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विविधता के प्रकार-Types of Diversity in Hindi

विविधता के प्रकार
विविधता के प्रकार

“भारत विविधताओं का देश होते हुए भी एकता की भावना लिए हुए है। ” विवेचना कीजिए

विविधता के प्रकार का वर्णन कीजिए।  Describe the types of Diversity in Hindi

विविधताओं के प्रकार | Types of Diversity in Hindi-भारत एक विशाल देश है। यहाँ विभिन्न प्रजातियों, धर्मों एवं अनेक भाषाओं को बोलने वाले लोग निवास करते हैं। भारत में विविधता का कारण इन्हीं विभिन्नताओं में छुपा हुआ है. जिसका विवरण हम निम्नवत् कर सकते हैं-

1. भौगोलिक विविधता-

भौगोलिक दृष्टि से भारत भिन्न-भिन्न खण्डों और उपखण्डों में विभक्त है तथा उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम में हजारों किलोमीटर तक फैला हुआ है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर (विश्व का 2.42 प्रतिशत) है। यह सम्पूर्ण भू-भाग तीन भागों में विभाजित है।

(क) हिमालय का विस्तृत पर्वतीय प्रदेश, (ख) गंगा-सिन्धु का मैदान और (ग) दक्षिणी पठारी भाग। सभी खण्डों और उपखण्डों के वासियों की भाषा, रहन-सहन, तौर-तरीके, वेशभूषा, संस्कृति और सामाजिक संगठन अलग-अलग हैं। इतना ही नहीं विभिन्न भागों में पाए जाने वाले पशु, वर्षा की दशा, भूमि की किस्म, खान-पान इत्यादि में भी विविधता पाई जाती है।

2. प्रजातीय विविधता-

भारत की विशालता को देखते हुए इसे एक छोटा-सा महाद्वीप कहना ठीक होगा। कभी-कभी भारत को विभिन्न जातियों और प्रजातियों का अजायबघर भी कह दिया जाता है। बिलोचिस्तान से लेकर असम और म्यांमार (बर्मा) तक, पश्चिमी तट पर गुजरात से लेकर कुर्ग की पहाड़ियों तक तथा हिमालय पर्वत से लेकर कन्याकुमारी तक विविध प्रजातियों के लोग रहते हैं, जैसे श्वेत (काकेशियन), पीत (मंगोलियन), श्याम (नीगागे, तस्मानियन, मलेशियन, बुशमैन) आदि। सम्पूर्ण भारत में यों तो बहुत प्रजातियाँ रहती हैं, परन्तु 8 प्रजातियाँ विशेषतया उल्लेखनीय हैं- आर्य प्रजाति, मंगोल प्रजाति, द्रविड़ प्रजाति, मंगोल द्रविड़ प्रजाति, · सीथो द्रविड़ नीग्रटो प्रजाति और भूमध्यसागरीय प्रजाति इन सभी प्रजातियों के खान-पान, व्यवसाय, रहन-सहन, आचार-विचार, मनोरंजन के साधन, सामाजिक संगठन, भाषा और शारीरिक विशेषताएँ भी भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं। इस प्रकार भारत में सभी प्रमुख प्रजातियाँ विद्यमान रही हैं। यद्यपि आज प्रजातीय मिश्रण के कारण शुद्ध रूप में कोई प्रजाति नहीं पाई जाती है, तथापि प्रजातियों के सम्मिश्रण से उत्पन्न विविधिता स्पष्टतः देखी जा सकती है।

3. जनजातीय विविधता-

जनजाति से हमारा तात्पर्य परिवारों के ऐसे संकलन से है जिसका कि सामान्य नाम होता है, सभी सदस्य सामान्य भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं, सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं तथा साथ-ही-साथ विवाह, व्यवसाय और अपने उद्योग सम्बन्धी कुछ विशेष या जनजाति द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते हैं। 2001 ई0 की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर यह सरलता से कहा जा सकता है कि भारत की कुल जनसंख्या में 8.01 प्रतिशत जनजातीय लोग निवास करते हैं। भारत में ओराँव, गोंड, मुण्ड, बोरो, काजर बड़गा, कोटा, टोण्डा, यूरूब, परितयन, कुसुम्ब, कादर, कणिक्कर, मलयन्तरम, थारू और कूकी इत्यादि विभिन्न जनजातियाँ देखने को मिलती हैं। कुछ जनजातियों की संख्या लाखों में और कुछ जनजातीय परिवारों की संख्या एक हजार से भी कम है। जनजातियों के रीति-रिवाज एवं रहन-सहन ही पृथक नहीं हैं, अपितु ग्रामीण तथा नगरीय संस्कृति से भी पूरी तरह से भिन्न हैं। लगभग आधी. जनजातीय जनसंख्या तीन राज्यों- बिहार, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश में निवास करती है।

4. भाषागत विविधता-

भारत में न केवल भौगोलिक, प्रजातीय एवं जनजातीय विविधता देखने को मिलती है, वरन् भाषागत विविधता भी देखने को मिलती है। देश में कुल मिलाकर लगभग 1,652 बोलियाँ बोली जाती हैं। भाषा की दृष्टि से सम्पूर्ण भारत में पाँच भाषाई परिवार हैं- पहला, यूरोपीय भाषाई परिवार, द्वितीय द्रविड़ भाषाई परिवार, तृतीय आस्ट्रियन भाषाई परिवार, चौथा, तिब्बती बर्मीीं भाषाई परिवार और पाँचवाँ छोटी भाषाओं का परिवार।

(क) यूरोपीय परिवार की भाषाएँ-यूरोपीय परिवार की हिन्दी, उर्दू, बंगला, असमिया, उड़िया, पंजाबी, सिन्धी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, बिहारी और हिमाली प्रमुख भाषाएँ हैं।

(ख) द्रविड़ भाषाई परिवार- इस परिवार की तेलुगू, कन्नड़, तमिल और मलयालम भाषाएँ उल्लेखनीय हैं।

(ग) आस्ट्रियन भाषाई परिवार- इसमें भी मुण्डा, कोल, मुण्डाली, सन्थाली, हो, खरिया, भूमिज, कोरबा इत्यादि बोलियाँ तथा भाषाओं को मान्यता दी गई है। इन बोलियों और भाषाओं को बोलने तथा प्रयोग करने वाले लोग उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बंगाल और छोटा नागपुर में फैले हुए हैं।

(घ) तिब्बती बर्मी भाषायी परिवार- इसके अन्तर्गत मणिपुरी और लेपचा भाषाओं को सम्मिलित किया गया है। नेवाड़ी भाषा भी इसी परिवार की प्रमुख भाषा मानी जाती है।

(ङ) छोटी भाषाओं का परिवार- इस परिवार में हम उन भाषाओं और बोलियों को सम्मिलित करते हैं, जो अण्डमान और निकोबार द्वीपों के वासियों द्वारा प्रयोग में लाई जाती हैं। ये भाषाएँ अण्डमानी और निकोबारी के नाम से प्रसिद्ध हैं। साथ ही साथ परशियन, चीनी, तिब्बती, सोमानी, अरबी और पुर्तगाली भाषा बोलने वाले लोग भी भारत में हैं। अंग्रेजी भाषा को तो भारत में अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अंग्रेजी के प्रयोग में ह्रास होना आरम्भ हो गया है। इस प्रकार भारत में भिन्न-भिन्न प्रकार की भाषाओं व बोलियों का प्रयोग किया जाता है।

5. धार्मिक विविधता-

धार्मिक दृष्टिकोण से भारत के नागरिक विभिन्न धर्मों के अनुयायी हैं। यदि एक ओर हिन्दू धर्म में विश्वास करने वाले हैं तो दूसरी ओर इस्लाम धर्म मान्ने वाले मुस्लिम लोग भी भारतवासी ही हैं। बौद्ध धर्म के लोग भी भारत में कुछ कम नहीं हैं। क्रिश्चियन अर्थात् ईसाई धर्म को मानने वाले भी नगरों और ग्रामीण समुदायों में वास करते हैं। सिक्ख धर्म के लोग भी भारत के विभिन्न प्रान्तों में फैले हुए हैं। सभी धर्मों की अपनी भिन्न-भिन्न . मान्यताएँ हैं तथा उपासना एवं पूजा की अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न विधियाँ हैं। इन धर्मों के अतिरिक्त अनेक सम्प्रदाय, जैसे- शैव, वैष्णव, आर्य समाजी, नानक पन्थी, कबीर पन्थी इत्यादि उल्लेखनीय हैं। जिनके अन्तर्गत उच्च कोटि के विचारक उत्पन्न हुए हैं।

6. राजनीतिक विविधता-

प्रशासन की सुविधा के लिए भारत को पाँच प्रमुख भागों में विभक्त कर दिया गया है। ये पांच भाग हैं-केन्द्र, प्रान्त, जिला, ब्लॉक और नगर अथवा गाँव। इन सब भागों के अलग-अलग अधिकारीगण हैं और उनके अधिकार क्षेत्र तथा कर्तव्य भी अलग अलग तथा सुनिश्चित हैं। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा इन उपर्युक्त सभी भागों और उपभागों का प्रशासन चलता है। सरकारी नियम भी भिन्न-भिन्न भागों में अलग-अलग हैं। जनता द्वारा निर्वाचित प्रत्येक क्षेत्र (भाग) की सरकार को पूर्णतया यह स्वतंत्रता है कि वह अपने क्षेत्र के नागरिकों के कल्याण के लिए समितियाँ और उपसमितियाँ बनाकर कार्यभार सँभाले। भारत में राजनीतिक दलों की भरमार है तथा उनकी विचारधाराओं में पर्याप्त अन्तर है। केन्द्र में एक दल की सरकार है तो विभिन्न राज्यों में उससे भिन्न प्रकार के राजनीतिक दलों की सरकारें कार्य कर सकती हैं।

7. सांस्कृतिक विविधता-

भारतीय समाज में सांस्कृतिक विविधताओं का विभिन्न रूपों में दर्शन होता है। यहाँ सहस्रों वर्षों से विभिन्न प्रजातियों के व्यक्ति साथ-साथ रहते आए हैं। हिन्दुओं, मुस्लिमों, ईसाईयों, सिखों, बौद्धों, जनजातियों में सांस्कृतिक विविधता देखी जा सकती है। प्रत्येक धार्मिक-सांस्कृतिक समूह के अपने अलग प्रकार के जीवन मूल्य, आदर्श, संस्कार, विश्वास, खान-पान, मान्यताएं, वेश-भूषा, वैवाहिक प्रथाएं/रीतियाँ, परम्परागत, संगीत, साहित्य, नृत्यादि पाए जाते हैं। भारतीय समाज और संस्कृति को सबसे अधिक इस्लाम ने प्रभावित किया। यह प्रभाव ब्रिटिश युग तक बना रहा। मुसलमानों ने भी हिन्दू संस्कृति के कई तत्वों को स्वीकार किया। हिन्दुओं के प्रभाव/सम्पर्क के कारण उनकी क्रूरता कम हुई, उनमें सहृदयता, श्रद्धा भक्ति विकसित हुई। उन्होंने हिन्दुओं के खान-पान, जाति प्रथा, रीति-रिवाजों, उत्सवों आदि को अपनाया। फलतः हिन्दू-मुस्लिम संस्कृतियों के सम्पर्क के कारण देश में नए सांस्कृतिक प्रतिमान उदित हुए।

इस प्रकार भारत में उक्त विविधताओं से एक ऐसी एकता का सृजन हुआ जो भारत की प्रमुख विशेषता बन गयी अर्थात् भारतीय संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक विषमताएँ होते हुए भी सर्वत्र एक मौलिक एकता विद्यमान है, क्योंकि जातिगत तथा भाषागत अनेकता ने हमें अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु पारस्परिक मतभेदों को भुला देने की प्रेरणा दी है। धार्मिक तथा सामाजिक अनेकता के दुष्परिणामों के प्रति धार्मिक चिन्तक तथा समाज सुधारवादियों ने हमें अति प्राचीनकाल से ही सजग किया तथा इन मतभेदों को भुलाकर राष्ट्रीय भावना को बलवती बनाने की सशक्त प्रेरणा दी। भारतीय संस्कृति में एकता और विभिन्नता दोनों ही विद्यमान है जो कि अन्य राष्ट्रों के संदर्भ में कम ही देखने को मिलती है। विभिन्नता के बीच भी भारत में एक सारभूत एकता पाई जाती है, अर्थात् विविधता होते हुए भारतीय संस्कृति में एकता प्रमुख है।

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