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विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य

विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य
विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य

विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य

स्वास्थ्य शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों पर विशेषज्ञों द्वारा सामान्य रूप से चर्चा की गई, लेकिन वस्तुतः परिवेश के आधार पर भिन्न-भिन्न स्थानों पर भी स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्यों में भिन्नता पाई जाती है। अतः स्कूल के विभिन्न स्तरों पर स्वास्थ्य शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्य अलग-अलग हैं।

प्राथमिक स्तर का उद्देश्य- प्राथमिक स्तर पर स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य दो प्रकार के हो सकते हैं

(i) व्यवहारात्मक

  • (अ) बच्चों को स्वास्थ्य का मूल्य बता कर शरीर तथा वस्त्रों के विषय में व्यक्तिगत स्वच्छता की आदतों का निर्माण करना।
  • (ब) बच्चों को उठने-बैठने, चलने-फिरने के उचित आसनों का अभ्यास व ज्ञान कराना।

(ii) अधिगम

  • (अ) बच्चों को स्वास्थ्य शिक्षा के व्यक्तिगत तथा सामाजिक महत्त्व को समझ सकने योग्य बनाना।
  • (ब) स्वास्थ्य के महत्त्व की जानकारी बच्चों को देना ।

माध्यमिक स्तर के उद्देश्य- माध्यमिक स्तर पर छात्रों की समझ विकसित हो जाती है। अतः इस पर निम्न बातों का ज्ञान बच्चों को कराना आवश्यक है-

(i) छात्रों के स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य शिक्षा के आपसी सम्बन्ध की जानकारी प्राप्त करने में सहायता देना।

(ii) बच्चों को शारीरिक व मानसिक विकास के लिए पौष्टिक व सन्तुलित आहार के महत्त्व का ज्ञान कराना।

(iii) छात्रों को शरीर की संरचना व विभिन्न कार्यरत प्रणालियों जैसे श्वास प्रणाली रक्त संचार तंत्र पाचन तंत्र आदि के विषय में ज्ञान करना।

(iv) आज के युग में दुर्घटनाएँ, जनसंख्या में तेजी से वृद्धि के कारण जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण में चौंका देने वाली गति से वृद्धि हो रही है। अतः इस स्तर पर छात्रों को यह जानकारी देना अति आवश्यक है कि प्रदूषण, गन्दगी, वातावरणीय समस्याओं व दुर्घटनाओं आदि से किस प्रकार सुरक्षा की जाए।

उच्चत्तर माध्यमिक स्तर पर उद्देश्य- शिक्षा के इस स्तर पर बच्चे किशोरावस्था में पदार्पण कर जाते हैं। उन्हें निम्न उद्देश्यों की जानकारी देना आवश्यक होता है-

  1. छात्रों को प्राथमिक चिकित्सा सम्बन्धी वांछित जानकारी देना।
  2. छात्रों को मद्यपान, धूम्रपान तथा अन्य नशीले पदार्थों के दुष्परिणामों से परिचित कराना।
  3. छात्रों को यौन, विवाह तथा जनसंख्या वृद्धि आदि के प्रभावों से परिचित कराना।
  4. छात्रों को विभिन्न प्रदूषण जैसे ध्वनि, जल तथा वायु आदि की वांछित जानकारी देना।
  5. छात्रों को स्वास्थ्य निर्माण तथा स्वास्थ्य सुधार के क्षेत्र में कार्य करने वाली विभिन्न संस्थाओं की जानकारी देना।
  6. छात्रों को शारीरिक व्यायाम, योग व प्राणायाम, खेलकूद के महत्त्व व स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों से इनके सम्बन्ध का ज्ञान कराना।
  7. बच्चों में स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करना ।
  8. छात्रों को व्यक्तिगत व सामाजिक स्वास्थ्य का ज्ञान कराना।

स्वास्थ्य शिक्षा में अध्यापक की भूमिका- स्वास्थ्य शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। घर में माता-पिता और स्कूलों में अध्यापकों पर बच्चों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी होती है। शिक्षक छात्रों के सखा, गुरू, परामर्शदाता तथा पथ-प्रदर्शक होता है। विद्यालयी रूपी इस बाग में शिक्षक एक बागवां के रूप में कार्य करता है। अतः स्वास्थ्य शिक्षा के अन्तर्गत शिक्षक छात्रों के स्वास्थ्य का विकास निम्न बातों व कार्यों के माध्यम से कर सकता है-

  1. छात्रों को स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों की जानकारी देकर उनका सर्वांगीण विकास करना।
  2. छात्रों में स्वास्थ्य सम्बन्धी अच्छी आदतों का विकास करना।
  3. विद्यार्थियों को व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व की जानकारी देना व नाखूनों, दाँत, वस्त्र व बालों आदि का दैनिक निरीक्षण करना।
  4. छात्रों को शौचालय व मूत्रालय के उचित प्रयोग व सफाई की जानकारी देना।
  5. रोगग्रस्त छात्रों को अलग-अलग रखना तथा उनके माता-पिता व स्वास्थ्य अधिकारी
  6. को सूचित करना। छात्रों को प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान कराना।
  7. छात्रों के आसन सम्बन्धी दोषों का पता लगाना व इन्हें दूर करने का प्रशिक्षण देना।
  8. छात्रों को संक्रामक रोगों के फैलने के करण प्रभाव लक्षण आदि की जानकारी देना व इनके बचाव के लिए टीकाकरण करवाना।
  9. बच्चों को पौष्टिक भोजन के महत्त्व व संतुलित आहार की जानकारी देना व स्कूलों में मिड डे भोजन का प्रबन्ध करना।
  10. उन्हें समुदाय स्वास्थ्य के नियमों से अवगत कराना, जैसे- सड़क पर व सार्वजनिक जगहों पर गन्दगी न डालना, पेशाब न करना व जगह-जगह न थूकना।
  11. समय-समय पर छात्रों के कद व भार का निरीक्षण करना व उचित निर्देश देना ।
  12. छात्रों को नशीले पदार्थों व द्रव्यों से होने वाली हानियों व कुप्रभावों से अवगत कराना।
  13. चिकित्सक, योग विशेषज्ञों तथा स्वास्थ्य अधिकारियों को समय-समय पर आमन्त्रित कर उनके विचारों, परामर्श तथा वाद-विवाद से छात्रों को लाभान्वित कराना।
  14. छात्रों को स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास कर व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व का ज्ञान कराना।
  15. स्कूलों में स्वास्थ्य दिवस, स्वास्थ्य सप्ताह तथा स्वास्थ्य परिषद् का आयोजन करना।
  16. शिक्षक व्यक्तिगत सफाई, स्वस्थ आदतों व अपने अच्छे व्यवहार से स्वयं को एक आदर्श के रूप में भी बच्चों के सामने प्रस्तुत कर सकता है। इस प्रकार का जीवित उदाहरण बच्चों को अधिक प्रभावित करता है।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि छात्रों में स्वास्थ्य शिक्षा के प्रति जागरूकता पैदा करने में शिक्षक की एक अहम् भूमिका होती है। लेकिन यह तभी सम्भव है जब शिक्षक में भी अच्छी आदतें विद्यमान हो और वह बच्चों के आदर्श के रूप में जाने जाएँ। रोजर्स शिक्षक की भूमिका के महत्त्व के बारे में कहते हैं, “स्कूली छात्रों के अध्ययन में अध्यापक के आंख और कान मुख्य साधन हैं।”

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