सहकारी साख ढाँचे सुदृढ़ बनाने हेतु सरकारी प्रयास (Government Measures to Strengthen Co-operative Credit Structure)
सहकारी साख ढाँचे सुदृढ़ बनाने हेतु सरकारी प्रयास निम्नलिखित है-
1. प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों का पुनर्गठन (Re-organisation of Primary Agricultural Credit Co-operative Societics)
नाबार्ड (NABARD) द्वारा निर्धारित मॉडल पर प्राथमिक कृषि साख सम्बन्धी सहकारी समितियों को पुनर्गठित करने की प्रक्रिया शुरू की गयी है जिसके अन्तर्गत 5 किलोमीटर परिधि के परिचालन क्षेत्र (Operation Area) और पुनर्गठित समिति के लिए 13.50 लाख के सामान्य ऋण कारोबार की परिकल्पना की गयी है।
यद्यपि इन समितियों को पुनर्गठित करने की प्रक्रिया महाराष्ट्र व जम्मू तथा कश्मीर को छोड़कर पूरी कर ली गयी है परन्तु अधिकांश राज्यों में नाबार्ड के मापदण्डों को प्राप्त नहीं किया गया है।
2. कारोबार विकास योजनाएँ (Business Development Plans)
1991 92 से प्राथमिक कृषि सम्बन्धी सहकारी समितियों के लिए कारोबार विकास कार्यक्रमों को चलाया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य कुछ राज्यों में चयनित समितियों को व्यवहार्य इकाइयों में विकसित करना है, ताकि आर्थिक रूप से व्यवहार्य गतिविधियों के माध्यम से उनके कार्य क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक समूहों की सहायता की जा सके। इस कार्यक्रम के प्रथम चरण में प्राथमिक कृषि सम्बन्धी सहकारी समितियों के लिए कारोबार विकास कार्यक्रमों की तैयारी से जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों के सभी कर्मचारियों को आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।
3. जमा बीमा योजना (Deposit Insurance Scheme)
जमाकर्त्ताओं में सुरक्षा की भावना उत्पन्न करने के लिए भारत सरकार ने प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के लिए एक मॉडल जमा बीमा योजना शुरू की है। इस योजना में निम्नलिखित शर्तें निर्धारित की गयी हैं-
(i) योजना के अन्तर्गत शामिल की गयी प्राथमिक कृषि सम्बन्धी सहकारी समितियों के पास 6 माह से अधिक की परिपक्वता अवधि वाली जमाएँ होनी चाहिए।
(ii) समिति के लेखों का नियमित रूप से रख-रखाव किया जाए।
(iii) यह गारण्टी फीस कुल जमा राशि पर 0.30 प्रतिशत होगी और यह प्राथमिक कृषि सम्बन्धी सहकारी समिति, जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक और राज्य सहकारी बैंकों द्वारा क्रमशः 0.15 प्रतिशत, 0.10 प्रतिशत और 0.05 प्रतिशत के अनुपात में बाँटी जाएगी।
(iv)समिति की जमा की गारण्टी सम्बन्धित जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों द्वारा दी जाए।
(v) प्रति जमाकर्ता गारण्टी जमा राशि रु. 30,000 से अधिक नहीं होगी।
(vi) राज्य सहकारी बैंक तथा केन्द्रीय सहकारी बैंक यह सुनिश्चित करेंगे कि प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों को बैंक काउंटर सेफ आदि जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
(vii)यह संग्रह जमाकर्त्ताओं को देय उच्चतम व्याज पर लगायेगी।
(viii) जमाकर्त्ताओं को आकर्षित करने के लिए कृषि सम्बन्धी सहकारी समितियाँ लाभकारी ब्याज दर का भुगतान करेंगी।
4. संस्थागत सुदृढ़ीकरण कार्यक्रम (Institutional Strengthening Programme)
संस्थागत सुदृढीकरण कार्यक्रम का उद्देश्य राज्य सहकारी बैंकों, जिला केन्द्रीय सहकारी बैंकों, राज्य भूमि विकास बैंकों और प्राथमिक भूमि विकास बैंकों, जैसे गैर-सम्पन्न (non solvent) बैंकों को इसे 5 वर्षों की अवधि में लाभकारी इकाई के रूप में स्थापित करना है। जो बैंक इसे 5 वर्षों में व्यवहार्य या लाभकारी नहीं बनाते, उन्हें नाबार्ड द्वारा पुनर्वित्त सुविधा नहीं प्रदान की जाएगी और इन बैंकों का ऋण प्रभाव बनाए रखने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी।
5. राष्ट्रीय सहकारिता विकास परियोजनाएँ (Integrated Co-operative Development Programmes)
राष्ट्रीय सहकारिता विकास निगम ने सातवीं योजना के दौरान चुनिंदा जिलों के लिए एकीकृत सहकारिता विकास परियोजनाएँ लगायीं। योजना का उद्देश्य सहकारिता ढाँचे को सुदृढ़ करके इसका विकास करना है, ताकि इन जिलों के चयनित क्षेत्रों में ग्रामीण समुदाय की समूची आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। अगली योजनाओं में भी इस कार्यक्रम के विकास के प्रयास किए गए।
6. मॉडल सहकारी समितियाँ अधिनियम (The Model Co-operative Societies Act)
इस अधिनियम का उद्देश्य सहकारिता को संघीय स्वरूप प्रदान करना है जिससे सहकारी नियंत्रण और हस्तक्षेप कम किया जा सके। अभी तक उड़ीसा राज्य ने इसे पूर्णतया स्वीकार कर अधिनियम को लागू कर दिया है। अन्य राज्य भी इस सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही कर रहे हैं।
7. क्षेत्रीय असन्तुलन कम करना (Reduction of Regional Imbalances)
भारतीय रिजर्व बैंक, राज्यीय सरकारों के सहयोग के साथ, कमजोर सहकारी बैंकों को मजबूत बनाने और सहकारी विकास में क्षेत्रीय असन्तुलन (Regional Imbalance) कम करने के लिए बहुत से कदम उठाता रहा है। 1975-76 में इन प्रयासों को और तीव्र किया गया, ताकि कमजोर समितियाँ अपनी हानि, अशुद्ध ऋणों (Bad debts) और बकाया ऋणों को समाप्त कर सकें। इसलिए कृषि पर राष्ट्रीय आयोग (National Commission on Agriculture) ने कृषक सेवा समितियों (Farmers’ Service Societies) के गठन की सिफारिश की है, ताकि ये केवल उधार ही नहीं बल्कि सदस्यों को कृषि आदान (Agricultural Inputs) और तकनीकी मार्ग दर्शन दे सकें जिससे वे बड़ी बहुउद्देश्यीय समितियाँ बना सकें।
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