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ट्रेजरी बिल बाजार क्या है? ट्रेजरी बिल बाजार की विशेषताएँ | ट्रेजरी बिल बाजार महत्व | ट्रेजरी बिल बाजार के दोष

ट्रेजरी बिल बाजार
ट्रेजरी बिल बाजार

ट्रेजरी बिल बाजार क्या है?

ट्रेजरी बिल बाजार (Treasury Bill Market)- ट्रेजरी बिल बाजार से आशय उस बाजार से है जहाँ ट्रेजरी बिलों की खरीद व बिक्री होती है।

ट्रेजरी बिल एक वित्तीय उपकरण (Financial Instrument) हैं जो सरकार की तरफ से केन्द्रीय बैंक द्वारा एक प्रतिज्ञा पत्र के रूप में जारी किये जाते हैं।

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ट्रेजरी बिल बाजार की विशेषताएँ (Features)

ट्रेजरी बिलों की विशेषताएँ अग्रलिखित है-

1. वित्तीय उपकरण (Financial Instrument)– यह एक वित्तीय उपकरण है B जोकि सरकार की तरफ से केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी किये जाते हैं।

2. निश्चित प्रतिफल (Assured Yield)– ये अपने अंकित मूल्य से कम मूल्या पर निर्गमित किये जाते हैं परन्तु परिपक्वता पर अंकित मूल्य के बराबर ही भुगतान किया जाता में है।

3. ट्रेजरी बिल दर (Treasury Bill Rate)- जिस दर पर ट्रेजरी बिलों को देश म केन्द्रीय बैंक बेचता है, उसे ट्रेजरी बिल दर कहते हैं।

भारत में 1993 तक ट्रेजरी बिल दर BRi द्वारा निर्धारित की जाती थी परन्तु 1 जनवरी 1993 से ट्रेजरी बिलों को नीलामी (Auction) द्वारा बेचा जाता है और सभी प्रकार के ट्रेज है। बिलों पर ब्याज की दर बाजार शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।

4. ट्रेजरी बिलों के प्रकार (Kinds of Treasury Bill, TB) – भारतवर्ष में वर्तमाकी में चार प्रकार के ट्रेजरी बिलों को निर्गमित किया जाता हैं ये हैं- 14 दिवसीय, 28 दिवसीय, 9 दिवसीय एवं 364 दिवसीय ट्रेजरी बिल।

तदर्थ 91 दिवसीय ट्रेजरी बिल को 1 अप्रैल, 1992 से भारतवर्ष में बन्द कर दिय गया है। 364 दिवसीय TB को भारतवर्ष में 1 अप्रैल, 1992 से शुरू किया गया है। 1 अप्रै 1997 को 91 दिवसीय TB के स्थान पर 14 दिवसीय TB का शुभारम्भ किया गया।

5. ट्रेजरी बिलों के बाजार में भागीदारी (Participants in TB Market)- भारतवर्ष में ट्रेजरी बिलों के बाजार के सौदों के निम्नलिखित भागीदार हैं- 1. भारतीय रिजर्व बैंक 2. भारतीय स्टेट बैंक, 3. वाणिज्य बैंक, 4. राज्य सरकारें एवं अन्य स्वीकृत संस्थाएँ, 5 विकास बैंक, जैसे- IDBI. NABARD LIC UTI आदि, 6. DFHI व STCL, 7. वित्तीय निगा व 8. सामान्य जनता ।

6. तदर्थ व सामान्य ट्रेजरी बिल (Adhoc and Regular or Ordinary treasury Bill)- भारत में ट्रेजरी बिल दो प्रकार के होते थे-तदर्थ (Adhoc) तथा सामान्य (regular or Ordinary) तदर्थ बिलों के प्रयोग की अनुमति केवल राज्य सरकारों, अर्द्धशासकीय विभागों और नि विदशों के केन्द्रीय बैंकों को ही है। इनकी बिक्री सामान्य जनता या बैंकों को नहीं की जाती है और न ही बाजार में इनका क्रय-विक्रय किया जा सकता है। इसके धारक आवश्यकता होने पर सीधे रिजर्व बैंक से इसकी पुनर्कटौती करा लेते हैं। सामान्य ट्रेजरी बिल किसी को भी बेचा जा सकता है और बाजार में इनका क्रय-विक्रय भी किया जा सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक सरकार द्वारा प्रस्तुत सभी ट्रेजरी बिलों को स्वीकार करता है तथा पुनर्कटौती के लिए प्रस्तुत बिलों का भी स्वीकार करता है। इस प्रकार भारत में ट्रेजरी बिल सरकारी ऋण के मौद्रीकरण (Monetisation of Government Debt) का बहुत बड़ा स्रोत बन गया था। 1. अप्रैल, 1997 से तदर्थ ट्रेजरी बिलों की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है और इसके स्थान पर अर्थोपाय अग्रिम व्यवस्था (Ways and Means Advances System) लागू की गयी है जो सरकार के आय व व्यय के अस्थायी असन्तुलन की स्थिति में साधन उपलब्ध कराएगी। इस व्यवस्था के लागू हो जाने के बाद सरकारी ऋणों के मौद्रीकरण पर अंकुश लगने की सम्भावना है।

7. व्यापारिक बिल व ट्रेजरी बिल में अन्तर (Difference between Commercial Bill and Treasury Bill)- यद्यपि ट्रेजरी बिलों व व्यापारिक बिलों की कार्य प्रणाली समान ही हैं लेकिन इनमें अन्तर है। ट्रेजरी बिल केवल भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सरकार के एजेण्ट, के रूप में जारी किये जाते हैं और इस प्रकार सार्वजनिक वित्तीय व्यवस्था का उपकरण (Instrument) हैं, जबकि व्यापारिक बिल निजी क्षेत्र के व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा जारी किये जाते हैं।

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ट्रेजरी बिलों के लाभ व महत्व (Advantages and Importance of Treasury  Bills)-

ट्रेजरी बिलों के लाभों का मोटे तौर से निम्नलिखित दो शीर्षकों में अध्ययन किया जा सकता है :

( अ ) विनियोक्ताओं को लाभ (Advantages to Investors) (i) इनके भुगतान में कोई जोखिम नहीं होता क्योंकि सरकार द्वारा निर्गमित होता है। (iii) इन्हें अल्प सूचना, साख बाजार की दरों में उछालों और ब्याज दरों के उतार-चढ़ावों से सुरक्षा के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। (iii) वाणिज्य बैंकों के पास जब भी फालतू नकदी होती है, वह इन्हें T-bills में निवेश कर कुछ आय कमा सकते हैं। (iv) भुगतानों के घाटों की आपूर्ति सरलता से की जा सकती है। (V) विनियोजकों को इसमें पूर्ण तरलता प्राप्त होती है क्योंकि TB के खरीदार सदैव ही प्रस्तुत होते हैं। भारतवर्ष में DFHI एवं STCI इसे तत्काल खरीदने के लिए तत्पर रहती है। RBI भी इन बिलों को खरीदने के लिए या बट्टा करने के लिए तैयार रहती है। (vi) बैंकों द्वारा SLR अपेक्षाओं म की पूर्ति T-Bill खरीद करके की जा सकती है। T-Bill इस उद्देश्य के लिए सरल एवं लाभप्रद  उपकरण हैं।

सरकार को लाभ (Advantages to Government) 1. T- बिलों की सहायता से अर्थव्यवस्था में पायी जाने वाली अतिरेक तरलता को सरकार आसानी से समेट पाती है।

2. सरकारी आगम एवं खर्चे में उत्पन्न अस्थायी घाटे की भरपाई का यह एक महत्त्वपूर्ण असाधन है।

3. T-बिलों को मौद्रीकृत नहीं किया जा सकता अतः इनसे स्फीतिकारी आशंकाएँ उत्पन्न नहीं होतीं।

ट्रेजरी बिल की कमियाँ (Shortcomings of TB) –

1. कम प्राप्ति दर- ट्रेजरी बिलों पर प्राप्ति दर बहुत कम होती है, जबकि सरकार की दीर्घकालीन प्रतिभूतियों पर अपेक्षाकृत अधिक ब्याज मिलता है। इसी कारण इस वित्तीय उपकरण में वित्तीय निगमों और सामान्य जनता ने ट्रेजरी बिलों में रूचि नहीं दिखाई भारतवर्ष में T- बिलों की कुल बिक्री में से लगभग 90% भाग RBI एवं वाणिज्य बैंकों द्वारा खरीदा जाता है।

2. T बिलों की समस्या- यद्यपि T-बिलों पर निवेशकों को अच्छा प्रतिफल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इनका नीलामी द्वारा विक्रय किया जाता है। परन्तु व्यवहार में T-Bill पर बोली लगाने वालों का स्पष्टतः अभाव रहता है। अतः ट्रेजरी बिलों पर उपयुक्त प्राप्ति नहीं होती है।

3. प्रतिकूल प्रभाव- ट्रेजरी बिलों के लेन-देन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का एक कारण यह भी है कि T-बिलों का सक्रिय आधार नहीं होता। सामान्यतः निवेशक ट्रेजरी बिलों की को उनकी परिपक्वता अवधि तक रखते हैं: फलतः वे प्रचलन में नहीं आ पाते हैं।

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