राज्य की विशेषताएँ
राज्य का निर्माण विभिन्न कारको के द्वारा होता है। राज्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. आर्थिक स्थिति (Economic Condition)
वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में राज्य की शक्ति तथा विश्व में उस राज्य की आर्थिक स्थिति का महत्वपूर्ण स्थान होता है। विश्व में अमुक राष्ट्र क्या भूमिका तथा स्थान रखता है, यह इस तथ्य पर निर्भर करता है कि उस राष्ट्र की आर्थिक स्थिति क्या है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो आर्थिक स्थिति से तात्पर्य यह है कि राष्ट्र की उत्पादकता तथा उत्पादन के प्राकृतिक या अप्राकृतिक संसाधन किस स्तर के हैं। यदि कोई राष्ट्र या राज्य पूर्णतः पूँजीवादी व्यवस्था अर्थात् औद्योगिक विकास के चरम पर पहुँच चुका है तो वहाँ के नागरिकों का जीवन स्तर आधुनिक तथा सामान्यतया रहन-सहन, शिक्षा, यातायात के साधन, चिकित्सा व्यवस्था उत्तम श्रेणी की होगी तथा समाज में बेहतर तालमेल पाया जाएगा। | क्योंकि सभ्य समाज में कोई व्यक्ति भी ऐसा आचरण नहीं करना चाहेगा जो उसका उपहास करें या कोई उसे मुजरिम कहे। इसके विपरीत भारत जैसे कृषि प्रधान राष्ट्र में नियंत्रण की समस्या इसलिये गंभीर है कि भारतीय समाज में अभी भी सामन्ती सामाजिक व्यवस्था के अवशेष जीवित है जैसे- जाति प्रथा, स्त्री का शोषण व धार्मिक उन्माद आदि।
2. भौगोलिक स्थिति (Geographical Condition)
किसी भी राष्ट्र की कुछ भौगोलिक स्थितियाँ तथा सीमाएँ निर्धारित होती हैं। प्रत्येक राज्य अपनी-अपनी सीमाओं के बंधन में बंधा हुआ होता है। राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार ही सामाजिक नियंत्रण का स्वरूप तथा उसका मापदण्ड भी परिवर्तित होता रहता है। जैसे कुछ ऐसे प्रदेशों में जहाँ पर प्राकृतिक आपदाएँ अधिक आती हैं वहाँ के व्यक्ति जुझारू प्रकृति के होते हैं तथा वहाँ का समाज, अपने | व्यक्तियों को इस प्रकार की शिक्षा तथा प्रेरणा देता है कि किस प्रकार प्रकृति से द्वन्द करके | जीवनयापन करना चाहिये। इसी के अनुसार राज्य वहाँ पर सामाजिक नियंत्रण का स्वरूप भी निर्धारित करता है।
3. आर्थिक संबंधी कार्य (Economic Related work)
आर्थिक संबंधों के नियमन – का कार्य, राज्य की केन्द्रीय भूमिका होती है। प्रत्येक राष्ट्र का एक आर्थिक ढाँचा होता है जिसको राज्य की आवश्यकतानुसार नियंत्रित करके समाज का सरल नियंत्रण स्थापित किया जाता है। इसी आधार पर प्रत्येक राष्ट्र की एक मुद्रा होती है जिसका मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय बाजार के अनुसार ऊपर-नीचे होता रहता है तथा इसी से राष्ट्र की अन्य राष्ट्रों के समक्ष स्थिति को आँका जाता है।
4. सांस्कृतिक स्थिति (Cultural Condition)
प्रत्येक समाज की एक पारम्परिक संस्कृति होती है। इस संस्कृति में समाज के रीति-रिवाज, धार्मिक मान्यताएँ, मूल्यों, रुढ़ियों आदि के मानने व अपनाने के ढंग आते हैं। एक समाज की संस्कृति किसी दूसरे समाज से मेल खाती हो तो उनमें आपसी सौहार्द्र तथा भाईचारे की संभावना बढ़ जाती है तथा समाज में शान्ति कायम रहती है। समाज के नियंत्रण में संस्कृति आधारित तथ्यों का महत्वपूर्ण स्थान है।
5. भाषा (Language)
राष्ट्र की एक सर्वमान्य अधिकारिक भाषा होती है, जो उस राज्य को पहचान दिलवाने में सहायता करती है तथा साथ ही साथ अन्य राष्ट्रों से उसे पृथक भी करती है। भारत वर्ष एक विशाल राष्ट्र है फिर भी अधिकतर जनसंख्या हिन्दी बोलना समझना व लिखना-पढ़ना जानती है, जिस कारण यह भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित है।
6. धर्म (Religion)
धर्म सदा से ही नियंत्रण का एक मुख्य औजार रहा है समाज पर शासक वर्ग का प्रमुत्व कायम रखने हेतु उसने धर्म को तथा इससे जुड़ी रीतियों या मान्यताओं का भरपूर शोषण करके समाज पर अपनी इच्छानुसार नियंत्रण करने में सफलताएं भी प्राप्त की हैं। परन्तु आधुनिक समाज में इस नियंत्रण तथा धर्म का प्रभाव भी बदलते हुये स्वरूप में देखा जा सकता है। प्रत्येक राष्ट्र को धार्मिक आधार पर वर्गीकृत किया जाता है तथा राष्ट्र की पहचान धर्म के द्वारा होती है।
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