एकात्मक सरकार की परिभाषा
एकात्मक सरकार के अर्न्तर्गत शासन की सारी शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार के पास ही केन्द्रित रहती हैं। सारे देश में एक कार्यपालिका एक विधायिका व एक न्यायपालिका ही होती है। यद्यपि उनको केन्द्रीय सरकार द्वारा कोई महत्वपूर्ण शक्ति नहीं दी जाती। यदि कोई शक्ति दे भी दी जाती है तो वह केन्द्रीय सरकार के नियंत्रण में ही कार्य करती है उन्हें उन शक्तियों का स्वतंत्र प्रयोग करने की छूट नहीं होती, इस प्रकार इन सरकारों की कोई पृथक व स्वतंत्र सत्ता नहीं होती। इन सरकारों की शक्तियों का स्त्रोत संविधान की जगह केन्द्रीय सरकार की होती है। प्रान्तीय या प्रादेशिक सरकारें केन्द्रीय सरकार की प्रतिनिधि बनकर ही कार्य करती हैं और देश के शासन संचालन में सहयोग देती है। एकात्मक सरकार अपने को प्रांतीय व प्रादेशिक सरकारों पर कम से कम निर्भर बनाने की कोशिश करती है ताकि उसकी अखण्डता को कोई खतरा उत्पन्न न हो। ब्रिटेन में इस प्रकार की ही सरकार है। फ्रांस व चीन में भी ऐसी ही सरकारें हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि जिस देश में शासन की सारी शक्तियों एक ही हाथ में हो तो वह एकात्मक सरकार होती है। एकात्मक सरकार को कुछ विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है –
विलोबी के अनुसार एकात्मक सरकार में प्रथम बार तो सारी शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार को दे दी जाती हैं और वह सरकार जिस प्रकार उचित समझे, इन शक्तियों का विभाजन स्वतंत्रत रूप से प्रादेशिक सरकारों में कर सकती है।”
डॉयसी के अनुसार “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा शासन की सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।’
गार्नर के अनुसार – ‘एकात्मक सरकार वहां होती है जहां संविधान द्वारा सरकार की समस्त शक्तियाँ अकेले केन्द्रीय अंग या अंगों को दे दी जाये और स्थानीय सरकारें अपनी शक्तियाँ, स्वतंत्रत व अस्तित्व केन्द्रीय अंगों से ही प्राप्त करें।”
राज्य तथा सरकार में अंतर (Distinction between State and Government)
राज्य मनुष्यों द्वारा निर्मित एक राजनैतिक संगठन है, इस राजनैतिक संगठन का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है। राज्य का काम चलाने के लिये शासनतन्त्र या सरकार होती है, जो राज्य का संस्थात्मक पहलू है। राज्य की अपनी प्रभुसत्ता होती है। राज्य के सभी नियमों का पालन करना उस राज्य के सदस्यों के लिये अत्यंत आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति इसका पालन नहीं करता, तब राज्य अपनी प्रभुसत्ता के आधार पर दण्ड देने का अधिकार रखती है। सरकार की संस्था के बिना राज्य की धारणा की कोई वास्तविकता नहीं है। अधिकतर विद्वान राज्य को एक समिति मानते हैं तथा इस बात पर बल देते हैं कि राज्य अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कुछ संस्थागत नियमों को मान्यता देता है। सरकार समिति का संस्थागत पक्ष है। यद्यपि सरकार का निर्माण व्यक्तियों के द्वारा होता है तथापि सरकार स्वयं अपने आप में एक व्यवस्था है क्योंकि यह नियमबद्धता एवं निश्चित कार्यप्रणाली से सम्बद्ध होती है। जिंसबर्ट के शब्दों में “सरकार व्यक्तियों का वह संगठन है जिसे राज्य के कार्यों के निष्पादन हेतु उत्तरदायित्व एवं सत्ता प्राप्त होती हैं। सुपरिचित मुहावरा ‘सरकार परिवर्तित होती है परन्तु राज्य बना रहता है” का अर्थ इससे अधिक नहीं हो सकता कि राज्य यद्यपि परिवर्तित हो सकता है, तथापि सरकार की तुलना में यह अधिक स्थायी होता है। राज्य तथा सरकार में निम्नलिखित अंतर देखने को मिलते हैं
(1) राज्य, व्यक्तियों का एक विशाल राजनैतिक संगठन है जिसका निर्माण निश्चित भौगोलिक सीमाओं के अंदर रहने वाले व्यक्तियों द्वारा किया जाता है अर्थात् राज्य की परिधि सीमित होती है। इसके विपरीत सरकार एक संस्था है अर्थात् यह वह साधन है जिसके द्वारा राज्य अपने राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करता है।
(2) राज्य बहुत कुछ स्थायी होता है जबकि सरकार में परिवर्तन होता रहता है। अन्य शब्दों में, राज्य अपेक्षाकृत स्थायी होता है, जबकि सरकार परिवर्तनशील होती है।
(3) राज्य एक साध्य है, जबकि सरकार उस साध्य को प्राप्त करने का एक साधन मात्र है।
(4) राज्यों की आधारभूत विशेषताएँ एक समान हो सकती हैं, परन्तु दो राज्यों की सरकारों में पूरी तरह से समानता नहीं पाई जती है।
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