जीवन के मूल्यों में पर्यावरणीय मुद्दों के प्रभाव की समीक्षा कीजिए।
मानव जीवन अथवा जीवन मूल्यों पर पर्यावरणीय मुद्दों के प्रभाव को जानने के लिये सर्वप्रथम आवश्यक है कि हम यह भी जानें कि हमारे जीवन के मूल्य क्या हैं तथा वर्तमान समय में पर्यावरणीय मुद्दे क्या हैं तत्पश्चात् उनके पारस्परिक सम्बन्धों के अन्तर्गत प्रभाव का अध्ययन किया जाना सर्वथा उचित होगा।
जीवन मूल्य- मानव मूल्य या जीवन मूल्य वास्तव में एक ऐसी आचार संहिता है, जिसे अपने संस्कारों तथा सामाजिक पर्यावरण के माध्यम से अपनाकर मनुष्य अपने निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अपनी जीवन शैली का निर्धारण करता है, अपने व्यक्तित्व का विकास करता है। ये जीवन मूल्य न केवल व्यक्ति के अन्तःकरण द्वारा नियंत्रित होते हैं अपितु उसकी संस्कृति एवं परम्परा द्वारा क्रमशः विस्तृत एवं परिपोषित होते हैं। कुछ प्रमुख जीवन मूल्यों का वर्गीकरण निम्नवत् है-
प्रमुख जीवन मूल्य-
1. शैक्षिक मूल्य |
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2. नैतिक मूल्य |
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3. सामाजिक राजनैतिक मूल्य |
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4. वैश्विक मूल्य |
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5. वैज्ञानिक मूल्य |
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6. सांस्कृतिक मूल्य |
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7. पर्यावरणीय मूल्य |
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वर्तमान पर्यावरणीय मुद्दे एवं मानवीय मूल्यों पर प्रभाव-
130 करोड़ से अधिक आबादी के साथ भारत वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सर्वाधिक आबादी वाले देश चीन से आगे निकलने को तैयार है जबकि पर्यावरण और पारिस्थितिकी के संरक्षण में अभी पीछे है। आज हमारा देश पर्यावरणीय समस्याओं से अस्त हैं जो पिछले कुछ दशकों में अधिक बढ़ी हैं। पर्यावरण के प्रति अनदेखी व गैर संवेदनशील दृष्टिकोण प्राकृतिक तबाही पैदा कर सकती है जिससे होने वाली क्षति की भरपाई शायद कभी न हो सके।
पर्यावरण के प्रति हमारे दृष्टिकोण, मूल्य तथा गैर संवेदनशीलता आज हमारे समक्ष पर्यावरणीय मुद्दों के रूप में उपस्थित है –
(1) वायु प्रदूषण एवं प्रभाव- वायु प्रदूषण भारत को प्रभावित करने वाली सर्वाधिक बुरी विपत्तियों में से एक है। अन्तर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेन्सी IEA की रिपोर्ट के अनुसार 2040 तक देश में वायु प्रदूषण के कारण 9 लाख मौत व व्यक्ति के औसत जीवन में लगभग 15 महीने कमी हो सकती है। 2016 के पर्यावरण सूचकांक की रैंकिंग में भारत 180 देशों में 141वें स्थान पर है। यह दिखाता है कि हमारे मूल्य आज इतने कमजोर हो रहे हैं, कारण पर्यावरण के प्रति हमारी संवेदनशीलता का कमजोर होना। वायु प्रदूषण आज हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है जिससे हमारी सोच भी विकृत होती जा रही है जो सीधे-सीधे हमारे मूल्यों को प्रभावित करता है।
(2) भू-जल स्तर पर प्रभाव- भू-जल का पर्यावरण सन्तुलन व जीवन के लिये अत्यधिक महत्व है। जब से जीव व वन की सुरक्षा व समृद्धि होती है। यही भावना हमारे जीवन मूल्यों को मजबूत करती है। किन्तु आज भू-जल का अपने लाभ के लिये अत्यधिक दोहन ने स्पष्ट कर दिया है कि व्यक्ति स्वार्थ के आगे कुछ नहीं देखता और भू-जल का अत्यधिक दोहन करता जा रहा है। उसकी यह भावना हमारे मूल्यों को कमजोर कर रही है।
(3) जलवायु परिवर्तन एवं प्रभाव- आज हम स्पष्ट रूप से महसूस कर रहे हैं कि जलवायु अपने निर्धारित चक्र से भिन्न रूप में प्रकट हो रही है। गर्मी के समय अत्यधिक गर्मी, वर्षा का अनियमित होना, शीत ऋतु भी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है। इसका मुख्य कारण प्रकृति का अत्यधिक दोहन व ग्लोबल वार्मिंग इन दोनों का हमारे जीवन तथा जीवन मूल्यों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। हिमालय के ग्लेशियरों के अत्यधिक पिघलने के कारण बाढ़ जैसी प्राकृतिक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन यह दिखाता है कि हम अपने राष्ट्रीय वैश्विक मूल्यों के प्रति कितना संवेदनहीन हैं।
(4) प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग एवं प्रभाव- प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग देश के लिये एक बड़ी चिन्ता का विषय है। 2010 में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक का वार्षिक उपयोग 8 किलोग्राम है। यह 2020 तक 27 किलोग्राम हो जाएगा। इसका अत्यधिक उपयोग हमारे दैनिक जीवन को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त पशुओं तथा भू-उर्वरा को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है किन्तु व्यक्ति सुविधा के लिये इसके नियंत्रित उपयोग करने को तैयार नहीं होते। यह हमारे संस्कार तथा व्यवहार पर सीधा असर दृष्टिगत कराता है कि हम मूल्यों की अपेक्षा अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को अधिक महत्व देते हैं।
(5) कचरा निपटान और स्वच्छता एवं प्रभाव- 2014 में जारी द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 130 मिलियन परिवारों के पास शौचालय नहीं हैं। 72% से अधिक आबादी खुले में शौच करती है। इसके अतिरिक्त कचरा निष्पादन का सुरक्षित तरीका न होना व स्वच्छता में भारी कमी हमारी संस्कृति, व्यवहार व मूल्यों को प्रभावित करता है। अस्वच्छतापूर्ण वातावरण में व्यक्ति की मानसिकता स्वच्छ नहीं होती जो हमारे मूल्यों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालती है।
(6) जैव विविधता एवं प्रभाव- अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा भारत में पौधों और जानवरों की 47 प्रजातियों को गम्भीर लुप्तप्राय प्रजातियों में सूचीबद्ध किया है। पारिस्थितिकी और प्राकृतिक निवास की क्षति ने कई स्वदेशी प्रजातियों को खतरे में डाल दिया है। इनमें साइबेरियन सारस, हिमालय के भेड़िये और कश्मीरी हिरण ये सभी विलुप्त होने की कगार पर हैं। भारत में तीव्र शहरीकरण, शिकार और चमड़े के लिये अंधाधुंध शिकार आदि इन जानवरों को गम्भीर रूप से लुप्तप्राय और जड़ी-बूटियों को विलुप्त की कगार पर पहुँचाने के लिये जिम्मेदार हैं। सामान्यतौर पर औषधीय गुणों वाले पौधों को आयुर्वेदिक उपचार के लिये काट लिया जाता है किन्तु इनके संरक्षण एवं उत्पादन पर कोई ध्यान नहीं देना जैव विविधता को नुकसान पहुँचा रही है।
पर्यावरणीय मुद्दे मानव जीवन व जीवन मूल्यों को प्रभावित करते हैं। जैव भौतिक सीमाओं में जलवायु का नियंत्रण सबसे महत्वपूर्ण है। जैवकीय दृष्टि से मानव शरीर सभी जलवायु दशाओं में कार्य करने में सक्षम नहीं होता बल्कि कुछ निश्चित पर्यावरणीय दशाओं में ही यह सुचारु रूप से क्रियाशील हो सकता है। जैसे अत्यधिक ऊँचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण मनुष्य का जीवन संकट में आ जाता है। इसी प्रकार अत्यधिक ऊष्मा और आर्द्रता मनुष्य के शारीरिक और मानसिक वृद्धि में बाधक होते हैं। जलवायु दशाएँ अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य व मानवीय मूल्यों पर प्रभाव डालती हैं।
भौतिक पर्यावरण मानव जीवन के अन्य क्षेत्रों पर भी प्रभाव डालता है। अनगिनत शोधों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भौतिक पर्यावरण मानव के विचारों, चिन्तन, विचारधाराओं तथा संस्कृति एवं व्यवहारों को प्रभावित करता है। उदाहरणस्वरूप बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में मनुष्य में यह धारणा होती है कि नदियाँ सदा विनाश की स्रोत होती हैं। ठीक इसके विपरीत जल संकट क्षेत्रों में नदियाँ जीवनदायिनी समझी जाती हैं।
संक्षेप में यह उल्लेखित किया जा सकता है कि औद्योगिक क्रान्ति के बाद मानव व पर्यावरण सम्बन्ध में गुणात्मक परिवर्तन हुआ है। पर्यावरण दोहन अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया है। प्राकृतिक पर्यावरण की अंतःनिर्मित स्वयं नियामक प्रक्रिया जोकि पर्यावरण की बाहरी परिवर्तनों को आत्मसात् करने की क्षमता होती हैं, काफी दुर्बल हो गयी है। इस काल में पर्यावरण विदोहन के कारणों में तीव्र जनसंख्या वृद्धि, नगरीकरण, औद्योगीकरण, तकनीकी विकास, भौतिकवाद आदि प्रमुख हैं। पर्यावरण अवनयन के दुष्परिणामों में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, भूमण्डलीय ताप में वृद्धि, चरम घटनाएँ, प्राकृतिक प्रकोप तथा विनाश जैसे भूकम्प, बाढ़ तथा सूखा, चक्रवात आदि उल्लेखनीय हैं। मनुष्य अब पर्यावरण अवनयन का मूल्य चुका रहा है।
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