कार्यपालिका किसे कहते हैं ?
सभी प्रकार के मानव संगठन नियमों पर आधारित होते हैं। साधारण मानव समूह से लेकर राज्यों तक में व्यवस्था बनाये रखने के लिये परिचालनात्मक नियमों की आवश्यकता पड़ती है, इनके अभाव में हर संगठन व संस्था में अव्यवस्था लागू होती है। इनमें व्यवस्थात्मकता के लिये क्रियात्मक विधियाँ अनिवार्य हो जाती हैं। इन विधियों को लागू करने के लिये जिस शक्ति का प्रयोग होता है उसे कार्यपालिका शक्ति तथा इस शक्ति का प्रयोग करने वाली संस्थात्मक संरचना को कार्यपालिका कहा जाता है। कार्यपालिका के सामान्यतया दो अर्थ दिये गये हैं एक व्यापक अर्थ व दूसरा सीमित अर्थ व्यापक अर्थ में कार्यपालिका का तात्पर्य सभी राज्य कर्मचारियों से होता है जिनका संबंध राज्य के प्रशासन से होता है। इस अर्थ में कार्यपालिका राज्य के सर्वोच्च अध्यक्ष से लेकर दफ्तर के एक चपरासी तक सभी प्रशासन कर्मचारियों को कहा जाता है किन्तु राजनीति विज्ञान में कार्यपालिका का यह व्यापक अर्थ स्वीकार नहीं किया जाता है, इस अर्थ में व्यावसायिक प्रशासक भी कार्यपालिका में सम्मिलित रहते हैं। अतः कार्यपालिका का सीमित अर्थ में प्रयोग करते समय प्रशासनिक कर्मचारियों को कार्यपालिका से अलग रखने की प्रथा है, इस अर्थ में कार्यपालिका केवल उन संस्थागत संरचनाओं को ही कहा जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था के संबंध में नीति की शुरूआत या उसे निर्मित करने से संबंधित रहती है अर्थात् कार्यपालिका में केवल वही राजनीतिक अधिकारीगण होते हैं जिनका नीति निर्माण व क्रियान्वयन से संबंध होता है। तथा जो इस प्रकार के कार्य के लिये किसी के प्रति सुस्पष्ट उत्तरदायित्व निभाते हैं इस प्रकार, लोकतंत्र शासन व्यवस्थाओं में मंत्रिमण्डल नीति बनाते हैं और वे इस नीति निर्माण के लिये संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं इसलिये इनको हम कार्यपालिका कह सकते हैं। अतः सीमित अर्थ में कार्यपालिका केवल राज्य के प्रधान तथा उसके मंत्रिमण्डल को ही कहा जाता है।
प्रशासन और कार्यपालिका में केवल नीति की पहल और संसद के प्रति उत्तरदायित्व के आधार पर भेद करना कठिन है। सिविल कर्मचारी मंत्रियों की तरह विधानमण्डल के प्रति तो उत्तरदायी नहीं होते, पर वे परोक्ष रूप में मंत्री के माध्यम से उत्तरदायी अवश्य रहते हैं। अतः इन दोनों में यह भेद प्रतिष्ठा तथा कार्यों में कुछ महत्वपूर्ण अन्तरों की ओर अवश्य इंगित करता हैं लेकिन राजनीतिज्ञों और सिविल कर्मचारियों के बीच स्पष्टतर विभाजन रेखा वाली राजनीतिक पद्धतियों में भी यह असंभव है कि उच्च सिविल कर्मचारियों का संबंध केवल नीति के संचालन से ही उसकी शुरूआत या उसे निर्मित करने में उसका कतई हाथ न हो, ऐलेनबाल के अनुसार, खास तौर पर आधुनिक कल्याणकारी राज्यों में नीति निर्माण प्रक्रिया के क्षेत्र तथा बढ़ती हुयी जटिलता के कारण सिविल कर्मचारियों के पास संवैधानिक कल्पित कथाओं में वर्णित अधिकारों से कही अधिक अंश में स्वाधीनता और नीति में पहल करने की अधिक व्यापक शक्तियाँ है।
ला पालोम्बरा ने कार्यपालिका, कार्यपालिका शक्ति तथा कार्यपालिका अंग में अन्तर करते हुए कार्यपालिका से सीमित अर्थ बोधन की बात स्वीकार की है। उसने कार्यपालिका में उन्हीं राजनीतियों को सम्मिलित किया है जिन्हें विवेक के अधिकार प्राप्त होते हैं। इस अर्थ में कार्यपालिका की परिभाषा करते हुये ला पालोम्बारा ने लिखा है, कार्यपालिका से आशय मुख्य कार्यपालक, विभागों के अध्यक्ष तथा सरकारी सोपान में उच्चतम स्तर के सार्वजनिक प्रशासकों से है। इसमें वे व्यक्ति सिविल कर्मचारी और अन्य लोग जो मुख्य कार्यपालक की सहायता के लिये भर्ती किये जाते है, सम्मिलित होते हैं। इनके अलावा प्रशासन के लाखों लोगों को वह कार्यपालिका में सम्मिलित नहीं मानकर उन्हें प्रशासन, लोक प्रशासन, सिविल सर्विस या नौकरशाही के नाम से अलग करता है।
मेक्रिडिस ने कार्यपालिका के व्यापक व सीमित अर्थ में अन्तर के लिये राजनीतिक शब्द का सहारा लिया है। उसने सीमित अर्थ में कार्यपालिका को राजनीतिक कार्यपालिका तथा व्यापक अर्थ में केवल कार्यपालिका कहना उपयुक्त माना है। राजनीतिक कार्यपालिका की परिभाषा करते हुये मेक्रिडिस ने लिखा है कि ‘राजनीतिक कार्यपालिका राजनीतिक समाज के शासन के लिये औपचारिक उत्तरदायित्व निभाने वाली संस्थागत व्यवस्थाएँ हैं। इस तरह मेक्रिडिस ने राजनीतिक कार्यपालिका में अपने द्वारा लिये बाध्यकारी निर्णयों को लागू करने वाले राजनीतिज्ञों को ही सम्मिलित माना है। अतः हम कार्यपालिका से वही अर्थ लेगें जो ला पालोम्बारा ने ‘सरकार’ या मेक्रिडिस ने ‘राजनीतिक कार्यपालिका से लिया है। इस अर्थ में कार्यपालिका में केवल राज्य का अध्यक्ष व उनके मंत्रिमण्डल को ही सम्मिलित माना जाएगा।
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