शैक्षिक मूल्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा शैक्षिक मूल्य के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
शैक्षिक मूल्य का अर्थ एंव इसके प्रकार – ऐसी क्रियाएँ जो शिक्षा क्षेत्र में उपयोगी होती हैं, उनका निश्चित रूप से कुछ मूल्य अवश्य होता है। उदाहरण के लिए पाठ्यक्रम का चयन, शिक्षण विधि का प्रयोग, अनुशासन पालन के नियम आदि क्रियाएँ उपयोगी साबित होती हैं। शिक्षक व शिक्षार्थी दोनों मिलकर वस्तुतः उपयोगिता की दृष्टि से सृजन कार्यों को करते हैं। वे ही शैक्षिक मूल्य कहलाते हैं।
बूब्रेकर महोदय के शब्दों में- “शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करना शैक्षिक मूल्यों को निर्धारित करना है। “
मूल्यों की प्राप्ति हेतु विद्यालयों का विषय संबंधी व्यापक, व्यावहारिक, उपयोगी, वृद्धिवर्धक, उत्सुकता बढ़ाने वाला एवं व्यक्तिगत निर्माण में सहायक ज्ञान उचित रूप से प्रयोग करना चाहिए। विषयों की सार्थकता आधुनिक काल में तभी मानी जाती है जबकि वे व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित किये जाएँ। इसके अतिरिक्त ज्ञान को बढ़ाने हेतु पुस्तकालय, रेडियो, टेलीविजन, सेमिनार, वर्कशाप इत्यादि का भी सहारा लिया जाना चाहिए। शिक्षण पद्धति में वाद-विवाद, विचार-विनिमय, लोगों के भाषण, उत्सव एवं अभिनय के माध्यम से क्रियाशीलता लानी चाहिए। इन सबसे बौद्धिक विकास अच्छा एवं सर्वतोमुखी होती है। ऐसे कार्यों हेतु विषयों की परिषदें तथा सभाएँ भी स्थापित की जानी चाहिए। शिक्षक एवं विद्यार्थी, विद्यार्थी-विद्यार्थी पारस्परिक सहयोग, सहकारिता, प्रेम स्नेह, आज्ञा पालन, नम्रता सौहार्द्र आदि भाव जैसे मूल्य विकसित होते हैं। यह सब विद्यालय के वातावरण पर निर्भर करता है।
शैक्षिक मूल्यों के प्रकार
शैक्षिक मूल्य निम्नवत् हैं-
इच्छित या मध्यस्थ मूल्य- विद्यालय में अनेक क्रियाएँ होती हैं, विभिन्न पाठ्यक्रम होते हैं, अनिवार्य तथा वैकल्पिक विषय भी होते हैं, बालक इन सभी को प्राप्त करने में असमर्थ होता है। इन क्रियाओं में से उसे चयन करना पड़ता है। छात्र सभी विषयों में से केवल महत्त्वपूर्ण विषयों को छांट लेता है। छांटे हुए विषयों में वह रुचि लेता है। इस प्रकार चयनित विषय अथवा क्रियाएँ ही उसकी इच्छा को तृप्त करती हैं। इसके विषय के चयन करने में विवेक से कार्य लेना पड़ता है। उचित, अनुचित, अधिक उपयोगी या कम उपयोगी विषयों का चयन हृदय व बुद्धि से करना पड़ता है। बुद्धि का प्रयोग करने से इन मूल्यों को बुद्धि से सम्बन्धित मूल्य भी कहते हैं। इच्छाओं को तृप्त करने के लिए किसी एक ही कार्य या विषय को मध्यस्थ बनाने के कारण इन्हें मध्यस्थ मूल्य कहा जाता है।
साधन मूल्य- जिन मूल्यों से कोई हित या कार्य सिद्ध होता है उन्हें साधन शब्द कहते हैं। किसी लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु या किसी इच्छा को तृप्त करने के लिए इन मूल्यों का उपयोग साधन रूप में होता है। यदि कोई छात्र शिक्षक बनने की इच्छा रखता है तो बी.एड. को उत्तीर्ण करना उसके लिए साधन मूल्य है। इसी प्रकार इंजीनीयर के लिए गणित और विज्ञान का, एक डॉक्टर के लिए विज्ञान तथा जीव-विज्ञान का, एक चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट के लिए वाणिज्य का अध्ययन साधन मूल्य ही समझा जाएगा।
तात्कालिक मूल्य- ऐसे मूल्य हमारी इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, उन्हें तात्कालिक मूल्य कहते हैं।
अन्य मूल्य- उपर्युक्त मूल्यों के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार का मूल्य भी है, जिसे सौन्दर्यात्मक मूल्य की संज्ञा दी गई है। शिक्षा के प्रत्येक मूल्य की अपनी एक विशेषता होती है जिसकी रसानुभूति की जा रही है अथवा जिससे आनन्द उठाया जा सकता है। जिस मूल्य से हमें आनन्द मिले वही सौन्दर्यात्मक मूल्य है। यदि हम किसी विषय विशेष के विशिष्ट वैयक्तिक गुण को पसन्द करते हैं तो उसके अध्ययन से हमें आनन्द की अनुभूति होती है और हम उसके आन्तरिक मूल्य के महत्त्व को समझ सकते हैं। महत्त्व को समझाना ही सौन्दर्यात्मक मूल्य का बोध होना है।
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