रिजर्व बैंक की प्रमुख उपलब्धियाँ (सफलताएँ)
1. नोटों की निकासी-
रिज़र्व बैंक ने शुरू से ही नोट निर्गमन का कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न किया है। इसके निर्गमन विभाग ने अपनी प्रारक्षित निधि में कभी भी स्वर्ण स्वर्ण सिक्कों की मात्रा कानून द्वारा निर्धारित सीमा से कम नहीं होने दी है। धातु और
2. मुद्रा की सुलभता
भारतीय मुद्रा बाजार में उद्योग व्यापार एवं कृषि क्षेत्र की बढ़ती हुई मौद्रिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु रिजर्व बैंक ने ‘सुलभ मुद्रा नीति अपनायी है। व्यस्त मौसम के अतिरिक्त मुद्रा की व्यवस्था द्वारा बैंक बढ़ी हुई मौद्रिक आवश्यकताओं को पूरा करने का सदैव प्रयास करता रहा है।
3. प्रेषण सुविधाएँ
रिजर्व बैंक ने सरकार, अनुसूचित बैंक तथा सहकारी संस्थाओं के लिए सस्ती प्रेषण सुविधाएँ प्रदान करने तथा इन सुविधाओं का विस्तार करने में सफलता प्राप्त करने की है।
4. सार्वजनिक ऋणों की व्यवस्था
सरकारी बैंकर और एजेण्ट के रूप में रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक ऋणों की सफल व्यवस्था की है। इसमें केन्द्रीय सरकार की ओर से कोषागार विपत्रों का विक्रय किया है तथा आवश्यकता के समय केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों को अल्पकालीन अग्रिम प्रदान किये हैं।
5. आर्थिक सलाहकार
आर्थिक परामर्शदाता के रूप में रिज़र्व बैंक ने सरकार को नये ऋण जारी करने, धन का निवेश करने, कृषि साख, औद्योगिक साख, सहकारिता, नियोजन तथा विकास वित्त की समस्याओं पर उचित परामर्श दिया है। विगत वर्षों में बैंक ने अपने विशेषज्ञ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में भेजे हैं।
6. बैंकिंग व्यवसाय को दृढ़ता
रिजर्व बैंक के प्रयासों से देश में स्वस्थ बैंकिंग परम्परा का विकास हुआ है तथा बैंकिंग सेवाओं का विस्तार हुआ है। अन्तिम ऋणदाता के रूप में इसने व्यापारिक बैंको को फेल होने से बचाया है। दुर्बल बैंकों के एकीकरण को बढ़ावा देकर इसने बैंकिंग व्यवसाय को सुदृढ़ बनाया है।
7. स्फीति नियन्त्रण
निस्सन्देह रिजर्व बैंक को स्फीति नियन्त्रण के कार्य में विशेष सफलता नहीं मिल पायी है परन्तु यह स्वीकार्य है कि यदि इस दिशा में रिजर्व बैंक ने आवश्यक उपाय न किये होते तब देश में मुद्रास्फीति की वर्तमान दशा अधिक भयंकर होती।
8. बैंकिंग विधान का निर्माण
रिजर्व बैंक ने 1949 ई. के बैंकिंग कम्पनीज एक्ट के निर्माण तथा क्रियान्वयन में उल्लेखनीय सहयोग दिया है। इस कानून के अन्तर्गत प्राप्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए वह सदस्य बैंकों के कार्यकलापों का नियमित रूप से निरीक्षण करता रहा है।
9. ब्याज दरों में स्थायित्व
रिजर्व बैंक के प्रयासों से ब्याज दर में मौसमी उच्चावचन कम हुए हैं तथा विभिन्न व्यापारिक केन्द्रों में प्रचलित ब्याज दरों में समानता आयी है।
10. विपत्र बाजार का विकास
देश में व्यापारिक विपत्रों का प्रयोग बढ़ने ध्येय से रिजर्व बैंक ने 1951 ई. में विपत्र बाजार योजना, 1963 ई. में निर्यात विपत्र साख योजना तथा 1970ई. में विपत्र पुनर्कटौती योजना चालू की। इन योजनाओं के माध्यम से बैंक में संगठित विपत्र- बाजार की स्थापना का प्रयास किया है तथा इस कार्य में बैंक को आंशिक सफलता भी मिली है।
11. समाशोधन व्यवस्था
रिजर्व बैंक ने देश में समाशोधन की व्यवस्था विकसित की है जिससे व्यापारिक बैंकों में आपसी लेन-देन का निपटारा सुविधाजनक हो गया है। रिजर्व बैंक की स्थापना के पश्चात् देश में समाशोधन गृहों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
12. विनियम दरों में स्थिरता
रिजर्व बैंक ने विनिमय-नियन्त्रण की व्यवस्था का सफल संचालन किया है। यह अनेक बार उपस्थित भारी दबावों के बावजूद रुपये की विनिमय स्थिर बनाये रखने में सफल रहा है।
रिजर्व बैंक की विफलताएँ
रिजर्व बैंक असफलताएँ निम्न प्रकार गिनाई जा सकती हैं—
1. मुंद्रा- बाजार का संगठन
रिजर्व बैंक भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित करने तथा इसके विभिन्न अंगों के बीच सामंजस्य करने में असफल रहा । साहूकारों और देशी बैंकरों पर इसका कोई नियन्त्रण नहीं है। छोटे बैंकों तथा सहकारी साख समितियों पर इसका नियन्त्रण नाममात्र का है।
2. रुपये का आन्तरिक मूल्य
रिजर्व बैंक मुद्रा एवं साख की माँग पूर्ति के बीच सन्तुलन स्थापित करने में विफल रहा है। फलतः रूपये के आन्तरिक मूल्य में निरन्तर गिरावट आयी है।
3. विनिमय- नियन्त्रण
रिजर्व बैंक विनिमय नियन्त्रण की व्यवस्था को प्रभावशाली ढंग से लागू करने में असफल रहा है। इसलिए समय-समय पर रुपये की अनाधिकृत दर इसकी अधिकृत विनिमय-दर से पर्याप्त नीची रही है। विदेशी विनिमय के गैर-कानूनी लेन-देन के कारण देश को प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा ही हानि उठानी पड़ती है।
4. ब्याज दरों में भिन्नता
भारतीय मुद्रा बाजार में एक ही समय पर ब्याज की कई दरें प्रचलित रहती हैं। ब्याज दरों में मौसमी उच्चावचन भी आते रहते हैं। रिजर्व बैंक ब्याज दरों में उपस्थित उतार-चढ़ावों तथा भिन्नता को समाप्त करने में विफल रहा है।
5. प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों के लिए साख की व्यवस्था
रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था के प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों (कृषि, लघु उद्योग, निर्यात व्यापार आदि) के लिए पर्याप्त वित्त की व्यवस्था नहीं कर पाया है। फलतः आज भी इन क्षेत्रों की साहूकारों पर निर्भरता समाप्त नहीं हो पायी है।
6. विपत्र बाजार का विकास-
निस्सन्देह रिजर्व बैंक द्वारा चालू की गयी विपत्र बाजार योजना, निर्यात विपत्र – पुनर्कटौती योजना में व्यापारिक बैंकों के व्यस्त मौसम में धन प्राप्त करने की सुविधा बढ़ी है। परन्तु इनसे देश में संगठित विपत्र बाजार की स्थापना नहीं हो पायी है।
7. बैंकिंग संकटों का निवारण
बैंकिंग संकटों का निवारण करने में रिजर्व बैंक आंशिक रूप से ही सफल रहा है। यथार्थ में 1960 ई. के बाद ही रिजर्व छोटे और दुर्बल बैंकों के एकीकरण द्वारा उन्हें फेल होने से बचा पाया है।
8. विदेशी विनिमय व्यवसाय में भारतीय बैंकों का हिस्सा
रिजर्व विदेशी विनिमय व्यवसाय में भारतीय बैंकों को उचित हिस्सा दिलाने में विफल रहा है। विदेशी विनिमय व्यवसाय में आज भी विदेशी बैंकों का प्रभुत्व बना हुआ है।
इसे भी पढ़े…
- वित्तीय प्रणाली की अवधारणा | वित्तीय प्रणाली के प्रमुख अंग अथवा संघटक
- भारतीय मुद्रा बाजार या वित्तीय बाजार की विशेषताएँ बताइए।
- मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा | Meaning and Definitions of money in Hindi
- मानी गयी आयें कौन सी हैं? | DEEMED INCOMES IN HINDI
- मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं ?| Functions of Money in Hindi
- कर नियोजन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, आवश्यक तत्त्व या विशेषताएँ, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व
- कर अपवंचन का अर्थ, विशेषताएँ, परिणाम तथा रोकने के सुझाव
- कर मुक्त आय क्या हैं? | कर मुक्त आय का वर्गीकरण | Exempted incomes in Hindi
- राष्ट्रीय आय की परिभाषा | राष्ट्रीय आय के मापन या गणना की विधियां
- कर नियोजन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, आवश्यक तत्त्व या विशेषताएँ, उद्देश्य, आवश्यकता एवं महत्व
- कर अपवंचन का अर्थ, विशेषताएँ, परिणाम तथा रोकने के सुझाव
- कर बचाव एवं कर अपवंचन में अन्तर | Deference between Tax avoidance and Tax Evasion in Hindi
- कर मुक्त आय क्या हैं? | कर मुक्त आय का वर्गीकरण | Exempted incomes in Hindi
- राष्ट्रीय आय की परिभाषा | राष्ट्रीय आय के मापन या गणना की विधियां
- शैक्षिक आय का अर्थ और सार्वजनिक एवं निजी आय के स्त्रोत
- गैट का अर्थ | गैट के उद्देश्य | गैट के प्रावधान | GATT Full Form in Hindi
- आय का अर्थ | आय की विशेषताएँ | Meaning and Features of of Income in Hindi
- कृषि आय क्या है?, विशेषताएँ तथा प्रकार | अंशतः कृषि आय | गैर कृषि आय
- आयकर कौन चुकाता है? | आयकर की प्रमुख विशेषताएँ
- मौद्रिक नीति का अर्थ, परिभाषाएं, उद्देश्य, असफलतायें, मौद्रिक नीति एवं आर्थिक विकास
- भारत में काले धन या काले धन की समस्या का अर्थ, कारण, प्रभाव या दोष
- निजीकरण या निजी क्षेत्र का अर्थ, विशेषताएँ, उद्देश्य, महत्त्व, संरचना, दोष तथा समस्याएं
- औद्योगिक रुग्णता का अर्थ, लक्षण, दुष्परिणाम, कारण, तथा सुधार के उपाय
- राजकोषीय नीति का अर्थ, परिभाषाएं, उद्देश्य, उपकरण तथा विशेषताएँ
- भारत की 1991 की औद्योगिक नीति- मुख्य तत्व, समीक्षा तथा महत्त्व
- मुद्रास्फीति या मुद्रा प्रसार की परिभाषा, कारण, परिणाम या प्रभाव
- मुद्रा स्फीति के विभिन्न रूप | Various Types of Inflation in Hindi
- गरीबी का अर्थ एवं परिभाषाएँ | भारत में गरीबी या निर्धनता के कारण अथवा समस्या | गरीबी की समस्या को दूर करने के उपाय
- बेरोजगारी का अर्थ | बेरोजगारी की प्रकृति | बेरोजगारी के प्रकार एवं विस्तार