भारत में समाचार पत्रों की भूमिका
समाचार-पत्रों का इतिहास
सर्वप्रथम समाचार पत्रों का जन्म सोलहवीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुआ था। इंग्लैंड में महारानी एलिजाबेथ के समय में सर्वप्रथम समाचार पत्र निकला था। भारत में अंग्रेजी सरकार द्वारा सर्वप्रथम ‘इण्डियन गजट’ नाम से अंग्रेजी में समाचार-पत्र प्रकाशित हुआ था। बाद में ईसाई पादरियों द्वारा हिन्दी में ‘समाचार दर्पण’ नाम से एक समाचार-पत्र निकला, किन्तु वास्तव में ये समाचार पत्र एकपक्षीय प्रचार मात्र थे। धीरे-धीरे इनके विकास में प्रौढ़ता आने लगी। राजा राममोहन राय के ‘कौमुदी’ और ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के ‘प्रभाकर’ नामक समाचार – पत्र प्रकाश में आये। बाद में समाचार पत्रों की उपयोगिता को ध्यान में रखकर देश के विभिन्न नगरों से अनेक अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी, बंगाली, उर्दू आदि क्षेत्रीय भाषाओं के समाचार-पत्र निकले। हिन्दू, अमृत-प्रभात, जागरण, आनन्द बाजार पत्रिका, प्रताप, केसरी, स्टेट्मैन, आज, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रीय जयप्रभा, ट्रिब्यून आदि समाचार – पत्रों का राष्ट्रीय जीवन के इतिहास में विशेष लगाव रहा है।
समाचार-पत्रों से लाभ-हानि
समाचार पत्रों द्वारा देश-विदेश में घटित घटनाओं की जानकारी तो मिलती ही है, साथ-ही-साथ मानसिक तुष्टि के लिए पर्याप्त स्वस्थ सामग्री भी मिलती है, जिससे व्यक्ति का बौद्धिक विकास होता है। विचारों में. व्यापकता आती है। देश और समाज के प्रति जागरूकता की भावना का उदय होता है। राजनीतिक चेतना को बल मिलता है। जनता की कठिनाइयों से सरकार अवगत होती है। सरकारी नीतियों का जनता में प्रचार होता है। बड़े-बड़े उद्योगों, व्यवसायों का विज्ञापनों द्वारा प्रचार होता है, पाठकों में साहित्यिक रुचि उत्पन्न होती है। इस प्रकार समाचार-पत्र किसी भी देश की जनता को एक आदर्श नागरिक बनाने में सहायक सिद्ध होते हैं। संक्रामक बीमारियों, भूकम्प, अकाल, तूफान, बाढ़ आदि दैवी विपत्तियों से आक्रान्त जन-जीवन को त्राण दिलाने के लिए समाचार पत्रों द्वारा सहायता कोष की स्थापना करके धन-संग्रह किया जा सकता है। समाचार-पत्र जीवन के यथार्थ को जन-जीवन के समक्ष प्रस्तुत करके देश-सेवा, राष्ट्र सेवा और समाज-सुधार का बहुत बड़ा काम किया करते हैं।
समाचार-पत्रों की इन उपयोगिताओं के साथ-साथ इनमें खतरे भी कम नहीं हैं। समाचार-पत्र एक दुधारी तलवार है। एक ओर जहाँ ये लोकोपयोगी काम कर सकते हैं, दूसरी ओर दबाव, उत्कोच अथवा पक्षधरता से प्रभावित होकर देश और समाज के लिए बहुत बड़ा अहित भी कर सकते हैं। अश्लील विज्ञापनों, झूठे और कल्पित उत्तेजक समाचार-पत्र देश का वातावरण कलुषित और विषाक्त बना सकते हैं। दो राज्यों अथवा संगठनों में खून की नदियाँ बह सकती हैं। समाज में कुत्सित विचारों को पैदा कर सकते हैं।
समाचार-पत्र और लोकतन्त्र
समाचार पत्र और लोकतन्त्र में पारस्परिक गहन सम्बन्ध है। लोकतन्त्र एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था है, जिसमें सार्वभौम प्रभुता जनसाधारण के हाथ में रहती है। ऐसी स्थिति में यदि जनमत स्वस्थ है, जनता सचेत और जागरूक है, अपने अधिकार और कर्त्तव्यों को भली-भाँति जानती है, तब लोकतन्त्रीय आधारशिला में दृढ़ता होगी। इसके अभाव में वह कुछ शक्तिशाली, स्वार्थी, पद-लोलुप कुलीनों के हाथ की कठपुतली बन जायेगी। जनता को जागरूक रखने, उनके विचारों को प्रकाशित करने तथा जन-भावनाओं को प्रतिबिम्बित करने का काम समाचार पत्र ही कर सकते हैं। समाचार पत्रों द्वारा ही जनमत स्वस्थ, प्रभावशाली और शक्तिसम्पन्न हो सकता है। लोकतन्त्र में समाचार पत्र जनता का सच्चा मित्र है, वह उनका प्रतिनिधित्व करता है।
उपसंहार
सच्चे लोकतन्त्र की रक्षा के लिए आवश्यक है कि समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता का अपहरण न किया जाय। उन्हें विचार अभिव्यक्ति की छूट हो। उन पर किसी प्रकार के दबाव अथवा उत्कोच का प्रभाव न डाला जाय। दूसरी ओर समाचार पत्रों का भी परम कर्त्तव्य है कि वे संकीर्णता की परिधि से बाहर होकर लोककल्याण के लिए अन्याय और अत्याचारों के विरुद्ध अपनी आवाज उठाने में थोड़ा भी संकोच न करें। उनकी निर्भीकता और निष्पक्षता ही लोकतन्त्र की रक्षा करने में समर्थ होगी, समाचार पत्रों को जनता का विश्वास पात्र होना होगा।
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