भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना (Establishment of RBI)- भारत में मौद्रिक एक व्यवस्था के कुशल संचालन तथा बैंकिंग के सुव्यवस्थित एवं सन्तुलित विकास के लिए सन् 1913 में चैम्बरलिन आयोग के सदस्य प्रो. कीन्स ने तथा 1927 में हिल्टन यंग आयोग ने देश में केन्द्रीय बैंक (Central Bank) की स्थापना की पुरजोर सिफारिश की थी।
सन् 1913 में केन्द्रीय बैंकिंग जाँच समिति (Central Banking Enquiry Committee) ने अपनी रिपोर्ट में केन्द्रीय बैंक की तत्काल स्थापना पर जोर दिया। सन् 1933 के गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conference) में भारत को राजनीतिक अधिकार देने के साथ-साथ भारत में केन्द्रीय बैंक स्थापित करने का निर्णय भी किया गया। इन परिस्थितियों में सन् 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम (Reserve Bank of India Act, 1934) पारित किया गया तथा 1 अप्रैल, 1935 से रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया अथवा भारतीय केन्द्रीय बैंक के रूप में कार्य करना आरम्भ कर दिया।
रिजर्व बैंक का प्रशासनिक संगठन (Administrative Organisation of Reserve Bank)-
भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख विभाग निम्नलिखित है:
( 1 ) करेंसी प्रबन्ध विभाग (Department of Currency Management) अथवा निर्गमन विभाग (Issue Department) — इस विभाग को दो उप-विभागों में बाँटा गया है-
(i) कोषागार विभाग (Treasury Deaprtment) — जिसका कार्य देश में नोटों की निकासी करना, नोटों को प्रधान मुद्रा या गौण मुद्राओं में बदलना आदि है।
(ii) साधारण विभाग- इस उप-विभाग का प्रमुख कार्य नोटों की जाँच करना, उनका हिसाब-किताब रखना, खराब नोटों को रद्द करना तथा आन्तरिक अंकेक्षण करना आदि है। इस – विभाग द्वारा नोटों का पूरा हिसाब रखा जाता है तथा आवश्यकतानुसार नोटों को प्रचलन के लिए बाजार में छोड़ा जाता है।
( 2 ) बैंकिंग परिचालन एवं विकास विभाग (Banking Operation and Development Deaprtment)— बैंकों के बैंक की भूमिका बैंकिंग परिचालन एवं विकास विभाग द्वारा निर्वहन की जाती है जिसमें लोक-ऋण जमा खाते तथा प्रतिभूतियों सम्बन्धी कार्य किये जाते हैं। इस विभाग के बारह कार्यालय भारत के विभिन्न महत्त्वपूर्ण नगरों में स्थित हैं।
( 3 ) बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग (Department of Banking Supervision)- रिजर्व बैंक देश का शीर्ष बैंक है। इस कारण यह सरकार के बैंकर तथा बैंकों के बैंक के रूप में कार्य करता है। अतः इस विभाग के द्वारा सूचीबद्ध बैंकों को प्रथम श्रेणी प्रतिभूतियों की सुरक्षा व कटौती के आधार पर ऋण दिया जाता है। यह उनके कोषों को अपने पास रखता है, बैंकों के समाशोधन गृह का कार्य करता है। सरकारी धन को जमा करता है, सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भुगतान करता है, सरकार को आर्थिक सहायता देता है। ऋणों का प्रबन्ध करता है, सरकारी धन के हस्तान्तरण में सहायता करता है तथा बैंकों का मार्ग दर्शन करता है। इस समय बैंकिंग विभाग 20 स्थानों पर है जो उपर्युक्त चार सहायक कार्यालयों तथा 16 शाखाओं में संचालित होते हैं।
( 4 ) औद्योगिक और निर्यात ॠण विभाग (Industrial and Export Loan Department) — यह विभाग औद्योगिक एवं निर्यात वित्त से सम्बन्धित नीतियों का निर्माण करता है। उद्योग और निर्यात से सम्बन्धित विशिष्ट अनुसन्धान भी इसी विभाग द्वारा सम्पादित किये जाते हैं।
( 5 ) बाह्य निवेश एवं परिचालन विभाग (Department of External Investments and Operations)– इस विभाग की स्थापना देश में विदेशी निवेशों की देख रेख एवं परिचालन हेतु की गई है।
( 6 ) सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Information Technnology) — यह भी रिजर्व बैंक का एक महत्त्वपूर्ण विभाग है जो सूचना प्रौद्योगिकी के प्रोत्साहन एवं विकास के लिए कार्यरत है।
(7) आर्थिक विश्लेषण एवं नीति विभाग (Economic Analysis and Policy Department)- इस विभाग का प्रमुख कार्य देश की आर्थिक गतिविधियों और समस्याओं पर शोध, अनुसन्धान और सर्वेक्षण करके तथ्यों को बैंक की मासिक पत्रिका (रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया बुलेटिन) में प्रकाशित करना है। यह विभाग भारत सरकार को अनेक महत्त्वपूर्ण मौद्रिक एवं आर्थिक मामलों पर सलाह एवं सुझाव देता है।
(8) सांख्यिकी विश्लेषण और कम्प्यूटर सेवा विभाग (Statistical Analysis and Computer Service Department)— यह विभाग देश के बैंकिंग एवं आर्थिक गतिविधियों से सम्बन्धित समंकों का संग्रहण और वर्गीकरण करके उन्हें प्रकाशित करवाता है।
( 9 ) प्रशासन एवं कार्मिक प्रबन्ध विभाग (Department of Administration Technology) — रिजर्व बैंक के प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने तथा कर्मचारियों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, पदोन्नति, वेतन, सेवा निवृत्ति तथा सेवावर्गीय नीति निर्धारण एवं कुशल प्रबन्धन हेतु यह विभाग भी महत्त्वपूर्ण है।
( 10 ) मौद्रिक नीति विभाग (Monetary Policy Deptt.) – देश के लिए मौद्रिक नीति का निर्धारण एवं कुशल संचालन की दृष्टि से रिजर्व बैंक के इस विभाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
(11) मानव संसाधन विकास विभाग (Human Resources Development Department) — रिजर्व बैंक का यह विभाग मानव संसाधनों के समुचित एवं सन्तुलित विकास के लिए उपयुक्त नीति निर्धारण और उसे मूर्त रूप देने की देखरेख करता है।
(12) व्यय एवं बजट नियन्त्रण विभाग (Expenditure and Budget Control Department) — यह विभाग रिजर्व बैंक के वार्षिक बजट का निर्माण करता है तथा उसके विभिन्न विभागों के व्यय पर नियन्त्रण का कार्य करता है।
( 13 ) निरीक्षण विभाग (Supervision Department)– निरीक्षण विभाग विभिन्न कार्यालयों एवं विभागों का सामयिक निरीक्षण कर सम्बन्धित तथ्यों और रिपोर्टों को लेखा एवं अंकेक्षण विभाग को प्रेषित करता है।
(14) विधि विभाग (Legal Department)- रिजर्व बैंक को सभी प्रकार की कानूनी सलाह देने के लिए यह विभाग सक्रिय है।
(15) विनिमय नियन्त्रण विभाग (Exchange Control Deptt.)– देश में विदेशी विनिमय के क्रय-विक्रय, विनिमय दर निर्धारण तथा भुगतान सन्तुलन सम्बन्धी कार्यों की व्यवस्था एवं देखभाल करने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण विभाग है।
( 16 ) ग्रामीण नियोजन तथा साख विभाग (Rural Planning and Credit Department) — रिजर्व बैंक का यह एक नया तथा महत्त्वपूर्ण विभाग है जो देश में ग्रामीण नियोजन तथा साख की व्यवस्था सम्बन्धी कार्यों को सम्पन्न करता है।
( 17 ) गैर-बैंकिंग कम्पनी विभाग (Non Banking Companny Department) — इस विभाग को मार्च 1966 में स्थापित किया गया जिसका मुख्य कार्यालय कोलकाता में स्थित है। यह देश की समस्त गैर-बैंकिंग कम्पनियों और वित्तीय संस्थाओं की गतिविधियों पर उचित नियन्त्रण रखता है।
(18) वित्तीय संस्था विभाग (Financial Institutions Department)- चूँकि रिजर्व बैंक भारत की वित्त व्यवस्था की शीर्षस्थ संस्था है, अतः भारत में वित्तीय संस्थाओं के समुचित एवं सन्तुलित विकास, उनके पर्यवेक्षण तथा निर्धारण हेतु यह विभाग महत्त्वपूर्ण है।
( 19 ) सचिव विभाग (Secretary’s Department)- रिजर्व बैंक के सामान्य प्रशासन कार्य सम्पादन हेतु यह विभाग कार्यरत है।
( 20 ) सरकारी और बैंक लेखा विभाग (Department of Government and Accounts )— यह भी रिजर्व बैंक का एक महत्त्वपूर्ण विभाग है जो सरकार तथा बैंकों के लेखों की देख-रेख एवं समन्वय करता है।
रिजर्व बैंक की स्थापना के उद्देश्य
भारत में केन्द्रीय बैंक के रूप में रिजर्व बैंक की स्थापना के अनेक कारण थे। उनमें से प्रमुख निम्न हैं—
(1) देश में साख एवं मुद्रा की मात्रा को उसकी माँग के अनुरूप बनाये रखना।
(2) साख एवं मुद्रा नीतियों में समन्वय स्थापित करना ।
(3) समस्त व्यापारिक बैंकों से नकद कोष (Cash reserves) प्राप्त करके एक सुदृढ़ केन्द्रीय कोष का निर्माण करना जिससे बैंकिंग संकट को रोका जा सके तथा मुद्रा बाजार (Money Market) में लोच बनी रह सके।
(4) रुपये के आन्तरिक तथा बाह्य मूल्यों में स्थिरता बनाये रखना।
(5) सरकार के बैंकर के रूप में सरकार की ओर से ऋण लेना, भुगतान करना, विदेशी विनिमय का लेन-देन करना तथा सम्बन्धित विषयों पर सरकार को सलाह देना।
(6) देश में बैंकिंग व्यवस्था पर नियन्त्रण रखना और उसको सही दिशा में विकसित करने का प्रयत्न करना।
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