धर्म और जादू की स्पष्ट व्याख्या कीजिये।
दुर्खीम के अनुसार धर्म के अनेक सामाजिक प्रकार्य हैं और सर्वप्रथम तो यह कि धर्म मानव जीवन को दो स्पष्ट भागों साधारण तथा पवित्र में बाँट देता है। दुर्खीम के धर्म संबंधी विचार उनकी चार महत्वपूर्ण पुस्तकों में एक les formes elementaries delavie religieuse (Translated in English as The Elementary forms of Religious Life) में संकलित है।
यह पुस्तक फ्रांसीसी भाषा में प्रथम बार सन् 1912 में तथा नवीनतम अंग्रेजी संस्करण सन् 1965 में प्रकाशित हुआ। मैक्डोनेल, हेगेल तथा फ्रेजर ने धर्म की उत्पत्ति का मूल कारण जादू-टोने को माना है। फ्रेजर का मानना है कि प्रारंभिक स्तर पर आदिकालीन मनुष्य जादू-टोने के माध्यम से प्रकृति को नियंत्रित करता रहा होगा। एक समय बाद जादू-टोने की असफलता के कारण मनुष्य ने एक अलौकिक शक्ति पर विश्वास किया होगा, अलौकिक शक्ति पर यही विश्वास कालान्तर में धर्म के रूप में अवतरित हुआ।
धर्म लोगों को पवित्र क्रियाओं को करने की दीक्षा देता है ताकि वे पायात्मक परिणामों से मुक्त रह सके। यह इन्हें अपवित्र कार्यों के करने पर धार्मिक शुद्धि का आदेश देता है। धर्म लोगों को यह भी शिक्षा देता है कि धार्मिक सेवाओं के स्थानों को उन स्थानों से दूर रखा जाये जहाँ साधारण कार्य किये जाते हैं। आराधना या पूजा के स्थान पवित्र स्थान हैं, इस कारण ऐसे स्थानों को साधारण कार्यों के करने के लिये उपयोग में नहीं लाना चाहिये। इसी प्रकार पवित्र और साधारण कार्यों को करने के लिये अलग-अलग समय भी निश्चित होना चाहिये। इसलिये समाज धार्मिक कृत्यों को करने के लिये निश्चित दिनों को निर्धारित करता है। जैसे ईसाइयों में रविवार प्रार्थना का दिन है। धार्मिक उत्सवों तथा धार्मिक कृत्यों का उद्देश्य पापियों को पवित्र करना या एक साधारण व्यक्ति को एक धर्म परायण व्यक्ति में बदलना या एक धार्मिक व्यक्ति के पवित्रता के स्तर को ऊँचा उठाना है। संक्षेप में, धर्म दुर्खीम के अनुसार एक सामूहिक आदर्श को व्यक्त करता है। अतः स्पष्ट है कि धर्म का संबंध किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि उसके सामूहिक जीवन से होता है।
जादू में भी धर्म की भाँति अनेक विश्वास, संस्कार आदि होते हैं, लेकिन इन संस्कारों और विश्वासों का प्रयोग किसी को नुकसान भी पहुँचा सकता है क्योंकि मूलरूप में जादू वैयक्तिक होता है। जादू का संबंध व्यक्ति विशेष से होता है। इसी कारण जादू उस पर विश्वास करने वालों को एक समूह में संयुक्त नहीं कर पाता है। इसके विपरीत धर्म का संबंध व्यक्ति विशेष से नहीं होता, इसका आधार स्वयं समाज है, इसी कारण धर्म उस पर विश्वास करने वालों को एक नैतिक समुदाय में संयुक्त करता है। जादू से तात्पर्य मन्त्र, पराविद्या या कर्मकाण्ड के प्रयोग से दुनिया के सामान्य प्राकृतिक और वैज्ञानिक नियमों को असामान्य रूप से बदलना या ” उन पर नियंत्रण करना अथवा ऐसा करने की कोशिश या ढोंग करना। ज्यादातर लोग जादू को काल्पनिक और झूठ मानते हैं क्योंकि उनके मुताबिक विज्ञान के नियम कानूनों को बदलना नामुमकिन है। कुछ लोग तो जादू को सच मानते भी हैं, इसे अधर्म और पाप मानते हैं अधिकांश लोग धार्मिक कर्मकांड और मंत्रों को जादू नहीं मानते, बल्कि उनको प्रार्थना और ईश्वर की शक्ति मानते हैं। जादू जानने और करने वाले को जादूगर कहते हैं। चमत्कार, इन्द्रजाल, अभिचार, टोना या तन्त्र-मंत्र जैसे शब्द भी जादू की श्रेणी में आते है।
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