राजनैतिक दल की परिभाषा
भारत में बहुदलीय राजनैतिक दल प्रणाली है। राजनीतिक दलों के निर्माण का कार्य भारत में स्वतंत्रता पूर्व ही प्रारंभ हो चुका था। राजनैतिक दल एक ऐसा सामाजिक समूह होता है जो राजनैतिक सत्ता को प्राप्त करने का प्रयास करता है। इसके लिये वह जनता के मध्य रहकर जनहित के कार्य करने का प्रयास करता है। सत्ता प्राप्त कर लेने वाला राजनैतिक दल अपनी शक्ति के प्रयोग द्वारा जनहित का कार्य करता है, जबकि जिन राजनैतिक दलों को सत्ता प्राप्त नहीं होती, वे विपक्षी राजनैतिक दल के रूप में जनता की आवश्यकताओं को सत्ता प्राप्त दल तक पहुँचाने का कार्य करते हैं। इस प्रकार मैकाइवर के शब्दों में राजनैतिक दल सरकार एवं जनता के मध्य एक कड़ी का कार्य करते हैं। राजनैतिक दल को और अधिक स्पष्ट रूप से समझने के लिये कुछ सर्वमान्य परिभाषाओं का अध्ययन करना आवश्यक है
मैक्सवेबर के अनुसार “राजनैतिक दलों का विकास शक्ति के गर्भ में होता है, सामाजिक एवं राजनैतिक शक्ति को प्राप्त करना उसका प्रमुख उद्देश्य है। राजनीतिक दल आधुनिक प्रभुता के प्रकारों की उत्पत्ति कही जा सकती है।”
एफ. डब्ल्यू. रिग्स के अनुसार राजनैतिक दल वह संगठन है जो विधानसभा के चुनाव के लिये प्रत्याशियों का मनोनयन करता है।”
एडमण्ड वर्क ने राजनैतिक दल को परिभाषित करते हुये लिखा है कि “राजनैतिक दल एक ऐसे समूह के रूप में हैं जो अपने कुछ सिद्धान्तों के आधार पर जनहित के कार्यों में संलग्न रहते हैं।”
इन परिभाषाओं के आधार पर राजनीतिक दलों के संबंध में एक निश्चित बात यह कही जा सकती है कि राजनैतिक दलों की स्थापना का उद्देश्य जनकल्याण करना रहा है। इस हेतु राजनैतिक दलों को कुछ शक्तियों प्रदान की गयी हैं जिनके माध्यम से वे जनकल्याणकारी नीति का निर्माण कर सकते हैं।
भारतीय सामाजिक संरचना, विश्व संरचना में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। इसका कारण भारतीय सामाजिक संरचना में अनेको विशेषताओं एवं भिन्नताओं का विद्यमान होना है। यहाँ जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, जनसंख्यात्मक वितरण, भाषा, बोली एवं सामाजिक मूल्यों के आधार पर पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है। यह भिन्नता भारतीय राजनीति को न केवल प्रभावित करती है बल्कि वर्तमान में इसकी दिशा भी निर्धारित करती है। प्रत्येक राजनीतिक दल इन भिन्नताओं को ध्यान में रखकर ही अपनी कार्यप्रणाली तय करता है।
भारतीय राजनीतिक दल प्रणाली की विशेषताएँ
भारतीय राजनैतिक दल की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. किसी भी राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत न मिलना
सन् 1996 तक भारतीय राजनीतिक दलों की जो भी स्थिति रही हो, किन्तु विगत 10 वर्षों से संसदीय चुनावों में किसी दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। जिस राजनीतिक दल को सर्वाधिक सीटें प्राप्त होती हैं, वह अन्य दलों के सहयोग से गठबन्धन सरकार का निर्माण कर रहा है। भविष्य में भी इस स्थिति में परिवर्तन आने की कोई संभावना नहीं दिखती।
2. क्षेत्रीय दलों का बढ़ता प्रभाव
यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत में क्षेत्रीय | राजनीतिक दलों का अस्तित्व रहा है किन्तु पिछले कुछ वर्षों से क्षेत्रीय दलों का विकास तीव्रता से हुआ है। इसके दो मुख्य कारण हो सकते हैं प्रथम राष्ट्रीय राजीनतिक दलों द्वारा क्षेत्रीय | समस्याओं पर ध्यान न दिया जाना। दूसरे आम चुनाव में कुछ सीटें प्राप्त करके गठबन्धन सरकार का सहयोगी बनकर मलाईदार पद प्राप्त करने का प्रयास करना। वर्तमान में भारतवर्ष में | तेलुगुदेशम पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम असमगण परिषद, झारखंड मुक्ति मोर्चा, मुस्लिम लीग, शिवसेना, मणिपुर पीपुल्स पार्टी, नागालैण्ड पीपुल्स पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी आदि प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं जो भारतीय राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं।
3. जातिवादी एवं साम्प्रदायिक मुद्दों पर आधारित
राजनीतिक दलों ने अपनी राजनीति को जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता पर केन्द्रित कर लिया है। चाहे वह राष्ट्रीय दल हो अथवा क्षेत्रीय दल। कुछ राजनीतिक दल घोषित रूप से जातिवादी एवं साम्प्रदायिक हैं तो कुछ दल अघोषित रूप से साम्प्रदायिक हैं।
4. आरोप-प्रत्यारोप की मानसिकता
यह भारतीय राजनीतिक दल प्रणाली की सर्वप्रथम समस्या है। प्रत्येक राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्य से दूसरे राजनीतिक दल को अपने से हीन सिद्ध करना चाहता है। सत्तारुढ दल विकास कार्यों पर ध्यान लगाने की अपेक्षा | विपक्षी दलों की आलोचना पर अधिक ध्यान देता है ताकि आगामी चुनावों में विपक्षी दलों का जनाधार कम हो सके। दूसरी ओर विपक्षी दल भी सत्तारूढ़ दलों का ध्यान जनसमस्याओं की ओर आकर्षित करने की बजाय उनकी हर मुद्दे पर आलोचना प्रारंभ कर देते हैं तथा उसे जनविरोधी सरकार घोषित कर देते हैं।
5. भ्रष्टाचार में संलिप्त
भारतीय सामाजिक व्यवस्था के किसी अंग में यदि सर्वाधिक – भ्रष्टाचार व्याप्त है तो वह है भारतीय राजनीतिक दल । भारतीय राजनीतिक दलों पर न केवल भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, बल्कि इतने बड़े और ऐसे-ऐसे मामलों में आरोप लगते हैं जो जनमानस को हिला कर रख देते हैं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के कितने मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं, इसका उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं। भारतीय राजनीतिक दलों ने सत्ता को सुख एवं समृद्धि का साधन बना लिया है।
6. आन्तरिक असंतोष
राजनीतिक दलों के आपसी आरोप-प्रत्यारोप तो सामान्य सी बात है। एक राजनीतिक दल में ही आंतरिक असंतोष व्याप्त रहता है। किसी सदस्य को संगठन में पद न मिले या किसी सदस्य अथवा उसके नातेदार को चुनाव में टिकट न मिले, तो वह भीतरी घात प्रारंभ कर देता है। वह चुनाव में दूसरे राजनीतिक दल का सहयोग करता है तथा अपनी ही पार्टी को नुकसान पहुँचाता है।
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