विभिन्न प्रकार के जीवन मूल्यों का विभिन्न धर्मों एवं भारतीय संस्कृति पर प्रभाविता का विवेचन कीजिए।
विभिन्न धर्मों का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव- भारत में अनेक संप्रदाय एवं जातियों के लोग रहते हैं। यहाँ पर कई धर्मों को मानने वाले लोग हैं, जिनके रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, एवं पूजन-पाठ की विधियों में भिन्नता पाई जानी स्वाभाविक है। समाज के प्रारम्भिक चरण से अब तक न जाने कितने परिवर्तन हुए हैं। इन्हीं परिवर्तनों से संस्कृतियों में परिवर्तन होता है एवं व्यक्ति के मूल्य प्रभावित होते हैं। अधिक प्रचलित धर्मों में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध एवं जैन हैं। वस्तुतः सभी धर्मों को बाह्य रूप में अन्तर होते हुए भी आन्तरिक दृष्टि से बहुत सी समानताएँ हैं। कोई भी धर्म किसी भी व्यक्ति को ऐसी शिक्षा नहीं देता जो मानवीय संस्कारों से पोषित न हो।
प्रो. जॉन डी.वी. ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है कि- “धर्म वह चीज है जो लोक जीवन के खण्ड-खण्ड और परिवर्तनशील दृश्यों को समझने की शुद्ध दृष्टि देता है।”
डॉ. मिश्रा के अनुसार- “जिस व्यक्ति ने गहराई में जाकर धर्म एवं सम्प्रदाय का सही-सही मूल्यांकन का प्रयत्न किया है वह व्यावहारिक जीवन में मान्यताओं का सही आँकलन कर सकता है।”
अतः सामाजिक संदर्भ में सबसे ज्यादा जरूरत मूल्यों को परखने की ही है। तभी समस्त धर्मों के ऊपर प्रभावों के अध्ययन को समझ कर समाज का सही मार्गदर्शन हो सकता है तथा एक समन्वय की भावना स्थापित हो सकती है। सभी धर्मों के अनुयायियों की संस्कृतियों के अनुरूप जीवन-मूल्यों को शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करके शिक्षा को नवीन दिशा प्रदान की जा सकती है।
विभिन्न धर्म अपने नियमों के अनुसार अपने मूल्यों, परम्पराओं एवं संस्कृति का परिपालन करता है। प्रत्येक धर्म के व्यक्ति की मानसिकता अलग-अलग होती है। यही कारण है कि बहुत से विवादों के जन्म का उत्तरदायित्व इसी मानसिकता पर निर्भर करता है। शिक्षा के क्षेत्र में आज बहुत बड़ी जरूरत है कि शिक्षा मूल्यों, आदर्शों एवं परम्पराओं की वर्तमान समय के अनुसार स्थापना करते हुए एक नवीन समाज का सृजन करें।
मूल्य एवं शिक्षा का कार्य सभी धर्मों और संस्कृतियों को जोड़कर समाज में समायोजन स्थापित करना है। अतः शिक्षा में सभी धर्मों एवं संस्कृतियों के आदर्शों एवं सिद्धान्तों को सम्मिलित किया जाना चाहिए ताकि इस प्रकार एक धर्मनिरपेक्ष समाज का सृजन हो सके। शिक्षा द्वारा सभी धर्मों के प्रति आदर भाव एवं संस्कृतियों के प्रति आत्मीयता की भावना विकसित की जा सकती है। अतएव शिक्षा ही समाज के सभी वर्गों, जातियों, उपजातियों एवं भाषा-भाषी, सम्पूर्ण संस्कृतियों में अनुकूलन स्थापित करते हुए समाज को उन्नतशील एवं अग्रसर बनाने का कार्य कर सकती है।
मूल्यों की अस्थिरता- मूल्य सदैव स्थिर नहीं रहते हैं। देश, काल एवं परिस्थिति तथा वातावरण के अनुरूप बदलाव होता है। मूल्यों के द्वारा समाज को सही शिक्षा एवं दिशा दी जा सकती है, क्योंकि प्रत्येक काल में नैतिकता का अर्थ अलग-अलग होता है। प्रत्येक धर्म की मान्यताएँ एवं संस्कार भी भिन्न होते हैं। अत: प्रत्येक धर्म की श्रेष्ठ मान्यताओं के अनुसार समाज में शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। भारतीय समाज के सुखद दृश्य दर्शन हेतु जीवन मूल्यों की शैक्षिक व्यवस्था करना तथा शिक्षा के विकास हेतु उन्हें शिक्षा में स्थान देना है।
मनुष्य जीवन, समृद्धि एवं उसकी सांस्कृतिक धरोहर बहुत-सी बातों पर निर्भर करती है। जिसमें पर्यावरण, जनसंख्या, प्राकृतिक संसाधन, विज्ञान, तकनीक, अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना, राष्ट्रीय एकता, व्यक्ति की रचनात्मकता की प्रकृति, देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था, शिक्षा पद्धति एवं कार्यकुशलता आदि भी सम्मिलित हैं। इन्हीं सबसे किसी भी समाज का निर्माण होता है।
संतुलित रहना अत्यंत आवश्यक होता है। जब भी संतुलन बिगड़ता है, सभ्यताओं का पतन एवं आन्तरिक विघटन प्रस्तुत हो जाते हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण समाज में वस्तुओं की माँग बढ़ती है। उस मांग को पूरा करने के लिए विज्ञान एवं तकनीक का अंधाधुंध सहारा लेना पड़ता है। इसी से पर्यावरण व्यवस्थापन की समस्याओं का जन्म होता है।
वर्तमान में भूमि की रचना में परिवर्तन, सांस्कृतिक प्रतिमानों में परिवर्तन, आनुवंशकीय व्यवहारों एवं जीने के तौर-तरीकों को तकनीकी विकास प्रभावित कर रहा है। कुल मिलाकर तकनीकी विकास परिवर्तन का मुख्य वाहक बन गया है।
Important Links
- मानवीय मूल्यों को विकसित करने में शिक्षा की भूमिका
- मूल्यों के विकास के स्त्रोत अथवा साधन क्या हैं? What are the source or means of Development of values?
- मानव मूल्य का अर्थ एंव परिभाषा तथा इसकी प्रकृति | Meaning and Definition of human value and its nature
- व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा | Concept of value in Practical life
- सभ्यता एवं संस्कृति का मूल्य पद्धति के विकास में योगदान
- संस्कृति एवं शैक्षिक मूल्य का अर्थ, प्रकार एंव इसके कार्य
- संस्कृति का मूल्य शिक्षा पर प्रभाव | Impact of culture on value Education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ, परिभाषा तथा मूल्य एवं संस्कृति के संबंध
- मूल्य शिक्षा की विधियाँ और मूल्यांकन | Methods and Evaluation of value Education
- मूल्य शिक्षा की परिभाषा एवं इसके महत्त्व | Definition and Importance of value Education
- मूल्य का अर्थ, आवश्यकता, एंव इसका महत्त्व | Meaning, Needs and Importance of Values
- विद्यालय मध्याह्न भोजन से आप क्या समझते है ?
- विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य
- स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एंव इसके लक्ष्य और उद्देश्य | Meaning and Objectives of Health Education
- स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of health education in schools
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव इसके महत्व | Meaning and Importance of Health in Hindi
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
- स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम | Meaning and Health Science and its general rules in Hindi
- व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एंव नियम | Meaning and Rules of Personal health in Hindi
- शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Physical Health in Hindi
- एक उत्तम स्वास्थ्य का अर्थ एंव परिभाषा और इसके लक्षण
- बजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रिया | Meaning of Budget and its Process in Hindi
- शैक्षिक व्यय का अर्थ प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रकार
- शैक्षिक आय का अर्थ और सार्वजनिक एवं निजी आय के स्त्रोत
- शैक्षिक वित्त का अर्थ एंव इसका महत्त्व | Meaning and Importance of Educational finance
- भारत में शैक्षिक प्रशासन की समस्याएं और उनकी समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव
- प्राथमिक शिक्षा के प्रशासन | Administration of Primary Education in Hindi
Disclaimer