राज्य सहकारी बैंक की आवश्यकता
राज्य सहकारी बैंक की आवश्यकता- मैक्लेगन कमेटी (1914) ने राज्य स्तर पर शीर्ष बैंक की स्थापना की आवश्यकता निम्न कारणों से बतायी थी-
1. केन्द्रीय सहकारी बैंकों के कार्यों का नियमन- यद्यपि सहकारी रजिस्ट्रार विभिन्न केन्द्रीय सहकारी बैंकों के बीच कड़ी के रूप में कार्य करता है किन्तु वित्तीय साधनों एक बैंक से दूसरे बैंक में हस्तान्तरण ऐसा कार्य है जिसे रजिस्ट्रार सरलतापूर्वक सम्पन्न नहीं कर सकता। अतः सहकारी आन्दोलन की विभिन्न इकाइयों और विशेषकर केन्द्रीय सहकारी बैंकों के कार्य संचालन के नियमन एवं नियन्त्रण हेतु ‘केन्द्रीय नियन्त्रक अधिकारी’ (शीर्ष बैंक) अवश्य का होना चाहिए।
2. केन्द्रीय बैंक के प्रति जनविश्वास जाग्रत करना- केन्द्रीय सहकारी बैंक जनता का विश्वास और समर्थन प्राप्त करने में विफल रहे हैं। फलतः ये बैंक पर्याप्त मात्रा में जमाराशियाँ आकर्षित नहीं कर सके हैं। राज्य सहकारी बैंक की स्थापना से केन्द्रीय सहकारी बैंकों के प्रति जनविश्वास जाग्रत होगा।
3. केन्द्रीय बैंकों के आपसी लेन-देनों का नियन्त्रण- यदि केन्द्रीय सहकारी बैंकों के आपसी लेन देन पर उचित नियन्त्रण नहीं रखा गया तब उनके पारस्परिक ऋण मिल जाने के कारण एक दूसरे के दायित्वों में कोई भेद नहीं रह जायेगा। इससे बहुत गड़बड़ी फैलेगी। अतः एक ऐसी संस्था की स्थापना आवश्यक है जो विभिन्न केन्द्रीय बैंकों के बीच ‘सन्तुलन केन्द्र’ का काम कर सके अर्थात् एक क्षेत्र की अतिरिक्त पूँजी को उन क्षेत्रों में हस्तान्तरित कर सके, जहाँ कार्यशील पूँजी की न्यूनता है।
4. केन्द्रीय बैंकों के कार्यों में समन्वय की स्थापना- यद्यपि प्रत्येक राज्य में बड़ी संख्या में केन्द्रीय सहकारी बैंकों की स्थापना हुई है तथापि उनके कार्यों में एकरूपता और समन्वय का अभाव रहा है। इसके लिये सहकारी बैंक की स्थापना आवश्यक है।
5. सहकारी आन्दोलन को मुद्रा बाजार से जोड़ना- शीर्ष बैंक सहकारी आन्दोलन राज्य को भारतीय मुद्रा बाजार से सम्बन्धित कर देगा।
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सहकारी बैंक का संगठन तथा कार्य क्षेत्र
राज्य सहकारी बैंकों के संगठन एवं कार्यकरण का विवेचन निम्न प्रकार है-
1. संगठन- संगठन के आधार पर राज्य सहकारी बैंक प्रारम्भ में दो प्रकार के थे शीर्ष सहकारी प्रकार के बैंक तथा मिश्रित प्रकार के बैंक। ‘सहकारी प्रकार के शीर्ष बैंकों की सदस्यता केवल प्राथमिक साख समितियों और केन्द्रीय बैंकों तक सीमित थी, जबकि मिश्रित प्रकार के शीर्ष बैंकों की सदस्यता व्यक्तियों, प्राथमिक साख समितियों और केन्द्रीय सहकारी बैंकों के लिये खुली थी। वर्तमान में कार्यरत सभी 26 शीर्ष बैंक सहकारी प्रकार के हैं। व्यक्तियों और समितियों के लिए इनकी सदस्यता समाप्त कर दी गयी है।
2. कार्य- राज्य सहकारी बैंक के अनेक कार्य हैं। सर्वप्रथम, यह समूचे प्रदेश के केन्द्रीय सहकारी बैंकों के कार्य संचालन को नियमित नियन्त्रित एवं समन्वित करता है। दूसरे, यह प्रदेश के सहकारी आन्दोलन को राष्ट्रीय द्रव्य बाजार से तथा राष्ट्रीय सहकारिता आन्दोलन से सम्बन्धित करता है। तीसरे राज्य में जिन केन्द्रीय सहकारी बैंकों के पास पूँजी का आधिक्य है, उनसे रुपया लेकर राज्य सहकारी बैंक उन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को प्रदान करता है जिनके पास कार्यशील पूँजी की न्यूनता है। इस तरह राज्य सहकारी बैंक राज्य के विभिन्न केन्द्रीय सहकारी बैंकों के बीच ‘सन्तुलन केन्द्र’ का काम करता है। चौथे, कुछ राज्यों में ये बैंक मिश्रित पूँजी बैंकों के कार्य भी करते हैं। महाराष्ट्र और तमिलनाडु के शीर्ष बैंकों ने सहकारी उपभोक्ता आन्दोलन को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। पांचवें, यह राज्य में सम्पूर्ण सहकारी आन्दोलन के लिये वित्तीय व्यवस्था करता है।
3. प्रबन्ध- राज्य सहकारी बैंक की अन्तिम सत्ता ‘साधारण सभा’ में निहित होती हैं जिसकी वर्ष में एक बार बैठक होती है। साधारण सभा बैंक के वार्षिक हिसाब-किताब पर विचार करती है, संचालक मण्डल का चुनाव करती है तथा संविधान के अनुसार लाभ का नियोजन और वितरण करती है। बैंक का सामान्य व्यवसाय ‘संचालक मण्डल’ द्वारा चलाया जाता है। इसमें संचालकों की संख्या राज्य स्तर पर अलग-अलग होती है। अधिकांश संचालक केन्द्रीय सहकारी बैंकों के प्रतिनिधि होते हैं। कुछ संचालक राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी होते हैं। बैंक के दैनिक कार्य संचालन के लिये ‘प्रबन्ध कमेटी का गठन किया जाता है, जिसमें 5 से 9 तक सदस्य होते हैं। बैंक का सर्वोच्च अधिकारी जनरल मैनेजर होता है।
4. कार्यशील पूँजी- राज्य सहकारी बैंक अपनी कार्यशील पूँजी तीन स्रोतों से प्राप्त करते हैं— (i) शेयर पूँजी और रक्षित निधि (ii) जनसाधारण से जमाराशियाँ (iii) कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक से ऋण एवं अग्रिम। राज्य सहकारी बैंक सदस्यों और गैर सदस्यों से जमाराशियाँ प्राप्त करते हैं। गैर सदस्यों से जमाराशियाँ प्राप्त करने के कारण उन्हें अपनी थोड़ी बहुत पूँजी अवश्य रखनी पड़ती है। राज्य सहकारी बैंक जितने समय के लिये ऋण स्वीकार करते हैं उसकी राज्य सरकारों द्वारा न्यूनतम और अधिकतम सीमाएँ निश्चित कर दी गयी हैं। ये बैंक अपने सदस्यों को उन्हीं शर्तों पर ऋण प्रदान करते हैं, जिन शर्तों पर बैंक ने जमाराशियाँ प्राप्त की हैं। राज्य सहकारी बैंक के हिस्सों का मूल्य काफी ऊँचा होता है। किसी व्यक्ति को इस बैंक का सदस्य बनने के लिये कम-से-कम एक हिस्सा खरीदना अनिवार्य होता है। राज्य सहकारी बैंक अपनी दीर्घकालीन पूँजी ऋणपत्रों की निकासी द्वारा प्राप्त करते हैं। बैंक को अपने शुद्ध वार्षिक लाभांश का 25 प्रतिशत सुरक्षित कोष में रखना पड़ता है।
5. उधारदान- प्रारम्भ में शीर्ष बैंकों की सदस्यता केन्द्री सहकारी बैंकों के साथ साथ प्राथमिक समितियों एवं व्यक्तियों के लिये भी खुली थी, जो सभी शीर्ष बैंकों से ऋण पाने के लिए अधिकृत थे। अब नीति बदल गयी है तथा व्यक्तियों एवं समितियों के लिए शीर्ष बैंकों की सदस्यता समाप्त कर दी गयी है। अब शीर्ष बैंक केवल केन्द्रीय सहकारी बैंकों तथा राज्य-स्तरीय सहकारी परिसंघों को ही ऋण दे सकते हैं।
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