक जीवन में हम बहुत से कार्य प्रशंसा के लिए भी सीखा करते हैं। जिस कार्य को सीखना सामान्य रूप से प्रशंसा का विषय माना जाता हो, उस कार्य को सीखना प्रायः सरल होता । इसके विपरीत जिस कार्य के सीखने से सामाजिक निन्दा का सम्बन्ध हो, उसे प्रायः सामान्य व्यक्ति सीखने में आनाकानी किया करते हैं।

4. सहयोग- सीखने की प्रक्रिया में अन्य लोगों का सहयोग भी एक सहायक कारक होता है। कुछ लोगों का सहयोग मिल जाने पर कठिन से कठिन कार्य भी सुगमता से सीखा जा सकता

5. प्रतियोगिता- सीखने की प्रक्रिया में अन्य लोगों का सहयोग भी एक सहायक कारक है। प्रतियोगिता की स्थिति में सीखने की गति प्रायः तीव्र हो जाया करती है।

6. सुझाव- सीखने की प्रक्रिया में अन्य व्यक्तियों द्वारा दिये गये सुझाव भी विशेष महत्त्व रखते हैं। सुझाव के विषय में किम्बाल यंग का कथन उल्लेखनीय है, “सुझाव शब्दों, चित्रों या इसी प्रकार के किसी दूसरे माध्यम द्वारा दिया जाने वाला वह सन्देश है जो प्रमाण तर्क के बिना स्वीकार कर लिया जाता है।”

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