व्यापारिक बैंक की कठिनाइयाँ और दोष बताइए।
व्यापारिक बैंकों की कठिनाइयाँ और दोष-भारत में व्यापारिक बैंकों की प्रमुख कठिनाइयों तथा उनकी कार्य प्रणाली में विद्यमान दोष निम्नलिखित हैं-
1. असन्तुलित विकास-भारत के विभिन्न राज्यों में तथा एक ही राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भी बैंकिंग सेवाओं का एक समान विकास नहीं हो पाया है। अधिकांश बैंकों ने बड़े-बड़े व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्रों में ही अपनी शाखाएँ स्थापित करने में रुचि ली है। परिणामतः ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाओं की कमी बनी हुई है।
2. पूँजी का अभाव-निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक बहुत छोटे-छोटे और दुर्बल हैं। उनकी चुकता पूँजी तथा आरक्षित कोष अपर्याप्त हैं। फलतः बैंक अपने व्यवसाय का विस्तार करने में असमर्थ है।
3. दोषपूर्ण विनियोग नीति- तरलता और सुरक्षा के विचार से बैंक अपना अधिकोष धन सरकारी प्रतिभूतियों में लगाते हैं। वे व्यापारिक विपत्रों में बहुत कम धन लगाते हैं। इसीलिए भारत में संगठित विपत्र बाजार का अभाव बना हुआ है।
4. लाभांश का वितरण- व्यापारिक बैंक अपनी प्रारक्षित निधि सुदृढ़ बनाने की बजाय अंशधारियों में लाभांश वितरण कर देते हैं। इसमें बैंकों का भावी विकास रुप जाता है।
5. आपसी प्रतियोगिता- जमा राशियाँ स्वीकार करने तथा ऋण देने के मामलों में व्यापारिक बैंकों के बीच अस्वस्थ प्रतियोगिता पायी जाती है।
6. व्यक्तिगत जमानत पर नहीं- व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को व्यक्तिगत प्रतिभूति पर ऋण नहीं देते। फलतः भारत में साख सुविधाओं का समुचित विस्तार नहीं हो पाया है।
7. अकुशल स्टाफ- व्यापारिक बैंकों के स्टाफ की कुशलता का स्तर बहुत नीचा है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक स्टाफ में भ्रष्टाचार और लापरवाही का दोष पाया जाता है।
8. अनुभवहीन संचालक- व्यापारिक बैंकों के संचालक अयोग्य तथा अनुभ हैं। वे ऐसे व्यवसायों का चयन नहीं कर पाते, जिनमें धन लगाने पर सुरक्षा और लाभ दोनों ही प्राप्त हों।
9. विदेशी भाषा का प्रयोग- व्यापारिक बैंक अपना अधिकांश कार्य अंग्रेजी भाषा में करते हैं, जिसे समझने वालों की संख्या भारत की कुल जनसंख्या की दो प्रतिशत से भी कम है।
10. विनिमय बैंकों की प्रतिस्पर्धा- भारतीय बैंकों को साधन सम्पन्न विदेशी बैंकों की प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। यह प्रतिस्पर्धा विदेशी व्यापार की वित्त व्यवस्था के साथ-साथ घरेलू व्यापार की वित्त व्यवस्था के क्षेत्र में भी पायी जाती है।
व्यापारिक बैंकिंग में सुधार हेतु सुझाव
भारतीय संयुक्त स्कन्ध अधिकोष प्रणाली में सुधार हेतु निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं=
1. दुर्बल बैंकों का एकीकरण- वाणिज्य बैंकिंग प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए छोटे-छोटे तथा दुर्बल बैंकों का बड़े अनुसूचित बैंकों के साथ एकीकरण कर देना चाहिए।
2. प्रतियोगिता का निवारण- परस्पर समझौते द्वारा व्यापारिक बैंकों को अस्वस्थ प्रतियोगिता का परित्याग कर देना चाहिए।
3. शाखा विस्तार को प्रोत्साहन- रिजर्व बैंक को चाहिए कि वह ग्रामीण तथा अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में शाखाएँ खोलने के लिए व्यापारिक बैंकों को अधिकाधिक सहायता एवं प्रोत्साहन प्रदान करे, जिससे कि बैंक रहित क्षेत्रों की बचतों को एकत्रित किया जा सके।
4. सरकार की सहानुभूतिपूर्ण नीति- सरकार को चाहिए कि वह निजी क्षेत्र के बैंकों को वे समस्त सुविधाएँ प्रदान करें, जो सरकारी बैंकों को दी जाती है, अन्यथा राष्ट्रीयकरण कर दे।
5. विदेशी बैंकों पर प्रतिबन्ध- विदेशी बैंकों को अपना कार्य क्षेत्र केवल विनिमय व्यवसाय तक सीमित रखने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। इन बैंकों की अनुचित कार्यवाहियो पर रोक लगायी जानी चाहिए।
6. अनुसूचित तथा गैर अनुसूचित बैंकों में सहयोग- मुद्रा बाजर में प्रचलित ब्याज दरों की भिन्नता को समाप्त करने के लिए अनुसूचित एवं गैर अनुसूचित बैंकों के बीच निकट सम्पर्क स्थापित किया जाना चाहिए।
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