साक्षात्कार की प्रारम्भिक तैयारी पर लेख लिखिये।
साक्षात्कार की प्रारम्भिक तैयारी (PRELIMINARY PREPARATION OF INTERVIEW)
किसी भी साक्षात्कार को प्रारम्भ करने से पूर्व साक्षात्कार के विषय में सूचनादाताओं की प्रकृति, साक्षात्कार के प्रकार, साक्षात्कार का समय, स्थान व उपकरण के बारे में प्रारम्भिक विचार कर लेना चाहिए, ताकि साक्षात्कार का संचालन सफलतापूर्वक किया जा सके। साक्षात्कार के प्रारम्भिक चिन्तन अथवा तैयारी में निम्न बातों को सम्मिलित किया जाता है-
(i) समस्या की पूर्ण जानकारी (Full knowledge of the problem) – साक्षात्कार का आयोजन करने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि उसे समस्या के बारे में पूर्ण जानकारी हो क्योंकि साक्षात्कार के दौरान जब सूचनादाता साक्षात्कारकर्ता से अनेक प्रकार के . प्रश्न करता है अथवा वाद-विवाद करता है तो उसे प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर एवं स्पष्टीकरण देना पड़ता है। विषय के ज्ञान के अभाव में साक्षात्कारकर्ता को लज्जित होना पड़ सकता है और ऐसी स्थिति में अनुसन्धान की सफलता भी संदिग्ध हो जाती है। अतः यह आवश्यक कि साक्षात्कारकर्ता को विषय के बारे में पूर्ण जानकारी हो जिसे वह सूचनादाता के समक्ष स्पष्ट कर सके।
(ii) सूचनादाताओं के बारे में जानकारी (Information about respondents) – साक्षात्कारकर्ता को सूचनादाताओं की योग्यता, उनके निवास-स्थान, व्यवसाय, स्वभाव, अवकाश तथा मिलने के समय, आदि के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। सूचनादाताओं. की प्रकृति, विचार और संस्कृति तथा जाति और सामाजिक स्थिति, आदि का भी ज्ञान होना चाहिए। ये सभी बातें जानना साक्षात्कार की सफलता के लिए आवश्यक है।
(iii) साक्षात्कारदाताओं का चुनाव (Selection of Interviewes)- अध्ययन विषय की आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त साक्षात्कारदाताओं का चुनाव आवश्यक है, उदाहरण के लिए, यदि हम किसी औद्योगिक समस्या का अध्ययन कर रहे हैं तो हमें औद्योगिक श्रमिकों, कारखाने के प्रबन्धकों, श्रम-संघ के नेताओं और अधिकारियों, आदि का चुनाव करना चाहिए। साक्षात्कारदाताओं का चुनाव करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम अनुभवी, अध्ययन समस्या से सम्बन्धित तथा तटस्थ व्यक्तियों का चयन करें जो कि समस्या के बारे में गहन, विस्तृत, विश्वसनीय एवं प्रामाणिक सूचनाएं दे सकें। कई बार स्थायी साक्षात्कारदाताओं का एक समूह (Panel) बना लेना भी लाभदायक होता है और यदि साक्षात्कारदाता बहुत अधिक संख्या में हों तो निदर्शन द्वारा उसमें से वांछित मात्रा में सदस्यों का चयन कर लिया जाता है।
(iv) समय एवं स्थान का निर्धारण (Fixation time and place)- साक्षात्कार के लिए उचित समय एवं स्थान का निर्धारण भी एक आवश्यक चरण है जो कि साक्षात्कारदाता की सलाह से किया जाना चाहिए। इसके लिए उससे पत्र, टेलीफोन या व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क स्थापित कर लिया जाता है। समय और स्थान का निर्धारण करने से पूर्व उसे परिचय-पत्र भी ‘भेजना चाहिए, ताकि वह साक्षात्कार के सम्बन्ध में किसी प्रकार का सन्देह न करे। समय ऐसा होना चाहिए जब उसे अवकाश हो और वह किसी कार्य में व्यस्त न हो। इसी तरह से स्थान का निर्धारण करते समय भी यह ध्यान में रखा जाए कि स्थान ऐसा हो जहां वह गोपनीय सूचनाएं दे सके। सार्वजनिक स्थान एवं व्यवसाय स्थल पर सामान्यतः साक्षात्कार लेना उपयुक्त नहीं रहता है।
(v) साक्षात्कार यन्त्रों की रचना (Construction of Interview tools)— साक्षात्कार के संचालन के लिए प्रमुखतः दो यन्त्रों की रचना की जाती (i) अनुसूची और (ii) साक्षात्कार प्रदर्शिका (निर्देशिका) की। इनमें से कौन सा यन्त्र कहां प्रयोग में लाया जाएगा, यह साक्षात्कार के प्रकार एवं अध्ययन विषय पर निर्भर करता है। हम संक्षेप में इन दोनों ही यन्त्रों का यहां उल्लेख करेंगे।
(1) साक्षात्कार अनुसूची (Interview Schedule) – यह विषय से सम्बन्धित प्रश्नों की एक सूची होती है जिसे क्रमबद्ध रूप में लिखा जाता है। इन प्रश्नों को साक्षात्कारकर्ता पूछता है और रिक्त स्थान में, उनके सामने लिखता जाता है। यह प्रश्नावली का ही एक रूप है। साक्षात्कार अनुसूची में उत्तरदाता का नाम, स्थान, आयु, जाति, वैवाहिक स्थिति, धर्म, व्यवसाय आदि का उल्लेख होता है और उसके बाद अध्ययन समस्या से सम्बन्धित अनेक प्रश्न होते हैं। साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग औपचारिक और निर्देशित साक्षात्कारों के लिए किया जाता है।
(2) साक्षात्कार निर्देशिका (पथ-प्रदर्शिका ) (Interview guide) – साक्षात्कार निर्देशिका एक लिखित प्रपत्र होता है जिसमें समस्या के विभिन्न पक्षों का विवरण होता है। गुडे एवं हाट ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है, “साक्षात्कार पथ-प्रदर्शिका ऐसे शोध-प्रसंगों अथवा विषयों की एक सूची होती है जिसमें साक्षात्कारकर्ता को प्रश्न पूछने के लिए प्रश्नों के क्रम, भाषा तथा तरीके की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। अनिर्दिष्ट और अनौपचारिक साक्षात्कार में इसका प्रयोग प्रमुख रूप से किया जाता है। साक्षात्कार पथ-प्रदर्शिका में समस्या के विभिन्न पहलुओं की रूपरेखा निहित होती है। इसमें साक्षात्कार की पूर्ण योजना का विवरण होता है, पूछने योग्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों की सूची तथा साक्षात्कार की प्रक्रिया के बारे में आवश्यक सावधानियों एवं निर्देशों का उल्लेख होता है। साक्षात्कार पथ-प्रदर्शिका की रचना करते समय यह ध्यान रहे कि यह नियन्त्रक सिद्ध न हो, वरन् केवल मार्ग-दर्शक ही हो। साक्षात्कार पथ-प्रदर्शिका के निम्नांकित लाभ हैं-
- इससे अध्ययन में एकरूपता आती है।
- यह अध्ययन के प्रधान तत्त्वों की ओर ध्यान आकर्षित करती है।
- यह विभिन्न साक्षात्कारों द्वारा तुलनात्मक तथ्यों की प्राप्ति में सहायक है।
- साक्षात्कारकर्ता की स्मरणशक्ति पर अनावश्यक भरोसा नहीं करना पड़ता है।
- इससे अध्ययन में क्रमबद्धता आती है।
- निर्मित उपकल्पना के आधार पर आवश्यक सामग्री का संग्रहण किया जाता है।
- विशिष्ट प्रकार के ठोस तथ्यों का संग्रहण किया जाता है।
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- थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त
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