टोटम की अवधारणा
टोटम शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जे. लौंग ने किया था। दुर्खीम ने आस्ट्रेलिया की अरुण्टा जनजाति में टोटम का अध्ययन कर धर्म की उत्पत्ति को स्पष्ट किया है। टोटम से संबंधित विभिन्न धारणाओं एवं संगठन को ही टोटमवाद कहा जाता है। जे. एफ, मैक्लीनन ने टोटम को आत्महत्या का अवशेष बताया है। दुर्खीम ने बताया है कि टोटमवाद के आधार पर ही पवित्र और साधारण वस्तुओं में भेद करने की भावना का जन्म हुआ। अतः टोटमवाद ही समस्त धर्मों का प्राथमिक स्तर है। ऐसा टोटमवाद की प्रकृति से ही संभव हुआ। क्योंकि टोटमवाद नैतिक कर्तव्यों और मौलिक विश्वासों की वह समष्टि है जिसके द्वारा समाज और पशु, पौधे या अन्य प्राकृतिक वस्तुओं के बीच एक पवित्र और अलौकिक संबंध स्थापित हो जाता है।
टोटम की विशेषताएँ
इस टोटमवाद की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं-
(1) टोटम के साथ एक गोत्र के सदस्य अपना कई प्रकार का गूढ़, अलौकिक तथा पवित्र संबंध मानते हैं।
(2) टोटम के साथ इस अलौकिक तथा पवित्र संबंध के आधार पर ही यह विश्वास किया जाता है कि टोटम उस शक्ति का अधिकारी है जो उस समूह की रक्षा करती है। सदस्यों को चेतावनी देती और भविष्यवाणी करती है।
(3) टोटम के प्रति विशेष भय, श्रद्धा, भक्ति और आदर की भावना होती है, टोटम को मारना, खाना या किसी प्रकार से चोट पहुँचाना निषिद्ध होता है और उसकी मृत्यु पर शोक प्रकट किया जाता है। टोटम, उसकी खाल और उससे संबंधित अन्य वस्तुओं को बहुत पवित्र माना जाता है। टोटम की खाल को विशेष अवसरों पर धारण किया जाता है, टोटम के चित्र बनवाकर रखे जाते हैं और शरीर पर उसके चित्र की गुदाई भी प्रायः सभी लोग करवाते हैं। टोटम संबंधी निषेधों का उल्लंघन करने वालों की समाज द्वारा निन्दा की जाती है और दूसरी ओर इससे संबंधित कुछ विशिष्ट नैतिक कर्तव्यों को प्रोत्साहित किया जाता है।
(4) टोटम के प्रति भय, भक्ति और आदर की जो भावना होती है। वह इस बात पर निर्भर नहीं होती कि कौन सी वस्तु टोटम है या कैसी है, क्योंकि टोटम तो प्रायः अहानिकारक पशु या पौधा होता है। दुर्खीम के अनुसार टोटम सामुदायिक प्रतिनिधित्व का प्रतीक है और टोटम की उत्पत्ति उसी सामुदायिक रूप में समाज के प्रति अपनी श्रद्धाभाव के कारण हुयी। यही श्रद्धाभाव पवित्रता की भावना को जन्म देता है और टोटम-समूह के सदस्यों को एक नैतिक बंधन में बाँधता है। यही कारण है कि टोटम समूह के सभी सदस्य अपने को एक-दूसरे का भाई-बहन मानते हैं और वे आपस में कभी विवाह नहीं करते।
टोटमवाद की उपरोक्त विशेषताओं का उल्लेख करते दुर्खीम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि किसी भी धर्म की उत्पत्ति में उक्त सभी तत्वों का होना परमावश्यक है। इस कारण यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि टोटमवाद सब धर्मों का प्राथमिक रूप है क्योंकि टोटम एक समूह के नैतिक जीवन के सामूहिक प्रतिनिधित्व का प्रतीक है। इस प्रकार धर्म का मूल स्रोत तो स्वयं समाज है और भी स्पष्ट शब्दों में ईश्वर समाज की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।
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