पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों एवं विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्य
पर्यावरण शिक्षा के कुछ प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन इस प्रकार हैं-
1. उत्तम नागरिकता का विकास- उत्तम नागरिकों का निर्माण सामाजिक अध्ययन के माध्यम से ही सम्भव हो सकता है। इसलिए यही पर्यावरण शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य माना गया है।
2. सामाजिक भावनाओं का विकास- किसी भी देश के नागरिकों की समृद्धि वहाँ के जनसमुदाय की सामाजिक भावनाओं के विकास पर आधारित रहती है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या का समाधान छात्रों तथा जनता के मिले-जुले प्रयासों से ही किया जा सकता है, क्योंकि पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से सच्ची सामाजिक भावनाओं का विकास होता है। इसलिये इसे दूसर उद्देश्य अथवा लक्ष्य माना जाता है।
3. वायु प्रदूषण की समस्याओं से परिचित कराना- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को वायु प्रदूषण से उत्पन्न भयंकर समस्याओं से परिचित करना है, जिससे कि छात्र वायु को प्रदूषित होने से रोकने में अपना सक्रिय योगदान कर सकें और इसके आगामी खतरों से सचेत तथा सावधान रहें।
4. जल प्रदूषण की समस्या- छात्रों को जल प्रदूषण के कारणों तथा समस्याओं से परिचित कराना चाहिये तथा इसके उपचार अर्थात् समाधान के उपाय बताने चाहिये, तभी वे इसके समाधान में योगदान कर सकते हैं।
5. सामाजिक समस्याओं का ज्ञान तथा समाधान- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को सामाजिक समस्याओं का ज्ञान कराना तथा उन समस्याओं का समाधान करने में सक्षम बनाना है।
6. भू-प्रदूषण की समस्याओं से परिचित कराना- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को भू-प्रदूषण की समस्याओं के कारणों तथा भयंकर प्रभावों से अवगत कराना है, जिससे कि वह जगह-जगह कूड़ा-करकट न डालें, क्योंकि इससे भू-प्रदूषण की समस्या जटिल रूप धारण कर लेती है। जगह-जगह थूकने तथा गन्दगी डालने से बदबू फैलती है। अनेक रोगाणुओं का जन्म होता है तथा प्रदूषण फैलता है। इसी प्रकार जगह-जगह मकान बनाने से भी भू-प्रदूषण होता है, क्योंकि सटे हुए मकान बनाने से प्रदूषण को रोकने हेतु वहाँ वृक्षारोपण के लिये खाली स्थान नहीं रह पाता है। इस प्रकार भू-प्रदूषण की समस्याओं का समाधान पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है।
7. ध्वनि प्रदूषण की समस्याओं से परिचित कराना- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्र को तेज ध्वनि करने वाले वाहनों, रेडियो, दूरदर्शन, स्टीरिके, टेपरिकार्डर आदि से होने वाली ध्वनि प्रदूषण के खतरों से परिचित कराना है, जिससे कि वे अपने पास-पड़ोस के वातावरण में होने वाले ध्वनि प्रदूषण को रोक सकें तथा स्वयं भी इस प्रदूषण में हिस्सेदार बनने से बच सकें।
8. पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करना- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रेरित करना है। इसलिये छात्रों को राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर पर्यावरण व वनों के संरक्षण के लिये बनाये गये नियमों का कड़ाई से पालन करने की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये, जिससे कि वनों का विनाश न हो सके और पर्यावरण का संरक्षण हो सके।
9. जनसंख्या वृद्धि को रोकना- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को बढ़ती हुई जनसंख्या के कुप्रभावों से परिचित करना है, क्योंकि इस वृद्धि को रोककर ही पर्यावरण को दूषित होने से बचाया जा सकता है। पर्यावरण शिक्षा बढ़ती हुई जनसंख्या को रोकने हेतु परिवार नियोजन व परिवार कल्याण आदि कार्यक्रमों को गति प्रदान करने का कार्य कर सकती है। इससे बढ़ती हुई जनसंख्या से उत्पन्न प्रदूषणों से परिचित होकर छात्र जनसंख्या वृद्धि रोकने में सहायता तथा योगदान प्रदान कर सकते हैं।
10. राष्ट्रीय धरोहर के प्रति निष्ठा- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों में राष्ट्रीय धरोहर के प्रति निष्ठा, उनकी सुरक्षा तथा सम्मान की भावना का विकास करना भी है ताकि वे स्वाभिमान तथा स्वतंत्रतम और निर्भयतापूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें।
11. वन्य जीवों का संरक्षण- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य पर्यावरण व वन संरक्षण के साथ-साथ वन्य जीवों का भी संरक्षण करना है। इसके लिये छात्रों को नियन्त्रित शिकार, वन्य प्रणाली संरक्षण नियम, राष्ट्रीय उद्यान तथा अभयारण्य आदि के महत्व को समझने वाली शिक्षा प्रदान करनी चाहिये जिससे कि वन्य जीवन सुरक्षित रह सकें।
12. वातावरणीय ज्ञान- पर्यावरणीय शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को सामाजिक, प्राकृतिक तथा संस्कृतिक वातावरण का ज्ञान कराना और महत्व समझाना है। निकटवर्ती सामाजिक तथा प्राकृतिक वातावरण का ज्ञान छात्रों के जीवन को सुखमय बनाने में सहायक हो सकता है, क्योंकि इस वातावरण में जीवन व्यतीत करके ही वे अपने व्यक्ति तत्व का चतुर्मुखी विकास कर जनतन्त्र के सच्चे नागरिक बनने में सक्षम सिद्ध हो सकते हैं।
13. जनतान्त्रिक कुशलता का विकास- पर्यावरणीय शिक्षा का उद्देश्य छात्रों में जनतंत्र के प्रति श्रद्धा भाव और जनतांत्रिक कुशलता का विकास करना है, जिससे कि वे अपने देश भारत के जनतंत्र को शक्तिशाली बनाकर तथा उसकी कमियों को दूर कर जनतांत्रिक वातावरण की छाया में सुखपूर्वक जीवन बिता सकें।
14. सामाजिक मूल्य तथा लक्ष्य प्राप्ति- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को सामाजिक मूल्यों से परिचित कराना तथा सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक बनाना है। समाज द्वारा निर्धारित मूल्यों की जानकारी और लक्ष्यों की प्राप्ति पर्यावरण शिक्षा के द्वारा ही सम्भव है।
15. विश्व-बन्धुत्व व अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं का विकास– पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य छात्रों में स्वार्थ से ऊपर उठकर विश्व बन्धुत्व तथा अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं का विकास करना है, जिससे वे पृथ्वी के सम्पूर्ण मानवों को अपने जैसा ही समझ सकें तथा उनके सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझें और इस धरती पर ही स्वर्ग के समान सुखों की अवधारणाओं के लिये भू नागरिक समाज का निर्माण करने में सक्षम हो सकें। विविध अनेकताओं के बीच एकता के दर्शन करने से ही विश्व-बन्धुत्व की भावना विकसित हो सकती है।
16. राष्ट्र तकनीकी का ज्ञान- पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य पर्यावरण ज्ञान गुणवत्ता अवबोध के लिये अपनायी गयी शिक्षा तकनीकों जैसे-ग्लोब, मानचित्र, रेखाचित्र, मानीटर, प्रारूप आदि को पढ़ने तथा समझने की कुशलता का विकास करना है, जिससे कि वे उचित दिशा की ओर कार्य कर सकें।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य मानव तथा प्रकृति के मध्य सीधे और आत्मीय संवाद की स्थिति बनाना, प्रदूषण के प्रति समझ उत्पन्न कर पर्यावरण को संरक्षित करना, विकास तथा पर्यावरण के मध्य ऐसा समीकरण बनाना जो विनाश से बचा सके। पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करने में भागीदारी करने की दृष्टि, कौशल और योग्यता का विकास करना तथा पर्यावरण और विश्व के अभिन्न भाग होने की भावना का विकास करना आदि मुख्य है।
पर्यावरण शिक्षा की विशेषताएँ
पर्यावरण शिक्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. पर्यावरण शिक्षा से ज्ञान कौशल, बौद्धिक विकास, अभिवृत्तियों एवं मूल्यों का विकास जीवन में रचनात्मक कार्यों के लिये किया जाता है, जिससे जीवन उत्तम बनाया जा सके।
2. पर्यावरण शिक्षा द्वारा बालक को स्वयं प्राकृतिक तथा जैविक वातावरण की समस्याओं को खोजने में समर्थ बनाया जाता है, एवं उसका समाधान स्वयं करता है जिससे जीवन का विकास होता है।
3. इसमें शिक्षा के विभिन्न आयामों, विधियों, प्रविधियों को प्रस्तुत किया जाता है। वास्तविक समस्या के कारण प्रभाव को पहिचानना एवं औपचारिक-अनौपचारिक शिक्षा द्वारा समस्याओं का समाधान करना जिससे मनुष्य में गुणवत्ता लायी जा सके।
4. इसका सम्बन्ध पर्यावरण के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों पक्षों से होता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण को रोका जा सके तथा असन्तुलन को दूर किया जा सके।
5. यह एक प्रक्रिया है जो मनुष्य को उसके सांस्कृतिक तथा जैविक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का बोध कराती है।
6. इस प्रक्रिया से मनुष्य को पर्यावरण सम्बन्धी ज्ञान, कौशल, समझ, अभिवृत्तियों, विश्वासों एवं मूल्यों से सजाया जाता है, जो पर्यावरण में सुधार करती है।
7. यह सर्जनात्मक कौशल एवं रचनात्मक दोनों को बढ़ावा देता है, जिससे कि स्वस्थ जीवन का विकास हो सके।
8. इसमें पर्यावरण के असन्तुलन की पहिचान की जाती है एवं अपेक्षित विकास तथा सुधार का प्रयत्न किया जाता है।
9. पर्यावरण शिक्षा में भौतिक, जैविक, सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक, पर्यावरण का ज्ञान और जानकारी की जाती है तथा वास्तविक जीवन में उसकी सार्थकता को समझने का प्रयत्न किया जाता है।
10. पर्यावरण शिक्षा समस्या केन्द्रित, अन्तः अनुशासन आयाम, मूल्य एवं समुदाय का अभिविन्यास, भविष्य की तरफ उन्मुख मानव विकास और जीवन से सम्बन्धित है। इसका सम्बन्ध भविष्य से होता है।
11. इसमें पर्यावरण की गुणवत्ता हेतु निर्णय लिया जाता है, अभ्यास किया जाता है, जिससे कि समस्याओं का समाधान किया जा सके।
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