भारत में वित्त व्यवस्था (Financial system in India)
प्रारम्भिक – भारत में वित्त व्यवस्था के तीन प्रमुख अंग हैं (अ) भारत में केन्द्रिय बैंक-रिजर्व बैंक आफ इण्डिया ।
(ब) भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ।
(स) भारत में विकास बैंकिंग ।
(अ) भारत में रिजर्व बैंक
इसकी स्थापना सन् 1935 में की गयी थी। इसकी कुल पूँजी 5 करोड़ रूपये थी जो 100-100 रूपये वाले 5 अंशों में विभाजित थी। इसका प्रबन्ध एवं संचालन एक केन्द्रीय संचालन बोर्ड द्वारा किया जाता है, जिसमें कुल 20 सदस्य होते हैं। इसका प्रधान कार्यालय मुम्बई में है।
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केन्द्रीय बैंक के कार्य (Function of Central Bank)
भारत में रिजर्व बैंक, केन्द्रीय बैंक है अत: केन्द्रीय बैंक के रूप में निम्नांकित कार्य करता है।
(1) नोट-निर्गमन
(2) सरकारी बैंकर के रूप में कार्य करना-
(a) सरकार के आदेश पर विदेशों में रकम भेजना।
(b) सरकार कोष का स्थानान्तरण करना।
(c) सरकारी भुगतान लेना तथा सरकार की ओर से भुगतान करना।
(d) सरकार के लिए विदेशी विनिमय की व्यवस्था करना ।
(e) सरकार के लिए सार्वजनिक ऋणों की व्यवस्था कना।
(f) राज्य सरकारों को ऋण देना।
(g) सरकार के आर्थिक सलाहकार के रूप में कार्य करना।
(h) सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करना।
(3) बैंको के बैंक के रूप में कार्य करना ।
(a) स्थापना सम्बन्धी लाइसेन्स प्राप्त करना।
(b) प्रबन्ध एवं संचालन ।
(c) शाखा विस्तार तथा शाखा स्थानान्तरण की अनुमति प्रदान करना
(d) निरीक्षण करना।
(e) अन्तिम खातों की जाँच-पड़ताल करना ।
(f) तरल कोष रखना।
(g) अन्तिम ऋणदाता के रूप में कार्य करना ।
(h) बैंकों के समाशोध गृह के रूप में कार्य करना
(i) समापन एवं विलीनीकरण सम्बन्धी कार्य।
(j) बैंकों के विकास के लिए बैंकिंग विकास विभाग की स्थापना ।
(4) साख नियन्त्रण ।
(5) विदेशी विनिमय व्यवस्था ।
(6) भारतीय अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित सभी आँकड़ों का संकलन एवं प्रकाशन ।
(ब) भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक
भारत में बैंक सार्वजनिक क्षेत्र में निम्न कार्य करते है ।
(a) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया।
(b) राष्ट्रीयकृत तथा अन्य व्यापारिक बैंक ।
(c) सहकारी तथा भूमि विकास बैंक ।
(d) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ।
(e) कृषि एवं ग्रामीण विकास का राष्ट्रीय बैंक ।
(स) भारत में विनियोग एवं विकास
(a) भारतीय पूँजी की संकोचशीलता।
(b) सन्तुलित औद्योगिक विकास ।
(c) स्वस्थ पूँजी बाजार का विकास।
(d) परियोजना नियोजन ।
(e) लघु उद्योगों का विकास करने के लिए।
(f) व्यापारिक बैंकों की असमर्थता ।
(g) नियोजित अर्थव्यवस्था में निर्धारित औद्योगिक लक्ष्यों की प्राप्ति।
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