कोमल सामग्री का अर्थ अथवा कोमल तकनीकी किसे कहते है?
कठोर सामग्री तकनीकी की भांति कोमल सामग्री तकनीकी भी शैक्षिक तकनीकी का एक अभिन्न अंग है। जिस प्रकार मन के बिना शरीर का कोई अस्तित्त्व नहीं होता, उसी प्रकार कोमल सामग्री के बिना शैक्षिक तकनीकी अधूरी है। वास्तविकता तो यह है कि कठोर सामग्री तकनीकी और कोमल सामग्री तकनीकी दोनों मिलकर शैक्षिक तकनीकी का निर्माण करते हैं। दोनों तकनीकें स्वयं में स्वतन्त्र रूप से कार्य नहीं कर सकती हैं। दोनों का परस्पर सम्मिलन, सहयोग और समान उत्तरदायित्व ही शैक्षिक तकनीकी की क्रिया प्रणाली का मूल आधार है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोमल शिल्प तकनीकी और कठोर शिल्प तकनीकी एक दूसरे पूरक रूप में कार्य करते हैं। इन दोनों को एक सिक्के के दो पहलू कहा जाय तो गलत न होगा।
शैक्षिक तकनीकी अपने मूल रूप में शिक्षा और शिक्षण में एक सहायक सामग्री की. तरह प्रयुक्त की जाती है। सहायक सामग्री कोई भी हो सकती है, किन्तु जब वह विज्ञान, मनोविज्ञान और अभियान्त्रिकी के क्षेत्र से ली जाती है, तो शैक्षिक तकनीकी का स्वरूप ले लेती है। विज्ञान के जितने भी उपकरण शैक्षिक तकनीकी में ग्रहण किये जाते हैं, सभी में जो कठोर, दिखायी देने वाले तथा छूने योग्य भाग हैं, वे कठोर तकनीकी के अन्तर्गत आते हैं तथा जो कोमल भाग हैं वे कोमल तकनीकी में शामिल किये जाते हैं। कोमल तकनीकी में सम्मिलित किये गये उपकरण व्यवहार में नाजुक, लचीले, सूक्ष्म तथा कोमल होते हैं तथा अदृश्य भी हो सकते हैं। अदृश्य शब्द का कोमल तकनीकी में विशेष महत्त्व है। अदृश्य से हमारा तात्पर्य विज्ञान, मनोविज्ञान, गणित और अभियान्त्रिकी के वे सूक्ष्म सिद्धान्त हैं जो दृष्टिगोचर तो नहीं होते किन्तु उनकी महत्ता सबसे अधिक होती है। इस प्रकार कोमल तकनीकी के अन्तर्गत जो सामग्री आती है, वह दिखायी देने वाली भी हो सकती है और अदृश्य भी हो सकती है।
कोमल तकनीकी में प्रयुक्त होने वाली दृश्य सामग्री प्रायः लचीले, मुलायम अथवा तरल पदार्थों से बनी होती है। उदाहरण के लिए फिल्म प्रोजेक्टर मशीन तो कठोर उपागम (उपकरण) कहलाती है, किन्तु उसमें लगायी जाने वाली फिल्म या रील को कोमल उपागम कहा जायेगा। इसी प्रकार टेप रिकार्डर में प्लेयर मशीन तथा ठोस मजबूत पुर्जों को कठोर उपकरण और रील से जुड़े कैसेट को कोमल उपकरण के रूप में जाना जायेगा। ये उपकरण जिस वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, यान्त्रिक अथवा गणितीय सिद्धान्तों पर कार्य करते हैं, उन्हें भी कोमल सामग्री के रूप में जाना जायेगा।
कोमल सामग्री तकनीकी का स्वरूप तथा प्रकृति
कोमल सामग्री के स्वरूप को निम्नलिखित दो भागों में बाटा जा सकता है।
(1) दृश्य कोमल सामग्री-दृश्य कोमल सामग्री को हम साधारण रूप में आँखों से अथवा दूरदर्शी और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देख सकते हैं। हम इस सामग्री को छूकर उसके भौतिक गुणों का अनुभव भी कर सकते हैं। शिक्षण के लिए अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री, ट्रान्सपेरेन्सीज, स्लाइड लिखित सामग्री तथा रिकार्डेड सामग्री आदि को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।
(2) अदृश्य कोमल सामग्री- अदृश्य कोमल सामग्री के अन्तर्गत हम उन सूक्ष्म भाव प्रधान साधनों को सम्मिलित करते हैं, जिन्हें न तो आंखों से देख सकते हैं और न उनको स्पर्श कर सकते हैं। इनमें शिक्षण को प्रभावी बनाने वाले उन सिद्धान्तों, शिक्षण नीतियों और संकल्पनाओं का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें हम केवल अनुभव कर सकते है। उदाहरण के रूप में प्रेरण, उद्दीपन, पृष्ठपोषण, व्यूह रचनायें प्रक्रिया और पुनर्बलन आदि के नाम अदृश्य कोमल सामग्री के रूप में लिए जा सकते हैं।
कोमल सामग्री का बाह्य आकार और स्वरूप तो कठोर सामग्री से नितान्त भिन्न होता है, किन्तु प्रकृति दोनों की एक जैसी होती है, दोनों का उद्देश्य छात्रों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाना है। दोनों ही प्रकार की सामग्रियां वैज्ञानिक प्रकृति को अपनाते हुए शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया के दौरान छात्रों में सृजनात्मकता भी उत्पन्न करती है। इसके इसी गुण के कारण सिलवरमैन ने इसे सृजनात्मक शैक्षिक तकनीकी भी कहा है। यह तकनीकी छात्रों की ग्रहण-
क्षमता में वृद्धि करती है, उनमें सक्रियता बढ़ाती है तथा पाठ्य-वस्तु को रोचक बनाकर उन्हें स्वाध्याय के लिए प्रेरित करती है।
कोमल सामग्री के प्रकार
कोमल सामग्री के वर्गीकरण में दो आधार लिए जा सकते हैं। पहला आधार सामग्री के स्त्रोत का और दूसरा उपयोग की विधि का है। कोमल सामग्री के अग्रलिखित प्रमुख स्रोत होते हैं- 1. भौतिक विज्ञान, 2. रसायन विज्ञान, 3. जीव विज्ञान, 4. मनोविज्ञान, 5. गणित, 6. अभियान्त्रिकी।
कोमल सामग्री का वह वर्ग जिसे देखकर, छूकर उसके बाह्य रंग-रूप का आंकलन कर व्यवहार में लाया जाता है, वह प्रायः भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव-विज्ञान और अभियान्त्रिकी आदि स्रोतों से प्राप्त होता है। कभी-कभी इस सामग्री में उक्त सभी विज्ञानों का मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है। उदाहरण लिए जीव-जन्तुओं के शरीर के नमूने, के मानव-शरीर, मानव-अंग, मानव-स्वर इस श्रेणी में शामिल किये जा सकते हैं। फिल्म पट्टियाँ ‘भौतिक विज्ञान और रसायन विज्ञान दोनों को मिले-जुले गुणों का प्रतिनिधित्व करती है। मानचित्र, कोमल प्रतिरूप, नमूने, अभिक्रमित सामग्री, ट्रांसपेरेन्सीज की शीट आदि के ऊपर वर्णित समस्त स्रोतों का स्वरूप देखा जा सकता है।
उपयोग विधि के आधार पर कोमल सामग्री को निम्न भागों में विभाजित किया जाता है-
1. मूर्त अथवा दृश्य सामग्री-मूर्त अथवा दृश्य सामग्री का पहले भी पर्याप्त वर्णन किया जा चुका है। इस कोटि के प्रमुख उपकरणों में चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र, फिल्म-पट्टियाँ, स्लाइड, ग्राफिकल प्रेजेन्टेशन आफ डाटा, आडियो वीडियो कैसेट, चूर्ण तथा सरल रूप में विभिन्न प्रकार की वस्तुयें और वनस्पतियों, जीव जन्तुओं तथा मानव शरीर के कोमल अंगों आदि के उदाहरण दिये जा सकते हैं।
2.अमूर्त अथवा अदृश्य सामग्री-अमूर्त अथवा अदृश्य सामग्री का कोमल सामग्री तकनीकी में विशेष महत्त्व होता है। इसके अन्तर्गत स्त्रोतों के रूप में ऊपर बताये गये समस्त विज्ञानों के नियमों तथा सिद्धान्तों का समावेश किया जाता है। हम इन सिद्धान्तों और स्थापित तथ्यों को देखकर तथा स्पर्श करके व्यवहार में तो नहीं ला सकते हैं। किन्तु अनुभव द्वारा इनका ज्ञान अवश्य प्राप्त कर सकते है। कोमल सामग्री की महत्ता प्रतिपादित करने के लिए इसकी तुलना शरीर और प्राण से की जा सकती है जिस प्रकार शरीर के अस्तित्त्व के लिए प्राण-शक्ति का होना परम आवश्यक है, उसी प्रकार शैक्षिक तकनीकी शिल्प रूपी शरीर के कोमल शिल्प रूपी प्राण का होना बहुत जरूरी है। कठोर शिल्प के जितने भी उपकरण हैं, सभी कोमल शिल्प में समाविष्ट किये गये नियमों, सिद्धान्तों, और अवधारणाओं के आधार पर ही कार्य करते हैं। इस शिल्प के प्रमुख उदाहरणों के रूप में शिक्षण अधिगम के नियम व सिद्धान्त, अनुदेशन तकनीकी, बहुइन्द्रिय, अनुदेशन, कम्प्यूटर, सह अनुदेशन, भाषा तकनीक, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, शैक्षिक व्यावसायिक निर्देशन परामर्श, शैक्षिक प्रबन्धन, विद्यालय प्रबन्धन, पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या तथा अनुशासन आदि नाम गिनाये जा सकते हैं।
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