सरकार की परिभाषा
सरकार कुछ निश्चित व्यक्तियों का समूह होती है जो राष्ट्र तथा राज्यों में निश्चित काल के लिये तथा निश्चित पद्धति द्वारा शासन करता है। प्रायः इसके तीन अंग होते हैं- व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका। सरकार के माध्यम से राज्य में राजशासन नीति लागू होती है। सरकार के तंत्र का अभिप्राय उस राजनीतिक व्यवस्था से होता है जिसके द्वारा राज्य की सरकार को जाना जाता है। राज्य निरन्तर बदलती हुयी सरकारों द्वारा प्रशासित होते हैं। हर नई सरकार कुछ व्यक्तियों का समूह होती है जो राजनीतिक फैसले लेती है या उन पर नियंत्रण रखती है। सरकार का कार्य नये कानून बनाना, पुराने कानूनों को लागू रखना तथा झगड़ों में मध्यस्थता करना होता है। कुछ समाजों में यह समूह आत्म मनोनीत या वंशानुगत होता है। बाकी समाजों में जैसे लोकमत राजनीतिक भूमिका का निर्वाह निरन्तर बदलते हुये व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, संसदीय पद्धति में सरकार का अभिप्राय राष्ट्रपतीय पद्धति के अधिशासी शाखा से होता है। इस पद्धति में राष्ट्र में प्रधानमंत्री एवं मंत्री परिषद तथा राज्य में मुख्यमंत्री एवं मन्त्री परिषद होते हैं। पाश्चात देशों में सरकार और तंत्र में साफ अन्तर है। जनता द्वारा सरकार का दोबारा चयन न करना इस बात को नहीं दर्शाता है कि जनता अपने राज्य के तंत्र से है लेकिन कुछ पूर्णवादी शासन पद्धतियों में यह भेद इतना साफ नहीं है। इसका कारण यह है कि वहाँ के शासक अपने फायदे के लिये यह लकीर मिटा देते हैं।
राजनीतिक संस्थाओं के आरंभ से ही सरकारों व संस्थाओं के वर्गीकरण के प्रयत्न कम से कम इतना तो स्पष्ट करते हुये माने जा सकते हैं कि वर्गीकरण की विशेष उपयोगिता व महत्व होता है। अरस्तू के द्वारा किये गये वर्गीकरण का उद्देश्य मुख्यतया तत्कालीन शासन व्यवस्थाओं में विद्यमान समानताओं व अन्तरों को स्पष्ट करके उनकी श्रेष्ठता इत्यादि का संकेत देना था, परन्तु आजकल के वर्गीकरण केवल समानताओं व अंतरों को समझने के उद्देश्य से कहीं आगे जाने लगे है।
सरकारों के वर्गीकरण के उद्देश्य
सरकारों के वर्गीकरण के कुछ सामान्य उद्देश्यों का ही विवेचन किया जा सकता है, यह विवेचन निम्नलिखित है –
1. सरकारों का वर्गीकरण विभिन्न राजनीतिक शासनों के बीच समानताओं तथा असमानताओं पर बल देने का साधन है। उदाहरण के लिये, यदि सरकार के अध्यक्षात्मक व संसदीय प्रकारों का द्विदलीय और बहुदलीय पद्धतियों के बीच समानताओं और अन्तरों की विस्तृत सूची प्रस्तुत करना हो तो सरकारों का अध्यक्षात्मक व संसदीय तथा द्विदलीय और बहुदलीय पद्धतियों में वर्गीकरण करके ही ऐसा किया जा सकता है परन्तु यहां यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि सरकारों के बीच समानताओं व असमानताओं की सूची बनाने की क्या आवश्यकता व उपयोगिता है? इस संबंध में इतना ही कहा जा सकता है कि राजनीतिक व्यवस्थाओं का वर्गीकरण करके उनके बीच समानताओं व अंतरों के आधार पर सरकारों की वास्तविक प्रकृति को समझना सरल हो जाता है इससे संस्थाओं व सरकारों की सुचारूता की व्यवस्था करना आसान हो जाता है। उदाहरण के लिये, संसदीय व अध्यक्षात्मक व्यवस्थाओं का वर्गीकरण व इस वर्गीकरण से स्पष्ट हुई समानताओं व असमानताओं के आधार पर इन व्यवस्थाओं में से कौन सी किसी देश के लिये अधिक उपयुक्त है, इसका ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
2. विभिन्न राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दर्शनों की स्वीकृति के परिणामस्वरूप होने वाली विविधताओं को खोजने में भी वर्गीकरण सहायक रहते हैं। वर्तमान युग विभिन्न प्रतियोगी व राजनीतिक विचारधाराओं का युग है। हर विचारधारा की श्रेष्ठता को स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता रहा है। सरकारों का विचार दर्शनों के आधार पर वर्गीकरण करके यह दिखाने का प्रयत्न किया जाता है कि इन सरकारों में विविधताएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह या वह विचार प्रतिमान सर्वोत्तम है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पूंजीवादी उदार लोकतंत्रों तथा साम्यवादी सरकारों में विशेषकर अमरीका व सोवियत रूस में, वैचारिक टकराव, बहुत कुछ नवोदित राज्यों को आकर्षित करने के लक्ष्य से होने के कारण कुछ समय तक सरकारों के वर्गीकरण का उद्देश्य इनमें से किसी एक की श्रेष्ठता समझाने का हो गया था। अतः सरकारों के वर्गीकरण के द्वारा विभिन्न विचारधाराओं वाली शासन व्यवस्थाओं के बीच विद्यमान विविधताओं को खोजने का लक्ष्य भी निहित रहता है।
3. वर्गीकरण का तीसरा उद्देश्य राजनीतिक अध्ययनों को वैज्ञानिक बनाने से संबंधित है। राजनीतिशास्त्र के विद्वानों का अरस्तू के समय से ही यह प्रयत्न रहा है कि सरकारों से संबंधित ज्ञान को विज्ञान का रूप किस प्रकार दिया जाये? सरकारों का वर्गीकरण इसी प्रयत्न में विशेष सहायक प्रतीत होता है। विज्ञान में नियम प्रतिपादन न केवल राजनीतिक व्यवस्थाओं की अनेकता से संभव है बल्कि परस्पर प्रतिकूल या विविधताओं और समानताओं वाले उदाहरणों की प्रचुर सामग्री से ही संभव है। किसी भी शास्त्र के व्यवस्थित अध्ययन को ही वैज्ञानिक अध्ययन कहा जाता है। इसके लिये संकलित आंकड़ों की व्याख्या करनी होती है। किसी भी तथ्य से संबंधित आंकड़ों का वर्गीकरण करने के बाद उनकी व्याख्या की जा सकती है तथा इन व्याख्याओं के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं। अतः किसी भी शास्त्र के वैज्ञानिक अध्ययन में एक चरण अनिवार्यतः वर्गीकरण का रहता है। जो बात सामान्य शास्त्रों पर लागू होती है वही राजनीतिशास्त्र में भी लागू दिखाई देती है। सरकारों के वर्गीकरण से सरकारों के संबंध में निष्कर्ष व सामान्यीकरण करना सरल हो जाता है। इसलिये वर्गीकरण करने का एक उद्देश्य राजनीतिक अध्ययनों को वैज्ञानिकता प्रदान करने से संबंधित भी है।
4. तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययनों में जो वर्गीकरण अनिवार्य होते हैं, सरकारों का वर्गीकरण करके ही उनके बीच समानताओं व असमानताओं का ज्ञान प्राप्त किया जाता है तथा वर्गीकृत सरकारों की तुलना करके ही उनमें कार्यरत प्रत्यात्मक शक्तियों की खोज संभव होती है। राजनीतिशास्त्र के जनक अरस्तू ने 158 संविधानों का वर्गीकरण करके उनकी आपस में तुलना करके ही सामान्यीकरण स्थापित किये थे। वर्तमान समय में तो हर विद्वान ने अपना अलग वर्गीकरण लेकर सरकारों, संस्थाओं और राजनीतिक प्रक्रियाओं को समझने का प्रयास किया है। आजकल के राजनीतिक अध्ययनों में सरकारों के वर्गीकरणों की भरमार इस बात की पुष्टि करती है कि तुलनात्मक राजनीति में हर विद्वान को किसी न किसी स्तर पर किसी न किसी वर्गीकरण योजना का सहारा लेना होता है।
5. तुलनात्मक पद्धति के प्रयोग में सरकारों का वर्गीकरण आधारभूत होता है अतः वर्गीकरणों का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य तुलनात्मक पद्धति के प्रयोग को सम्भव बनाने संबंधी है। किसी भी राजनैतिक अध्ययन के लिये चुनी हुयी सरकारों का वर्गीकरण करके ही तुलनात्मकता की अवस्था में पहुँचा जा सकता है। वर्गीकरण करने से तुलना का क्षेत्र व सरकारों के वर्ग का सीमांकन व सुनिश्चय हो जाता है। उदाहरण के लिये, अगर 125 सरकारें तुलनात्मक अध्ययन में सम्मिलित की गई हो तो इनकी संभावित या प्रस्थापित परिकल्पना को ध्यान में रखते हुये वर्गीकरण करना उपयोगी रहता है। अगर परिकल्पना लोकतांत्रिक सरकार के किसी पहलू से संबंधित है और केवल लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की तुलना ही करनी हो तब इन 125 सरकारों के उदाहरणों को वर्गीकरण के द्वारा दो श्रेणियों में विभक्त करना होगा। अतः वर्गीकरण का उद्देश्य तुलनात्मक पद्धति का प्रयोग सम्भव बनाने से भी संबंधित दिखाई देता है। वर्गीकरण से तुलना की इकाइयों के संबंध में परिकल्पना करना सरल हो जाता है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राजनीतिशास्त्र के सरकारों के वर्गीकरण के अनेक उद्देश्य हो सकते हैं। राजनीतिक पद्धति के किस पहलू का परीक्षण किया जाना है इस पर वर्गीकरण की योजना निर्भर करती है और योजना का मूल्यांकन, वर्गीकरण के फलस्वरूप हमारे ज्ञान में हुई वृद्धि से होता है अतः सरकारों के वर्गीकरण का एक उद्देश्य सरकारों के बारे में हमारे ज्ञान में वृद्धि करना भी आता है। इस प्रकार सरकारों का वर्गीकरण राजनीतिक अध्ययनों में न केवल उपयोगी ही होता है बल्कि इसकी सहायता से राजनीतिशास्त्र को व्यवस्थित व वैज्ञानिक अध्ययन बनाने में भी सहायता मिलती है।
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