निबंध / Essay

मेरी प्रिय पुस्तक रामचरित्रमानस पर निबंध | श्रीरामचरितमानस’ की विशेषताएँ

मेरी प्रिय पुस्तक रामचरित्रमानस पर निबंध
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरित्रमानस पर निबंध

मेरी प्रिय पुस्तक रामचरित्रमानस पर निबंध

‘श्रीरामचरितमानस’ में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पावन चरित्र की झाँकी प्रस्तुत की गयी है। महाकवि तुलसीदास ने संवत् 1631 में ‘श्रीरामचरितमानस’ को लिखना आरम्भ किया और यह महान ग्रन्थ संवत् 1633 में लिखकर पूरा हुआ। इस ग्रन्थ की रचना अवधी भाषा में की गयी है। इसमें सात काण्ड हैं, जिनका क्रम इस प्रकार है—बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड ।

‘श्रीरामचरितमानस’ की विशेषताएँ

(क) सदाचार के सूत्र

 ‘श्रीरामचरितमानस’ सदाचार की शिक्षा देने वाला महाकाव्य है। ‘श्रीरामचरितमानस’ के प्रारम्भ में ही कवि ने यह बता दिया है कि सदाचार क्या है और क्या करना चाहिए? कवि के अनुसार वे ही व्यक्ति वन्दनीय हैं, जो दुःख सहकर दूसरे के दोषों को प्रकट नहीं करते-

जे सहि दुख परछिद्र दुरावा वंदनीय जेहिं जग जस पावा।

(ख) वेद और पुराणों का संगम

‘श्रीरामचरितमानस’ वेद, शास्त्र-स्मृति और पुराणों का सार-ग्रन्थ है। इसमें तुलसी ने हिन्दी भाषा के माध्यम से भारतीय दर्शन के विभिन्न तत्त्वों को व्यक्त किया है। इस विषय में तुलसी ने स्वयं लिखा है-

नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्

रामायणें निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि ।

स्वांतः सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा,

भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति ।

(ग) श्रीरामचरितमानस’ में नीति

श्रीरामचरितमानस एक श्रेष्ठ नीति-ग्रन्थ है। इसमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि व्यक्ति को कब, किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। नीति के अन्तर्गत परोपकार, सन्त असन्त का परिचय, शत्रु से व्यवहार करने की पद्धति और मित्रता के लक्षणों पर विचार किया गया है। एक स्थान पर बताया गया है कि यदि सचिव, गुरु और वैद्य किसी भय अथवा लाभ की आशा से चापलूसी करते हैं, तो उस राजा के राज्य, धर्म और शरीर का शीघ्र ही नाश हो जाता है—

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।

राज धर्म तन तीनि कर होई बेगहीं नास॥

(घ) ‘श्रीरामचरितमानस’ में भक्ति भावना

 ‘श्रीरामचरितमानस’ उज्ज्वल भक्ति का काव्य है। इसमें भक्ति-भावना पूरी व्यापकता और मार्मिकता के साथ व्यक्त हुई है। तुलसी की भक्ति दास्य-भाव की है। इसमें इसी दास्य भाव की भक्ति की पुष्टि हुई है

अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहौं निरवान।

जनम-जनम रति राम पद यह बरदान न आन ।

(ङ) उच्चकोटि का महाकाव्य

‘श्रीरामचरितमानस उच्चकोटि का महाकाव्य है। काव्यकला की दृष्टि से यह एक श्रेष्ठ कृति है। प्रबन्ध-सौष्ठव, भाषा-सौष्ठव, छन्द-सौष्ठव की दृष्टि से यह ग्रन्थ अद्वितीय है। भाव और कला दोनों दृष्टिकोणों से यह विश्व का महान ग्रन्थ है।

(च) ‘श्रीरामचरितमानस’ में मानव जीवन के आदर्श

‘श्रीरामचरितमानस’ में तुलसीदास ने जिन पात्रों की सृष्टि की है, वे मानव जीवन के आदर्श पात्र हैं। ‘श्रीरामचरितमानस’ में आदर्श भाई, आदर्श पत्नी, आदर्श पुत्र, आदर्श माता, आदर्श पिता, आदर्श सेवक, आदर्श राजा, आदर्श प्रजा को प्रस्तुत करके तुलसी ने मानव-आदर्श की कल्पना की है।

(छ) श्रीरामचरितमानस’ में रामराज्य की कल्पना

‘श्रीरामचरितमानस’ में एक ऐसे राज्य की कल्पना की गई है, जिसमें कोई किसी से वैर नहीं करता। सब प्रेम के साथ रहें, अपने-अपने धर्म का पालन करें, सब उदार हों, कोई भी निर्धन न हो, कोई भी अज्ञानी न हो, किसी को भी दुःख न हो, किसी को रोग न हो।

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