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भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के कारकों एवं असमानता दूर करने हेतु सुझाव एवं प्रयासों का वर्णन कीजिये।

भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता
भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता

भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के कारक

भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के कारक – भारतीय समाज की प्रमुख विशेषता के रूप में सामाजिक असमानता को देखा जा सकता है। समाज में जातिगत आधार पर समाज का विभाजन है जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य को समाज में सम्मानपूर्ण स्थापन प्राप्त है। वहीं पर शूद्र तथा निम्न जाति के लोगों को हेय दृष्टि से देखकर उन्हें समाज में उच्च वर्गों के समान सम्मान तथा अधिकार प्राप्त नहीं है। समाज की जातिगत असमानता के आधार पर ही श्रम विभाजन है। साथ ही साथ उच्च जाति के लोग अपने से निम्न जाति के लोगों या परिवारों से सामाजिक सम्बन्ध (विवाह आदि) नहीं रखते, जबकि समाज में सौहार्द्र व शान्ति तभी सम्भव है जब जातिगत आधार पर सम्बन्ध न हों।

जब से सभ्यता का विकास हुआ है तभी से समाज में उपयोग की वस्तुओं का आदान प्रदान आर्थिक रूप से होता रहा है। आर्थिक व्यवस्था के आधार पर ही समाज व्यक्ति में अमुक या समाज के वर्ग की स्थिति का निर्धारण होता है। क्योंकि मनुष्य अपने जीवन की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। जातिगत आधार पर बँटे हुए समाज में (सामन्ती व्यवस्था वाले समाज) में उत्पादन के तमाम संसाधनों पर उच्च जाति के व्यक्तियों जैसे क्षत्रियों तथा वैश्यों का अधिकार था जिस कारण समाज का निम्न वर्ग हमेशा से ही श्रमिक वर्ग का हिस्सा रहा है तथा इस आर्थिक असमानता के कारण से समाज द्वारा शोषित तथा संसाधनों की सुविधाओं से वंचित रहा है।

शिक्षा में असमानता-

शैक्षिक असमानता के प्रायः अग्रलिखित कारक बताये गये है-

(1) निर्धनता – धन का अभाव होने की वजह से कार्यक्रमों का सुचारु रूप से न चलना।

(2) वातावरण – बालकों के परिवारों में भिन्न जीवन स्तर होता है। लड़कियों से भेदभाव की स्थिति, नगरीय व ग्रामीण वातावरण शिक्षा में असमानता के कारक बनते हैं।

(3) सामाजिक स्तरीकरण भारतीय समाज बेहद स्तरीकृत है। जाति प्रणाली इसका ढाँचा है। यह असमानता का कारक है।

(4) स्तर में अन्तर – विभिन्न स्कूलों से आये बच्चों की शैक्षिक उपलब्धियों में अन्तर होता है और मूल्यांकन के समान स्तर का पता नहीं चलता। सबके मापदण्ड अलग हैं।

(5) अवसर का अभाव-जैसे किसी क्षेत्र में विद्यालय या कॉलेज का न होना।

असमानता दूर करने हेतु सुझाव तथा प्रयास-

शैक्षिक अवसरों की समानता उपलब्ध कराने हेतु सरकार ने अनेक प्रयास किये हैं। उनमें कुछ योजनाएं, जो प्रमुख हैं तथा जिनमें किये गये प्रयासों से वांछित सफलता भी मिली है, निम्न है-

(1) जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम – 1986 की नई शिक्षा नीति तथा 1992 में उसमें किये संशोधन के अन्तर्गत बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए केन्द्र सरकार ने जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम का प्रयोजन किया। इस समय यह कार्यक्रम 9 राज्यों के 129 जिलों में चलाया जा रहा है।

(2) सर्व शिक्षा अभियान – सर्वशिक्षा अभियान का प्रारम्भ 1998 में आयोजित राज्य शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन की सिफारिशों का परिणाम है। यह केन्द्र व राज्य सरकारों का साझा कार्यक्रम है, जिसमें केन्द्र व राज्यों की भागीदारी का अनुपात नव योजना में 85:15 दसवीं में 75:25 तथा इसके बाद 50:50 रखा गया।

(3) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड- राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम 1986 के अन्तर्गत 1987-88 में शिक्षा के सर्वव्यापीकरण के लिए ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना लागू की गई। इसका मुख्य उद्देश्य देश के प्राइमरी स्कूलों में उपलब्ध संसाधनों में सुधार करना था। इस योजना को 2002-03 में सर्वशिक्षा अभियान के अंतर अंतर्गत शामिल किया गया है।

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