वित्तीय बाजार क्या है?
वित्तीय बाजार (Financial Markets)- वित्तीय बाजार किसी स्थान विशेष पर संगठित नहीं होता बल्कि इसका सम्बन्ध उन समस्त क्षेत्रों से है जहाँ वित्तीय परिसम्पत्तियों (Financial Assets) का कारोबार होता है।
वित्तीय बाजार की संस्थाएँ दो प्रकार की होती हैं- (अ) निक्षेपी संस्थाएँ (Depositary Institutions) जो जमा को स्वीकार करती हैं और साख उपलब्ध कराती हैं। प्रमुख निक्षेपी संस्थाएँ हैं- 1. वणिज्य बैंक, 2. म्युचुअल बचत बैंक, 3. बचत और ऋण संघ, 4. सहकारी साख संघ आदि। (ब) गैर-निक्षेपी संस्थाएँ (Non-depositary Institutions)- ये संस्थाएँ जोखिम के विरुद्ध बीमा द्वारा वित्तीय बाजार में कार्य करती हैं।
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वित्तीय बाजार का वर्गीकरण (Classification of financial Market)
वित्तीय बाजार को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है जैसा कि चार्ट में दर्शाया गया है। (i) गैर संगठित वित्तीय बाजार (Unorganised Financial Market) एवं (ii) संगठित वित्तीय बाजार (Organised Financial Market)
(i) गैर-संगठित वित्तीय बाजार (Unorganised Financial Market)- गैर-संगठित बाजार को अनौपचारिक (Informal) बाजार के रूप में भी जाना जाता है। इस वित्तीय बाजार की कार्यप्रणाली अव्यवस्थित होती है और बहुत विविधता पायी जाती है। वित्तीय परिसम्पत्तियों एवं ऋण पर ली जाने वाली ब्याज दर के सम्बन्ध में कोई एक समान नीति नहीं होती है। भारतवर्ष में इस क्षेत्र में देशी बैंकर्स, साहूकार, महाजन आदि शामिल हैं। वित्तीय बाजार के इस बाजार अंग पर कोई विनिमय तथा नियंत्रण नहीं होता है।
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(ii) संगठित वित्तीय बाजार (Organised Financial Market)- वित्तीय बाजार के इस अंग में उन वित्तीय संस्थाओं को शामिल किया जाता है जो आधुनिक एवं यूरोपीय शैली में कार्य करते हैं और उन पर मौद्रिक अधिकारियों का नियन्त्रण रहता है।
संगठित वित्तीय बाजार को दो भागों में बाँटा जा सकता है। (अ) मुद्रा बाजार तथा (ब) पूँजी बाजार।
(अ) मुद्रा बाजार (Money market)- मुद्रा बाजार में अल्पकालीन निधियों (Funds) का लेन-देन होता है। अल्पकाल से अभिप्राय सामान्यतः एक वर्ष तक है।
भारतवर्ष में संगठित मुद्रा बाजार में भारतीय रिजर्व बैंक, सभी अनुसूचित बैंक, सहकारी बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम, भारतीय साधारण बीमा निगम और भारतीय यूनिट ट्रस्ट जैसी वित्तीय संस्थाएँ तथा विदेशी विनिमय बैंक, भारतीय मितीकाटा और वित्त गृह लि. (DFHI) और
भारतीय प्रतिभूति व्यापार निगम (STCI) शामिल हैं। मुद्रा बाजार में विभिन्न प्रकार के उपकरणों का लेन-देन करने वाली विविध प्रकार को
संस्थाएँ होती हैं। इसलिए यह कई उप-बाजारों (Sub-markets) के माध्यम से कार्य करती हैं। इन उप-बाजारों को मुद्रा बाजार के संघटक (Components) भी कहते है।
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मुद्रा बाजार के प्रमुख संघटक (उप-बाजार) निम्नलिखित है : (1) अल्प सूचना साख बाजार (Call Money Market)- इस बाजार में ऋण की परिपक्वता अवधि 1 दिन से 14 दिन होती है। यह मुद्रा बाजार का सबसे संवेदनशील बाजार है।
(ii) बिल बाजार (Bill Market)- इस बाजार में अल्पकालीन विनिमय बिलों की कटौती करके ऋण उपलब्ध कराया जाता है। भारतवर्ष में अभी यह बाजार अधिक विकसित नहीं हुआ है।
(iii) ट्रेजरी बिल बाजार (Tresury Bill Market) इस बाजार में ट्रेजरी बिलों की सौदेबाजी होती है। ट्रेजरी बिल सरकार की तरफ से केन्द्रीय बैंक द्वारा एक प्रतिज्ञा पत्र के रूप में प्रमाणित होता है।
(ब) पूँजी बाजार (Capital Market)- पूँजी बाजार में विभिन्न संस्थाएँ होती हैं। जो अनेक प्रकार की निजी बचतों को जुटाकर दीर्घकालीन निधियाँ प्रदान करती हैं। भारत में पूँजी बाजार की मुख्य संस्थाएँ हैं दि इण्डस्ट्रियल फाइनेंस कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया लि. (आई.एफ.सी. आई.) भारतीय औद्योगिक साख एवं निवेश निगम लि. (आई.सी.आई.सी.आई.) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (आई. डी. बी. आई.), भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक (आई. आर. बी. आई.) जीवन बीमा निगम (एल.आई.सी) साधारण बीमा निगम (जी. आई.सी.) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), राज्य वित्तीय संस्थाएँ, राज्य औद्योगिक विकास निगम, वाणिज्यिक बैंक, मर्चेण्ट बैंकर्स, लीजिंग कम्पनियाँ, जोखिम पूँजी कम्पनियाँ, म्यूचुअल फंड्स, आवासीय वित्त बैंक आदि। पूँजी बाजार का संगठित क्षेत्र भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
पूँजी बाजार को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है।
(1) श्रेष्ठ प्रतिभूति बाजार (Gilt-edged Securities market)- यह सरकारी प्रतिभूतियों का बाजार है। केन्द्र और राज्य सरकारें तथा स्थानीय निकाय लोगो, बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को दीर्घकालीन बॉण्ड्स अथवा प्रतिभूतियाँ बेचते हैं। इन बॉण्डों को केन्द्रीय बैंक का ..समर्थन प्राप्त होता है। इन बॉण्डों की ब्याज दर कम्पनियों द्वारा जारी बॉण्डों की दर से कम होती है। यह पूरी तरह से सुरक्षित वित्तीय उपकरण होता है इसलिए उसे स्वर्ण रेखांकित प्रतिभूति भी कहा जाता है।
( 2 ) औद्योगिक प्रतिभूति बाजार (Industry Security Market)- यह बाजार वाणिज्य और औद्योगिक कम्पनियों के विभिन्न नये और पुराने शेयर तथा ऋण-पत्र (डिबेंचर) का व्यापार करता है। यह प्राथमिक बाजार और द्वितीयक बाजार में विभाजित है।
(i) प्राथमिक अथवा नये इश्युओं का बाजार (The Primary or New Issue Market) – प्राथमिक पूँजी-बाजार पब्लिक लिमिटेड कम्पनियों द्वारा नये इश्यू लाने के लिए होता है। इसक अन्तर्गता शेयर, पूर्णतया परिवर्तनीय ऋण-पत्र (डिबेंचर), अपिवर्तनीय ऋण-पत्र (डिबेंचर), शेयर और ऋण-पत्रों (डिबेंचरों) के अधिमान इश्यू तथा सममूल्य या प्रीमियम पर सीधे ही जनसाधारण के लिए होते है।
(ii) द्वितीयक अथवा पुराने इश्यूओं का बाजार (Secondary or Old Issues Market)–इस बााजर में पुराने अंश पत्रों एवं ऋण-पत्रों का क्रय-विक्रय किया जाता है। इस बाजार को पुराना निर्गम बाजार (Old Issues Market) भी कहते हैं।
पूँजी बाजार ऋणियों तथा निधि विनियोजकों (Funds Investors) की आवश्यश्कताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न सरकारी प्रतिभूतियाँ कारपोरेट प्रतिभूतियाँ: जैसे-अंश पत्र, ऋण पत्र, बॉण्डस आदि उपकरणों का विनिमय करता है। ये उपकरण अपने स्वरूप, परिपक्वता, ब्याज दर, लाभांश, देयताओं स्वामित्व, मतदान अधिकार आदि में भिन्न होते हैं।
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