सरकारों के वर्गीकरण में आने वाली समस्याये
हम जानते हैं कि जो भी कार्य समाज की भलाई के लिये किये जाते हैं तो उनमें कुछ बाधाएं अवश्य आती हैं इसी प्रकार जब हम सरकार का वर्गीकरण करने लगते हैं तब कई कठिनाइयाँ पैदा हो जाती हैं। प्रथम कठिनाई संस्थाओं के एक से नामों से संबंधित है। वास्तव में, समान नाम वाली राजनीतिक संस्थायें विभिन्न राज्यों की राजनीतिक प्रक्रियाओं में एक से कार्य नहीं करती हैं। जापान का सम्राट पश्चिम जर्मनी के राष्ट्रपति के समान राजनीतिक कार्य करता है और उसका वैसा ही राजनीतिक प्रभाव है। इसी तरह संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति पद में भारत के प्रधानमंत्री तथा भारत के राष्ट्रपति दोनों के राजनीतिक लक्षणों का समावेश है। ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमरीका में दो दलों वाली पद्धति है लेकिन गहराई से अध्ययन करने पर मालूम होता है कि अमरीका के राजनीतिक दल अपनी संरचना तथा आचरण दोनों दृष्टियों से ब्रिटेन के दो दलों से बहुत भिन्न हैं।
सरकारों के वर्गीकरण में दूसरी कठिनाई सरकारों की सैद्धान्तिक व व्यवहारिक भूमिका में अन्तर है। किसी राज्य में सिद्धांत व व्यवहार का अंतर इतना अधिक होता है कि उस राज्य के वर्गीकरण के दोनों ही आधार सैद्धान्तिक व व्यावहारिक, निरर्थक बन जाते हैं। साम्यवादी शासन पद्धतियों से संविधान की व्यवस्थाओं का व्यवहार में अनुपालन नहीं होता है। अतः वर्गीकरण में संवैधानिक तथा कानूनी आधार लेने पर व्यवहार की अनदेखी होती है और व्यवहार का आधार लेने पर वर्गीकरण किया ही नहीं जा सकता, क्योंकि अलग-अलग परिस्थितियों में ऐसे राज्यों का व्यवहार प्रतिमान भी बदलता रहता है इस तरह ऐसी सरकारों का वर्गीकरण न संवैधानिक आधार पर किया जा सकता है और न ही व्यवहारिक आधार पर कर सकना संभव है। अतः सरकारों के संवैधानिक तथा वास्तविक रूप में अंतर इनके वर्गीकरण में सबसे बड़ी अड़चन उत्पन्न करते हैं।
सरकारों के वर्गीकरण में एक कठिनाई वर्गीकरण करने के उद्देश्यों के कारण भी आ जाती है। कई विद्वान किसी शासन विशेष की प्रशंसा करने या उसकी भर्त्सना करने के लिये कभी-कभी वर्गीकरण का सहारा ले लेते हैं। कुछ शासनों पर प्रजातन्त्रीय या एकतन्त्रीय होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। यह ठप्पा राजनीतिक संस्थाओं का वर्णन करने, उन्हें श्रेणीबद्ध करने और उनका विश्लेषण करने के इरादे से नहीं लगाया जाता है। वास्तव में वर्गीकरण करने वाले विद्वानों के द्वारा यह किन्हीं शासनों के प्रति अनुराग या उनके प्रति विरोध होने के कारण किया जाता है। 1945 के बाद अमरीका तथा रूस में अनेक विद्वान पूर्वाग्रहों से इतने अधिक प्रभावित रहने लगे कि कुछ वर्षों तक एक-दूसरे के यहाँ की राजनीतिक व्यवस्थाओं को ही लोकतांत्रिक मानते रहे। ऐसी अवस्था में किसी शासन को लोकप्रियता का जामा पहना देना, वर्गीकरण का प्रयास ही बेकार कर देता है। सरकारों के वर्गीकरण में यह समस्या बहुत कठिनाइयां उत्पन्न करती है अतः इस कठिनाई से बचना मुश्किल हो जाता है।
राजनीतिक संस्थाओं के वर्गीकरण में चौथी कठिनाई यथार्थ व आदर्श के कारण उत्पन्न हो जाती हैं, विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करते समय जैसा है और जैसा होना चाहिये, के प्रश्नों का न उठाना कठिन हो जाता है। अगर इन प्रश्नों को उठाया गया तो वर्गीकरण अत्यन्त कठिन हो जाता है, इस समस्या का कोई भी समाधान नहीं है केवल वर्गीकरण का उद्देश्य ही इस सम्बन्ध में कुछ सहायक हो सकता है। सरकारों के वर्गीकरण में सबसे प्रमुख कठिनाई राजनीतिक संस्थाओं व प्रक्रियाओं की विचित्रता की है। अगर गहराई से देखा जाये तो हर देश की सरकार, संरचना आचरण तथा भूमिका की दृष्टि से हर दूसरे देश की सरकार से विचित्र व अनुपम होती है। सरकारों, संस्थाओं व राजनीतिक संरचनाओं का इन विचित्रताओं के कारण वर्गीकरण करना कठिन हो जाता है। इन अनुपमताओं के कारण हर सरकार अपने आप में एक प्रकार हो जाती है तथा उसको किसी दूसरी सरकार के समान मानकर एक प्रवर्ग में रखने का प्रयास उसकी विचित्रता की उनदेखी करके उसको जानबूझकर दूसरी सरकार के समान बनाना है।
वर्गीकरण करने में एक कठिनाई वर्गीकरण में वैज्ञानिक व सुनिश्चित आधारों का आभाव है। वर्गीकरण के आधार ज्यों-त्यों सुनिश्चित बनाने का प्रयास किया जाता है। त्यों-त्यों वर्गीकरण के प्रवर्गों में वृद्धि होती जाती है, क्योंकि वर्गीकरण आधार को सुनिश्चित करना तभी संभव होता है जब वर्गीकरण के आधार को समष्टि स्तर से व्यष्टि स्तर पर लाया जाय। जैसे कार्यपालिका के स्थान पर प्रधानमंत्री या राज्य व सरकार के स्थान पर कार्यपालिका व्यवस्थापिका या न्यायपालिका के आधार पर वर्गीकरण किया जाये, तो वर्गीकरण का आधार अधिक सुनिश्चित हो जाता है। इस तरह सरकारों के वर्गीकरण में यह समस्या भी आती है। आधार की केवल सुनिश्चितता ही कठिनाई नहीं उत्पन्न करती है बल्कि परिमाणात्मकता भी पेचीदगियाँ ला देती है। राजनीतिक व्यवस्थाओं व संस्थाओं के संबंध में कोई ठोस मानदण्ड बनाकर भी उनका परिमाणन नहीं किया जा सकता है इसके कारण आधारों को मापना कठिन हो जाता है।
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