पर्यावरणीय समस्याओं के निवारण हेतु आवश्यक वर्तमान दृष्टिकोण या विचारों का वर्णन कीजिए।
पर्यावरणीय समस्याओं के निवारण हेतु मनुष्य को वर्तमान में आवश्यक निम्न दृष्टिकोणों को रखकर कार्य करना होगा, तभी वह पर्यावरणीय समस्याओं का निराकरण एवं पर्यावरण का संरक्षण कर सकेगा।
(1) पर्यावरण के प्रति जनजागरूकता- साधारण जन-मानस को पर्यावरण की विभिन्न समस्याओं से अवगत कराकर उनसे हो सकने वाले दुष्परिणामों की जानकारी दी जानी चाहिए। इन समस्याओं के निराकरण हेतु उनकी भूमिका के महत्त्व को भी समझाना चाहिए। स्वयंसेवी संस्थाओं के महत्त्वपूर्ण योगदान को समझने और समझाने की आवश्यकता है।
(2) पर्यावरण के क्षेत्र में प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता- पर्यावरण के क्षेत्र में हर स्तर पर, उच्चाधिकारी से लेकर निम्न कर्मचारी तक, प्रशिक्षित व्यक्तियों के उपलब्धता न हो पाने के कारण पर्यावरण सम्बन्धी योजनाओं की सफल क्रियान्विति नहीं हो पा रही है। उचित प्रकार से क्रियान्वयन का मानीटरिंग भी आवश्यक है। पर्यावरण को अलग से एक कार्य समझ कर नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इस प्रत्येक विभाग के कार्यों से जोड़ना चाहिए, तभी एक सही प्रस्तुतीकरण सम्भव है।
(3) सरकार की नीति व कार्यविधि- वर्तमान की आवश्यकता को वरीयता देते हुए सरकार की पर्यावरण की नीति बनानी चाहिए एवं इस प्रकार की कार्यविधि अपनाई जानी चाहिए, जिससे वांछनीय परिणाम प्राप्त हो सकें। अपने अधीन समस्त अधिकारी/कर्मचारियों को ऐसे स्पष्ट निर्देशन होने चाहिए जिसस पर्यावरण विकृति से किसी कार्य स वह समझौता न करें। केवल महत्त्वाकांक्षी योजना को निरुत्साहित कर व्यावसायिक कार्य पक्ष को प्रधानता देना जरूरी है। विश्व स्तर पर सोचो’ लेकन स्थानीय परिप्रेक्ष्य में काम करो’ (Think Globally and Act Locally) के सिद्धान्त का अनुसरण उचित एवं उपयुक्त है। राजनीति एवं आर्थिक पक्ष से इस क्षेत्र को बचाना चाहिए एवं मानव कल्याण तथा उनके सुखी जीवन की कल्पना को योजना का आधार बनाना चाहिए।
(4) पर्यावरणीय संरक्षण- प्रकृति या पृथ्वी पर मानवकृत पर्यावरण की स्थिति जो भी मानव के दोषपूर्ण कृत्यों के बाद रह गई हैं, उसे संरक्षण प्रदान किया जाए। अपरिवर्तनीय (Non renewal) संसाधनों को कम से कम छेड़ा जाए तथा परिवर्तनीय (Renewal) संसाधनों का आवश्यकतानुसार ही उपयोग हो। मनुष्य को धार्मिक मान्यताओं, सांस्कृति परम्पराओं एवं प्राचीन/रिवाजों के माध्यम से सही कार्य करने हेतु प्रेरित किया जाना बहुत जरूरी है। उन्हें यह बताना भी बहुत समीचीन है कि पर्यावरण संरक्षण से तुम्हारा तथा तुम्हारी भविष्य की पीढ़ी का जीवन अत्यन्त निकट से जुड़ा है।
(5) पर्यावरणीय सुरक्षा- संरक्षित की गई स्थिति की सुरक्षा एवं उसकी आवश्यक देखभाल इस पद के अन्तर्गत आती है। पर्यावरण को हर स्थिति में विनाश से बचाना है तथा प्रकृति के विविध कार्य कलापों को अबाध गति से चलते रहने प्रयत्नशील रहना है। वस्तुओं का सदुपयोग भी सुरक्षा में सम्मिलित किया जा सकता है।
(6) पर्यावरण सुधार- जितना भी पर्यावरण विकृत हो गया है या उसका हास हो रहा है, उसे सुधारने हेतु भी व्यावहारिक प्रयास किए जाने की महती आवश्यकता है। घने जंगल बनाए जाएँ, वन्यजीवों की सुरक्षा का प्रावधान हो, जल स्त्रोतों की स्वच्छता बनायी रखी जाए, माइनिंग (Minig) से विकृत स्थलों को मनोरंजन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, आवासीय कालोनियो या कस्बे व गाँव के बीच बन गए गन्दगी केन्द्र (Dumping grounds) को बच्चों के खेलने के मैदानों में परिवर्तित किया जाए, स्वचालित वाहनों का उपयोग कम किया जाए, भूमि क्षरण रोकने की पुख्ता व्यवस्था हो, खेतों में पारम्परिक कार्बनीय खादों के उपयोग को प्रोत्साहन दिया जाए आदि।
(7) प्रदूषण की रोकथाम- वायु, जल, भूमि, वाहन तथा ध्वनि प्रदूषण आदि से जनमानस अत्यन्त ग्रस्त एवं त्रस्त है। वह उपाय करने हैं, जिससे भविष्य में हर क्षेत्र के प्रदूषण को रोका जा सके। अवशिष्ट के निस्तारण की समस्या का हल भी खोजना अत्यन्त आवश्यक हो गया है क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से यह भी प्रदूषण ही फैला रहे हैं एवं विश्व भर में मानव की चिन्ता के कारण बन रहे हैं। प्रदूषण को रोकने हेतु राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर बनाए गए कानूनों की सख्ती से अनुपालन करना एवं कराया जाना चाहिए।
(8) मीडिया की प्रभावी भूमिका- समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन की भूमिका अत्यंत व्यापक तथा स्पष्ट रूप से नियत की जानी चाहिए। पर्यावरण के किसी भी क्षेत्र की जानकारी प्रस्तुत करते वक्त उससे पाठक, श्रोताओं एवं दर्शकों को भय से बचाना चाहिए। उनके मनोबल को बढ़ाया जाना आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि मीडिया द्वारा अनौपचारिक शिक्षण मनुष्य की मनोवृत्तियों में ऐसा परिवर्तन ला सकता है, जिससे वह पर्यावरण विकृति को एवं पर्यावरण सुधार लाने में अपनी महती भूमि का निभा सकें। करने
(9) बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण- पर्यावरण ही नहीं बल्कि लगभग सभी समस्याओं के मूल में कारण बढ़ती आबादी है, जिस पर नियंत्रण करना अत्यन्त कठिन हो रहा है। इसी वजह से प्राकृतिक संसाधनों का ज्यादा उपयोग, अन्य वस्तुओं की ज्यादा आवश्यकता, प्रदूषण में वृद्धि एवं अन्ततः पर्यावरण हास हो रहा है। किसी भी प्रकार इसे नियन्त्रित करने से ही पर्यावरण समस्याओं की कमी हो सकती है।
(10) नगर नियोजन को महत्त्व- नगर नियोजन में आबादी के बहुत निकट प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग न हो एवं हरित पट्टी (Green Belt) से नगर घिरा हो, यह तभी सम्भव है जबकि नगर नियोजन को महत्त्व दिया जाए जो अत्यन्त आवश्यक है। बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, मनोरंजन स्थल, प्रोवीजन एवं अन्य स्टोर आदि कहाँ हो यह नगर नियोजन के अन्तर्गत लिया जा सकता है, जिससे रहने वाले व्यक्ति पर्यावरणीय विपदाओं से अधिक से अधिक दूर रहे।
(11) अवशिष्टों का पुनः चक्रण- ऊपर हमने औद्योगिक, कृषि एवं अन्य अवशिष्टों के निस्तारण की बात कही है, लेकिन अनेक पदार्थ/वस्तुएँ ऐसी हैं जिनका उपयोग के बाद पुनः चक्रण (Recyle) लिया जा सकता है। इसमें कागज, प्लास्टिक, लोहे के स्क्रेप्स, शीशे के टुकड़े आदि प्रमुख हैं। कूड़ा-कचरा तो इन दिनों खाद के रूप में चक्रित अनेक देशों में किया ही जा रहा है।
(12) विदेशों में पर्यावरण संरक्षण हेतु अपनाये गये तरीकों की नवीनतम जानकारी- पर्यावरण की समस्या विश्वव्यापी है एवं अनेक देशों में, जिनमें इंग्लैण्ड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्वीडन, फिनलैण्ड, फ्रान्स, डेनमार्क, जापान, कनाडा आदि शामिल हैं। इससे काफी सीमा तक छुटकारा पा लिया है। वे विश्व तापन (Global Warming) तेजाबी वर्षा (Acid Rains) और ओजोन परत का क्षय (Ozone Layer Depletion) आदि समस्याओं के समाधान हेतु विज्ञान तथा तकनीकी ज्ञान का सहारा लेकर प्रयत्नशील हैं। ऐसे देशों की कार्य योजनाओं का अध्ययन हमें लक्ष्य निर्धारण करने एवं उसकी क्रियान्विति में सहायक हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयासों एवं प्रसारित निर्देशों तथा सुझावों की जानकारी भी उपलब्ध करनी चाहिए।
(13) पर्यावरण शिक्षा पर बल- विश्वव्यापी समस्या का समाधान केवल योजना निर्माण एवं उसकी क्रियान्विति से ही संभव नहीं है। इस हेतु व्यवस्थित रूप से पर्यावरण शिक्षा का प्रावधान प्रत्येक स्तर के लोगों के लिए करना चाहिए, चाहे वह विद्यार्थी हो अथवा कार्यरत कर्मचारी एवं अधिकारी, चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित। सभी लोगों के लिए आवश्यक सामग्री का चयन तथा उसे प्रदान करने का तरीका अत्यन्त व्यावहारिक बनाना चाहिए। शिक्षा ग्रहण करने वाले भी इस विषय की उपादेयता पहचान सकें यह भी आवश्यक है।
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