मूल्य शिक्षा एवं मूल्य परक शिक्षा की अवधारणा – वास्तव में मूल्य शिक्षा की अवधारणा अभी नवीन है। इसीलिए इसकी परिभाषा, पाठ्यक्रम एवं विधियों आदि का अभी निर्धारण नहीं हो सका है। कुछ शिक्षाविद् भी मूल्यों की शिक्षा को एक विषय के रूप में मान्यता दिए जाने के पक्ष में नहीं हैं। इसका मुख्य कारण इससे पूर्व मूल्य शिक्षा की आवश्यकता अनुभव नहीं की गई थी, क्योंकि प्रारम्भ में समाज अत्यन्त सरल या और समाज के लोग धर्म, मान्यताओं, परम्पराओं और शाश्वत मूल्यों का अनुपालन हुए जीवन यापन करते थे। वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ मानवीय आवश्यकताओं और आकांक्षाओं में अभिवृद्धि हुई। आगे बढ़ने और आधुनिकता की दौड़ में आगे निकलते जाने की दुर्भावना से मनुष्य को धर्म मान्यताओं, परम्पराओं और शाश्वत मूल्यों की उपेक्षा करने को विवश किया और धीरे-धीरे उन्हें छोड़ दिया गया। आज धर्म, मान्यताएँ, परम्पराएँ और मूल्यों रहित समाज एवं शिक्षा की जो स्थिति है, उसे स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है। इसके दुष्परिण से धर्माचार्य शिक्षाविद्, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, शिक्षक एवं अभिभावक आधारित समाज का पुनः सृजन हो सके।
अतः मूल्य शिक्षा के अर्थ को समझने के लिए जरूरी है कि प्रथमतः मूल्य एवं शिक्षा दोनों के अर्थ को अलग-अलग समझ लिया गया।
मूल्य शिक्षा का अर्थ- मूल्य शिक्षा में ‘मूल्य’ शब्द अंग्रेजी के ‘Value’ (वैलियर) से बना है. जिसका अर्थ होता है, उपयोगिता अथवा गुण आक्सफोर्ड शब्दकोश में मूल्य के अर्थ को इस प्रकार स्पष्ट किया गया है, “मूल्य श्रेष्ठता गुण, वांछनीयता अथवा उपयोगिता अथवा लक्षण है, जिस पर ये निर्भर करते हैं।”
मॉरिल के अनुसार- “मूल्यों को चयन के उन मानदण्डों एवं प्रतिमानों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो व्यक्तियों एवं समूहों को संतोष, परितोष तथा अर्थ की ओर निर्देशित करें।”
शिक्षा-शब्द कोश के अनुसार- “मूल्य कोई विशेषता है, जो मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, नैतिक अथवा सौन्दर्य-बोध के विचार के कारण महत्त्वपूर्ण माना जाता है”
शिक्षा का अर्थ- शिक्षा शब्द संस्कृत के शिक्ष धातु में ‘आ’ प्रत्यय करने से बना है, जिसका अर्थ है सीखना या सिखाना है। यह अंग्रेजी के समानार्थक शब्द Education’ से बना है। यह लैटिन के ‘Educare’ से निर्मित है। जिसका अर्थ है ‘अन्दर से आगे बढ़ना’ होता है।
अरस्तू के अनुसार “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ “मस्तिष्क का निर्माण करना ही शिक्षा है।”
पेस्टालॉजी के अनुसार- “मानव की आंतरिक शक्तियों का स्वाभाविक व सामंजस्यपूर्ण प्रगतिशील विकास ही शिक्षा है।”
महात्मा गाँधी के अनुसार “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक या मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क या आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्तम विकास से है।”
मूल्य शिक्षा के उद्देश्य
इसके निम्नवत् उद्देश्य हैं-
(1) विद्यार्थियों को राष्ट्रीय लक्ष्यों जैसे पंथ निरपेक्षता, समाजवाद, राष्ट्रीय एकता एवं लोकतंत्र का सही अर्थों में बोध कराना।
(2) छात्रों में परस्पर सहयोग, दृढ़ता, कर्त्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी बन्धुत्व आदि मौलिक गुण विकसित करना।
(3) छात्रों को देश का जागगरूक, सम्भ्रान्त एवं उत्तरदायी नागरिक बनाने हेतु प्रशिक्षित करना ।
(4) छात्रों को देश की सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दशाओं की जानकारी करने हेतु प्रेरित करना और अपेक्षित सुधार करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना ।
(5) छात्रों में अपने देश, धर्म, संस्कृति एवं मानवता के प्रति उचित दृष्टिकोण विकसित करना।
मूल्य शिक्षा के मार्गदर्शक सिद्धान्त-
विद्यालयों में मूल्य शिक्षा प्रदान करने हेतु निम्नवत् मार्गदर्शक सिद्धान्तों को दृष्टिगत रखना जरूरी है-
(1) संविधान में निर्देशित मूल अधिकार एवं कर्त्तव्य मूल्य शिक्षा के केन्द्र बिंदु होने चाहिए ।
(2) चूँकि मूल्य शिक्षा धार्मिक शिक्षा से अलग है, इसलिए मूल्य शिक्षा देते समय धर्म पर बल नहीं दिया जाना चाहिए।
(3) देश की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिस्थिति के अनुरूप मूल्य शिक्षा क्रियान्वित की जानी चाहिए।
(4) छात्रों को सभी शिक्षकों द्वारा मूल्य शिक्षा दी जानी चाहिए।
मूल्य शिक्षा हेतु सुझाव-
विद्यालयों में मूल्य शिक्षा दिए जाने से संबंधित निम्नवत् सुझाव दिए जा सकते हैं-
(1) मूल्य शिक्षा को विद्यालय पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए।
(2) विद्यालयों में मूल्य शिक्षा को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।
(3) नोटिस बोर्ड / बुलेटिन बोर्ड पर महापुरुषों के आदर्श वचन/उपदेश अंकित किए जाने चाहिए।
(4) शिक्षकों को मूल्यों की शिक्षा देने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
(5) विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली, प्रबन्ध एवं प्रशासन मूल्य आधारित होना चाहिए, जिससे छात्रों एवं शिक्षकों पर इसका प्रभाव पड़े।
(6) किसी भी शिक्षा संस्था में प्रवेश लेने हेतु दान या केपेटेशन शुल्क का निषेध किया जाना चाहिए।
(7) शिक्षक एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को किसी भी राजनैतिक पार्टी का सदस्य बनने एवं चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
(8) राजनीतिज्ञों एवं राजीतिक पार्टियों को किसी भी शिक्षा संस्था में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए।
Important Links
- मूल्य शिक्षा की विधियाँ और मूल्यांकन | Methods and Evaluation of value Education
- मूल्य शिक्षा की परिभाषा एवं इसके महत्त्व | Definition and Importance of value Education
- मूल्य का अर्थ, आवश्यकता, एंव इसका महत्त्व | Meaning, Needs and Importance of Values
- विद्यालय मध्याह्न भोजन से आप क्या समझते है ?
- विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य
- स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ एंव इसके लक्ष्य और उद्देश्य | Meaning and Objectives of Health Education
- स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य | Objectives of health education in schools
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव इसके महत्व | Meaning and Importance of Health in Hindi
- स्वास्थ्य का अर्थ एंव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
- स्वास्थ्य विज्ञान का अर्थ एंव इसके सामान्य नियम | Meaning and Health Science and its general rules in Hindi
- व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ एंव नियम | Meaning and Rules of Personal health in Hindi
- शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting Physical Health in Hindi
- एक उत्तम स्वास्थ्य का अर्थ एंव परिभाषा और इसके लक्षण
- बजट का अर्थ एंव इसकी प्रक्रिया | Meaning of Budget and its Process in Hindi
- शैक्षिक व्यय का अर्थ प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय व्यवस्था में होने वाले व्यय के प्रकार
- शैक्षिक आय का अर्थ और सार्वजनिक एवं निजी आय के स्त्रोत
- शैक्षिक वित्त का अर्थ एंव इसका महत्त्व | Meaning and Importance of Educational finance
- भारत में शैक्षिक प्रशासन की समस्याएं और उनकी समस्याओं के समाधान हेतु सुझाव
- प्राथमिक शिक्षा के प्रशासन | Administration of Primary Education in Hindi
Disclaimer