भारतीय जाति व्यवस्था वरदान या अभिशाप
भारतीय जाति व्यवस्था वरदान या अभिशाप-जाति व्यवस्था एक अभिशाप है, जो हमारे समाज को डसती जा रही और समाज के विकास को भी अवरोधित कर रही है। इन सामाजिक अवरोधों को हम निम्नलिखित तथ्यों द्वारा स्पष्टतः समझ सकते हैं-
1. देश की एकता में बाधा – राष्ट्रीय एकता समय की मांग है किन्तु आज जातिवाद राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे अधिक बाधा उपस्थित कर रहा है। हर जाति अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु सही एवं गलत तरीकों को अपना कर राष्ट्रीय एकता एवं हितों को ठुकरा रही है।
2. प्रजातन्त्र के लिये घातक – जातिवाद स्वस्थ प्रजातंत्र के लिये घातक है। प्रजातंत्र समानता एवं बन्धुत्व की भावना में विश्वास करता है जबकि जातिवादी जाति के निजी स्वार्थों को प्राथमिकता देता है। आज राजनैतिक दलों के निर्माण एवं निर्वाचन में जातिवाद का नग्न रूप दिखलाई पड़ता है जिससे स्वच्छ, सुन्दर एवं लोक हितकारी प्रशासन का निर्माण नहीं हो पाता। यह सत्य है कि परम्परात्मक जातिप्रथा अब क्रमशः विघटित हो रही है किन्तु उससे भी अधिक है खतरनाक चीज जातिवाद का विकास जोर पकड़ रहा है जिसके कारण भारत में नाम का प्रजातंत्र दिखाई पड़ता है।
3. भारतीय संविधान की अवहेलना- भारत स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात एक धर्म निरपेक्ष गणराज्य बना। भारतीय संविधान जाति, लिंग, गोत्र आदि में विश्वास न करके समानता पर आधारित है। जातिवाद के कुप्रभाव से उपरोक्त सिद्धान्तों का सही अर्थों में पालन नहीं हो पाता।
4. पक्षपात एवं भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन- जातिवाद ने आर्थिक, राजनैतिक शिक्षा एव धर्म के क्षेत्र में पक्षपात एवं भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देकर हमारी भावनाओं को अपनी जाति के स्वार्थों तक ही संकुचित कर दिया है। चाहे शिक्षण संस्थायें हों अथवा सरकारी या गैर सरकारी कार्यालय, प्रत्येक जगह जातीय आधार पर पक्षपात की भावना देखने को मिलती है।
5. नैतिक पतन- जातिवाद ने मानवता तथा नैतिकता की उच्च मान्यताओं को पतन के गर्त में ढकल दिया है। आज व्यक्ति स्वार्थी, लोभी, लालची एवं छुद्र भावना का शिकार होकर नैतिकता से दूर हो रहा है। वसुधैव कुटुम्बकम् की महान भावना में विश्वास करने वाला व्यक्ति आज व्यक्तिवाद के अन्दर सिमट कर अनैतिकता को गले लगा रहा है।
6. औद्योगिक कुशलता में बाधा आज जातिवाद के कुप्रभाव के कारण अशुकशल किन्तु अपनी जाति के व्यक्तियों को उच्च स्थानों पर नियुक्त कर औद्योगिक कुशलता का गला घोटा जा रहा है।
7. नैराश्य एवं मानसिक तनाव- जातीय आधार पर अयोग्य व्यक्तियों का चयन होने के कारण अधिक योग्य एवं सक्षम युवकों को सेवा एवं व्यापार में अवसर नहीं मिलता तो उनमें निराशा एवं कुण्ठा का भाव पैदा होता है जो कि कभी-कभी ध्वसांत्मक रूप लेकर बड़ा नुकसान पहुंचाता है। आज युवक वर्ग में तनाव का एक प्रमुख करण जातिवाद भी है।
8. अपराधी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन – जातिवाद कभी-कभी आपसी मारपीट, संघर्षों एवं बलवों का रूप भी ले लेता है। निम्न वर्ग में संघर्ष इसका ज्वलंत उदाहरण है। दहेज़ जैसे दानव से लड़ने के लिये कितने ही लोगों को अनैतिकता एवं अपराधों, जैसे घूस लेना एवं गबन आदि तक का सहारा लेना पड़ता है।
9. धर्म परिवर्तन में प्रेरक- अपनी जाति को कमजोर पाकर या अपनी जाति का अन्य जातियों द्वारा शोषण किया जाना, सदस्यों को धर्म परिवर्तन तक कर डालन की प्रेरणा देता है। यह जातीय भावना का दुष्परिणाम है कि लाखों भारतीयों ने ईसाई, मुसलमान धर्म स्वीकार कर लिया।
10. विदेशों से सम्पर्क में बाधक- जातिवाद की रूढ़िवादी एवं सनानत भावना हमें बाह्य सम्पर्क करने को निरुत्साहित करती है- आज की महती आवश्यकता है कि हम विज्ञान एवं तकनीक के प्रसार हेतु अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का सहारा लें।
11. विदेशी दासता- भारत सदियों तक विदेशियों का गुलाम रहा है। इस दासता का एक प्रमुख कारण केवल कुछ जातियों के द्वारा ही देश की रक्षा का भार सम्हालना था जिससे बाह्य शक्तियों के सामने उन्हें अपने मुंह की खानी पड़ी। यदि सभी जातियों के लोग संगठित होकर लोहा लेते तो उन्हें सदियों तक दास न रहना पड़ता।
12. पारिवारिक तनाव- जातिवाद सजातीय विवाहों को ही प्राथमिकता देता है। फलतः प्रायः ऐसी शादियां भी हो जाती हैं जहां लड़का एवं लड़की की रूचि शिक्षा में अन्तर के कारण पारिवारिक कलह होती है। इसके विपरीत अन्तर्जातीय एवं प्रेम विवाह करने वाले नवयुवकों के भी अपने परिवार से सम्बन्ध तनावपूर्ण हो जाते हैं।
13. सामाजिक गतिशीलता में बाधक- औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के बढ़ते चरणों के कारण सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि का होना स्वाभाविक है। वह सामाजिक प्रगति का द्योतक है क्योंकि गतिशीलता सभी को अपनी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में परिवर्तन करने का समान अवसर प्रदान करती है। व्यक्ति को उसकी कुशलता, योग्यता एवं क्षमता का सही प्रदर्शन करने का अवसर मिलता है। इससे आपसी फूट, विद्वेष एवं सामाजिक दूरी एवं तनाव की मात्रा कम होती है एवं राष्ट्रीय जीवन में एकता एवं दृढ़ता का संचार होता है, किन्तु आधुनिक भारत में जातिवाद ने इस गतिशीलता को न केवल निरुत्साहित किया है बल्कि प्रतिबन्धित भी किया है। जातीय लगाव एवं परम्परागत विचार नवीनता का विरोध कर व्यक्ति को अपने रूढ़िवादी दायरे से निकलने नहीं देते, जिसके फलस्वरूप सामाजिक प्रगति में बाधा पड़ती है।
14. औद्योगिक संघर्ष- जातिवाद के प्रसार ने एक ओर औद्योगिक उत्पादन में बाधा उपस्थित की है क्योंकि जाति के प्रति अन्धभक्ति के कारण लोग अपनी जाति के लोगों को ही कार्य सौंपने की चेष्टा करते हैं। भले ही वे अकुशल ही क्यों न हों। आज विशेषीकरण के युग में अप्रशिक्षित कारीगर सन्तोषजनक उत्पादन नहीं दे पाते, साथ ही उत्पादित माल भी घटिया किस्म का होता है जो राष्ट्रीय आय को गिराता है।
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