बैंक की परिभाषाएं (Definition of Bank in Hindi)
बैंक की परिभाषाएं (Definition of Bank)- बैंक की परिभाषाओं को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-
I. सामान्य परिभाषाएं :
(1) डॉ. एच. एल. हार्ट की परिभाषा-प्रसिद्ध इंग्लिश विद्वान हार्ट ने बैंकों को इस प्रकार परिभाषित किया है— “बैंकर वह व्यक्ति है जो अपने साधारण व्यवसाय के अन्तर्गत मुद्रा प्राप्त करता है और जिसे वह उन व्यक्तियों के बैंकों का भुगतान करके चुकाता है जिन्होंने या जिनके खाते में यह यह रुपया जमा किया जाता है।”
व्याख्या- इस परिभाषा के अनुसार बैंक या बैंकर कहलाने के लिए जो कार्य करना आवश्यक है, वे हैं:
(i) यह अपने साधारण व्यवसाय के अन्तर्गत धन प्राप्त करे चाहे वह धन खातेदार स्वयं जमा करे अथवा उसके लिए कोई दूसरा व्यक्ति जमा करे।
(ii) वह धन भुगतान केवल बैंकों द्वारा करे।
आधुनिक बैंकों के कार्यों को देखते हुए यह परिभाषा पूर्ण नहीं है।
( 2 ) किनले-“बैंक एक ऐसी संस्था है जो ऐसे व्यक्तियों को धन उधार देती है। जिन्हें जरूरत है और जो लोगों का फालतू धन अपने पास जमा करती है।”
व्याख्या- किनले महोदय ने इस बात पर जोर दिया है कि बैंक जहाँ एक ओर लोगों के फालतू धन को जमा के रूप में लेता है, वहीं दूसरी ओर, सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए, वह धन को उधार भी देता है, अतः इस परिभाषा में धन देना भी बैंकों का कार्य माना गया है। यह परिभाषा भी अपूर्ण है, क्योंकि समस्त कार्यों की ठीक प्रकार से विवेचना नहीं की गयी है।
( 3 ) गिलबर्ट– “बैंक, पूँजी अथवा अधिक शुद्ध शब्दों में मुद्रा का व्यवसायी है।”
( 4 ) क्राउथर- “बैंकर का व्यवसाय जनता से कर्ज लेना और बदले में प्रतिभूतियाँ देना तथा इस प्रकार की रचना करना है।
(II) वैधानिक परिभाषाएँ (Legal Definition)
(1) सन् 1936 के भारतीय कम्पनी विधान में बैंक की निम्न परिभाषा दी गयी है— “बैंकर वह है जिसका मुख्य वयवसाय जनता से जमा स्वीकार करना है। यह जमा बैंक ड्राफ्ट आदि की सहायता से निकाली जा सकती है।” यह परिभाषा भी अपूर्ण है क्योंकि इसमें उन्हीं कम्पनियों को बैंक की श्रेणी में रखा गया है जो अपने मुख्य व्यवसाय के रूप में केवल ऐसी जमा स्वीकार करती हैं जिन्हें ड्राफ्टों या आदेशों के द्वारा वापस किया जाय।
(2) बैंकिग कम्पनी विधान, 1949 की परिभाषा- बैंकिंग कम्पनी वह कम्पनी है जो बैंकिंग का कार्य करती हो। “बैंकिंग का अभिप्राय जनता को उधार देने के लिए अथवा विनियोग करने के लिए मुद्रा के निक्षेपों को स्वीकार करना है जो माँग पर अथवा किसी अन्य प्रकार चैक, विकर्ष, आदेश द्वारा शोधनीय होते हैं।”
उपयुक्त परिभाषा (Suitable Definition)
बैंक की उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि तर्क के दृष्टिकोण से भी अधिकांश परिभाषाएँ दोषपूर्ण हैं। वास्तव में, आवश्यकता इस बात की है कि बैंक की कोई ऐसी परिभाषा दी जाय जिससे उसे सरलता के साथ पहचाना जा सके और साथ ही उसकी प्रमुख विशेषताएँ भी स्पष्ट हो जायें। इस आवश्यता को ध्यान में रखते हुए बैंक की उपयुक्त परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती है- “बैंक वह संस्था है। जो मुद्रा और साख में व्यवसाय करती हो।” (Bank is an institution dealing in money and credit.)
व्यापारिक या वाणिज्य बैंक का अर्थ एवं परिभाषा ((Commercial Bank: Meaning and Definition)-
बैंकिंग प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण अंग व्यापारिक बैंक हैं जो लाभ के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करती हैं।
व्यापारिक बैंकों के कार्य (Function of Commercial Banks)
व्यापारिक बैंकों के कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
(I) मुख्य कार्य (Primary Functions)- व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य हैं—
जमा स्वीकार करना और ऋण देना।
(1) जमा स्वीकार करना (Accepting Deposits)
एक बैंक जनता के को जमा करता है। लोग अपनी सुविधा और शक्ति के अनुसार निम्नलिखित खातों में रुपया कर सकते हैं:
(i) चालू निक्षेप (Current Deposits)- चालू खाता वह खाता है जिसमें जमा गई रकम जब चाहे निकाली जा सकती है। चूंकि इस खाते में आवश्यकतानुसार कई बार रुप निकालने की सुविधा रहती है, इसीलिए बैंक इस खाते का धन प्रयोग करने में स्वतन्त्र होता। यही कारण है कि बैंक ऐसे खातों पर या तो ब्याज बिल्कुल नहीं देता या बहुत मामूली के है। कभी-कभी कुछ शुल्क ग्राहक से वसूल करता है।
व्यापारियों के लिए ये खाते बहुत उपयोगी होते हैं क्योंकि उन्हें दिन में कई बार भुगत के लिए लेन-देन की आवश्यकता पड़ती है।
(ii) मुद्दती स्थायी निक्षेप (Fixed Deposits)
स्थायी निक्षेप वह है जिसे एक निश्चि अवधि (जो 3 माह से 5 वर्ष तक हो सकती है) के लिए बैंक लेता है। इस जमा से सम्बन्धि खाते को स्थायी या मुद्दती खाता कहा जाता है। इन खातों को खोलने के बाद बैंक ग्राहक को ए मुद्दती जमा रसीद (Fixed Deposit Receipt) देता है और अवधि बीतने के बाद जब के रुपया वापस करता है तो यह रसीद भी वापस ले लेता है। मुद्दती खातों पर ब्याज की दर ऊँ रहती है, क्योंकि इन खातों की रकम का प्रयोग करने के लिए बैंक पूर्णतः स्वतन्त्र होते हैं अ उचित विनियोग करके वे पर्याप्त लाभ कमाते हैं।
लम्बी अवधि के खातों में अनिश्चितकालीन निक्षेप भी आते हैं। ऐसे निक्षेप के अन्त जो रुपया जमा किया जाता है, वह कुछ विशेष कारणों को छोड़ कभी भी निकाला नहीं सकता। इन खातों पर ब्याज की दर बहुत ऊँची होती है।
(iii) बचत खाता (Saving Account)
यह खाता प्रायः मध्यम तथा निम्न अ वर्ग के लोगों द्वारा खोला जाता है जिसमें वे अपनी छोटी-छोटी बचतों को भविष्य के लिए ज करते हैं। इस खाते में जमाकर्ता पर कुछ प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं, जैसे-जमाकर्ता इस खाते में एक निश्चित रकम सप्ताह में केवल एक या दो बार ही निकाल सकता है। रकम निकालने लिए इस खाते में जमाकर्ता को ‘रकम निकालने की पर्ची (Withdrawal Form) तथा ‘चैक’ सुविधा दी जाती है।
(iv) गृह बचत खाता (Home Saving Account)-
इस खाते के अनुसार बैंक जमा करने वाले के घर गुल्लक रख देता है। इन गुल्लकों में अपनी सुविधानुसार घर का स्वाम या अन्य व्यक्ति पैसे जमा करते जाते हैं। महीने के अन्त में या तीन महीने बाद इस गुल्लक क बैंक में ले जाया जाता है। वहाँ खोला जाता है एवं एकत्रित राशि को निकालकर सम्बन्धित व्यि के खाते में जमा कर दिया जाता है। ऐसी जमा पर ब्याज बहुत कम दिया जाता है।
( 2 ) ऋण प्रदान करना (Granting Loans)
बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण का ऋण प्रदान करना है। वास्तव में, जमा लेना या ऋण देना ये दो स्तम्भ हैं जिन पर आजकल बैंकों का ढाँचा खड़ा रहता है। ऋण प्रायः उत्पादक कार्यों के लिए दिये जाते हैं और इन प वसूल की जाने वाली ब्याज की दर उससे अधिक होती है जो कि बैंक जमा कराने वाले व्यक्ति को देता है। इन दोनों में ब्याज की दर का अन्तर ही बैंक का लाभ होता हैं। बैंक मुख्यतः निम्नलिखि तरीकों से ऋण देता है।
(i) नकद साख (Cash Credit)- इसके अन्तर्गत ऋणी को निश्चित जमानत आधार पर एक निश्चित राशि निकलवाने का अधिकार दे दिया जाता है। इस सीमा के अन्दर ऋणी आवश्यकतानुसार रुपया निकलवाता रहता है तथ जमा भी करता है। इस अवस्था में बैं केवल वास्तव में निकलवाई गई राशि पर ब्याज लेता है। इसमें बैंक व्यापारी के गोदाम की चा अपने पास रखता है तथा उस पर ही ऋण प्रदान करता है।
(ii) अधिविकर्ष या ओवरड्राफ्ट (Overdraft)- बैंक में चालू जमा रखने वाले ग्राहक बैंक से एक समझौते के अनुसार अपनी जमा से अधिक रकम निकलवाने की अनुमति ले लेते हैं। निकाली गई रकम को ओवरड्राफ्ट कहते हैं। यह सुविधा अल्पकाल के लिए विश्वसनीय ग्राहकों को ही मिलती है। मान लीजिए, एक व्यक्ति के रूपये 20,000 जमा हैं और उसको बैंक रुपये 22,000/ तक के चैक काटने का अधिकार दे देता है तो रुपये 2.000 ओवरड्राफ्ट कहलायेगा।
अधिविकर्ष तथा नकद साख में अन्तर (Difference Between Overdraft and Cash Credit)
अधिविकर्ष और नकद साख में अन्तर की मुख्य मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं।
(i) पहला मौलिक अन्य यह है कि अधिविकर्ष केवल चालू खाता रखने वाले व्यक्तियों को दिये जाते हैं, जबकि नकद साख किसी भी व्यक्ति को दी जा सकती है।
(ii) नकद साख सदा पूरी जमानत रखने के पश्चात् ही दी जाती है, जबकि अधिविकर्ष प्रायः व्यक्तिगत जमानत पर दे दिये जाते हैं क्योंकि चालू खाते रखने वाले व्यक्ति एवं संस्थाएँ बैंक के पुराने ग्राहक होते हैं।
( 3 ) ऋण तथा अग्रिम (Loans and Advances)
ये ऋण एक निश्चित रकम के रूप में दिये जाते हैं। बैंक ऋणदाता के खाते में ऋण की रक़म इकट्ठा जमा कर देता है। ऋणदाता उसे कभी भी निकलवा सकता है। इन ऋणों पर ऋण की स्वीकृति के तुरन्त बाद ही ब्याज आरम्भ हो जाता है, चाहे ऋणी बैंक द्वारा उस खाते में से कुल ऋण का केवल एक भाग ही निकाले। ऋण के रूप में जो रुपया बैंक में व्यापारी के खाते में जमा हो जाता हो, उस पूरी राशि पर बैंक ब्याज लेता है।
(4) सरकारी प्रतिभूतियों में विनियोग (Investment in govt. Securities)
बैंकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदना भी सरकार को उधार देने का एक तरीका है। बहुत-से बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदना पसन्द करते हैं क्योंकि यह सबसे सुरक्षित उधार माना जाता है।
(5) विनिमय पत्रों की कटौती करना (Discounting of the Bills of Exchange)
बैंकों द्वारा पेशगी धन देने का यह भी एक तरीका है। इसके अन्तर्गत बैंक अपने ग्राहकों को आवश्यकता पड़ने पर उनके विनिमय-पत्रों की अवधि पूर्ण होने से पहले ही उन विनिमय-पत्रों के आधार पर रुपया उधार देता है। भुगतान के बाकी समय की ब्याज की कटौती (Discount) करके बैंक तत्काल भुगतान कर देता है। बैंक व्यापारिक बिलों की ही कटौती करता है। बैंक इनसे बाजार दर पर ब्याज लेता है और विनिमय-पत्रों की अवधि पूर्ण होने पर उनकी धनराशि वसूल कर लेता है।
(6) साख निर्माण (Credit Creation)
आजकल बैंकों का एक मुख्य कार्य साख का निर्माण करना है। बैंक अपनी प्रारम्भिक जमा से अधिक रुपया उधार देकर साख का निर्माण करते हैं। (II) गौण कार्य (Secondary Functions) बैंक उपर्युक्त प्राथमिक कार्यों के अतिरिक्त कई गौण कार्य; जैसे- (1) एजेण्ट के रूप में और (2) सामान्य उपयोगिता के कार्य भी करते हैं;
(1) एजेन्सी सम्बन्धी सेवाएँ (Agency Functions)- एजेन्सी सम्बन्धी कार्य के अन्तर्गत वे कार्य आते हैं जो बैंक अपने ग्राहकों के आदेशानुसार उसकी ओर से करता है और इन कार्यों के लिए वह कमीशन लेता है जो उसकी आय का एक महत्वपूर्ण साधन होता है। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैं।
(i) साख-पत्रों के भुगतान का संग्रह (collection of Payment of Credit Instruments)- बैंक अपने ग्राहकों से प्राप्त विनिमय बिलों, चैंकों, प्रतिज्ञा-पत्रों आदि पर मिलने वाले धन की वसूली करके अ. कमीशन काटकर शेष राशि उनके खातों में जमा कर देता है।
(ii) ग्राहकों की ओर से भुगतान (Payment on Behalf of Customers)- ग्राहकों के सभी प्रकार के भुगतान सम्बन्धी आदेशों को भी बैंक पूरा किया करते हैं; जैसे- उनकी ओर से ऋणों की किस्तें, ब्याज, चंदे, बीमा की किस्त कर आदि का भुगतान करना इस कार्य के लिए बैंक ग्राहक से साधारण-सा कमीशन लेते हैं।
(iii) भुगतान संग्रह करना (Collection of Payment)- बैंक अपने ग्राहकों की ओर से लाभांश, ब्याज, कमीशन आदि की भी वसूली करते हैं। ये कार्य भी बैंक कमीशन के आधार पर करते हैं। इस राशि को वसूल करके बैंक ग्राहकों के खातों में जमा कर देते हैं।
(iv) प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करना (Sale and Purchase of Securities)- चूँकि बैंक बाजार स्थिति से भली-भाँति परिचित होते हैं, इसलिए वे अपने ग्राहकों को प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय से सम्बन्धित उचित परामर्श देते रहते हैं तथा उनके आदेशानुसार क्रय-विक्रय करते रहते हैं।
(v) धन का स्थानान्तरण (Remittance of Money)- ग्राहकों के आदेशानुसार बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान को धन शीघ्रता से और कम व्यय पर भेजने की व्यवस्था करता है।
(vi) ट्रस्ट आदि का कार्य (Functions Pertaining to trust etc.)–बैंक ग्राहक के लिए ट्रस्ट, अटार्नी, एक्जीक्यूटर्स तथा सलाहकर का कार्य भी करता है।
(2) सामान्य उपयोगिता के कार्य (Functions of General Untility) – एक आधुनिक बैंक उपर्युक्त सेवाओं के अतिरिक्त अन्य बहुत-सी सुविधाएँ अपने ग्राहकों तथा सर्वसाधारण के लिए उपलब्ध कराता है; जैसे;
(i) बहुमूल्य धातुओं की रक्षा (Custody of Valuabs) – बैक अपने यहाँ ग्राहकों के गहने, आभूषण, मूल्यवान कागज आदि को सुरक्षित रूप से रखने के लिए लॉकर की व्यवस्था रखते हैं।
(ii) साख प्रमाण पत्रों का प्रदान करना (Facility of Letter of Credit)– बैंक अपने ग्राहकों को साख प्रमाण-पत्र तथा यात्रियों को चैक (Travellers; Cheque) जारी करते हैं।
(iii) वस्तुओं के वाहन में सहायता (Helpful in Transportation of Goods) – बड़े-बड़े व्यापारी अपने ग्राहकों को माल भेजकर उसकी बिल्टी बैंक से भेज देते हैं। खरीददार बैंक में रुपए जमा करवाकर उस बिल्टी को छुड़वा लेते हैं और माल ले लेते हैं।
(iv) व्यापारिक सूचना व आँकड़े एकत्र करना (Collection of Business Information and Statistics)- आधुनिक बैंक उद्योग, व्यापार, वाणिज्य सम्बन्धी विविध प्रकार के आँकड़े और सूचनाएँ एकत्र करते हैं तथा प्रकाशित करते हैं अथवा माँगने पर ग्राहकों तक पहुँचाते हैं।
(v) ऋण का अभिगोपन करना (Underwriting of Loans)- व्यापारिक बैंक प्रतिभूतियों का अभिगोपन (underwriting) भी करते हैं, अर्थात् बैंक अपने ग्राहकों द्वारा खरीदे गये अंश अथवा अन्य प्रतिभूतियों को बेचने का दायित्व ले लेते हैं। इस कार्य के बदले ग्राहक से वे अभिगोपन शुल्क या कमीशन लेते हैं।
(vi) विदेशी विनिमय की व्यवस्था (Provision of foreign Exchange)– बैंक अपने ग्राहकों के लिए विदेशी विनिमय के क्रय-विक्रय का भी कार्य करते हैं जिससे ये विदेशी व्यापार के लिए बहुत सहायक होते हैं।
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