वित्तीय मध्यस्थ का अर्थ | Financial Intermediary in Hindi
वित्तीय मध्यस्थ का अर्थ (Meaning of Financial Intermediary)- वित्तीय मध्यस्थ वित्तीय संस्थाएँ होती हैं जो अन्तिम ऋणदाताओं (बचतकर्त्ता ) और अन्तिम उधारकर्त्ताओं (विनियोजकों) के बीच मध्यस्थता करती हैं।
वित्तीय संस्थाओं से हमारा तात्पर्य वाणिज्य बैंक, सहकारी साख समितियाँ, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, म्युचुअल फण्ड्स, बीमा कम्पनियाँ, मर्चेण्ट बैंक, यूनिट ट्रस्ट तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से है।
वित्तीय मध्यस्थ प्रतिभूतियों के व्यापारी होते हैं। वित्तीय मध्यस्थ बचतकर्ताओं से कोष एकत्र करने के लिए अप्रत्यक्ष प्रतिभूतियाँ; जैसे-सावधिक जमा बीमा पॉलिसियाँ आदि जारी करते हैं और बेचते हैं। अन्ततः उधार लेने वालों को कोष उधार देने के लिए वे प्राथमिक प्रतिभूतियाँः जैसे-शेयर, बॉण्ड, सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदते हैं। संक्षेप में, वित्तीय मध्यस्थ प्राथमिक प्रतिभूतियाँ खरीदकर अपनी द्वितीयक प्रतिभूतियाँ बेचते हैं।
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वित्तीय मध्यस्थ की विशेषताएँ (FEATURES OF FINANCIAL INTERMEDIARIES, FIs)
वित्तीय मध्यस्थ की निम्नलिखित विशेषताएँ होती है-
1. वित्तीय संस्थाएँ (Financial Institutions) – वित्तीय मध्यस्थ वित्तीय संस्थाएँ जैसे-वाणिज्य बैंक, सहकारी साख समितियाँ, मर्चेण्ट बैंक आदि होती हैं।
2. प्रतिभूतियों के व्यापारी (Securities Traders)- FIs उधार लेने वालों की प्राथमिक प्रतिभूतियाँ ऋण और जमाएँ लेते हैं और आगे उधारयताओं को अपनी अप्रत्यक्ष प्रतिभूतियों और माँग जमाएँ, प्रदान करते हैं। अर्थात् ये द्वितीयक प्रतिभूतियों का निर्माण करते हैं।
3. ऋण योग्य कोषों का सृजन (Creation of Loanable Funds)- ये ऋणियों तथा ऋणदाताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी होते हैं और ऋण योग्य कोषों का सृजन करते हैं।
4. तरलता (Luquidity)- वित्तीय मध्यस्थ तरलता उपलब्ध कराते हैं क्योंकि वे किसी परिसम्पत्ति (प्रतिभूति) को मुद्रा के रूप में बिना उसके मूल्य में गिरावट के सरलता से नकदी में परिवर्तित करते हैं।
5. नई परिसम्पत्तियाँ और देयताएँ उत्पन्न करना (Create New Assets and Liabilities)– गार्डनर एक्ले के अनुसार अन्तिम उधारदाताओं और प्रत्यक्ष विनियोजकों के बीच मध्यस्थता करने में वित्तीय मध्यस्थ बचतकताओं को उपलब्ध वितीय परिसम्पत्तियों के स्टॉक में बहुत बढ़ोतरी करते है और प्रत्येक अतिरिक्त परिसम्पत्ति के मुकाबले बराबर की नई वित्तीय देयता भी उत्पन्न करते हैं।
6. प्रकार (Kinds) वित्तीय मध्यस्थ के दो प्रकार होते है- (अ) बैंक वित्तीय मध्यस्थ (BFIs) एवं (ब) गैर-बैंक वित्तीय मध्यस्थ (NBFIs) ।
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वित्तीय मध्यस्थ की कार्य प्रणाली (WORKING OF FINANCIAL INTERMEDIARIES)
वित्तीय मध्यस्थ जिनमें वाणिज्य बैंक, सहकारी बैंक, ऋण समितियाँ, बीमा कम्पनियाँ, और अन्य वित्तीय संस्थाएँ शामिल हैं, अन्तिम ऋणदाता, जो बचतकर्ता है। और अन्तिम उधारकर्त्ता जो विनियोजक (Investors) हैं, के बीच मध्यस्था, करते हैं। प्रमुख कार्य- वित्तीय मध्यस्थता का प्रमुख कार्य कम्पनियों द्वारा जारी किये गये प्राथमिक प्रतिभूतियों (Primary or Direct Securities) को द्वितीयक प्रतिभूतियों (Secondary Securities) में बदलना है। इस तथ्य को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है।
वित्तीय मध्यस्था बचतकर्ता से कोष या बचतें प्राप्त करते हैं। बचतकर्त्ताओं से कोष एकत्र करने के लिए ये मध्यस्थ अप्रत्यक्ष या द्वितीयक प्रतिभूतियाँ जारी करते हैं या बेचते हैं। द्वितीयक प्रतिभूतियों में वाणिज्य बैंक की माँग जमा और समय बीमा पालिसियाँ आदि होती हैं। इस प्रकार मध्यस्थता की प्रक्रिया में बचतकर्त्ता (अन्तिम ऋणदाता) शेयर, डिबेन्चर बॉण्ड प्रतिभूतियाँ प्रत्यक्ष रूप से खरीदने के स्थान पर वित्तीय मध्यस्थों द्वारा जारी किये गये द्वितीयक प्रतिभूतियों को खरीदती हैं। जैसे भारतवर्ष में बचतकर्त्ता द्वारा यू.टी.आई 64 को क्रय करना द्वितीयक प्रतिभूति को क्रय करना कहलायेगा।
वित्तीय मध्यस्थ इस प्रकार एकत्रित कोष का उपयोग उधार देने के लिए उपयोग में लाते हैं ये मध्यस्थ उधारकर्त्ता (निवेशकों) को कोष उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उनके द्वारा जारी की गई प्राथमिक प्रतिभूतियों ( Primary Securities) को खरीदते हैं। प्राथमिक प्रतिभूतियों के अन्तर्गत सरकारी प्रतिभूतियाँ, बॉण्ड्स, शेयर, डिबेन्चर आदि आते हैं।
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उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वित्तीय मध्यस्थ ऐसी वित्तीय फर्मे हैं जो द्वितीयक वित्तीय परिसम्पत्तियाँ बेचती हैं और प्राथमिक वित्तीय परिसम्पत्तियाँ खरीदती हैं उदाहरण के लिए, बीमा कम्पनियाँ बीमा पॉलिसी बेचती हैं और सरकारी बॉण्ड पत्र खरीदती हैं इस प्रकार वित्तीय मध्यस्थ अन्तिम उधारदाताओं और अन्तिम उधार लेने वालों के बीच अप्रत्यक्ष साधन का काम करती हैं।
गुलें (Gurley) तथा शॉ (Shaw) ने वित्तीय मध्यस्थ को इस प्रकार परिभाषित किया है, “अन्तिम उधार लेने वालों से प्राथमिक प्रतिभूतियाँ खरीदना और अन्तिम उधारदाताओं की विनियोग सूचियों क के लिए अप्रत्यक्ष ऋण जारी करना।”
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