भारतीय बैंकिंग संरचना की वर्तमान स्थिति की विवेचना कीजिए।
भारतीय बैंकिंग संरचना की वर्तमान स्थिति (Present Banking Structure of india)- बैंकिंग संरचना के संक्षिप्त इतिहास के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि भारतीय बैंकिग प्रणाली में देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ परिवर्तन भी होता रहा है। जहाँ देशी बैंकिंग प्रणाली से देश में बैंकिंग कार्य का प्रादुर्भाव हुआ, वहीं आज उच्च तकनीक युक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की बैंकिंग प्रणाली स्थापित हो चुकी है। आज बैंकिंग प्रणाली के अन्तर्गत हाईटेक (High-Tech) बैंकिंग का विकास हो चुका है। इन परिवर्तनों के फलस्वरूप देश की बैंकिंग संरचना के कई रूप विकसित हैं जिनका विवरण निम्नलिखित हैं।
I. शीर्ष बैंकिंग संस्थाएँ (Apex banking Institutions)
शीर्ष बैंकिंग संस्थाओं में निम्न को सम्मिलित करते हैं।
1. रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया देश का सर्वोच्च मौद्रिक एवं बैंकिंग प्राधिकार (Monetary and Banking Authority) है और देश की बैंक प्रणाली को नियन्त्रित करने का दायित्व इसी पर रहता है। सभी वाणिज्य बैंक अपने आरक्षण (Reserves) रिजर्व बैंक के पास रखते हैं, इसलिए इसे रिजर्व बैंक या बैंकों का बैंक कहते हैं।
2. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agricultural and Rural Development Nabard)- 12 जुलाई, 1982 को कृषि तथा ग्रामीण विकास हेतु ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक के ‘कृषि साख विभाग’ तथा ‘कृषि पुनर्विन्त एवं विकास निगम’ को मिलाकर इस बैंक की स्थापना की गई। यह बैंक कृषि तथा गैर-कृषि गतिविधियों जैसे-हथकरघा, दस्तकारी आदि के लिए प्रदान की जाने वाली अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन साख का अनुरक्षण एवं समन्वय करने का कार्य करता है। साथ ही सहकारी संस्थाओं तथा व्यापारिक बैंकों को कृषि एवं ग्रामीण विकास हेतु दिये गये ऋणों का पुनर्वित्तीयन भी करता है।
3. निर्यात-आयात बैंक (Export-Import Bank)- निर्यात-आयात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई राष्ट्र अपने देश में निर्यात-आयात बैंक की स्थापना करते हैं। ये बैंक आयात के लिए दीर्घकालीन ऋण की सुविधाएँ प्रदान करते हैं। इनके महत्व को देखते हुए भारत में मी सन् 1982 में निर्यात-आयात बैंक की स्थापना की गई है। वह बैंक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार हेतु देश में उच्च स्तरीय संस्था के रूप में कार्यरत है।
II बैंकिंग संस्थाएँ (Banking Institutions)
भारतीय बैंकिंग संरचना की प्रमुख बैंकिंग संस्थाएँ निम्नलिखित हैं।
1. व्यापारिक या वाणिज्य बैंक (Commercial Bank)- संगठित क्षेत्र की बैंकिंग संस्थाओं में सबसे अधिक पुरानी संस्था वाणिज्य बैंकों की है जिनकी शाखाओं का जाल देश भर में बड़े व्यापक रूप में बिछा हुआ है तथा इन्हें जनता का सबसे अधिक विश्वास प्राप्त है और इन बैंकों का कुल बैंकिंग काम-काज में सबसे बड़ा हिस्सा है। भारतीय वाणिज्य बैंकिंग प्रणाली की संरचना को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है।
(i) सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्य बैंक (Commercial Banks of Public Sector) – 1969 के पश्चात् वाणिज्य बैंकों को राष्ट्रीयकृत या सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और निजी क्षेत्र के बैंकों में वर्गीकृत किया जाता है। भारतीय बैंकिंग का सार्वजनिक क्षेत्र अपनी वर्तमान स्थिति तक पहुँचने के लिए तीन प्रक्रमों से गुजरा है: पहला, सन् 1955 में तत्कालीन इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया को भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) में परिवर्तित किया जाना और तदुपरान्त उसके सात सहायक बैंकों (Subsidiary Banks) की स्थापना, दूसरा, 19 जुलाई 1969 को 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना और तीसरा, 15 अप्रैल, 1980 को 6 अतिरिक्त वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना। बाद में सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक का एक अन्य बैंक में विलय हो गया।
अतः स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, उसके सहायक बैंक और 20 अन्य राष्ट्रीयकृत खेल के बैंक सम्मिलित रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कहलाते हैं।
(ii) निजी क्षेत्र के वाणिज्य बैंक (Commercial Banks of Private Sector )-निजी क्षेत्र के बैंकों में थोड़े से भारतीय अनुसूचित बैंक जिनका राष्ट्रीयकरण नहीं किया गया था और भारत में कार्य करने वाले कुछ विदेशी बैंक हैं जो अधिकांशतः मुद्रा बैंक (Foreign Exchange) भी कहे जाते हैं।
(iii) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks)- 1970-80 के दशक के मध्य में ये बैंक अस्तित्व में आये और इनका विशिष्ट उद्देश्य छोटे तथा सीमान्त किसानों, कृषि मजदूरों, दस्तकारों एवं छोटे उच्चमकर्ताओं को उधार एवं जमा की सुविधाएँ उपलब्ध कराना था। इन बैंकों का यह भी दायित्व है कि वे कृषि-व्यापार, वाणिज्य एवं उद्योग का ग्रामीण क्षेत्रों में विकास करें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अनिवार्यतः वाणिज्य बैंक हैं और उनका कार्य क्षेत्र एक जिले तक सीमित रहता है।
2. सहकारी बैंक (Co-operative Banks )- इनका गठन तीन स्तरों (Three-Tier Set-up) वाला है। राज्य सहकारी बैंक सम्बन्धित राज्य की शीर्ष संस्था होती है और केन्द्रीय या जिला सहकारी बैंक जिला स्तर पर तथा प्राथमिक ऋण समितियाँ (Primary Credit Societies) ग्राम स्तर पर कार्य करती हैं। रिजर्व बैंक द्वारा कृषि क्षेत्र के विकास के लिए उपलब्ध करायी गयी राशि राज्य सहकारी बैंकों और केन्द्रीय सहकारी बैंकों के माध्यम से प्राथमिक सहकारी समितियों को प्राप्त होती है।
3. भूमि विकास बैंक (Land Development bank)- ये सहकारी, अर्द्ध-सहकारी या गैर-सहकारी संस्थाएँ हैं जो भूमि को बंधक रखकर भूमि पर स्थायी सुधार करने के दीर्घकालीन ऋण प्रदान करती हैं। भारत में भूमि विकास बैंकों की द्विस्तरीय संरचना पाई जा है। राज्य स्तर पर राज्य भूमि विकास बैंक तथा ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक भूमि विकास बैंक की अधिकांश पूँजी अंशों तथा ऋण-पत्रों से प्राप्त होती है। यह ऋण दीर्घकाल के लिए बहुत कम ब्याज दर पर प्रदान किए जाते हैं।
4. औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank)— विकास बैंक ऐसी विशिष्ट संस्थाएँ होती हैं जो उद्योग एवं आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए न केवल दीर्घकालीन एवं आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध करवाती हैं बल्कि प्रबन्धकीय, तकनीकी, विपणन आदि कार्यों के लिए सुविधा एवं सलाह भी प्रदान करती हैं। भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् अनेक विकास बैंकों की स्थापना की गई है। भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (1948) भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (1955), भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक पूर्व नाम भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक (1985) आदि राष्ट्र स्तर पर तथा राज्य वित्त निगम एवं राज्य औद्योगिक विकास निगम राज्य स्तर पर कार्य कर रहे है।
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