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भारतीय मुद्रा बाजार के विभिन्न अंग | मुद्रा बाजार विभिन्न प्रकार के हित

भारतीय मुद्रा बाजार के विभिन्न अंग
भारतीय मुद्रा बाजार के विभिन्न अंग

भारतीय मुद्रा बाजार के विभिन्न अंगों का वर्णन कीजिए। अथवा विभिन्न प्रकार के हितों का वर्णन कीजिए।

भारतीय मुद्रा बाजार के अंग- भारतीय मुद्रा बाजार के संगठित क्षेत्रों के अंग में माँग मुद्रा बाजार, राजकोषीय बिल, वाणिज्यिक बिल, अन्तर-निगम निधियाँ, जमा प्रमाण-पत्र, व्यापारिक प्रपत्र, मुद्रा बाजार म्यूचुअल फण्ड और रिपोज हैं। इसके अतिरिक्त कुछ संस्थाएँ हैं जो मुद्रा बाजार के क्रियान्वयन में सहयोग करती हैं, जैसे- भारतीय रिजर्व बैंक, डी.एफ.एच.आई., एस.टी.सी.आई., वित्तीय संस्थाएँ, बैंक, दलाल, प्राथमिक व्यापारी आदि।

1. माँग मुद्रा बाजार- माँग मुद्रा बाजार या अन्तर बैंक माँग मुद्रा बाजार संगठित मुद्रा बाजार का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। यह अल्प अवधि कोषों के त्वरित स्रोत के रूप में कार्य करता है। माँग मुद्रा बाजार में कोषों के मुख्य आपूर्तिकर्ता भारतीय स्टेट बैंक, जीवन बीमा निगम, सामान्य बीमा कम्पनियाँ, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक और नाबार्ड हैं तथा मुख्य उधारकर्त्ता अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक हैं क्योंकि अधिकांश भागीदार बैंक हैं, इसलिए गये इसे अन्तर बैंक माँग मुद्रा बाजार कहा जाता है। वाणिज्यिक बैंक अपनी अतिरिक्त कोषों को अल्प अवधि के लिए दलालों को उधार देते हैं। बिल दलाल इसके बदले में उन पर बट्टा काटने हैं अथवा बिल खरीदते हैं। ऐसे कोष माँग दर पर उधार लिये जाते हैं जो बैंक द्वारा उधार दिये कोषों की मात्रा के अनुसार अलग-अलग होती हैं। जब दलालों को ऋण का तुरन्त भुगतान करने को कहा जाता है तो वह जीवन बीमा निगम, सामान्य बीमा कम्पनियों व यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया से उधार लेते हैं।

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2. अन्तर बैंक भागीदारी- बैंकिंग प्रणाली में अल्पावधि तरलता के समायोजन को सरल बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने अन्तर बैंक भागीदारी एक नया उपकरण शुरू किया है। अन्तर बैंक भागीदारी दो प्रकार की होती है— प्रथम, जोखिम साझेदारी तथा दूसरी, बिना जोखिम साझेदारी। जोखिम साझेदारी आधार पर अन्तर बैंक भागीदारी 91 से 180 दिन की हो सकती है। इसका ब्याज जारी करने वाले बैंक और भागीदारी बैंक के बीच निश्चित किया जाता है। अन्तर बैंक भागीदारी की अवधि बिना जोखिम के अधिकतम 90 दिन की हो सकती है और ब्याज सम्बन्धित बैंकों के मध्य निश्चित किया जाता है।

3. वाणिज्यिक बिल या हुण्डी बाजार- भारतीय रिजर्व बैंक ने 1952 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को विनिमय विपत्रों और बचत पत्रों के बदले 90 दिन का वित्त प्रदान करना। प्रारम्भ किया। इससे भी बिल बाजार विकसित नहीं हुआ। नरसिंहम समिति की सिफारिशों पर रिजर्व बैंक ने बिल पुनर्भुगतान योजना शुरू की। इसके अनुसार लाइसेन्स प्राप्त सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक वस्तुओं के विक्रय या प्रेषण से प्राप्त होने वाले वास्तविक व्यापिक बिलों को रिजर्व बैंक से पुनः भुना सकते हैं। इन बैंकों के अलावा कुछ अन्य वित्तीय संस्थाएँ, जैसे- जीवन बीमा निगम, सामान्य बीमा कम्पनी, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया, भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, भारतीय वित्त निगम, आयात-निर्यात बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया आदि तथा कुछ चुने हुए शहरी सहकारी बैंक इस योजना से शामिल हैं।

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4. जमा प्रमाण पत्र- भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमा प्रमाण पत्रों को निर्गमित करने का उद्देश्य मुद्रा बाजार उपकरणों के क्षेत्र का विस्तार करना एवं निवेशकों का अपने अल्पावधि अतिरिक्त कोषों को निवेश करने में अधिक परेशानी न हो। जमा प्रमाण-पत्र बैंक द्वारा निवेशकों को जारी किये जाते हैं। जमा प्रमाण-पत्र अंकित मूल्य पर भुनाकर भी जारी किये जा सकते हैं व इसकी दर स्वेच्छा से निर्धारित की जा सकती है। जमा प्रमाण-पत्रों को पृष्ठांकन द्वारा स्वेच्छापूर्वक हस्तान्तरित और वितरित किया जा सकता है।

5. खजाना बिल बाजार- खजाना बिल बाजार अल्पाविधि मौद्रिक उपकरण है जो भारत सरकार द्वारा बट्टे पर और निश्चित अवधि के लिए जारी किये जाते हैं। ये 91 दिन, 128 दिन व 364 दिन की अवधि के होते है जो अल्पवधि के लिए नहीं है, लेकिन इनकी नीलामी मुद्रा बाजार में होती रहती है। वर्तमान में 14 दिन व 28 दिन की अवधि के खजाना बिल भी जारी किये गये है जिनकी नीलामी भी होती है। सभी नीलामियों के सम्बन्ध में राशियों को अधिसूचित किया जाता है।

6. वाणिज्यिक पत्र – वाणिज्यिक पत्र एक अल्प अवधि मुद्रा बाजार का महत्वपूर्ण अंग है। यह एक गैर-प्रतिभूति स्वरूप का वचन पत्र है। यह निर्गमनकर्त्ताओं के द्वारा निवेशकों को प्रत्यक्ष रूप से बेचा जा सकता है अथवा मध्यस्थ बैंक या प्रतिभूति के व्यापारी द्वारा रखा जा सकता है। यह किसी विशिष्ट विनिमय से नहीं बँधा है। इस पर कोई समर्थक ऋणाधार नहीं होता। है। संक्षेप में, वाणिज्यिक पत्र का उद्देश्य उच्चस्तरीय कम्पनी द्वारा उधार लेने वालों का समर्थन करना है जिससे वह अपने अल्पावधि ऋण का विभिन्नीकरण कर सकें तथा निवेशकों को उनकी अल्पावधि अतिरिक्त कोषों के विस्तार के लिए एक अतिरिक्त साधन उपलब्ध करा सकें। रिजर्व बैंक द्वारा भी वाणिज्यिक पत्र जारी करने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किये गये हैं।

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7. पुनर्खरीद नीलामी- रिजर्व बैंक ने केन्द्रीय सरकार की प्रतिभूतियों की पुनर्खरीद नीलामी प्रारम्भ की जिससे माँग मुद्रा बाजार में ब्याज दरों को समान किया जा सके। पुनर्खरीद नीलामी एक प्रतिभूति की बिक्री तथा उसके पश्चात् पुनर्खरीद का एक समझौता होता है। यह प्रतिभूति के धारक को प्रतिभूति को जमानत के रूप में रखकर नकदी प्राप्त करने का एक उपाय है। इस तरह की नीलामी भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर की जाती है।

8. भारतीय मितिकाटा व वित्त गृह- भारतीय मितिकाटा और वित्त गृह को संसाधन एवं भारतीय रिजर्व बैंक की वित्तीय सहायता से स्थापित किया गया। इसका उद्देश्य सम्पूर्ण वित्तीय व्यवस्था को मुद्रा बाजार के अन्तर्गत लाना था। इन वित्तीय संस्थानों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, विदेशी बैंक, सहकारी एवं राज्य सहकारी बैंक, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थाएँ, सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र की गैर-वित्तीय संस्थाएँ शामिल हैं।

9. मुद्रा बाजार पारस्परिक कोष- रिजर्व बैंक ने निजी क्षेत्र को मुद्रा बाजार पारस्परिक कोष की स्थापना करने की स्वीकृत दी है। ये कोष जुटाये गये संसाधनों की माँग, मुद्रा, जमा प्रमाण पत्रों, वाणिज्यिक पत्रों, वास्तविक व्यापार/वाणिज्यिक लेन-देन में होने वाले वाणिज्यिक बिलों और खजाना बिलों में निवेश कर सकती हैं।

10. भारतीय प्रतिभूति व्यापार निगम- भारतीय प्रतिभूति व्यापार निगम को स्थापित करने का उद्देश्य सरकारी प्रतिभूतियों और खजाना बिलों में द्वितीयक बाजार को विकसित करना है। यह सरकारी प्रतिभूतियों और खजाना बिलों में तत्काल वायदा लेन-देन कर सकता है। भारतीय मिमिकाटा एवं वित्त गृह की तरह ही यह माँग मुद्रा बाजार से उधार लेता व देता है। यह सरकारी प्रतिभूतियों का प्राथमिक व्यापारी है।

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