कानून व्यवस्था किसे कहते हैं?
कानून व्यवस्था एक ऐसा शब्द है जो आये दिन खबरों के माध्यम से आप सुनते और पढ़ते हैं, यह शब्द केवल खबरों के लिहाज से ही नहीं बल्कि सामाजिक तौर पर भी महत्वपूर्ण है, बेहतर कानून व्यवस्था अच्छे समाज और माहौल का निर्माण करती है, किसी भी राज्य, शहर, अथवा क्षेत्र में शांति बनाए रखना, अपराधों को कम करना और नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करना, कानून व्यवस्था का मुख्य अंग है। अक्सर जहाँ भी कहीं राजनीतिक या सामाजिक बवाल या टकराव होता है, या फिर माहौल तनावपूर्ण हो जाता है तो कानून व्यवस्था का संकट खड़ा हो जाता है यानि किसी क्षेत्र में अशांति या हिंसा होना भी कानून व्यवस्था का संकट ही होता है।
भारत का गृह मंत्रालय देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों के लिये उत्तरदायी है। यह आपराधिक न्याय प्रणाली के लिये कानून अधिनियमित करता है, देश में पुलिस बल को सार्वजनिक व्यवस्था का रखरखाव और अपराधों की रोकथाम और उनका पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। भारत के प्रत्येक राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश का अपना अलग पुलिस बल है, राज्यों की पुलिस के पास ही कानून व्यवस्था को बनाये रखने की जिम्मेदारी होती है। कानून व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिये सरकार हर एक महत्वपूर्ण प्रयत्न करती है। इनमें से कुछ की भूमिका निम्नवत है-
कानून व्यवस्था में केन्द्र की भूमिका- भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ राज्य के विषय है। अपराध रोकना, पता लगाना, दर्ज करना, जांच पड़ताल करना और अपराधियों के विरुद्ध अभियोजन चलाने की मुख्य जिम्मेदारी राज्य सरकारों और खासकर पुलिस को दी गई है। संविधान के मुताबिक ही केन्द्र सरकार पुलिस के आधुनिकीकरण, अस्त्र-शस्त्र संचार उपस्कर, मोबिलिटी, प्रशिक्षण और अन्य अवसंरचना के लिये राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
कानून व्यवस्था में एन.सी.आर.बी. की भूमिका- कानून व्यवस्था और अपराधों से – संबंधित घटनाओं को रोकने के लिये केन्द्रीय सुरक्षा और सूचना ऐजेंसियों की कानून और प्रवर्तन इकाइयों को नियमित रूप से जानकारी देती है, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों (एन.सी.आर.बी.) गृह मंत्रालय की एक नोडल एजेंसी है, जो अपराधें को बेहतर ढंग से रोकने और नियंत्रित करने के लिये राज्यों की सहायता करती है, और राज्यों को अपराध संबंधी आंकड़े जुटाने और उनका विश्लेषण करने का कार्य करती है।
कानून व्यवस्था में सी.सी.आई.एस. भी सहायक- अपराध अपराधी सूचना प्रणाली (सी.सी.आई.एस.) के तहत देश के सभी जिलों में जिला अपराध रिकार्ड ब्यूरो (डी.सी.आर.बी.) और राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एस.सी.आर.बी.) को कंम्प्यूटरीकृत प्रणाली से जोड़ दिया गया है, यह प्रणाली अपराध रोकने, उनका पता लगाने और सेवा प्रदाता तंत्रों में सुधार करने में सहायक है इसकी मदद के लिये पुलिस और कानूनी प्रवर्तन एजेंसियाँ अपराधों, अपराधियों और अपराध से जुड़ी सम्पत्ति का राष्ट्र स्तरीय डाटाबेस रखती है।
कानून व्यवस्था में ओ.सी. आई. एस. की भूमिका – एन.सी.आर.बी. के दिशा निर्देश में संगठित अपराध के खतरे से प्रभावी ढंग से निपटने के मकसद से एक और नई प्रणाली स्थापित की जा रही है, जिसे संगठित सूचना प्रणाली यानि ओ.सी.आई.एस. का नाम दिया गया है इसके तहत विभिन्न अपराधों से संबंधित आंकड़े आसानी से उपलब्ध होगें, जो कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहायक साबित होगें।
अतः संक्षेप में कहा जा सकता है कि कानून व्यवस्था तभी मजबूत रह सकती है जब देश में काम करने वाली हर संस्था अपने-अपने कार्यों को भली-भांति ढंग से पूर्ण करें और हर कार्य को समाज कल्याण के अन्तर्गत करने का प्रयास करें।
कानून के प्रकार (Types of Law)
विभिन्न विद्वानों ने कानून के दो प्रकारों का उल्लेख किया है जैसे-
(1) मौलिक विधि-विधि जो कर्तव्य व अधिकारों की परिभाषा दे।
(2) प्रक्रिया विधि- विधि जो कार्यवाही के प्रक्रमों (प्रोसीजर्स) का निर्धारण करें। अपराध की परिभाषा भिन्न-भिन्न रूपों में की गई है जैसे अपराध समाजविरोधी क्रिया है। अपराध को हम परिभाषित कर सकते हैं कि जैसे किसी नगरपालिका के बनाये नियमों का उल्लंघन कर यदि कोई रात में बिना बत्ती जलाए साइकिल पर नगर की सड़क पर चले अथवा बिना पर्याप्त कारण के ट्रेन की जंजीर खींचकर गाड़ी खड़ी कर दे, तो वह भी उसी प्रकार दोषी माना जाएगा, जिस तरह कोई किसी की हत्या करने पर दोषी, किन्तु साधारण अर्थ में लोग अपराध को हत्या, डकैती आदि जघन्य अपराधों के पर्याय के रूप में ही लेते हैं। सरल शब्दावली में अपराध किसी व्यक्ति द्वारा किये गये किसी भी कार्य या चूक को संदर्भित करता है जो लागू होने के लिये किसी भी कानून द्वारा निषिद्ध है और जिसे कानून के तहत दंडनीय बना दिया गया है। भारत में अपराध और आपराधिक परीक्षण से निपटने वाले कानून निम्न हैं –
1. भारतीय दंड संहिता 1860
2. आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973
3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872
भारतीय दंड संहिता को एक संयम कानून के रूप में जाना जाता है, जबकि आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम को प्रक्रियात्मक कानून के रूप में जाना जाता है, सर्वोच्च न्यायालय के वकीलों और यहां तक कि शीर्ष आपराधिक वकील भी आपराधिक मामलों से निपटने के दौरान इन कानूनों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। आपराधिक प्रक्रिया संहिता तीन प्रकारों में क्रिमिनल ट्रायल को वर्गीकृत करती है – 1. वारंट केस 2. सम्मन केस, 3. समरी केस
वारंट केस मृत्यु के साथ दंडनीय अपराध या आजीवन कारावास या यह दो साल से अधिक के कारावास से संबंधित है। सम्मन केस को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (डब्ल्यू) के तहत कहा गया है कि यह केस अपराध से संबंधित है और यह वांरट केस के दायरे में नहीं आता है। समरी केस को आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अध्याय XXI के तहत निपटाया जाता है।
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