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हिन्दू धर्म की प्रकृति |  हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यताएँ | हिन्दू धर्म स्वरूप

हिन्दू धर्म की प्रकृति
हिन्दू धर्म की प्रकृति

हिन्दू धर्म की प्रकृति

भारतीय सामाजिक संगठन एक अत्यन्त प्राचीन संगठन है। इसकी प्रमुख शास्त्रीय मान्यताओं में धर्म, कर्म, पुनर्जन्म आदि का महत्वपूर्ण स्थान है जिस पर हिन्दू धर्म की संस्थाओं की आधारशिला रखी गई है। धर्म की विशेषताओं, आदर्शों और जीवन को संगठित करने से सम्बन्धित उसके कार्यों को देखते हुए यह निष्कर्ष निकलता है कि धर्म एक ऐसा अमूर्त तत्त्व है जो मनुष्य की बुनियादी आवश्यकताओं से भी बढ़कर महत्वपूर्ण है।

डेविस के अनुसार, “मानव समाज में धर्म इतना सार्वभौमिक, स्थायी और व्यापक है कि धर्म को स्पष्ट रूप से समझे बिना हम समाज को नहीं समझ सकते।”

टायलर के शब्दों में, “धर्म आध्यात्मिक शक्ति पर विश्वास है।”

डॉ. राधा कृष्णन के अनुसार “हम अपना दैनिक जीवन व्यतीत करते हैं जिसके द्वारा हमारे सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना होती है, वही धर्म है। वह जीवन का सत्य है और हमारी प्रकृति को निर्धारित करने वाली शक्ति है।”

वैदिक साहित्य में ‘प्रदत्त’ शब्द का प्रयोग हुआ है। ‘प्रदत्त’ को प्राकृतिक, नैतिक व सामाजिक सभी व्यवस्थाओं के मूल में माना गया है। इस अर्थ में धर्म को प्रकृति के मौलिक नियम के समान माना जा सकता है।

 हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यताएँ

हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यतायें निम्नलिखित हैं

1. ईश्वरीय सत्ता

हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यता ईश्वर को विश्व की परमसत्ता मानना है। सभी हिन्दुओं को ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करना चाहिये तथा किसी-न-किसी रूप में उसकी आराधना करनी चाहिये।

2. कर्म के सिद्धान्त में आस्था

कर्म के सिद्धान्त में आस्था हिन्दू धर्म की प्रमुख मान्यता है। कर्म के सिद्धान्त के अनुसार, आत्मा अमर है तथा मनुष्य का वर्तमान जीवन उसके अनेक जन्मों की श्रृंखला की कड़ी मात्र है। कर्म का सिद्धान्त एक हिन्दू को अपने कर्तव्य के अनुसार काम करने की प्रेरणा देता है।

3. त्रिदेव व अवतारवाद

हिन्दू धर्म में तीन देवताओं ब्रह्मा (सृष्टि की रचना करने वाला), विष्णु (जगत का रक्षक), और शिव (संहारकर्ता) को प्रमुख स्थान दिया गया है। राम और कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है।

4. वेद व मुक्ति प्राप्ति

हिन्दू धर्म के अनुसार, वेदों को पवित्र ग्रन्थ माना गया है और मुक्त के लिये वैदिक क्रियाओं व अनुष्ठानों का सम्पन्न करना अनिवार्य माना गया है जो मोक्ष हिन्दू धर्म का अन्तिम लक्ष्य है।

5. वृद्ध, गो और नारी पूजा

हिन्दू धर्म और संस्कृति में वृद्ध, गो और नारी को शक्ति का प्रतीक माना गया है। शक्ति के रूप में नारी पूजा को विशेष महत्व दिया गया है। गो अर्थात् गाय को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष चारों पुरुषार्थों को देने वाली माना गया है और इसी रूप में गाय की पूजा का विधान है।

हिन्दू धर्म स्वरूप

भारतीय धर्म सनातन है। पर अनेक कारणों से इसके स्वरूप में समय समय पर बदलाव आता रहा। यह परिवर्तन तत्त्व प्रधान तथा लक्ष्य प्रधान नहीं है क्योंकि सबका तत्त्व सनातन भगवान है चाहे वह किसी पंथ का पथी हो, किसी सम्प्रदाय का मानने वाला हो। वाह्य स्वरूप का परिवर्तन कर्म काण्डों तथा मान्यताओं के आधार पर देखा जा सकता है। यह वैचारिक उथल पुथल का परिणाम होता है इसका क्रम बना रहता है परन्तु इसमें आधार भेद नहीं होता है।

परिभाषाओं के आधार पर धर्म के मूल स्वरूपों का वर्णन अग्रलिखित प्रकार से किया जा सकता है –

1. धर्म ईश्वर या ईश्वरों के सम्बन्ध में विश्वासों व व्यवहारों की प्रणाली है।

2. उच्च अलौकिक प्राणियों से अभिप्राय ईश्वर अथवा देवताओं से है।

3. अलौकिक शक्तियों से तात्पर्य पवित्र भावनाओं अथवा आत्माओं से है।

4. स्थानों का अर्थ स्वर्ग या नरक से है।

5. अन्य तत्वों से तात्पर्य आत्मा से है।

6. उच्च अलौकिक से तात्पर्य है कि जिसकी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जाँच न की जा सके।

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